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लेबनानी सांसद और हिज़्बुल्लाह से जुड़े प्रतिनिधि हसन फज़लुल्लाह ने कहा है कि हिज़्बुल्लाह लेबनानी जनता की पीड़ा और दुख-दर्द से जन्म लेने वाला एक जन आंदोलन है, जिसने देश की रक्षा में अपने प्राणों की आहुति दी है।

लेबनानी सांसद और हिज़्बुल्लाह से जुड़े प्रतिनिधि हसन फज़लुल्लाह ने कहा है कि हिज़्बुल्लाह लेबनानी जनता के दुख, कष्ट और पीड़ा से जन्म लेने वाली एक जन-आंदोलन है, जिसने देश की रक्षा में अपनी जानें कुर्बान की हैं।

उन्होंने स्पष्ट किया कि लेबनान पर इस्राइली आक्रमण हमेशा अमेरिका के समर्थन से हुए हैं और ये अत्याचार आज भी जारी हैं।

हसन फज़लुल्लाह ने आगे कहा,हिज़्बुल्लाह ने न केवल देश की रक्षा की, बल्कि अमेरिका की ज़लिम नीतियों से पीड़ित मजलूमों का साथ देने में भी क़ुर्बानियाँ दी हैं।

उनका कहना था कि हिज़्बुल्लाह को लेबनानी जनता का एक बड़ा हिस्सा अपना प्रतिनिधि चुनता है, क्योंकि वे अपने राष्ट्रीय हितों की सुरक्षा इसी पार्टी को सौंपते हैं।

उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि हिज़्बुल्लाह संविधान और देश के क़ानूनों के अनुसार कार्य करती है, और इसे इसकी ईमानदारी, पारदर्शिता और भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ संघर्ष के कारण पहचाना जाता है।

फज़लुल्लाह ने हालिया इस्राइली आक्रमण को लेबनान में हुई तबाही का ज़िम्मेदार ठहराया और कहा कि यह सब कुछ पाँच सदस्यीय अंतरराष्ट्रीय समिति की आँखों के सामने हो रहा है, लेकिन फिर भी इस्राइली अत्याचार जारी हैं।

लेबनानी सांसद ने हिज़्बुल्लाह पर सोने की तस्करी के आरोप को सख्ती से ख़ारिज करते हुए माँग की कि संबंधित सरकारी संस्थाएं इस मामले की जानकारी सार्वजनिक करें।

उन्होंने आगे कहा,हम हवाई अड्डे की सुरक्षा को अत्यधिक महत्व देते हैं और क़ानून की समान रूप से अनुपालना में विश्वास रखते हैं। हमने हवाई अड्डे की सुरक्षा और शांति सुनिश्चित करने के लिए सरकारी सुरक्षा एजेंसियों के साथ पूरा सहयोग किया है।

 

बेरूत के इमामे जुमआ हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन सैय्यद अली फ़ज़लुल्लाह ने क्षेत्र "हारह हरिक़" में स्थित इस्लामी सांस्कृतिक केंद्र में एक संवादात्मक बैठक को संबोधित करते हुए इस्लाम में बातचीत की अहमियत और उसके उसूलों पर रौशनी डाली।

बेरूत के इमामे जुमा हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन सैय्यद अली फ़ज़लुल्लाह ने क्षेत्र "हारे हरीक़" में स्थित इस्लामी सांस्कृतिक केंद्र में एक संवादात्मक बैठक को संबोधित करते हुए इस्लाम में संवाद (गुफ़्तगू) की अहमियत और उसके उसूलों (सिद्धांतों) पर रोशनी डाली बैठक के अंत में उन्होंने प्रतिभागियों के सवालों के जवाब भी दिए।

उन्होंने कहा कि हर प्रभावशाली संवाद के लिए कुछ बुनियादी उसूलों का ख्याल रखना जरूरी है, जिनमें सबसे अहम यह है कि कोई भी पक्ष खुद को पूर्ण सत्य (मुतलक हक़) पर न समझे। अगर ऐसा रवैया अपनाया जाए तो संवाद शुरू होने से पहले ही नाकाम हो जाता है। संवाद की बुनियाद हमेशा सत्य की खोज पर होनी चाहिए।

