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इमाम मोहम्मद तक़ी की शहादत

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इमाम मोहम्मद तक़ी की शहादत

मासूम इमाम अंधेरी रातों में ऐसे चमकते हुए तारे हैं, जो थके हारों और रास्ता भटकने वालों की मदद करते हैं।

इसलिए उनके जीवन का अध्ययन करने से हमारे जीवन को रास्ता मिल सकता है। वे मुक्तिदाता और ईश्वर की रस्सी हैं, जो हमें भटकाने वाले मतों एवं विचारधाराओं के भंवर से निकलने में मदद कर सकती है। इमाम मोहम्मद तक़ी (अ) ऐसे चमकदार तारों में से एक हैं। इमाम का काल इस्लामी जगत के विस्तार का काल था। इस काल में इस्लामी संस्कृति का अन्य संस्कृतियों और धर्मों से आमना सामना हुआ। इमाम मोहम्मद तक़ी (अ) का वजूद एक ऐसा बांध था, जो इस्लामी संस्कृति के चेहरे से हर तरह की विकृति को दूर कर देता है और इस्लामी शिक्षाओं के स्वच्छ सोते को लोगों तक पहुंचाता है।

 

शिया मुसलमानों के नवें इमाम शिया इमामों के बीच ऐसे पहले ईश्वरीय मार्गदर्शक हैं, जिन्होंने बचपन में ही इमामत का पद भार संभाला। वे 203 हिजरी में सात वर्ष की आयु में अपने पिता की शहादत के बाद इमाम बने। उन्होंने युवा विद्वान के रूप में मुसलमानों का मार्गदर्शन इस प्रकार से किया कि दोस्त हो या दुश्मन हर कोई आश्चर्यचकित रह गया। वार्ता, बहस, सवालों के जवाब और उनके उपदेश इस बात का स्पष्ट सुबूत हैं।

प्रकृति के अनुसार, युवाओं में विभिन्न विचारों और दृष्टिकोणों को जानने की अधिक रूची होती है। वे नए एवं विभिन्न विचारों के बीच बेहतर और प्रासंगिक विचारों का चयन करते हैं। युवाओं के दिलों में ज्ञान का बीज बोना सबसे महत्वपूर्ण पूंजी है। इमाम मोहम्मद तक़ी ज्ञान के महत्व का उल्लेख करते हुए फ़रमाते हैं, तुम्हें ज्ञान हासिल करना चाहिए, इसलिए कि वह सभी के लिए अनिवार्य है और ज्ञान एवं अध्ययन के बारे में बात एक अच्छ काम है। यह धार्मिक भाई बंधुओं के बीच रिश्ते को मज़बूत बनाता है और यह उच्च व्यक्तित्व की निशानी है, बैठकों के लिए उचित उपहार है, तनहाई और सफ़र में दोस्त और हमदम है।

 

इमाम जवाद के अनुसार, एक मुस्लिम युवक के लिए उचित है कि वह ज्ञान और शिक्षा पर ध्यान दे और उसे अपना उचित दोस्त और साथी बनाए। अपने दोस्तों का चयन समझदारी और ज्ञान के आधार पर करे और अपने सामाजिक व्यक्तित्व का निर्धारण ज्ञान के आधार पर करे। इमाम मोहम्मद तक़ी (अ) के अनुसार, उत्कृष्टता तक पहुंचने के लिए ज्ञान और शिक्षा एक महत्वपूर्ण मार्ग है, वे उत्कृष्टता और सत्य की खोज करने वाले लोगों से सिफ़ारिश करते हुए कहते हैं कि अपनी वैध इच्छाओं और लोक एवं परलोक में उच्च स्थान पर पहुंचने के लिए इस प्रासंगिक ऊर्जा से लाभ उठाएं। वे फ़रमाते थे कि चार चीज़ें अच्छे काम करने का कारण होती हैं, स्वास्थ्य, समृद्धता, ज्ञान एवं ईश्वरीय कृपा।

