सम्मान और आदर – इमाम सादिक़ (अ.स.) हर व्यक्ति से उसकी सामाजिक हैसियत देखे बिना सम्मान से पेश आते थे। वे कहते थे: "लोगों के साथ इस तरह रहो कि जब तुममें से कोई मर जाए तो वे रोएँ और जब ज़िन्दा रहो तो तुमसे मिलने की तमन्ना करें।"
न्याय और समानता – उनका मानना था कि इंसानों के बीच कोई भेदभाव नहीं होना चाहिए। हक़ और न्याय की रक्षा करना ही असली इमानी पहचान है।
सहनशीलता और धैर्य – इमाम सादिक़ (अ.स.) कठोर दिल नहीं थे बल्कि विरोधियों के साथ भी संयम और धैर्य से पेश आते थे।
ज़रूरतमंदों की मदद – ग़रीबों, अनाथों और मुहताजों की सहायता करना उनके जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा था।
अख़लाक़ी व्यवहार – वे इस बात पर जोर देते थे कि मुसलमान का असली परिचय उसका सुंदर अख़लाक़ और लोगों के साथ नरमी है।
ज्ञान बाँटना – इमाम सादिक़ (अ.स.) के मुताबिक़ लोगों का मार्गदर्शन करना और इल्म व ज्ञान सिखाना भी सबसे बड़ी सेवा है।
लोगों के साथ इमाम सादिक़ (अ.स.) का व्यवहार
इमाम सादिक़ (अ.स.) ने इंसाफ़, सच्चाई, लोगों की सेवा और इंसानों की गरिमा की हिफ़ाज़त जैसे नैतिक सिद्धांतों पर ज़ोर देते हुए, मानवीय रिश्तों को बेहतर बनाने के लिए बहुमूल्य मार्गदर्शन पेश किया है।
पैग़म्बर इस्लाम (स.अ.व.) के नवासे इमाम सादिक़ (अ.स.) ने लोगों के साथ व्यवहार के लिए ऐसे उसूल बताए हैं जिन्हें लोगों के साथ व्यवहार का घोषणापत्र कहा जा सकता है। इसमें रिश्तों का सुधार, इंसाफ़ की पाबंदी, सेवा-भाव, सच्चाई, अच्छा बर्ताव, विचारों का सम्मान, इंसानों की इज़्ज़त की हिफ़ाज़त और दूसरों की कमियों को छुपाना शामिल है। इन सिद्धांतों में से हर एक न केवल व्यक्तिगत विकास का मार्ग है बल्कि एक स्वस्थ, संतुलित और इलाही समाज की नींव भी रख सकता है।
इस लेख में पार्स टुडे ने लोगों के साथ व्यवहार से संबंधित इमाम सादिक़ (अ.स.) की रिवायतों पर एक नज़र डाली है।
लोगों के बीच सुधार
इमाम सादिक़ (अ.स.) फ़रमाते हैं:
«صَدَقَةٌ یحِبُّها اللَّهُ اصْلاحُ بَینَ النَّاسِ اذا تَفاسَدُوا وَتَقارُبُ بَینَهُمْ اذا تَباعَدُوا»
"वह सदक़ा जिसे अल्लाह पसंद करता है, यह है कि जब लोगों के रिश्ते बिगड़ जाएँ तो उन्हें सुधारना और जब वे एक-दूसरे से दूर हो जाएँ तो उन्हें पास लाना।"
लोगों के साथ इंसाफ़
इमाम सादिक़ (अ.स.) फ़रमाते हैं:
«مَن أَنصَفَ النّاسَ مِن نَفسِهِ رُضِیَ بِهِ حَکَماً لِغَیرِهِ»
"जो व्यक्ति लोगों के साथ इंसाफ़ से व्यवहार करता है, दूसरे लोग उसे अपने लिए हाकिम अर्थात फ़ैसला करने वाला मानने पर राज़ी हो जाते हैं।
लोगों की सेवा
इमाम सादिक़ (अ.स.) फ़रमाते हैं:
«مَنْ سَعَى فِی حَاجَةِ أَخِیهِ الْمُسْلِمِ طَلَبَ وَجْهِ اللَّهِ کَتَبَ اللَّهُ عَزَّ وَ جَلَّ لَهُ أَلْفَ أَلْفِ حَسَنَةٍ یغْفِرُ فِیهَا لِأَقَارِبِهِ وَ جِیرَانِهِ وَ إِخْوَانِهِ وَمَعَارِفِه»
