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हेजाब

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हेजाब

हेजाब

ईश्वरीय धर्मों विशेष रूप से इस्लाम में हेजाब एक पवित्र शब्द है। हेजाब महिला की प्रवृत्ति का भाग है इसलिए पूरे मानव इतिहास में महिलाएं स्वाभाविक रूप से हेजाब की ओर उन्मुख रहीं। दांपत्य जीवन में स्थिरता, महिलाओं की सुरक्षा, यौन भ्रष्टाचार की रोकथाम, स्वस्थ समाज की रचना, महिला के स्थान की सुरक्षा और समाज की आम मर्यादाओं की रक्षा, हेजाब के प्रभाव में शामिल हैं। इसके अतिरिक्त सभा में महिला की सही उपस्थिति तथा विभिन्न मंचों पर उसकी उपयोगी उपस्थिति के लिए प्रभावी तत्व है।

पिछली शताब्दी से हेजाब को एक महत्वपूर्ण सांस्कृतिक चिंता के रूप में देखा जा रहा है कि जिससे बहुत से सामाजिक संबंध प्रभावित हुए हैं यहां तक कि कुछ पश्चिमी समाजों में महिलाओं में हेजाब की ओर रुझान को पूंजिपतियों व राजनेताओं के हितों के लिए ख़तरा समझा जा रहा है। इसके विपरीत साम्राज्यवादी और शैतानी ताक़तें विभिन्न शैलियों से हेजाब के स्थान पर महिलाओं में बेहेजाबी और अश्लीलता लाना चाहती हैं। वे, स्वतंत्रता, पुरुष और महिला के समान अधिकार जैसे धूर्त्तापूर्ण नारों की आड़ में अपने इस बुरे लक्ष्य को व्यवहारिक बनाते हैं। उदाहरण स्वरूप अलजीरिया पर नियंत्रण के लिए फ़्रांसीसी साम्राज्यवादी इस निष्कर्श पर पहुंचे कि इस समाज के ताने बाने को उखाड़ कर उनकी क्षमताओं को समाप्त कर दें और इस काम के लिए उन्होंने सबसे पहले महिलाओं को प्रयोग किया। फ़्रांसीसी साम्राज्यवादियों ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि यदि महिलाओं को अपने नियंत्रण में कर लें तो सभी चीज़ें उसके पीछे पीछे चली आएंगी। ब्रिटेन के उपनिवेश मंत्रालय भी अट्ठारहवी शताब्दी में इस्लामी देशों पर क़ब्ज़ा करने के मार्गों में से एक मार्ग महिलाओं में बेहेजाबी के चलन को मानता था।

ईरान में पिछली एक शताब्दी के दौरान साम्राज्य ने अपने पिट्ठु द्वारा महिलाओं में बेहेजाबी के चलन के लिए बहुत प्रयास किए। इस संदर्भ में रज़ा शाह पहलवी ने तुर्की के दौरे की वापसी पर ईरान में धार्मिक मूल्यों विशेष रूप से हेजाब को ख़त्म करने के लिए विभिन्न शैलियां अपनायीं और उसने तुर्की के तानाशाह अतातुर्क की ओर से हेजाब रोकने के लिए अपनायी गयी शैली का अनुसरण करते हुए ऐसा किया था। इस प्रकार रज़ा शाह ने 7 जनवरी 1936 को महिलाओं के हेजाब पर रोक लगाने की आधिकारिक रूप से घोषणा की। इस क़ानून के बनने से बहुत सी महिलाएं जो अपना हेजाब नहीं उतारना चाहती थीं, घर में नज़रबंद होकर रह गयीं। महिलाओं के विश्वविद्यालय में प्रवेश पर रोक लग गयी और महिला शिक्षक भी बेहेजाब अवस्था में स्कूल जाने पर मजबूर हुयीं। ईरान के शहरों में पुलिस महिलाओं व लड़कियों के सिरों से हेजाब खींच लेती थी। इसके बावजूद महिलाएं अपने आवरण की रक्षा के लिए प्रतिरोध करती थीं और अंततः 1941 में रज़ा शाह ईरान से चला गया और हेजाब पर लगी रोक भी ख़त्म हो गयी।

