विश्व भर में मुस्लिम महिलाओं के साथ एकजुटता जताने के लिए अमरीका की एक एनजीओ प्रति वर्ष पहली फ़रवरी को वर्ल्ड हिजाब डे मनाती है।
इस्लाम के अनुसार, मुस्लिम महिलाओं के लिए ज़रूरी है कि वे घर से बाहर निकलते वक़्त अपना शरीर और सिर ढांप कर रखें। इस प्रक्रिया को हिजाब कहा जाता है।
वर्ल्ड हिजाब डे के अवसर पर विभिन्न धर्मों की अनुयायी महिलाएं हिजाब पहनकर मुस्लिम महिलाओं के साथ हमदर्दी जताती हैं।
2013 में वर्ल्ड हिजाब डे की शुरूआत के बाद से, 190 देशों की महिलाएं और 45 देशों की 70 वैश्विक राजदूत इस वार्षिक कार्यक्रम में भाग लेती हैं।
2013 में वर्ल्ड हिजाब डे की शुरूआत कुछ इस तरह से हुई कि न्यूयॉर्क में सड़क के किनारे चल रही 11 वर्षीय मुस्लिम लड़की पर सिर्फ़ इसिलए हमला किया गया, क्योंकि वह हिजाब पहने हुए थी।
2001 में नाइन इलेवट की घटना के बाद अमरीका और विश्व भर में मुसलमानों विशेष रूप से हिजाब पहनने वाली मुस्लिम महिलाओं के ख़िलाफ़ हमलों में अभूतपूर्व तेज़ी हो गई और उन्हें नफ़रत का निशाना बनाया जाने लगा।
इस कार्यक्रम की सूत्रधार बांग्लादेश मूल की अमरीकी महिला नाज़मा ख़ान हैं, जिनका कहना है कि मुस्लिम महिलाएं हिजाब पहनकर जब बाहर निकलती हैं तो उन्हें हमेशा विभिन्न प्रकार की चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।
अल-जज़ीरा से अपने अनुभवों को साझा करते हुए उन्होंने कहा, मुझे डराया गया, मेरा पीछा गया, मुझ पर थूका गया, पुरुषों ने मुझे चारो ओर से घेरा, आतंकवादी और ओसामा बिन लादेन जैसे जुमले कसे।
सिर पर हिजाब पहनने के लिए ऐसी ही चुनौतियों का सामना कर रही और अनुभवों से गुज़र रही महिलाओं को आपस में जोड़ने के लिए नाज़मा ख़ान ने उनसे कहा कि वे अपने अनुभव सोशली मीडिया पर साझा करें।
इसी उद्देश्य ने उन्होंने वर्ल्ड हिजाब डे की घोषणा की और इसके लिए ग़ैर मुस्लिम महिलाओं ने भी बढ़ चढ़कर उनका साथ दिया।