 

इसलिए युवाओं समेत सभी के लिए ज़रूरी है कि जवानी से लाभ उठाते हुए ज्ञान और शिक्षा प्राप्त करें और ज्ञान को अपने जीवन का उद्देश्य बना लें।

आज के युवाओं के सामने एक अच्छे दोस्तों का एक सर्किल बनाना एक बड़ी चुनौती है। लेकिन यहां यह सवाल है कि क्या लोग दोस्तों को विकास का कारण मानते हैं या नहीं।

 

इमाम जवाद (अ) की एक सुन्दर हदीस है कि निश्चित रूप से उस व्यक्ति ने तुमसे दुश्मनी की है, जिसने साथ उठने बैठने के बावजूद विकास का वातावरण उत्पन्न नहीं किया है। इसलिए कि उसके साथ तुम्हारी दोस्ती इसलिए हुई थी कि वह तुम्हारी ज़रूरतों को पूरा करे।

अकसर दोस्ती का सर्किल उस समय बनता है, जब कुछ लोग एक दूसरे की ज़रूरतें पूरी करने के लिए आगे बढ़ते हैं। हमारे महान इमाम के अनुसार, इस प्रकार की दोस्ती का आधार अगर ज्ञान और नैतिकता नहीं होगी तो यह दुश्मनी में बदल सकती है, जैसा कि क़ुराने मजीद उल्लेख करता है कि प्रलय के दिन की दोस्ती दुश्मनी में नहीं बदलेगी, क्योंकि उसका आधार सद्गुण हैं। सद्गुण इंसान के लिए विकास का मार्ग प्रशस्त करते हैं। कभी दो लोगों के बीच दोस्ती सामाजिक विकास के मार्ग में रुकावट बनती है। इस संदर्भ में इमाम मोहम्मद तक़ी फ़रमाते हैं, बुरे लोगों से दोस्ती करने के प्रति सचेत रहो, इसलिए कि वे धारदार तलवार की भांति होते हैं, यद्यपि उनका ज़ाहिर सुन्दर होता है, लेकिन उसकी धार इंसान के वजूद को काट कर रख देती है।

 

विशेषज्ञों का मानना है कि युवा दोस्ती करने में भावनाओं से प्रभावित होते हैं और इस विषय के बारे में नहीं सोचते कि कल यह दोस्ती टूट सकती है, इसी कारण दोस्ती में हद से गुज़र जाते हैं, ऐसी स्थिति में वह युवा जो परिवार से हटकर दोस्तों के बीच सुरक्षा की खोज करता है और बड़े होकर एक स्वाधीन व्यक्ति के रूप में व्यवहार करता है, वह समस्या ग्रस्त हो जाएगा।

इमाम जवाद (अ) समय को पहचानने का आहवान करते हुए फ़रमाते हैं, जो भी समय को नहीं पहचानेगा, घटनाक्रम उसे बंधक बना लेंगे और वह नष्ट हो जाएगा।

 

धार्मिक शिक्षाओं के अनुसार, दोस्त एक दूसरे से प्रभावित होते हैं। यह प्रभाव अनजाने तौर पर और चरणबद्ध तरीक़े से होता है और समय बीतने के साथ साथ इसमें वृद्धि होती रहती है। इसीलिए सिफ़ारिश की गई है कि रास्ते में मिलने वाले हर व्यक्ति पर तुरंत भरोसा नहीं करना चाहिए। बल्कि पहले उसे आज़मायें और जब दोस्ती के लिए उसकी योग्यता को परख लें और जब उसे दोस्ती के लिए उचित पायें तो फिर दोस्ती के लिए उसका चयन करें।

 