इस प्रकार ईरानी महिलाओं ने सिद्ध कर दिया कि वे धार्मिक मूल्यों विशेष रूप से हेजाब की संरक्षक हैं। ईरान में जिस समय इस्लामी क्रान्ति जारी थी, महिलाओं ने सभी मंचों पर हेजाब का पालन करते हुए पुरुषों के साथ पहलवी शासन से संघर्ष किया। आज भी हम देख रहे हैं कि ईरान की प्रतिभाशाली महिलाएं सभी सामाजिक, आर्थिक, वैज्ञानिक व खेल के मैदान में प्रभावी रूप से सक्रिय हैं। यही कारण है कि वर्तमान स्थिति में भी ईरान के शत्रु ईरान में बेहेजाबी की संस्कृति को फैलाने का प्रयास कर रहे हैं। इस संदर्भ में इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा सय्यद अली ख़ामेनई बल देते हैं कि साम्राज्यवादी सरकारों के कुछ गुप्तचर तंत्र इस्लामी क्रान्ति से मुक़ाबले के लिए ईरानी समाज में भ्रष्टाचार और नैतिक गिरावट के प्रसार तथा युवाओं के इस ओर बहकाव को सबसे प्रभावी मार्गों में मानते हैं।

हर व्यक्ति की पहचान और उसका व्यक्तित्व उसकी जीवन शैली और स्वाभाव पर निर्भर होता है। हेजाब व आवरण मुसलमान महिला के स्वाभाव और उसकी सही जीवन शैली को दर्शाता है। प्रश्न यह उठता है कि साम्राज्यवादी और उसके पिट्ठू, मुसलमान महिलाओं के हेजाब करने से इस सीमा तक क्यों भयभीत हैं और हेजाब करने वाली महिलाओं का विरोध क्यों करते हैं?

हेजाब का सबसे बड़ा प्रभाव, नग्न संस्कृति से दूरी और परिवार व समाज की मज़बूती के रूप में सामने आता है। इस बात में संदेह नहीं कि इस्लामी देशों में नग्नता में विस्तार को साम्राज्यवादी उन पर क़ब्ज़ा करने के महत्वपूर्ण हथकंडे के रूप में देखते हैं। साम्राज्यवादी, देशों के विशाल आर्थिक और मानवीय स्रोतों को लूटने तथा उन पर राजनैतिक वर्चस्व जमाने के लिए सबसे पहले सांस्कृतिक हथकंडा अपनाकर देशों को भीतर से खोखला करते हैं ताकि इस प्रकार उन पर क़ब्ज़ा कर सकें। इस्लामी देशों में पश्चिम, धार्मिक पहचान में कमी या महिलाओं में बेहेजाबी को सबसे प्रभावी हथकंडा समझता है। स्पेन के इतिहास के अध्ययन से पता चलता है कि मुसलमानों में आस्थाओं की ओर से लापरवाही, महिलाओं में बेहेजाबी का चलन, तथा पुरुषों में भ्रष्टाचार, इस देश पर पश्चिम के राजनैतिक वर्चस्व का कारण बना था।

विगत से आज तक मुसलमान महिला की पहचान को ख़त्म करने के लिए हेजाब को ख़त्म करने की कोशिश निरंतर जारी है ताकि महिला अपने व्यक्तित्व व आकांक्षाओं की रक्षा के बजाए वर्चस्ववादियों व पूंजीपतियों की लक्ष्यों को पूरा करे। महिलाओं में बेहेजाबी और मुसलमान समाज में अश्लीलता व नैतिक भ्रष्टाचार को बढ़ावा देना, साम्राज्यवादियों के लक्ष्य हैं क्योंकि साम्राज्यवादी तत्व इस्लामी देशों की राष्ट्रीय एवं धार्मिक संस्कृति में पैठ बनाने के लिए हेजाब की समाप्ति को सबसे महत्वपूर्ण समझते हैं।

इस संदर्भ में ब्रिटेन का पुराना जासूस मिस्टर हम्फ़्रे कहता है, “ महिलाओं को बेहेजाब करने के लिए बहुत अधिक कोशिश करना चाहिए ताकि मुसलमान महिलाएं बेहेजाबी की ओर लालायित हों। महिलाओं से उनका हेजाब उतरवाने के बाद युवाओं को उनके पीछे पड़ने के लिए उकसाएं ताकि मुसलमानों के बीच भ्रष्टाचार प्रचलित हो।”

पश्चिम में हेजाब से घृणा का कारण यह भी है कि पश्चिम महिला को एक आम व व्यापारिक यौन उत्पाद तथा पुरुषों की अवैध इच्छाओं को पूरा करने वाली साधन के रूप में चाहता है। वे महिलाओं की स्वतंत्रता के नाम पर उसे बेलगाम यौन संबंध बनाने तथा अनुचित कपड़े पहनने के लिए प्रेरित करते हैं।

