رضوی

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बुधवार, 15 जनवरी 2025 19:11

जनाबे ज़ैनब (अ) का शहादत दिवस

हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा का जीवन तथा उनका व्यक्तित्व विभिन्न आयामों से समीक्षा योग्य है। पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम, हज़रत अली अलैहिस्सलाम और हज़रत फ़ातेमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा जैसी हस्तियों के साथ रहने से हज़रत ज़ैनब के व्यक्तित्व पर इन हस्तियों का बहुत गहरा प्रभाव पड़ा। हज़रत ज़ैनब ने प्रेम व स्नेह से भरे परिवार में प्रशिक्षण पाया। इस परिवार के वातावरण में, दानशीलता, बलिदान, उपासना और सज्जनता जैसी विशेषताएं अपने सही रूप में चरितार्थ थीं। इसलिए इस परिवार के बच्चों का इतने अच्छे वातावरण में पालन - पोषण हुआ। हज़रत अली अलैहिस्सलाम व फ़ातेमा ज़हरा सलामुल्लाह के बच्चों में नैतिकता, ज्ञान, तत्वदर्शिता और दूर्दर्शिता जैसे गुण समाए हुए थे, क्योंकि मानवता के सर्वश्रेष्ठ प्रशिक्षकों से उन्होंने प्रशिक्षण प्राप्त किया था।

हज़रत ज़ैनब में बचपन से ही ज्ञान की प्राप्ति की जिज्ञासा थी। अथाह ज्ञान से संपन्न परिवार में जीवन ने उनके सामने ज्ञान के द्वार खोल दिए थे। पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम के परिजनों के कथनों के हवाले से इस्लामी इतिहास में आया है कि हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा को ईश्वर की ओर से कुछ ज्ञान प्राप्त था। पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम के पौत्र हज़रत इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम ने अपने एक भाषण में हज़रत ज़ैनब को संबोधित करते हुए कहा थाः आप ईश्वर की कृपा से ऐसी विद्वान है जिसका कोई शिक्षक नहीं है। हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा क़ुरआन की आयतों की व्याख्याकार थीं। जिस समय उनके महान पिता हज़रत अली अलैहिस्सलाम कूफ़े में ख़लीफ़ा थे यह महान महिला अपने घर में क्लास का आयोजन करती तथा पवित्र क़ुरआन की आयतों की बहुत ही रोचक ढंग से व्याख्या किया करती थीं। हज़रत ज़ैनब द्वारा शाम और कूफ़े के बाज़ारों में दिए गए भाषण उनके व्यापक ज्ञान के साक्षी हैं। शोधकर्ताओं ने इन भाषणों का अनुवाद तथा इनकी व्याख्या की है। ये भाषण इस्लामी ज्ञान विशेष रूप से पवित्र क़ुरआन पर उस महान हस्ती के व्यापक ज्ञान के सूचक हैं।

हज़रतज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा के आध्यात्मिक स्थान की बहुत प्रशंसा की गई है। जैसा कि इतिहास में आया है कि इस महान महिला ने अत्यंत प्रतिकूल परिस्थितियों में भी अनिवार्य उपासना के साथ साथ ग़ैर अनिवार्य उपासना करने में भी तनिक पीछे नहीं रहीं। हज़रत ज़ैनब को उपासना से इतना लगाव था कि उनकी गणना रात भर उपासना करने वालों में होती थी और किसी भी प्रकार की स्थिति ईश्वर की उपासना से उन्हें रोक नहीं पाती थी। इमाम ज़ैनुलआबेदीन अलैहिस्सलाम बंदी के दिनों में हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा के आध्यात्मिक लगाव की प्रशंसा करते हुए कहते हैः मेरी फुफी ज़ैनब, कूफ़े से शाम तक अनिवार्य नमाज़ों के साथ - साथ ग़ैर अनिवार्य नमाज़ें भी पढ़ती थीं और कुछ स्थानों पर भूख और प्यास के कारण अपनी नमाज़े बैठ कर पढ़ा करती थीं। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने जो अपनी बहन हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा के आध्यात्मिक स्थान से अवगत थे, जिस समय रणक्षेत्र में जाने के लिए अंतिम विदाई के लिए अपनी बहन से मिलने आए तो उनसे अनुरोध करते हुए यह कहा थाः मेरी बहन मध्यरात्रि की नमाज़ में मुझे न भूलिएगा।

हज़रतज़ैनब के पति हज़रत अब्दुल्लाह बिन जाफ़र की गण्ना अपने काल के सज्जन व्यक्तियों में होती थी। उनके पास बहुत धन संपत्ति थी किन्तु हज़रत ज़ैनब बहुत ही सादा जीवन बिताती थीं भौतिक वस्तुओं से उन्हें तनिक भी लगाव नहीं था। यही कारण था कि जब उन्हें यह आभास हो गया कि ईश्वरीय धर्म में बहुत सी ग़लत बातों का समावेश कर दिया गया है और वह संकट में है तो सब कुछ छोड़ कर वे अपने प्राणप्रिय भाई हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के साथ मक्का और फिर कर्बला गईं।