उन्होंने कहा कि इस्लाम चाहता है कि बातचीत धार्मिक, क़ौमी (राष्ट्रीय) और इंसानी साझा मूल्यों के आधार पर हो और यह विचारात्मक हो, न कि व्यक्तिगत या पक्षपातपूर्ण।

हुज्जतुल इस्लाम फ़ज़लुल्लाह ने आगे कहा कि संवाद के दौरान आपसी सम्मान बहुत जरूरी है। किसी के अकीदे या विचारों की तौहीन (अपमान) या मज़ाक उड़ाना नहीं चाहिए, क्योंकि जब सम्मान की जगह अपमान ले लेता है तो संवाद अपनी अहमियत खो देता है।

बेरूत के इमामे जुमआ ने कहा कि इस्लाम पड़ोसियों के साथ अच्छे बर्ताव की तालीम देता है। हम इस देश में किसी सीमित और संकीर्ण फिरकापरस्ती के घेरे में क़ैद नहीं हैं। हम सभी मसालिक (विचारधाराओं) और मज़ाहिब (धर्मों) के साथ बेहतर ताल्लुकात (संबंध) चाहते हैं और यह हमारी कमजोरी नहीं, बल्कि दीन (धर्म) की तालीमात और इस्लामी उसूलों का तकाज़ा (मांग) है।

अपने ख़िताब (भाषण) के आखिर में उन्होंने वाज़ेह (स्पष्ट) किया कि हमारा दुनिया से कोई मसला नहीं है, हमारा असली मसला उन लोगों से है जो हमारे मुल्क पर हमला करते हैं, हमारी ज़मीन पर क़ब्ज़ा करना चाहते हैं और हमारे वसाइल (संसाधनों) को लूटते हैं। यह हमारा हक़ और फर्ज़ है कि हम अपने वतन का दिफा करें और दुश्मन को उसके नापाक इरादों में कामयाब न होने दें।

 

इस्लामी गणराज्य ईरान के स्कूली छात्रों की भौतिकी ओलंपियाड टीम ने 25वीं एशियाई भौतिकी ओलंपियाड में एक रजत पदक और छह कांस्य पदक जीतकर बड़ी सफलता हासिल की है।

25वीं एशियाई भौतिकी ओलंपियाड सऊदी अरब के शहर ज़हरान में 15 से 22 उर्दीबेहश्त 1404 अर्थात 5 से 12 मई 2025 तक आयोजित की गई।

 ईरानी टीम के सभी सदस्य इस प्रतिस्पर्धा में पदक जीतने में सफल रहे, जो एक महत्वपूर्ण गौरव है और यह दर्शाता है कि ईरानी छात्रों की वैज्ञानिक क्षमता अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कितनी उच्च है।

 इस प्रतियोगिता में एशियाई देशों की 30 टीमों ने हिस्सा लिया, जिनमें चीन, रूस, जापान, दक्षिण कोरिया, भारत, कज़ाक़िस्तान और सिंगापुर जैसे देश शामिल थे। छात्र दो पाँच-पाँच घंटे की परीक्षाओं, एक सैद्धांतिक और एक प्रायोगिक अर्थात  theoretical and practical में भाग लेकर आपस में प्रतिस्पर्धा कर रहे थे। 

 

दक्षिण खुरासान में सर्वोच्च नेता के प्रतिनिधि, हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन सय्यद अली रजा एबादी ने कहा है कि शहीद आयतुल्लाह इब्राहिम रईसी सदाक़त और सेवा की एक मिसाल थे, जिन्होंने बिना किसी सांसारिक हितों के लोगों की सेवा करने के लिए अपनी जान जोखिम में डाल दी और जिहाद के मैदान में डटे रहे।

