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इमाम ख़ुमैनी: विचार, क्रांति और नेतृत्व

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इमाम ख़ुमैनी: विचार, क्रांति और नेतृत्व

इमाम रूहुल्लाह ख़ुमैनी बीसवीं सदी की उन महान हस्तियों में से हैं जिनका प्रभाव केवल ईरान तक सीमित नहीं रहा बल्कि पूरी दुनिया की राजनैतिक और आध्यात्मिक सोच पर गहरा असर पड़ा। वे एक धार्मिक विद्वान, क्रांतिकारी नेता, विचारक और विश्व-स्तरीय व्यक्तित्व थे जिन्होंने इस्लामी सिद्धांतों को आधुनिक राजनीति के साथ जोड़कर एक नए दौर की नींव रखी।

इमाम रूहुल्लाह ख़ुमैनी बीसवीं सदी की उन महान हस्तियों में से हैं जिनका प्रभाव केवल ईरान तक सीमित नहीं रहा बल्कि पूरी दुनिया की राजनैतिक और आध्यात्मिक सोच पर गहरा असर पड़ा। वे एक धार्मिक विद्वान, क्रांतिकारी नेता, विचारक और विश्व-स्तरीय व्यक्तित्व थे जिन्होंने इस्लामी सिद्धांतों को आधुनिक राजनीति के साथ जोड़कर एक नए दौर की नींव रखी।
उनकी जीवन-यात्रा इस बात का प्रमाण है कि किसी बड़े परिवर्तन की शुरुआत हमेशा एक सच्ची सोच, पवित्र उद्देश्य और जनता के अधिकारों की रक्षा से होती है। यह लेख इमाम ख़ुमैनी के जीवन-दर्शन, उनकी क्रांतिकारी सोच और उनके नेतृत्व के बुनियादी पहलुओं का अध्ययन है।

 जीवन-परिचय(Biographical Sketch)

इमाम ख़ुमैनी का जन्म 24 सितंबर 1902 को ईरान के शहर ख़ुमैन में हुआ।
उनके पिता आयतुल्लाह मुस्तफ़ा एक सम्मानित धार्मिक विद्वान थे।
कम उम्र में ही पिता का निधन हो गया, लेकिन माता और  (ख़ाला) मौसी ने परवरिश की उनमें दृढ़ता, साहस और धार्मिकता की बुनियाद मज़बूत कर दी।

शिक्षा
उन्होंने अपनी उच्च धार्मिक शिक्षा क़ुम में प्राप्त की जहाँ
फ़िक़्ह
उसूल
दर्शन
अखलाक़ 
से जुड़े महान उस्तादों से इस्तेफ़ादा किया۔
यहीं से उनकी फ़िक्री व्यक्तित्व की बुनियाद पड़ी  और वो एक गहरे  मज़हबी, और इंक़िलाबी के तौर पर उभरे

प्रारम्भिक सेवाएँ
जवानी से ही उन्होंने
समाज की नैतिक इसलाह
ज़ालिम शासन का विरोध
न्याय और इंसाफ की प्रचार
को अपना मक़सद बनाया۔
उनका स्वभाव नर्म लेकिन निर्णय दृढ़ होता था। यही विशेषता आगे चलकर उन्हें एक वैश्विक नेता बनाती है।
 

इमाम ख़ुमैनी का विचारात्मक निज़ाम (Ideological Framework)

इमाम ख़ुमैनी की फ़िकरी बुनियाद तीन उसूलों पर क़ायम थी:

(1) तौहीद और आध्यात्मिकता
वे मानते थे कि समाज की सच्ची कामयाबी तभी मुमकिन है जब व्यक्ति का राबेता ख़ुदा से मज़बूत हो۔
उनके अनुसार रूहानी जागरूकता राजनीतिक जागरूकता की मूल ताक़त है।

(2) इंसाफ और सामाजिक अदल

उनकी सोच का केंद्र कमज़ोरों की हिमायत, ज़ालिम का प्रतिरोध और समान अवसर था।
उन्होंने बार-बार कहा:
"जहाँ ज़ुल्म हो, वहाँ खामोशी सबसे बड़ा गुनाह है।"

(3) जनता का अधिकार और नेतृत्व की जिम्मेदारी

इमाम ख़ुमैनी के नज़रिए के मुताबिक़ 

हुकूमत अवाम की मालिक  नहीं बल्कि खादिम 

नेतृत्व का मेयर ताक़त नहीं बल्कि तक़्वा है

निर्णय सत्ता नहीं बल्कि राष्ट्र और नैतिकता के मुताबिक़ होने चाहिए


उनका सिद्धांत विलायत-ए-फ़क़ीह इन्हीं उसूलों की संगठित शक्ल है जिसमें धार्मिक न्याय, नैतिक ज़िम्मेदारी और जनता के अधिकार एक साथ महफूज़ रहते हैं।

