इस वर्ष हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम का चेहलुम, श्रद्धालुओं की भव्य उपस्थिति से मुसलमानों के मध्य एकता का सबसे बड़ा प्रतीक बन गया है।
ईरान सहित दुनिया के दो करोड़ से अधिक तीर्थयात्री और श्रद्धालु चेहुलुम के दिन करबला पहुंचने का प्रयास कर रहे हैं जबकि दसियों लाख श्रद्धालु करबला पहुंचकर जूलूसों, शोक सभाओं और विभिन्न कार्यक्रमों में उपस्थित हैं। नन्हें बच्चों से लेकर 80 साल के बूढ़े तक यात्रा की कठिनाईयां सहन करके करबला की ओर रवाना हैं।
हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के अज़ादार लब्बैक या हुसैन के नारे लगाकर मानो यह कहना चाहते हैं कि हे इमाम यद्यपि हम करबला के मैदान में नहीं थे किन्तु आज भी हम समय के यज़ीद अमरीका और ज़ायोनी शासन, दाइश, नुस्रा फ़्रंट और अलक़ायदा जैसे आतंकियों और साम्राज्यवादी शक्तियों से संघर्ष का अपना दायित्व निभाते रहेंगे।
इस समय शहीदों के सरदार हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम और हुसैनी सेना के ध्वजवाहक हज़रत अब्बास अलैहिस्सलाम के रौज़ों के बीच श्रद्धालुओं का सैलाब नज़र आ रहा है और करबला का पूरा वातावरण लब्बैक या हुसैन के गगन भेदी नारों से गूंज रहा है।
इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के चेहलुम के अवसर पर पवित्र नगर नजफ़ से कर्बला तक मार्च करने वालों ने दुनिया के लोगों के नाम एक ख़त प्रकाशित किया है, जिसमें दुनिया के विभिन्न देशों के लोगों से अत्याचार से संघर्ष की अपील के साथ इस बात को स्पष्ट किया है कि साम्राज्यवादी अपने हितों की रक्षा के लिए राष्ट्रों के बीच फूट डालते हैं। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के चेहुलम के मार्च में भाग लेने वालों ने पीड़ितों के समर्थन और आतंकवाद से संघर्ष पर विशेष बल दिया।
इराक़ी सरकार ने भी अपने बयान में कहा कि लगभग 30 लाख विदेशी तीर्थयात्री करबला पहुंच चुके हैं। भारत, पाकिस्तान, ईरान, बहरैन, सऊदी अरब, क़तर, कुवैत, दक्षिणी अफ़्रीक़ा, ब्रिटेन और अमरीका की अन्जुमनें करबला में जूलूस निकाल रही हैं।