दक्षिण खुरासान में सर्वोच्च नेता के प्रतिनिधि, हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन सय्यद अली रजा एबादी ने कहा है कि शहीद आयतुल्लाह इब्राहिम रईसी सदाक़त और सेवा की एक मिसाल थे, जिन्होंने बिना किसी सांसारिक हितों के लोगों की सेवा करने के लिए अपनी जान जोखिम में डाल दी और जिहाद के मैदान में डटे रहे।

बीरजंद में मदरसा "सफीरान ए हिदायत" के शिक्षकों और छात्रों को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि अल्लाह तआला ने इंसान को परीक्षा के लिए बनाया है और "संकट, परीक्षा और चुनाव" जैसी वास्तविकताएं सांसारिक जीवन का आधार हैं। उनके अनुसार, अल्लाह ने 124,000 पैगम्बरों को भेजकर प्रमाण पूरा कर दिया, अब यह इंसान की अपनी पसंद की शक्ति है जो उसकी खुशी या दुख का निर्धारण करती है, न कि समय की परिस्थितियां।

हुज्जतुल इस्लाम एबादी ने मौजूदा राष्ट्रीय संकटों के लिए इस्लामी क्रांति को नहीं बल्कि दुश्मन तत्वों के प्रभाव, अज्ञानता और स्वार्थ को जिम्मेदार ठहराया और कहा कि "जहां भी क्रांतिकारी और इस्लामी सिद्धांतों पर काम किया गया है, वहां महत्वपूर्ण सफलताएं हासिल हुई हैं, चाहे वह शैक्षणिक, सैन्य या आर्थिक क्षेत्र में हो।"

उन्होंने कहा कि अगर राष्ट्र और जिम्मेदार लोग आस्था के सिद्धांतों के आधार पर काम करते हैं, तो कोई भी कठिनाई नहीं रहेगी।

हुज्जतुल इस्लाम एबादी ने शहीद आयतुल्लाह रईसी के व्यक्तित्व को "सेवा, सदाकत और इमानदारी" का प्रतीक बताया और कहा: "यदि सभी व्यक्ति समान ईमानदारी से काम करें, तो देश जल्द ही सभी कठिनाइयों को पार कर जाएगा।" उन्होंने कहा कि आज सही और गलत के बीच वैश्विक संघर्ष तेज हो गया है और इस्लामी क्रांति पश्चिमी उदार लोकतंत्र के सामने एक सीसे की दीवार बन गई है। उन्होंने कहा कि पूरी दुनिया में, यहां तक ​​कि पश्चिम में भी, लोग अहंकारी उत्पीड़न के खिलाफ जाग रहे हैं और यह भविष्य में सच्चाई की जीत का अग्रदूत है। उन्होंने जोर देकर कहा कि दुश्मन अपने धोखे के माध्यम से अपना असली चेहरा छिपाने की कोशिश कर रहा है, इसलिए आध्यात्मिक और धार्मिक अभिजात वर्ग का कर्तव्य है कि वे युवाओं को इन साजिशों के बारे में सूचित करें। अंत में, उन्होंने मरहूम आयतुल्ललाह हाएरी शिराज़ी की भविष्यवाणी को उद्धृत किया: "दुनिया जल्द ही दो भागों में विभाजित हो जाएगी: एक ओर, पश्चिम के नेतृत्व में धोखेबाज देशद्रोही, और दूसरी ओर, ईरान के नेतृत्व में वफादार लोग। आज, इस परिवर्तन के संकेत स्पष्ट हैं, और अंततः जीत इस्लाम और क्रांति की होगी।"

 

यमन की अंसारुल्लाह आंदोलन के एक राजनीतिक दफ्तर के सदस्य ने दो एयरलाइनों द्वारा बिन गोरियन एयरपोर्ट के लिए उड़ानें जारी रखने को लेकर खतरे की घंटी बजाई है।

क़ुद्स अलअखबारीया की रिपोर्ट में बताया गया कि यमनी अंसारुल्लाह आंदोलन के राजनीतिक कार्यालय के सदस्य हिज़ाम अलअसद ने कहा है: इस्राईली एयरलाइन एल-आल और संयुक्त अरब अमीरात की इतिहाद एयरवेज अभी भी अपनी "मोहलत भरी" उड़ानों को जारी रख रही हैं और अपने यात्रियों, विशेष रूप से पश्चिमी नागरिकों की जान जोखिम में डाल रही हैं।