न्यूयॉर्क में महिलाओं के मामलों के कार्यकर्ता सबालूस कहते हैं,“ हमारे समाज में महिला पुरुषों का समर्थन पाने के लिए सौंदर्य के हास्यास्पद मानदंड की भेंट चढ़ती है। हमने स्वतंत्रता के नाम पर कूड़ेदान बनाया है और उसमें हर उस चीज़ को डाल दिया है जिसे हम महिलाओं की स्वतंत्रता को सीमित करने वाला समझते हैं।” इस संदर्भ में इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता कहते है, “ पश्चिम की नज़र में आप महिलाएं हेजाब न करें इसका कारण यह नहीं है कि वे आपकी स्वतंत्रता चाहते हैं बल्कि इसका कारण कुछ और है। पश्चिम महिला को पुरुष की आंखों के स्पर्श और अवैध संबंध के लिए चाहता है।”

साम्राज्य महिलाओं को हेजाब से दूर करने के लिए, उनके नैतिक मूल्यों में परिवर्तन लाने का प्रयास कर रहा है। शत्रु इस बात को समझ चुका है कि पश्चिम विरोधी इस्लामी देशों से युद्ध प्रभावी मार्ग नहीं है क्योंकि वे ईमान की शक्ति से मुक़ाबला करते हैं। इसलिए वह नर्म युद्ध अर्थात मनोबल, ईमान और आस्था को कमज़ोर करने की कोशिश कर रहा है। स्पष्ट सी बात है कि युवाओं में बेलगाम यौन संबंध व बेहेजाबी का चलन नर्म युद्ध की महत्वपूर्ण शैली है। फ़्रांस के इस्लाम विरोधी लेखक मीशल हुलबाक कहता है, “ मुसलमानों को मार कर इस्लाम के ख़िलाफ़ जंग नहीं जीती जा सकती केवल उन्हें भ्रष्ट बनाकर इस सफलता को प्राप्त किया जा सकता है। इसलिए मुसलमानों के सिरों पर बम गिराने के बजाए मिनी स्कर्ट गिराएं।”

जबसे साम्राज्यवादियों की ललचायी नज़र इस्लामी देशों के स्रोतों पर पड़ी, उस समय से उन्होंने हेजाब को निशाना बनाया क्योंकि वे मुसलमान महिलाओं के हेजाब को इस्लाम की पहचान और पूरे मुसलमान समाज के इस्लामी व्यक्तित्व की स्वाधीनता के बाक़ी रहने का बड़ा कारण मानते हैं और इसे अपने राजनैतिक व आर्थिक पैठ बनाने के मार्ग में रुकावट समझते हैं। पश्चिमी सरकारें समझ गयी हैं कि हेजाब महिलाओं की सबसे मज़बूत ढाल है। पश्चिमी सरकारें यह भी समझती हैं कि यदि वे हेजाब को महिलाओं के सिर से उतरवाने में सफल हो जाएं तो बाद वाले क़दम उठाना उनके लिए सरल हो जाएगा।

इस संदर्भ में प्रसिद्ध ईरानी बुद्धिजीवी उस्ताद शहीद मुर्तज़ा मुतह्हरी लिखते है, “ बेहेजाबी न केवल यह कि पश्चिम के नीच पूंजीवादी समाज की पहचान का हिस्सा और पश्चिमी पूंजीपतियों के भोग विलास और भौतिकवाद का बुरा परिणाम है बल्कि ऐसा साधन है जिसे वे मानव समाजों को संवेदनहीन बनाने और उन्हें ज़बरदस्ती अपनी वस्तुओं का उपभोक्ता बनाने के लिए प्रयोग करते हैं।”

बेहेजाबी का एक दुष्परिणाम यह है कि इससे श्रंगार की चीज़ों और अश्लील वस्त्र ख़रीदने पर ग़ैर ज़रूरी ख़र्च बढ़ता है। इस बात में संदेह नहीं कि इन चीज़ों से पूंजीपति बहुत लाभ कमाते हैं। उस्ताद मुतह्हरी लिखते है, “ हेजाब का एक उच्च परिणाम पश्चिम की ओर से पेश की गयी उपभोक्तावादी संस्कृति का अंत और उनके रंगीन बाज़ारों की चहल-पहल का ख़त्म होना भी है। इसी सिद्धांत के अनुसार साम्राज्य विभिन्न अप्रत्यक्ष हथकंडों से हेजाब को क्षति पहुंचाना चाहता है। क्योंकि वह धागे के इस मज़बूत मोर्चे को तोड़ना चाहता है ताकि फ़ैशन फैलाने वाले, सूत की कतायी, महिलाओं के रंगीन कपड़ों की बुनायी, श्रंगार के ज़रूरी उपकरण, और नाना प्रकार के रंगों के उत्पादन के कारख़ने का चक्र चल पड़ें और इस प्रकार करोड़ों महिलाओं की ज़रूरतों को कि जिसका कारण स्वयं साम्राज्य है, पूरी करे।”

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