इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने बल देकर कहा है कि फ़िलिस्तीन के बारे में अमरीका की शैतानी चाल कभी सफल नहीं होगी।
आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई ने सोमवार को हज समिति के सदस्यों से मुलाक़ात में मुसलमानों से मुक़ाबले विशेष कर फ़िलिस्तीन समस्या और यमन के मामले पर दुश्मनों का ध्यान केंद्रित होने की तरफ़ इशारा करते हुए कहा कि अब अमरीकियों ने फ़िलिस्तीन के बारे में अपनी शैतानी नीति का नाम "डील आफ़ द सेंचुरी" रख दिया है लेकिन उन्हें जान लेना चाहिए कि ईश्वर की कृपा से यह डील कभी भी व्यवहारिक नहीं होगी और अमरीकी अधिकारियों की इच्छा के विपरीत फ़िलिस्तीन समस्या को भुलाया नहीं जाएगा और बैतुल मुक़द्दस फ़िलिस्तीन की राजधानी बना रहेगा।
इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने इस बात पर बल देते हुए कि फ़िलिस्तीनी राष्ट्र इस साज़िश के मुक़ाबले में डटा रहेगा और मुस्लिम राष्ट्र भी फ़िलिस्तीनी जनता का समर्थन करेंगे, कहा कि कुछ मुस्लिम सरकारें, जो इस्लाम पर तनिक भी विश्वास नहीं रखतीं, अपनी मूर्खता, अज्ञानता और सांसारिक लोभ के कारण अमरीकियों की पिछलग्गू बन गई हैं लेकिन ईश्वर की कृपा से इस्लामी समुदाय और फ़िलिस्तीनी राष्ट्र अपने दुश्मनों पर विजयी रहेगा और वह दिन अवश्य देखेगा जब फ़िलिस्तीन की धरती से जाली ज़ायोनी शासन की जड़ें उखड़ जाएंगी।
आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने इसी तरह वर्ष 2015 में मस्जिदुल हराम और मिना की दो त्रासदियों की तरफ़ इशारा करते हुए इसे एक बड़ा अत्याचार बताया और अधिकारों की बहाली के लिए निरंतर और गंभीर प्रयास जारी रखने की आवश्यकता पर बल देते हुए कहा कि इस मांग को कभी भी भुलाया नहीं जाना चाहिए क्योंकि इन दो त्रासदियों में हाजियों की रक्षा का पालन नहीं किया गया जो सऊदी सरकार का सबसे बड़ा दायित्व है और मारे गए लोगों की मौत का हर्जाना भी नहीं दिया गया।
इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने इस बात पर बल देते हुए कि काबा, मस्जिदुल हराम और मस्जिदुन्नबी उस धरती पर शासन करने वालों से नहीं बल्कि संसार के सभी मुसलमानों से संबंधित हैं, कहा कि किसी को भी यह अधिकार नहीं है कि वह हज के सही संस्कारों में रोड़े अटकाए और अगर कोई सरकार एेसा करती है तो वास्तव में उसने ईश्वर के मार्ग मेें बाधा उत्पन्न की है।