न्होंने मदीना में एक आराम का जीवन व्यतित करने की तुलना में कर्बला की शौर्यगाथा में भाग लेने को प्राथमिकता दी। इस महान महिला ने अपने भाई इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के साथ उच्च मानवीय सिद्धांत को पेश किया किन्तु हज़रत ज़ैनब की वीरता कर्बला की त्रासदीपूर्ण घटना के पश्चात सामने आई। उन्होंने उस समय अपनी वीरता का प्रदर्शन किया जब अत्याचारी बनी उमैया शासन के आतंक से लोगों के मुंह बंद थे। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की शहादत के पश्चात किसी में बनी उमैया शासन के विरुद्ध खुल कर बोलने का साहस तक नहीं था ऐसी स्थिति में हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा ने अत्याचारी शासकों के भ्रष्टाचारों का पिटारा खोला। उन्होंने अत्याचारी व भ्रष्टाचारी उमवी शासक यज़ीद के सामने बड़ी वीरता से कहाः हे यज़ीद! सत्ता के नशे ने तेरे मन से मानवता को समाप्त कर दिया है। तू परलोक में दण्डित लोगों के साथ होगा। तुझ पर ईश्वर का प्रकोप हो । मेरी दृष्टि में तू बहुत ही तुच्छ व नीच है। तू ईश्वरीय दूत पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम के धर्म को मिटाना चाहता, मगर याद रख तू अपने पूरे प्रयास के बाद भी हमारे धर्म को समाप्त न कर सकेगा वह सदैव रहेगा किन्तु तू मिट जाएगा।

 हज़रतज़ैनब सलामुल्लाहअलैहा की वीरता का स्रोत, ईश्वर पर उनका अटूट विश्वास था। क्योंकि मोमिन व्यक्ति सदैव ईश्वर पर भरोसा करता है और चूंकि वह ईश्वर को संसार में अपना सबसे बड़ा संरक्षक मानता है इसलिए निराश नहीं होता। जब ईश्वर पर विश्वास अटूट हो जाता है तो मनुष्य कठिनाइयों को हंसी ख़ुशी सहन करता है। ईश्वर पर विश्वास और धैर्य, हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा के पास दो ऐसी मूल्यवान शक्तियां थीं जिनसे उन्हें कठिनाईयों में सहायता मिली। इसलिए उन्होंने उच्च - विचार और दृढ़ विश्वास के सहारे कर्बला - आंदोलन के संदेश को फैलाने का विकल्प चुना। कर्बला से लेकर शाम और फिर शाम से मदीना तक राजनैतिक मंचों पर हज़रत ज़ैनब की उपस्थिति, अपने भाइयों और प्रिय परिजनों को खोने का विलाप करने के लिए नहीं थी। हज़रत ज़ैनब की दृष्टि में उस समय इस्लाम के विरुद्ध कुफ़्र और ईमान के सामने मिथ्या ने सिर उठाया था। हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा का आंदोलन बहुत व्यापक अर्थ लिए हुए था। उन्होंने भ्रष्टाचारी शासन को अपमानित करने तथा अंधकार और पथभ्रष्टता में फंसे इस्लामी जगत का मार्गदर्शन करने का संकल्प लिया था। इसलिए इस महान महिला ने हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की शहादत के पश्चात हुसैनी आंदोलन के संदेश को पहुंचाना अपना परम कर्तव्य समझा। उन्होंने अत्याचारी शासन के विरुद्ध अभूतपूर्व साहस का प्रदर्शन किया। उन्होंने अपने जीवन के इस चरण में पैग़म्बरे इस्लाम के परिजनों के अधिकारों की रक्षा की तथा शत्रु को कर्बला की त्रासदीपूर्ण घटना से लाभ उठाने से रोक दिया। हज़रत ज़ैनब के भाषण में वाक्पटुता इतनी आकर्षक थी कि लोगों के मन में हज़रत अली अलैहिस्सलाम की याद ताज़ा हो गई और लोगों के मन में उनके भाषणों का बहुत गहरा प्रभाव पड़ा। कर्बला में हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम और उनके साथियों की शहादत के पश्चात हज़रत ज़ैनब ने जिस समय कूफ़े में लोगों की एक बड़ी भीड़ को संबोधित किया तो लोग उनके ज्ञान एवं भाषण शैली से हत्प्रभ हो गए। इतिहास में है कि लोगों के बीच एक व्यक्ति पर हज़रत ज़ैनब के भाषण का ऐसा प्रभाव हुआ कि वह फूट फूट कर रोने लगा और उसी स्थिति में उसने कहाः हमारे माता पिता आप पर न्योछावर हो जाएं, आपके वृद्ध सर्वश्रेष्ठ वृद्ध, आपके बच्चे सर्वश्रेष्ठ बच्चे और आपकी महिलाएं संसार में सर्वश्रेष्ठ और उनकी पीढ़ियां सभी पीढ़ियों से श्रेष्ठ हैं।