हिज़ाम अलअसद ने बताया कि ये दोनों कंपनियां यमन की सशस्त्र सेनाओं की उस चेतावनी को नजरअंदाज़ कर रही हैं, जिसमें अललिद (बिन गूरियन) एयरपोर्ट के लिए उड़ानों पर रोक लगाने की बात कही गई है।

उन्होंने कहा कि ये लापरवाही उस स्थिति में हो रही है जब दुनिया की अधिकांश एयरलाइनों ने यमन की इस चेतावनी को गंभीरता से लिया है।

अलअसद ने ज़ोर देकर कहा: इन दोनों कंपनियों की मौजूदा नीति पर अड़े रहने की स्थिति में इसके गंभीर परिणाम होंगे जो चेतावनी देता है, वह जिम्मेदारी से बच जाता है।

 

सिपाह फज्र के उप कमांडर अमीर जाहदी ने कहा है कि पवित्र कुरान में चिंतन के माध्यम से हम समाज के सवालों और जरूरतों का जवाब दे सकते हैं।

सिपाह फज्र के उप कमांडर अमीर जाहदी ने कहा है कि पवित्र कुरान में चिंतन के माध्यम से हम समाज के सवालों और जरूरतों का जवाब दे सकते हैं।

उन्होंने यह बात शिराज में आयोजित राष्ट्रव्यापी "बसीजी छात्रों और आध्यात्मिक नेताओं के दूसरे कुरानिक समारोह" के दौरान कही, जिसे ईरान के अहले बैत (अ) के तीसरे तीर्थ द्वारा आयोजित किया गया था। उन्होंने कहा कि देश के 32 प्रांतों के छात्रों और बसीजी विद्वानों, जिनमें 196 कुरानिक अभिजात वर्ग शामिल थे, ने इस कुरानिक समारोह में भाग लिया।

इस्लामी क्रांति के सर्वोच्च नेता के बयानों का जिक्र करते हुए अमीर जाहिदी ने कहा कि आयतुल्लाह खामेनेई ने हमेशा पवित्र कुरान को जीवन का केंद्र बनाने पर जोर दिया है। इस्लामी क्रांति से पहले भी उन्होंने इस बात पर जोर दिया था कि हर किसी को अपने साथ एक छोटा कुरान रखना चाहिए और कुरान पर विचार करने की आदत डालनी चाहिए। उन्होंने कहा कि आज के दौर में अगर हमें समाज के सवालों का जवाब देना है तो इसका एकमात्र रास्ता पवित्र कुरान है। छात्रों और विद्वानों की एक बड़ी जिम्मेदारी इस कुरान की क्षमता का लाभ उठाना है। हमें उम्मीद है कि हम भविष्य में भी बेहतर योजना के साथ आपकी सेवा में मौजूद रहेंगे।

 

इमाम ख़ुमैनी शैक्षिक और शोध संस्थान के सदस्य हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन अली मिसबाह यज़दी ने कहा है कि इंसानियत की हिदायत और फ़िक्री रौशनी, दीन के अलमबरदारी उलमा की ज़िम्मेदारी है और मरहूम आयतुल्लाहिल उज़मा बहजत उन अज़ीम उलमा में से थे जो इलाही मआरिफ़ के माहिर और एक बेमिसाल फक़ीह थे।

इमाम ख़ुमैनी शैक्षिक और शोध संस्थान के सदस्य हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन अली मिसबाह यज़दी ने कहा है कि इंसानियत की हिदायत और फ़िक्री रौशनी, दीन के अलमबरदारी उलमा की ज़िम्मेदारी है और मरहूम आयतुल्लाहिल उज़मा बहजत उन अज़ीम उलमा में से थे जो इलाही मआरिफ़ के माहिर और एक बेमिसाल फक़ीह थे।