"जो व्यक्ति अपने मुस्लिम भाई की ज़रूरत पूरी करने के लिए अल्लाह की ख़ुशनूदी चाहता हुआ प्रयास करे, अल्लाह उसके लिए दस लाख नेकीयाँ लिखता है और उसके कारण उसके रिश्तेदार, पड़ोसी, भाई और जान-पहचान वाले भी अल्लाह की मग़फ़िरत में शामिल हो जाते हैं।"
लोगों के साथ सच्चाई
इमाम सादिक़ (अ.स.) फ़रमाते हैं:
«عَلَیْکَ بِصِدْقِ الْحَدِیثِ وَ أَدَاءِ الْأَمَانَةِ! تَشْرِکُ النَّاسَ بِأَمْوَالِهِمْ هَکَذَا»
"तुम्हारे लिए ज़रूरी है कि सच्ची बात कहो और अमानत अदा करो! अगर ऐसा करोगे तो तुम लोगों के माल में शरीक हो जाओगे यानी लोग तुम्हें भरोसेमंद समझेंगे और अपने माल को तुम्हारे हवाले करेंगे।"
लोगों के साथ अच्छा बर्ताव
इमाम सादिक़ (अ.स.) फ़रमाते हैं:
«ثَلاثَةٌ مَنْ أَتَى اللَّهَ بِوَاحِدَةٍ مِنْهُنَّ أَوْجَبَ اللَّهُ لَهُ الْجَنَّهَ؛ الْإِنْفَاقُ مِنْ اقْتِارٍ، وَ الْبِشْرُ لِجَمِیعِ الْعَالَمِ، وَ الْإِنصَافُ مِنْ نَفْسِه»
"तीन काम ऐसे हैं कि जो कोई उनमें से एक भी अल्लाह की ख़ुशनूदी के लिए करे, अल्लाह उस पर जन्नत को वाजिब कर देता है:
तंगी और ज़रूरत की हालत में खर्च करना,
लोगों के साथ ख़ुश-रूई और मुस्कराहट से पेश आना,
अपने और दूसरों के हक़ में बराबरी से इंसाफ़ करना।"
लोगों के साथ अच्छा बोलना
इमाम सादिक़ (अ.स.) फ़रमाते हैं:
«مَعَاشِرَ الشِّیعَةِ کُونُوا لَنَا زَیْنًا وَلَا تَکُونُوا عَلَیْنَا شَیْنًا قُولُوا لِلنَّاسِ حُسْنًا وَ احْفَظُوا أَلْسِنَتَکُمْ وَ کُفُّوهَا عَنْ الْفُضُولِ وَ قُبْحِ الْقَوْلِ»
"हे हमारे शियों! हमारी शोभा और गौरव बनो और हमारी बेइज्ज़ती का कारण मत बनो। लोगों से अच्छे शब्दों में बात करो, अपनी ज़ुबान को काबू में रखो और व्यर्थ तथा बुरे शब्दों से बचो।"
लोगों की गरिमा की हिफ़ाज़त
इमाम सादिक़ (अ.स.) फ़रमाते हैं:
«إِنَّ شِرَارَکُمْ مَنْ أَحَبَّ أَنْ یُوَطَّأَ عَقِبُهُ»
"सबसे बुरे लोग वे हैं, जो चाहते हैं कि लोग उनके पीछे चलें और वे हमेशा आगे रहें।"
लोगों की ज़रूरतों की पूर्ति
इमाम सादिक़ (अ.स.) फ़रमाते हैं:
«ثَلاثَةُ أَشْیَاءَ یحْتَاجُ النَّاسُ طُرًّا إِلَیْهَا: الْأَمْنُ وَ الْعَدْلُ وَ الْخِصْبُ»
"तीन चीज़ें हैं जिनकी सभी लोगों को ज़रूरत है: सुरक्षा, न्याय और पर्याप्त जीवनोपार्जन।"
लोगों के विश्वासों का सम्मान
इमाम सादिक़ (अ.स.) फ़रमाते हैं:
«لَا تَفَتِّشِ النَّاسَ عَنْ أَدْیَانِهِمْ فَتَبْقَى بِلا صَدِیقٍ»
"लोगों के धार्मिक विश्वासों की तह तक न जाओ, नहीं तो तुम बिना दोस्त के रह जाओगे।"
लोगों की ग़लतियों पर पर्दा ड़ालना
इमाम सादिक़ (अ.स.) फ़रमाते हैं:
«إِیَّاکَ وَ اللَّجَاجَةَ أَوْ تَمْشِی فِی غَیْرِ حَاجَةٍ أَوْ أَنْ تَضْحَکَ مِنْ غَیْرِ عَجَبٍ وَ اذْکُرْ خَطِیئَتِکَ وَ إِیَّاکَ وَ خَطَایَا النَّاسِ»
"ज़िद, बिना जरूरत की बातें करना, अर्थहीन हँसी और दूसरों की गलतियों को ढूँढना और अपने काम से बाहर के मामलों में हस्तक्षेप करने से बचो। अपने पापों को याद रखो और दूसरों की गलतियों पर ध्यान न दो।