कर्बलाकी घटना के पश्चात हज़रत ज़ैनब ने हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के आंदोलन को इतिहास की घटनाओं की भीड़ में खोने से बचाने के लिए निरंतर प्रयास किया। यद्यपि कर्बला की त्रासदीपूर्ण घटना के पश्चात हज़रत ज़ैनब अधिक जीवित नहीं रहीं किन्तु इस कम समय में उन्होंने इस्लामी जगत में जागरुकता की लहर दौड़ा दी थी। हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा ने अपनी उच्च- आत्मा और अटूट संकल्प के सहारे इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के आंदोलन को अमर बना दिया ताकि मानव पीढ़ी, सदैव उससे प्रेरणा लेती रही। यह महान महिला कर्बला की घटना के पश्चात लगभग डेढ़ वर्ष तक जीवित रहीं और सत्य के मार्ग पर अथक प्रयास से भरा जीवन बिताने के पश्चात वर्ष 62 हिजरी क़मरी में इस नश्वर संसार से सिधार गईं।

 एकबार फिरहज़रत ज़ैबन सलामुल्लाह अलैहा की शहादत की पुण्यतिथि पर हम सभी श्रोताओ की सेवा में हार्दिक संवेदना व्यक्त करते हैं। कृपालु ईश्वर से हम यह प्रार्थना करते हैं कि वह हम सबको इस महान हस्ती के आचरण को समझ कर उसे अपनाने का साहस प्रदान करे।

हरेदी यहूदी समुदाय और इज़रायली सेना एवं पुलिस के बीच अनिवार्य सैन्य सेवा कानून को लेकर विवाद जारी है इज़रायली सेना जो अपने जवानों की कमी के चलते हरेदी समुदाय को सेना में भर्ती करने पर जोर दे रही है, हरेदी समुदाय के कड़े विरोध का सामना कर रही है। हरेदी यहूदियों का मानना है कि यह कदम कानून के खिलाफ है।

हरेदी यहूदी समुदाय और इज़रायली सेना एवं पुलिस के बीच अनिवार्य सैन्य सेवा कानून को लेकर विवाद जारी है इज़रायली सेना जो अपने जवानों की कमी के चलते हरेदी समुदाय को सेना में भर्ती करने पर जोर दे रही है, हरेदी समुदाय के कड़े विरोध का सामना कर रही है। हरेदी यहूदियों का मानना है कि यह कदम कानून के खिलाफ है।

बुधवार को भी हरेदी यहूदियों ने कब्जा किए गए फ़िलिस्तीन के केंद्र में विरोध प्रदर्शन किया और सड़कों को अवरुद्ध कर अनिवार्य सैन्य सेवा के खिलाफ अपना विरोध जताया इसका परिणाम इज़रायली पुलिस के साथ उनकी झड़पों के रूप में सामने आया।

पिछले गुरुवार को भी दर्जनों हरेदी यहूदियों ने कब्जा किए गए फ़िलिस्तीन के एक महत्वपूर्ण राजमार्ग, पूर्वी तेल अवीव में हाईवे नंबर 4 को अवरुद्ध कर दिया और पुलिस के साथ झड़प की।

ग़ाज़ा और लेबनान के साथ युद्ध के चलते इज़रायली सेना पिछले एक साल से गंभीर क्षति और जवानों की कमी का सामना कर रही है। इसी कारण कुछ महीनों पहले सेना ने हरेदी समुदाय के हजारों लोगों को भर्ती करने के लिए एक नई योजना पेश की इज़रायली सुप्रीम कोर्ट ने भी रक्षा मंत्रालय के अनुरोध पर हरेदी यहूदियों को सैन्य सेवा से छूट देने के प्रावधान को रद्द कर दिया।

इस फैसले के बाद इस प्रभावशाली लेकिन कट्टरपंथी अल्पसंख्यक समुदाय ने बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिए यहां तक कि उनके प्रमुख रब्बी, इसहाक यूसुफ़, ने हरेदी धार्मिक स्कूलों के छात्रों से कहा कि वे अपनी सैन्य सेवा के आदेशों को फाड़ दें।

यमन के हौसी समूह ने एक बयान में कहा है कि उसने पंख वाली मिसाइल का उपयोग करके दक्षिणी इजरायली बंदरगाह शहर इलियट में एक बिजली संयंत्र को निशाना बनाया हैं।

एक रिपोर्ट के अनुसार ,यमन के हौसी समूह ने एक बयान में कहा है कि उसने पंख वाली मिसाइल का उपयोग करके दक्षिणी इजरायली बंदरगाह शहर इलियट में एक बिजली संयंत्र को निशाना बनाया हैं।