इमाम मोहम्मद तक़ी (अ) के अनुसार, युवाओं को अपनी रूचियों और दूसरों की बातों को सही एवं बौद्धिक पैमाने पर रखकर परखना चाहिए और अपने दोस्त और मार्ग को वास्तविक मानदंड के आधार पर चुनना चाहिए। दूसरी हदीस में इमाम फ़रमाते हैं, अगर कोई किसी बोलने वाले की बात को सुन रहा है, तो मानो वह उसकी इबादत कर रहा है, बोलने वाला अगर ईश्वर की बात कर रहा है, तो सुनने वाले ने ईश्वर की इबादत की है और अगर शैतान की बात कर रहा है तो सुनने वाले ने भी शैतान की पूजा की है।

 

हालांकि ज्ञान और शिक्षा के मैदान में प्रयास करके उच्च स्थान पर पहुंचने वाले युवकों की कमी नहीं है। जो दास्तान हम आपको सुनाने जा रहे हैं, उसमें इस बिंदु का उल्लेख है।

जब इब्ने अब्दुल अज़ीज़ ख़लीफ़ा बना, लोग दूर दूर से उसे बधाई देने के लिए जाने लगे। एक दिन हिजाज़ के कुछ लोग इसी उद्देश्य से उसके सामने उपस्थित हुए। मुलाक़ात के शुरू में ही ख़लीफ़ा ने देखा कि एक लड़का कुछ कहना चाहता है। उसने उसे संबोधित करते हुए कहा, ए बच्चे पीछे हटो ताकि तुम्हारे बड़ों में से कोई बात करे। उस लड़के ने तुरंत जवाब दिया, हे ख़लीफ़ा, अगर बड़ा होना ही मानदंड है तो तुम क्यों ख़िलाफ़त की कुर्सी पर विराजमान हो? क्योंकि तुमसे बड़े भी यहां पर मौजूद हैं।

 

इब्ने अब्दुल अज़ीज़ को बच्चे की होशियारी और हाज़िर जवाबी पर आश्चर्य हुआ और उसने कहा, तुम्हारी बात बिल्कुल सही है। जो तुम्हे कहना है कहो और मुझे उपदेश दे सकते हो। युवक ने कहा, हे ख़लीफ़ा, दो चीज़ें शासकों को अंहकारी बना देती हैं। पहली चीज़ ईश्वर का धैर्य और दूसरी लोगों की चापलूसी। बहुत सचेत रहना कि उनमें तुम्हारी गिनती न हो, वरना लड़खड़ा जाओगे और उन लोगों में तुम्हारी गितनी होगी जिनके बारे में ईश्वर ने कहा है कि उन लोगों में से न हो जो सुनने का दावा करते हैं, हालांकि वे नहीं सुनते हैं।

 

वह महत्वपूर्ण बिंदु जिस पर इमाम जवाद ने बल दिया है, लोगों का व्यक्तित्व है। इंसान अपनी बातचीत और चाल चलन से परखा जाता है और अपनी शिक्षा एवं प्रशिक्षा से समाज का विकास करता है। इमाम हमेशा इस बिंदु पर बल देते थे। वे फ़रमाते हैं, विनम्रता ज्ञान को निखारती है, शिष्टाचार और नैतिकता बुद्धि को निखारती है और इन विशिष्टताओं से सुसज्जित लोगों के साथ विनम्रता से पेश आना दूरदर्शिता है।

 

इमाम जवाद अन्य मासूम इमामों की भांति इस्लाम धर्म और हज़रत अली (अ) के सिद्धांतों के रक्षक थे। यही कारण है कि जब मोअतसिम अब्बासी को इमाम की लोकप्रियता और धार्मिक गतिविधियों की जानकारी हुई तो उसने इमाम को बग़दाद आने के लिए बाध्य किया और उन्हें ज़हर देकर शहीद कर दिया। इसलिए कि यह अत्याचारी ख़लीफ़ा इमाम को अपने रास्ते में सबसे बड़ा ख़तरा समझता था। इस प्रकार, शिया मुसलमानों के नवें इमाम शहीद कर दिए गए। हम इस दुखद अवसर पर आप सभी की सेवा में संवेदना प्रकट करते हैं।

 

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