उन्होंने यह बात बुधवार की रात फ़ूमन शहर की जामा मस्जिद में आयोजित आयतुल्लाह बहजत की सोलहवीं बरसी और शहीद छात्रों व उलमा की याद में आयोजित एक मजलिस को संबोधित करते हुए कही।

उन्होंने कहा कि इस्लामी इतिहास में कई बुज़ुर्ग और महान उलेमा गुज़रे हैं जिन्होंने इंसानियत की ख़िदमत की, लेकिन कुछ शख्सियतों का फ़ुक़्दान  ऐसा होता है जिसे कभी पूरा नहीं किया जा सकता। रिवायतों के मुताबिक़ जब कोई बड़ा आलिम दुनिया से रुख़्सत होता है तो एक ऐसा ख़ला पैदा होता है जो क़यामत तक बाक़ी रहता है, क्योंकि ऐसे उलेमा का किरदार और मर्तबा इंसानी हिदायत के अज़ीम फ़रीज़े से जुड़ा होता है।

उन्होंने वाज़ेह किया कि इंसान की तख़लीक़ का मक़सद यह है कि वो हर सांस और हर कदम के साथ ख़ुदा के क़रीब होता चला जाए। और यह क़ुर्बे इलाही तभी हासिल होता है जब इंसान इस छोटी सी दुनियावी ज़िंदगी में रुश्द व कमाल (विकास और पूर्णता) के रास्ते पर चले।

हुज्जतुल इस्लाम मिसबाह यज़दी ने कहा कि इंसान के कमाल के सफ़र में एक राहशिनास (मार्गदर्शक) का होना ज़रूरी है और यह रहनुमा अंबिया, औलिया और उलमा होते हैं। हर आलिम अपने असर के दायरे में एक ख़ला को भरता है, लेकिन जब वो दुनिया से चला जाता है तो उसका खालीपन बाक़ी रह जाता है।

उन्होंने आयतुल्लाह बहजत की इल्मी और रुहानी ख़िदमात को ख़िराजे तहसीन पेश करते हुए कहा,वो एक ऐसे फक़ीह और आलिमे रब्बानी थे जिन्होंने अपनी पुरबरकत ज़िंदगी में लोगों की हिदायत और तर्बियत का फ़रीज़ा अंजाम दिया, और उनका इल्म और तक़्वा आज भी उम्मत के लिए एक मशअले राह (रौशनी का स्रोत) है।

उन्होंने यह भी कहा कि उलमा का फ़रीज़ा सिर्फ़ तालीम देना नहीं, बल्कि वो फ़िक्री और अकीदती हमले का जवाब देना भी है जो शैतानी ताक़तें वक़्तन फवक़्तन इंसानियत पर करती हैं। इसी वजह से उलमा, ख़ास तौर पर फुक़हा, को दुश्मनों की सख़्त मुख़ालिफ़त का सामना करना पड़ता है।

मिसबाह यज़दी ने कहा कि इंक़िलाबे इस्लामी ईरान आज के दौर की एक अज़ीम नेमत है। इमाम ख़ुमैनी की क़ियादत और मोमिन क़ौम की इस्तेक़ामत ने दीन और दीनदारी को दोबारा ज़िंदा किया, जिसे गुज़िश्ता दौर में फ़रामोशी के हवाले किया जा रहा था।

उन्होंने कहा कि आज भी इंक़िलाब को दुश्मनों की साज़िशों और फ़िक्री हमलों का सामना है सख़्त जंग, सकाफ़ती यलग़ार इस्लाम को बदनाम करना और लोगों के अकीदों को डगमगाना करना इन साज़िशों की मुख़्तलिफ़ शक्लें हैं। ऐसे हालात में रूहानियत की ज़िम्मेदारी पहले से कहीं ज़्यादा संगीन और हस्सास हो चुकी है।

अपने ख़िताब के आख़िर में उन्होंने जिहादे तबीइन यानी दीन की सही और वाज़ेह तशरीह को आज की सबसे बड़ी ज़रूरत क़रार देते हुए कहा कि इस्लामी समाज की रहनुमाई किसी एक इलाक़े तक महदूद नहीं, बल्कि पूरी इंसानियत की हिदायत उलमा की आलमी ज़िम्मेदारी है।