हौसी सैन्य प्रवक्ता याह्या सारेया ने हौथी द्वारा संचालित अलमसीरा टीवी पर प्रसारित बयान में कहा,हमले ने अपना लक्ष्य सफलतापूर्वक हासिल कर लिया।

समाचार एजेंसी की रिपोर्ट के अनुसार, सरिया ने यह भी हा कि उनके समूह ने इज़राइल के खिलाफ एक और हमला किया जिसमें कई बम लदे ड्रोनों के साथ तेल अवीव शहर में महत्वपूर्ण ठिकानों को निशाना बनाया गया

उन्होंने इजराइल के खिलाफ उनके समूह के हमले "तब तक नहीं रुकेंगे जब तक इजराइल गाजा में युद्ध बंद नहीं कर देता और अपनी घेराबंदी नहीं हटा लेता।

इलियट में पावर स्टेशन और तेल अवीव में ठिकानों पर हमले हौसी समूह द्वारा इजरायली रक्षा मंत्रालय के खिलाफ बैलिस्टिक रॉकेट हमले शुरू करने की जिम्मेदारी लेने के कुछ घंटों बाद हुए।

इससे पहले दिन में इजरायली मीडिया ने कहा कि हौथी रॉकेट हमले को इजरायली वायु रक्षा प्रणाली ने रोक दिया था।

लॉस एंजेलेस में लगी आग और इसके साथ चल रही लूटपाट अमेरिकी समाज की असली प्रकृति को उजागर करती है एक तरफ आग से बचाव के उपाय नाकाफी साबित हो रहे हैं तो दूसरी तरफ नागरिकों की लुटेरी और चोर प्रवृत्ति सामने आ रही है ये घटनाएं इस बात की पुष्टि करती हैं कि संकट के समय में राष्ट्रों की असली प्रकृति सामने आ जाती है।

हाल के दिनों में लॉस एंजेलेस की आग ने अमेरिका के सामाजिक और सांस्कृतिक रवैयों को उजागर किया है कैलिफोर्निया, जो दुनिया के सबसे अमीर राज्यों में गिना जाता है इस समय अल्लाह के गुस्से और आज़ाब का सामना कर रहा है।

दुनिया की सबसे बड़ी महाशक्ति अमेरिका, इस आग पर काबू पाने में असफल नजर आ रही है। साथ ही लूटपाट और चोरी की घटनाएं भी सामने आ रही हैं, जो यह साबित करती हैं कि इस अमीर राज्य के लोगों का आचरण किस हद तक गिर चुका है।

अमेरिका की नींव ही नस्लीय नरसंहार और लूटपाट पर रखी गई है गोरे यूरोपीय प्रवासियों ने स्थानीय रेड इंडियन्स को मारकर उनकी जमीनों पर कब्जा किया और उन्हें लगभग समाप्त कर दिया। यही रवैया ब्रिटेन, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड जैसे देशों में भी अपनाया गया।

लॉस एंजेलेस की आग और इसके साथ चल रही लूटपाट अमेरिकी समाज की असली प्रकृति को उजागर करती है एक तरफ आग से बचाव के उपाय नाकाफी साबित हो रहे हैं, तो दूसरी तरफ नागरिकों की लुटेरी और चोर प्रवृत्ति खुलकर सामने आ रही है। ये घटनाएं इस बात की पुष्टि करती हैं कि संकट के समय में राष्ट्रों की असली प्रकृति उजागर हो जाती है।

अमेरिका के लोग अपनी लुटेरी चोर और हत्यारी प्रवृत्ति से बाज नहीं आ रहे यह प्रवृत्ति उनकी इतिहास और परवरिश का हिस्सा बन चुकी है। विदेशों में लूटपाट और खून-खराबा उनकी नीति का अभिन्न हिस्सा है जिसमें वे बदलाव लाने में असमर्थ हैं उनके आचरण की बुनियाद अन्याय, शोषण और अत्याचार पर आधारित है।

लॉस एंजेलेस की आग और इसके साथ चल रहे लूटपाट के घटनाक्रम यह सिद्ध करते हैं कि अमेरिकी समाज संकट के समय अपनी वास्तविक प्रकृति पर लौट आता है यह स्थिति यह दिखाती है कि कैसे एक ऐसा सामाजिक तंत्र, जो अन्याय और शोषण पर आधारित है आपदाओं के समय बेनकाब हो जाता है।

लॉस एंजेलेस की मौजूदा स्थिति न केवल अमेरिकी सामाजिक समस्याओं को उजागर करती है, बल्कि वैश्विक स्तर पर उनकी नीतियों और रवैयों पर भी गंभीर सवाल खड़े करती है।

मोहम्मद पैगम्बर स.ल. के दामाद हजरत अली की १४६९ वीं जयंती मंगलवार को पूरे शहर में शिया समुदाय के लोगों ने पूरी अकीदत के साथ मनाया जयंती के अवसर पर हज़रत अली समिति के तत्वावधान आलीशान तरीके से जुलूस निकला जुलूस में शामिल लोग मुबारक हो मुबारक हो अली वालों मुबारक हो के नारे लगाए।

