कोई भी शत्रु ईरानी राष्ट्र को बांध नहीं सकताः वरिष्ठ नेता

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कोई भी शत्रु ईरानी राष्ट्र को बांध नहीं सकताः वरिष्ठ नेता

इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने अमरीका के नए राष्ट्रपति के बयानों की ओर संकेत करते हुए कहा है कि अमरीका की इच्छा कभी भी पूरी नहीं होगी और कोई भी शत्रु ईरानी राष्ट्र को बांध नहीं सकता।

आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई ने मंगलवार को देश की वायु सेना के कमांडरों और जवानों से मुलाक़ात में कहा कि अमरीका के नए राष्ट्रपति कहते हैं कि हमें ओबामा का आभारी होना चाहिए! क्यों? दाइश को अस्तित्व प्रदान करने के लिए, इराक़ व सीरिया में आग लगाने के लिए और वर्ष 2009 में ईरान में हुए उपद्रव का खुल कर समर्थन करने के लिए उनका आभारी होना चाहिए? वही थे जिन्होंने अपने विचार में ईरानी राष्ट्र को तोड़ देने के वाले प्रतिबंंध लगाए। वरिष्ठ नेता ने कहा कि ट्रम्प कहते हैं मुझसे डरो! बिल्कुल नहीं, ईरानी जनता 11 फ़रवरी के जुलूसों में उनकी इस बात का जवाब देगी और दिखा देगी कि ईरानी राष्ट्र धमकियों के मुक़ाबले में किस प्रकार का रुख़ अपनाता है। उन्होंने कहा कि अमरीका में सत्ता हाथ में लेने वाले इन महोदय के हम आभारी हैं! आभार इस लिए कि इन्होंने हमारा काम सरल कर दिया और अमरीका का अस्ली चेहरा दिखा दिया। हम पिछले तीन दशक से जो बात कह रहे थे कि अमरीकी सरकार में राजनैतिक भ्रष्टाचार, आर्थिक भ्रष्टाचार, नैतिक भ्रष्टाचार और सामाजिक भ्रष्टाचार व्याप्त है, इन महोदय ने चुनाव अभियान के दौरान और उसके बाद इस तथ्य को पूरी तरह से खुल कर दिखा दिया। इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने कहा किइस समय भी जो काम ये कर रहे हैं और पांच साल के बच्चे को हथकड़ी लगा रहे हैं, उससे पता चलता है कि अमरीकी मानवाधिकार की सच्चाई क्या है?

 

इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने देश की वायु सेना के कमांडरों और जवानों से मुलाक़ात में, जो आठ फ़रवरी वर्ष 1979 को ईरान की वायु सेना के जवानों द्वारा स्वर्गीय इमाम ख़ुमैनी से की गई बैअत (आज्ञापालन के वचन) की वर्षगांठ के अवसर पर हुई, उक्त बैअत को इस्लामी क्रांति के इतिहास में एक निर्णायक घटना बताया और कहा कि अत्याचारी शाही शासन के काल में वायु सेना, अमरीका की पिट्ठू राजनैतिक व्यवस्था से सबसे निकट विभागों में से एक थी और उसी ने उस व्यवस्था को सबसे बड़ा आघात पहुंचाया। आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई ने बल देकर कहा कि शैतानों पर भरोसा करना और मूल इस्लामी व्यवस्था के विरोधियों से आशा लगाना बहुत बड़ी  भूल है।

 

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