अंत में उन्होंने याद दिलाया कि अगर आज हम शोहदा के खून, बाशऊर क़ौम और रहबर मुअज़्ज़म की क़ियादत की बदौलत इस्लामी निज़ाम में सांस ले रहे हैं, तो लाज़मी है कि इस नेमत को दिनी मआरिफ़ के फैलाव और शऊर की बेदारी के लिए भरपूर इस्तेमाल करें।

 

 

एक ज़ायोनी विश्लेषक ने एक इस्राइली मीडिया में चेतावनी दी है कि अमेरिका और ज़ायोनी शास के बीच विशेष संबंध टूटने के कगार पर हो सकते हैं।

इस्राइल की हैफ़ा यूनिवर्सिटी में राजनीति विज्ञान के प्रोफ़ेसर और इस्राइल -अमेरिका संबंधों के विशेषज्ञ अब्राहम बिन त्सवी ने इस्राइलीअख़बार यिस्राएल ह्यूम में लिखा: "छह दशकों से अमेरिका और इस्राइल के बीच जो गहरा, रणनीतिक और कूटनीतिक सहयोग रहा है वह साझा मूल्यों पर आधारित था और उसे विशेष संबंध कहा जाता था और अब वह एक संवेदनशील मोड़ पर पहुंच गया है जो इस गठबंधन के भविष्य को ख़तरे में डाल सकता है।"

 बिन तसफ़ी ने लिखा: "डोनाल्ड ट्रंप और ज़ायोनी शासन के प्रधानमंत्री बिन्यामिन नेतन्याहू क्षेत्रीय और वैश्विक संवेदनशील मुद्दों पर सीधे टकराव की ओर तेज़ी से बढ़ रहे हैं।"

 लेखक के अनुसार ग़ज़ा पट्टी में युद्ध का शीघ्र अंत डोनाल्ड ट्रंप के लिए एक महत्वपूर्ण मुद्दा है जो उन्हें एक दृढ़ और निर्णायक नेता के रूप में स्थापित करने में मदद करेगा, ऐसा नेता जो लगातार बड़े संकटों को सुलझाने या कम से कम उन्हें नियंत्रित करने का प्रयास करता है। ट्रंप ख़ुद को एक मध्यस्थ के रूप में पेश करना चाहते हैं और ग़ज़ा युद्ध उनके लिए पश्चिमी एशिया को अमेरिका के नियंत्रण में पुनः डिज़ाइन करने के प्रयासों का हिस्सा माना जाता है।

 बिन तसफ़ी ने आगे कहा: इस लक्ष्य की प्राप्ति वॉशिंगटन और फ़ार्स की खाड़ी क्षेत्र के अरब देशों के बीच आपसी समझौतों पर निर्भर है। अमेरिका इन देशों को उन्नत व विकसित हथियार दे रहा है बदले में उनसे अपनी अर्थव्यवस्था में भारी निवेश की अपेक्षा करता है ताकि क्षेत्र में उनके सैन्य प्रभाव और स्थिति को मज़बूत किया जा सके।

 इस विश्लेषण व समीक्षा में बताया गया है: व्हाइट हाउस की इस नीति का अंतिम उद्देश्य एक व्यापक कूटनीतिक और रणनीतिक गठबंधन बनाना है जो अमेरिका के समर्थन से क्षेत्रीय और वैश्विक खतरों और चुनौतियों का सामना कर सके और नए क्षेत्रीय व्यवस्था के ख़िलाफ पैदा होने वाले ख़तरों को नियंत्रित कर सके।

बिन तसफ़ी ने चेतावनी दी कि अमेरिका और ज़ायोनी शासन के बीच विशेष संबंध अब अभूतपूर्व दबाव में हैं, क्योंकि डेमोक्रेटिक पार्टी के वामपंथी धड़े को इस संबंध के लिए एक गंभीर ख़तरे के रूप में देखा जा रहा है। वहीं रिपब्लिकन पार्टी के अलगाववादी धड़े में भी इस रिश्ते को लेकर बढ़ती उदासीनता के संकेत नज़र आ रहे हैं।

