ईरान के उत्तरी ख़ुरासान के प्रसिद्ध सुन्नी धर्म गुरु मुल्ला अब्दुल्लाह अमानी ने इस्लामी जगत में एकता के विषय पर बल दिया है।
तस्नीम न्यूज़ एजेन्सी की रिपोर्ट के अनुसार ईरान का उत्तरी ख़ुरासान प्रांत सीमावर्ती प्रांतों में से एक है जहां विभिन्न जातियों और समुदाय के लोग रहते हैं। इस प्रांत में रहने वालों से कुछ का संबंध सुन्नी तुर्कमन से है। इन लोगों ने पूरी निष्ठा और सच्चाई के साथ इराक़ द्वारा ईरान पर थोपे गये युद्ध के दौरान देश का भरपूर साथ दिया और 30 शहीदों का बलिदान पेश किया।
इसी क्षेत्र के रहने वाले एक प्रसिद्ध धर्मगुरु का नाम हाजी अब्दुल्लाह अमानी है जिन्होंने वहां पर एक धार्मिक स्कूल खोला है और उसका नाम पैग़म्बरे इस्लाम की सुपुत्री हज़रत फ़ातेमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा के नाम पर रखा है। उन्होंने पत्रकारों से बात करते हुए कहा कि उनकी यह कार्यवाही, मुसलमानों के बीच एकता पैदा करने का महत्वपूर्ण राज़ और केन्द्र है।
जब उनसे पूछा गया कि उन्होंने अपने धार्मिक केन्द्र या मदरसे का नाम पैग़म्बरे इस्लाम की सुपुत्री हज़रत फ़ातेमा ज़हरा के नाम पर क्यों रखा? तो उनका कहना था कि आशा कि सभी मुस्लिम महिलाओं को हज़रत फ़ातेमा ज़हरा (स) से जुड़ा रहना चाहिए और यदि वह उनसे जुड़ी रहती हैं कि ख़ुद ही वह पैग़म्बरे इस्लाम के आचरण और पवित्र क़ुरआन की शिक्षा पर अमल करने के रास्ते पर चल पड़ेंगी।
जब उनसे दाइश के बारे में पूछा था तो उन्होंने कहा कि दाइश एक नया और ताज़ा विषय है किन्तु यदि इस्लाम धर्म के उदय के समय यह पथभ्रष्टता पैदा हो जाती तो मुसलमानों के लिए बड़ी समस्याएं पैदा हो जातीं। दाइश, यहूदी और काफ़िरों के विचारों का परिणाम है। हमारी ज़िम्मेदारी है कि इन ख़राब माहौल में अल्लाह की किताब और उसके पैग़म्बर की शिक्षाओं पर अमल करते रहें ताकि इस प्रकार की चीज़ें मुसलमानों को नुक़सान न पहुंचा सके।