मोहम्मद पैगम्बर स.ल. के दामाद हजरत अली की १४६९ वीं जयंती मंगलवार को पूरे शहर में शिया समुदाय के लोगों ने पूरी अकीदत के साथ मनाया जयंती के अवसर पर हज़रत अली समिति के तत्वावधान आलीशान तरीके से जुलूस निकला जुलूस में शामिल लोग मुबारक हो मुबारक हो अली वालों मुबारक हो के नारे लगाए।

मैदागिन से निकलकर जब नीचीबाग पहुंची तब गुरद्वारे के पास सिक्ख समाज के लोगों ने सभी अकीदतमंदों का स्वागत किया और ओलमा कलाम को माला पहनाकर उनका अभिनंदन किया ।

इस अवसरपर सैय्यद फरमान हैदर ने कहाकि यह काशी नगरी अपने कार्यों से पूरी दुनिया को भाईचारे और मोहब्बत का पैगाम देती है। हम सभी मौला अली के न्याय और हक के संदेश को लेकर जुलूस निकालते हैं।

इसके बाद अन्य लोगों ने भी अपने कलाम के जरिये मौला अली की शान में कसीदे पढ़े। यहां से जुलूस रवाना होकर दालमंडी पहुंचा जहा पर लोगों ने स्वागत किया।

यहां से जुलूस नयीसड़क, काली महाल, पितरकुण्डा, लल्लापुरा होते हुए फातमान स्थित दरगाह पर पहुंचा जहां पर बड़ी संख्यामें लोगों सभी का इस्तकबाल किया।

यहां पर आयोजित जलसा में नीचीबाग स्थित गुरुद्वारा के भाई धर्मवीर सिंह एवं मैत्री भवन के निदेशक फादर फिलिप्स ने गंगा-जमुनी की मिसाल प्रस्तुत की इस क्रम में कई लोगों को दुर्र-ए-नजफ, विलायते अली अवार्ड एवं अन्य अवार्डो से नवाजा गया।

इस अवसर पर मौलाना फिरोज, प्रोफेसर जहीर हैदर, मुर्तुजा शम्सी अब्बास, रिजवी शफक, फिरोज हुसैन, अमीन रिजवी, वसीम रिजवी, मौलाना जायर हुसैन, मौलाना इकबाल हैदर, मौलाना गुलजार आदि अन्य लोग उपस्थित रहे। संचालन मौलाना नदीम असगर एवं धन्यवाद ज्ञापन डाक्टर शफीक हैदर ने किया।

हज़रत इमाम अली स.ल. के जन्मदिन के अवसर पर एक महफिल का आयोजन किया गया इस मौके पर मौलाना महमूद हसन ने तकरीर की और मुल्क में सुख शांति के लिए दुआएं की।

शाहगंज जौनपुर,पैगम्बरे इस्लाम हज़रत मोहम्मद मुस्तफ़ा स.अ.के दामाद व शिया समुदाय के पहले इमाम हजरत इमाम अली अ.स.का जन्म दिवस का आयोजन मस्जिद चाद बीबी मे मुतवल्ली के सरपरस्ती मे केक काटा गया मस्जिद के पेश इमाम महमूद साहब ने नज़रे मौला कर मुल्क मे अमन-चैन शान्ति के लिए दुआ मागी और एक दुसरे से गले मिलकर मुबारकबाद पेश किया।

इस मौके पर मौलान महमूद साहब ने कहा कि पैगम्बरे इस्लाम हजरत मोहम्मद स.अ.के दामाद अमीरुल मोमनीन हजरत इमाम अली का जन्म सऊदी अरब के मक्का मदीना शहर खान ए काबा मे इस्लामी माह की 13 रजब को हुआ था

इसी क्रम मे अली जनाब मौलान सैय्यद आबिद हैदर आब्दी साहब ने कहा कि मोहम्मद मुस्तफा स.अ.के बाद पुरी कायनात मे हजरत इमाम अली अ.स.ही ऐसी ही एक मात्र शख्यित है जो आज भी अफजल है

जिनकी,बहादुरी,जाबांजी,वफ़ादारी,इन्साफ पसंदी,शराफत,सब्र व कुर्बानी,की ऐसी मिसाल दुनिया मे कही नही देखने को मिलती है नमाज बाद महफिल का दौर शुरु हुआ जिसमे बेरुनी शायरे अहलेबैत जनाब सादमान मिर्जापुरी,आसिफ साहब सुल्तानपुरी,सागर साहब खनवाई,आदि व मोकामी ने अपने कलाम पेश किए।

 

हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन अकबरी ने बयान किया कि कुरआन करीम की 300 आयतें अमीरुल मोमिनीन अली अ.स.की फज़ीलत और उनके मक़ाम व मर्तबे के बारे में नाज़िल हुईं है।

हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन अकबरी ने मौला-ए-मुवहिदीन हज़रत अली अ.स.की विलादत के मौके पर हौज़ा न्यूज़ एजेंसी से बातचीत में क़ुरआन और हदीस-ए-नबवी की रौशनी में हज़रत अली अ.स. के फज़ाइल और मर्तबे की अहमियत बयान की।

उन्होंने कहा कि रसूल-ए-अकरम स.ल.ने फरमाया,ज़िक्र-ए-अली सआदत है और याद-ए-अली इबादत है।

हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन अकबरी ने कहा कि क़ुरआन करीम की 300 आयतें अमीरुल मोमिनीन अली (अ) के फज़ाइल और उनके मर्तबे के बारे में नाज़िल हुईं।

 

इनमें खास तौर पर आयत-ए-मुबाहिला, आयत-ए-विलायत, आयत-ए-ज़ी-अल-क़ुर्बा, आयत-ए-ततहीर, आयत-ए-उलुल-अमर, आयत-ए-लैलतुल मबीत और आयत-ए-हल अता हज़रत अली (अ) की शान में नाज़िल हुईं।

इसके अलावा हुज्जतुल इस्लाम अकबरी ने इमाम जाफर सादिक (अ) की एक रिवायत बयान करते हुए कहा कि इमाम सादिक (अ) फरमाते हैं कि रसूल-ए-ख़ुदा (स) ने कहा, अल्लाह ने मेरे भाई अमीरुल मोमिनीन अली (अ) को बेहिसाब फज़ाइल अता किए हैं।

अगर कोई शख्स उनके किसी एक फज़ीलत को बयान करे और उस पर ईमान रखे, तो अल्लाह उसके तमाम पिछले और आने वाले गुनाह माफ कर देता है। जो अली (अ) के फज़ाइल को लिखे, उस पर फरिश्ते तब तक इस्तेग़फ़ार करते रहते हैं जब तक वह तहरीर बाकी रहे। और जो अली (अ) के फज़ाइल को सुने अल्लाह उसके कानों के गुनाह माफ कर देता है।

रसूल-ए-अकरम स.ल.ने आगे फरमाया: अली को देखना इबादत है।

हौज़ा इल्मिया के उस्ताद ने ईमान की कुबूलियत की शर्त बयान करते हुए कहा,बंदे का ईमान उस वक्त तक मुकम्मल नहीं होता जब तक वह अमीरुल मोमिनीन अली (अ) की विलायत को कुबूल न करे और उनके दुश्मनों से बेज़ारी इख्तियार न करे।

 

उन्होंने हज़रत अली अ.स. की विलादत के खास वाक़े का ज़िक्र करते हुए कहा,हज़रत अली (अ) का खाना-ए-काबा के अंदर पैदा होना एक अनोखी फज़ीलत है। फातिमा बिन्ते असद जब खाना-ए-काबा में दाखिल हुईं, तो एक ग़ैबी आवाज़ ने उन्हें अंदर आने की इजाज़त दी।

तीन दिन तक वह मेहमान-ए-ख़ुदा रहीं और इसके बाद हज़रत अली (अ) की विलादत हुई। यह वाक़े हज़रत इब्राहीम (अ) की दुआ की कुबूलियत का भी मज़हर है, क्योंकि खाना-ए-काबा की तामीर हज़रत अली (अ) की विलादत के लिए की गई थी। यह फज़ीलत हज़रत अली (अ) के मर्तबे को उजागर करती है और उनकी अज़मत को वाज़ेह तौर पर पेश करती है।

 

एक वरिष्ठ ईरानी राजनयिक ने कहा कि ईरान और तीन यूरोपीय शक्तियां - फ्रांस, ब्रिटेन और जर्मनी प्रतिबंध हटाने और तेहरान के परमाणु कार्यक्रम पर चर्चा फिर से शुरू करने पर सहमत हुए हैं।

एक रिपोर्ट के अनुसार ,एक वरिष्ठ ईरानी राजनयिक ने कहा कि ईरान और तीन यूरोपीय शक्तियां - फ्रांस, ब्रिटेन और जर्मनी प्रतिबंध हटाने और तेहरान के परमाणु कार्यक्रम पर चर्चा फिर से शुरू करने पर सहमत हुए हैं।

ईरान के उप विदेश मंत्री काज़िम ग़रीबाबादी ने सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म एक्स पर घोषणा की है क्योंकि ईरान, तीन देशों और यूरोपीय संघ के बीच जिनेवा में नए दौर की बातचीत शुरू हुई है।

समाचार एजेंसी ने बताया कि बातचीत में कई मुद्दों पर चर्चा होने की उम्मीद है जिसमें देश एक-दूसरे से कैसे संबंधित हैं साथ ही क्षेत्र और दुनिया की समस्याएं भी शामिल हैं।