 इस राजनीति विश्लेषक ने आगे कहा: "यह स्थिति व्हाइट हाउस के भीतर नेतन्याहू के प्रति बढ़ती निराशा और ग़ुस्से का कारण बनी है और अब यह असंतोष स्पष्ट रूप से सामने आ चुका है।"

 बिन तसफ़ी ने कहा: "डोनाल्ड ट्रंप और उनके मध्य पूर्व मामलों के प्रतिनिधि Steve Witkoff यह समझने में असमर्थ हैं कि ज़ायोनी शासन ग़ज़ा के दलदल में अपनी मौजूदगी क्यों बनाए हुए है, क्योंकि उनकी दृष्टि में यह युद्ध न तो कोई स्पष्ट उद्देश्य रखता है और न ही कोई अर्थ।"

 इस इस्राइली ज़ायोनी विश्लेषक ने क्षेत्र में हाल ही में हुए घटनाक्रमों की ओर इशारा किया जो अमेरिका और इस्राइली के बीच संबंधों को और अधिक बिगाड़ सकते हैं।

 इनमें से एक उदाहरण दोहरी नागरिकता रखने वाले इस्राइली -अमेरिकी बंदी 'ईदान अलेक्ज़ेंडर' की रिहाई है जिसे हमास ने अमेरिका के साथ सीधी बातचीत के बाद आज़ाद किया।

 उसने अंत में यह संभावना जताई कि निकट भविष्य में ग़ज़ा के बाद प्रशासन में हमास की राजनीतिक भूमिका को स्वीकार कर लिया जाये भले ही वह प्रतीकात्मक रूप में हो। इसके अलावा यह भी संभव है कि भविष्य में ईरान के साथ कोई परमाणु समझौता ज़ायोनी शासन से परामर्श के बिना किया जाए, और सऊदी अरब के असैन्य परमाणु कार्यक्रम को समर्थन देने का निर्णय भी इस्राइल की सहमति के बिना लिया जाए। 

 

ईरान के इमाम-ए जुमआ की पॉलिसी निर्माण परिषद के प्रमुख ने हौज़ा न्यूज़ के साथ बातचीत में इस्लामी क्रांति के रहबर, आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई के उस संदेश को अत्यंत व्यापक, गहन और रणनीतिक बताया, जो हौज़ा-ए इल्मिया क़ुम की स्थापना के 100 वर्ष पूरे होने पर जारी किया गया था।

ईरान के इमाम-ए जुमा की पॉलिसी निर्माण परिषद के प्रमुख ने हौज़ा न्यूज़ के साथ बातचीत में इस्लामी क्रांति के रहबर, आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई के उस संदेश को अत्यंत व्यापक, गहन और रणनीतिक बताया, जो हौज़ा-ए इल्मिया क़ुम की स्थापना के 100 वर्ष पूरे होने पर जारी किया गया था उन्होंने कहा कि यह संदेश एक सभ्यतागत घोषणापत्र है, जिसे सतही नज़रिए से नहीं, बल्कि गहन अध्ययन और विश्लेषण की आवश्यकता है। 

हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन मोहम्मद जवाद हाज अली अकबरी ने ज़ोर देकर कहा कि इस संदेश में उल्लिखित बिंदुओं को विशेषज्ञ समितियों द्वारा विभिन्न वैचारिक, शैक्षणिक और कार्यान्वयन पहलुओं से विश्लेषित, व्याख्यायित और लागू किया जाना चाहिए।

उनके अनुसार, इस संदेश के आधार पर हौज़ा-ए इल्मिया की भविष्य की रणनीति तय की जा सकती है।यह संदेश केवल एक सामान्य भाषण नहीं, बल्कि इस्लामी सभ्यता के पुनर्निर्माण और उम्मत-साज़ी का एक प्रस्ताव है। 

इमाम-ए जुमा को चाहिए कि वे इस संदेश के विभिन्न पहलुओं को जनता तक पहुँचाने में सक्रिय भूमिका निभाएँ, क्योंकि वे हौज़ा और आम जनता के बीच बौद्धिक एवं धार्मिक कड़ी हैं। जुमा के ख़ुतबे को इस संदेश से प्रेरित होकर सामाजिक मार्गदर्शन का माध्यम बनाना चाहिए। 

इस संदेश से युवाओं की बौद्धिक,आध्यात्मिक और धार्मिक शिक्षा के लिए महत्वपूर्ण दिशा-निर्देश प्राप्त होते हैं।सभी धार्मिक, क्रांतिकारी और सांस्कृतिक संस्थानों को चाहिए कि वे इस संदेश को केवल विश्लेषण या चर्चा तक सीमित न रखें, बल्कि इसे व्यवहार में लाने के लिए विद्वतापूर्ण और सक्रिय कदम उठाएँ। 

हुज्जतुल इस्लाम हाज अली अकबरी ने हौज़ा न्यूज़ एजेंसी का आभार व्यक्त करते हुए कहा कि मीडिया इस संदेश की व्याख्या और प्रसार में जो भूमिका निभा रहा है, वह हैज़ा-ए इल्मिया के वैश्विक और सभ्यतागत मिशन को पुनर्जीवित करने में महत्वपूर्ण योगदान देगा। 

 

महान आध्यात्मिक विद्वान और मरजा-ए तक़लीद आयतुल्लाह बहजत रह. की जीवन शैली का एक प्रमुख पहला उनकी निष्काम भक्ति और ज़ियारत थीं, जहाँ वे हमेशा अपनी व्यक्तिगत इच्छाओं के बजाय मोमिनीन और दुआ के मुहताज लोगों को याद रखते थे।

किताब सोहबत-ए सालहा में वर्णित एक घटना के अनुसार, जब आयतुल्लाह बहजत हरम-ए मोतहर में ज़ियारत के लिए जाते तो कहा करते थे मैं यहाँ उन्हीं लोगों के लिए आया हूँ, जो मेरे आसपास मौजूद हैं।

वह ज़ियारत को कई बार अलग-अलग लोगों की नियाबत में पढ़ते थे और कहते थे कि उनके आसपास मौजूद सभी लोगों की ज़रूरतें उनके दिल में होती हैं।

15 साल पहले दुबई से आए एक शख्स का अनुभव, एक व्यक्ति ने बताया कि वह 15 साल पहले दुबई से आया था और आयतुल्लाह बहजत के पीछे हरम में चुपचाप बैठा रहा। जब आयतुल्लाह बहजत दुआ से फ़ारिग हुए, तो माफ़ी माँगते हुए बोले, माफ़ कीजिए, मैं व्यस्त था, लेकिन महसूस किया कि आप आए हैं, इसलिए आपको भी इबादत में शामिल कर लिया।

मरहूम नख़ोदकी की मज़ार पर एक और घटना,
एक बार ज़ियारत के बाद आयतुल्लाह बहजत मरहूम नख़ोदकी (रह.) की मज़ार पर फातिहा पढ़ रहे थे कि एक व्यक्ति ज़ोर-ज़बरदस्ती से उन तक पहुँचने की कोशिश कर रहा था। जब कारण पूछा गया, तो पता चला कि वह अपनी हाजत बताना चाहता है। 

आयतुल्लाह बहजत ने कहा,मैं खुद भी इन सभी के लिए ही यहाँ आया हूँ, अपने किसी काम के लिए नहीं। मैं आया हूँ ताकि मरहूम नख़ोदकी, इमाम (अ.स.) की खिदमत में इनकी हाजत पेश करें।

ये शब्द और व्यवहार आयतुल्लाह बहजत के आध्यात्मिक और निस्वार्थ स्वभाव की जीती-जागती मिसाल हैं वह सिखाते हैं कि दुआ और इबादत का असली मक़सद दूसरों के लिए दिल से प्रार्थना करना है, न कि सिर्फ़ अपनी ज़रूरतों के लिए।