ग़रीबाबादी ने कहा कि बातचीत गंभीर, स्पष्ट और रचनात्मक" थी, उन्होंने प्रतिबंधों को हटाने और समझौते के लिए आवश्यक परमाणु मुद्दों के बारे में विस्तार से चर्चा की है।

उन्होंने कहा, हर कोई प्रतिबंधों को हटाने और ईरान के परमाणु कार्यक्रम पर बातचीत फिर से शुरू करने की आवश्यकता पर सहमत हुआ उन्होंने कहा कि किसी समझौते तक पहुंचने के लिए सभी पक्षों द्वारा बनाए गए 'एक अच्छे माहौल' की आवश्यकता होती है।

ईरान और यूरोपीय शक्तियों के वरिष्ठ राजनयिक आखिरी बार तेहरान के परमाणु कार्यक्रम और अन्य विषयों पर चर्चा करने के लिए नवंबर 2024 में जिनेवा में मिले थे ग़रीबाबादी ने कहा कि वे वार्ताएँ खुली थीं और देशों, क्षेत्र और दुनिया भर के बीच हाल की घटनाओं, विशेष रूप से परमाणु कार्यक्रम और प्रतिबंध हटाने पर केंद्रित थीं।

इमाम अली (अ.स.) का काबा में जन्म न केवल उनकी विशेषता को दर्शाता है, बल्कि यह इस्लाम के इतिहास में एक अद्वितीय और दिव्य घटना है। यह इस बात को सिद्ध करता है कि इमाम अली (अ.स.) का जन्म एक दिव्य रहमत का परिणाम था और उन्हें विशेष सम्मान प्राप्त था।

इमाम अली (अ.स.) का काबा में जन्म इस्लामी इतिहास का एक महत्वपूर्ण और दिलचस्प विषय है, जिस पर शिया और सुन्नी उलमा के बीच अनेक बहसें और संवाद हो चुके हैं। यह विषय खास तौर पर अल-गदीर नामक किताब के छठे खंड में आयतुल्ला अमीनी द्वारा विस्तार से बताया गया है, जहाँ उन्होंने इस बात को 16 काबिल एतबार सुन्नी किताबों से उद्धृत किया है, जो इमाम अली (अ.स.) की खासियत और उनके जन्म के सम्मान को दर्शाती है।

हाकिम ने अपनी किताब मुसतद्रक में इस घटना को मुतवातिर हदीस (जिसे बार-बार विभिन्न रिवायतों में तसदीक किया गया हो) कहा है, और इसे पूरी तरह से सही ठहराया है। अब इस संवाद को ध्यान से पढ़े, जो एक शिया और एक सुन्नी विद्वान के बीच हुआ:

सुन्नी विद्वान: इतिहास में यह भी लिखा है कि हकीम बिन हेज़ाम भी काबा में जन्मे थे।

शिया विद्वान: यह बात ऐतिहासिक रूप से साबित नहीं है। बड़े सुन्नी विद्वान जैसे इब्न-सबाग मालिकी, कंजी शाफ़ई और शिबलंजी कहते हैं कि "इमाम अली (अ.स.) से पहले काबा में कोई नहीं पैदा हुआ है।" हकीम बिन हेज़ाम, इमाम अली (अ.स.) से बड़े थे, तो यह बात केवल शत्रुओं की चालाकियों का हिस्सा है, जिन्होंने इमाम अली (अ.स.) की काबा में पैदाइश की खासियत को नकारने के लिए यह झूठ फैलाया।

सुन्नी विद्वान: काबा में पैदा होने से क्या फर्क पड़ता है? क्या वह कोई खास बात है?

शिया विद्वान: जब कोई इंसान किसी पवित्र स्थान पर पैदा होता है, तो यह अलग बात होती है। यदि किसी विशेष रूप से और ख़ुदाई  रहमत से इमाम अली (अ.स.) को काबा जैसे पवित्र स्थान पर जन्म दिया गया है, तो यह उस शख्स की महानता और शुद्धता को दर्शाता है। इमाम अली (अ.स.) की काबा में पैदाइश उसी विशेष कृपा और आशीर्वाद का परिणाम थी, और यह उनकी महानता को सिद्ध करता है।

सुन्नी विद्वान: जब इमाम अली (अ.स.) का जन्म हुआ था, उस वक्त काबा में बुतपरस्ती का प्रचलन था। क्या यह जन्म महत्वपूर्ण होगा?

शिया विद्वान: काबा, जो पहले से ही पूरी धरती पर सबसे पवित्र स्थान था, कुछ समय के लिए बुतों की पूजा का स्थान बन गया था, लेकिन फिर भी उसकी पवित्रता में कोई कमी नहीं आई। जब काबा का इतना महान और पवित्र स्थान है, तो यह हमारी नज़रों में उसकी महानता में कोई कमी नहीं लाता। और जैसे कि इमाम अली (अ.स.) की माता, फातिमा बिंत असद (अ.स .), का काबा में प्रवेश करना और वहां इमाम अली (अ.स.) का जन्म होना ख़ुदाई कृपा और अद्भुत करामात का प्रतीक है।

शिया विद्वान ने कहा, "अगर आप इस बात को नहीं समझ सकते, तो इस चर्चा को यहीं खत्म करते हैं।"

इमाम अली (अ.स.) का काबा में जन्म न केवल उनकी विशेषता को दर्शाता है, बल्कि यह इस्लाम के इतिहास में एक अद्वितीय और दिव्य घटना है। यह इस बात को सिद्ध करता है कि इमाम अली (अ.स.) का जन्म एक दिव्य रहमत का परिणाम था और उन्हें विशेष सम्मान प्राप्त था। इस घटना को लेकर पहले ही समय में शायरों ने इस पर काव्य रचनाएँ की थीं, जो इमाम अली (अ.स.) की महानता की गवाही देती हैं।

मंगलवार, 14 जनवरी 2025 17:19

अली का नाम, इस्मे आज़म है

अली अलेहिस्सलाम की पैदाइश घर काबा में हुई, जो एक बहुत बड़ा चमत्कार था। इतिहास में लिखा है कि जब अली की पैदाइश का समय करीब आया, तो फातिमा बिन्त असद काबा की ओर आईं और अल्लाह से दुआ करते हुए कहने लगीं: "हे अल्लाह! मैं तुझ पर, तेरे पैग़म्बरों और उनकी किताबों पर विश्वास करती हूं। मैं अपने पूर्वज हज़रत इब्राहीम की बातों पर यकीन करती हूं, जिन्होंने तेरे आदेश से इस घर की नींव रखी। मैं तुझे उनकी और इस बच्चे की قسم देती हूं, जो मेरे पेट में है, कि उसकी पैदाइश मेरे लिए आसान बना दे।"

अली वह महान हस्ती हैं जिनकी पैदाइश, जीवन और शहादत सभी चमत्कारों से भरे हुए हैं। उनका नाम उस व्यक्तित्व से जुड़ा हुआ है, जो सोच और विचार से भी परे है, जिनके अस्तित्व के सामने सात आसमान भी झुक जाएं। वह ज्ञान और समझ के महासागर हैं, जिनके दरवाजे पर हमेशा हकीकत और हिकमत के समंदर हिलोरें मारते हैं। अली वह शख्स हैं जिन्होंने अज्ञानता के अंधकार को ज्ञान की रोशनी से प्रकाशित किया। वह ऐसे व्यक्ति हैं जो ईश्वर की शानदार विशेषताओं के आईने के रूप में प्रस्तुत होते हैं, और जिनके हाथों में दुश्मनों के खिलाफ ज़ुल्फ़िकार तलवार होती है।

अली के बारे में लिखी गई बातों में यह उल्लेख है कि उनकी जन्मी हुई घटना भी एक चमत्कार थी। जब अली की मां फातिमा बिन्त असद उनके जन्म के समय काबा की ओर जा रही थीं, तो उन्होंने अल्लाह से दुआ की कि वह उनका और उनके बच्चे का जन्म आसान बना दे। इस समय काबा की दीवार फट गई और फातिमा बिन्त असद उसके अंदर चली गईं। तीन दिन बाद वह बाहर आईं और उनके हाथों में अली थे, और अल्लाह ने उन्हें नाम लेने की प्रेरणा दी। यह अली की जन्म की एक चमत्कारी घटना थी।

अली की जिंदगी की विशेषताएँ भी अद्भुत हैं। वह हमेशा पैगंबर मुहम्मद के पास रहते, उनके साथ हर कठिनाई में शरीक होते और हमेशा सही मार्ग पर चलते थे। उन्होंने कई लड़ाइयों में भाग लिया और अपनी वीरता से इतिहास रच दिया। वह बखूबी धर्म और न्याय के साथ खड़े रहे, और उनका जीवन पूरी मानवता के लिए एक मिसाल है।

एक दिन, जब अली और एक यहूदी एक रास्ते से गुजर रहे थे और एक पानी की झील के पास पहुंचे, तो यहूदी पानी पर चलने लगा। यह देखकर अली ने उसे चुनौती दी, और फिर अली ने भी उसी पानी पर चलने का चमत्कार दिखाया। यह देखकर वह यहूदी अली की सच्चाई का कायल हो गया और उसने इस्लाम धर्म स्वीकार कर लिया। यह घटना अली के चमत्कारी गुणों को और भी स्पष्ट करती है।

पैगंबर मुहम्मद ने भी हमेशा अली से मोहब्बत और उनके मार्गदर्शन को अपनाने की सलाह दी। उन्होंने कहा कि अगर अली से प्रेम किया जाए तो सभी अच्छे कर्म मंज़ूर होते हैं, लेकिन अगर अली की ولایت को न अपनाया जाए तो व्यक्ति को बुराई का सामना करना पड़ सकता है।