इस्लामी क्रांति में इमाम ख़ुमैनी की भूमिका
बीसवीं सदी की सबसे बड़ी और अद्वितीय जन-क्रांति 1979 की इस्लामी क्रांति है, जो इमाम ख़ुमैनी की क़यादत में कामयाब हुई۔
यह क्रांति किसी राजनीतिक महत्वाकांक्षा का परिणाम नहीं थी, बल्कि यह
जनता के अधिकारों का दमन,
शाही शासन की तानाशाही,
सामाजिक असमानता,
और विदेशी शक्तियों के हस्तक्षेप के खिलाफ़  पूरी क़ौम का इज्तेमाई रद्दे अमल थी।
इमाम ख़ुमैनी ने ज़ालिम शासन को चुनौती दी,
जनता में आत्मविश्वास जगाया, और एक नैतिक, न्याय-आधारित शासन की राह दि खाई।
*क्रांति का प्रमुख संदेश*
इमाम ख़ुमैनी ने एक ऐसा निज़ाम क़ायम किया जिसके उसूल ये थे:

1. जनता की इच्छा सर्वोपरि है।
2. सत्ता का मक़सद सेवा है, शासन नहीं

3. धर्म और राजनीति अलग नहीं,  बल्कि एक-दूसरे को पूर्ण करते हैं।
4. विदेशी दखल और गुलामी से स्वतंत्रता
उनकी कयादत एक uztaad एक रहबर और एक संवेदनशील पिता की क़यादत  थी,  इस लिए इन्क़ेलाब सिर्फ राजनीतिक नहीं बल्कि  आध्यात्मिक इन्क़ेलाब भी था।

इमाम ख़ुमैनी का नेतृत्व-शैली (Leadership Style)
इमाम ख़ुमैनी का सब से नुमायां   वस्फ़ उनकी सादगी और दृढ़ता थी।
वह लाखों लोगों के नेता होने के बावजूद साधारण घर में  रहते, सदा लेबास पहनते और अपना वक़्त अध्ययन, इबादत  और  जनता की  रहनुमाई में गुज़ारते 
उनके नेतृत्व की खास बातें

(1) *निर्णय में दृढ़ता* दबाव के आगे कभी झुके नहीं।
(2) *जनता से सीधा संबंध* हर वर्ग ख़ुद को उनसे जुड़ा महसूस करता था।
(3) *अख्लाक़ी ताक़त* यानी  उनका व्यक्तित्व ही लोगों को प्रेरित कर देता था।
(4) दूरदर्शिता, विश्व राजनीति के गहरे तज्ज़िये रखते थे।
इमाम का नेतृत्व डर नहीं, बल्कि विश्वास, नैतिकता और साहस पर आधारित था।
इसीलिए उनके बाद भी उनका प्रभाव इस्लामी दुनिया में जिंदा है।

6. इमाम ख़ुमैनी की विरासत और वैश्विक प्रभाव

इमाम ख़ुमैनी की तालीमात और विचार आज भी पूरी दुनिया मैं एक मजबूत फिकरी तहरीr की शक्ल में  ज़िंदा है।
उनकी विरासत तीन बड़े क्षेत्रों में साफ दिखाई देती है:

(1) विचार और दर्शन
हुकूमत, इंसाफ, प्रतिरोध, और सामाजिक समानता के बारे में उनके नज़रियात  आज भी इल्मी बहस की बुनियाद हैं 
उन्होंने यह साबित किया कि मज़हब सिर्फ़ इबादत नहीं, बल्कि मूआशेरे की तामीर का मुकम्मल दस्तूर देता है 
(2) राजनीतिक प्रभाव
इस्लामी क्रांति ने दुनिया को दिखा दिया कि जनता जब एकजुट हो जाए और नेतृत्व ईमानदार हो
तो सबसे बड़ी ताक़तें भी बेबस हो जाती हैं।
दुनिया के कई देशों में आज भी इंसाफ की माँग, विदेशी दखल के खिलाफ आवाज़, और कमजोरों की हिमायत
इमाम ख़ुमैनी के नज़रियात प्रेरित है।
(3) सांस्कृतिक और आध्यात्मिक प्रभाव
उन्होंने इंसान के अंदर एक आध्यात्मिक जागृति पैदा की 
कि सिर्फ ज़िंदगी  का मक़सद दुनिया नहीं बल्कि अखलाक़, सत्य और ज़िम्मेदारी है।
उनकी यही सोच आज के युवाओं में एक नई जागरूकता पैदा कर रही है।

नतीजा
इमाम ख़ुमैनी सिर्फ एक धार्मिक नेता नहीं थे,
बल्कि वह एक वैचारिक क्रांतिकारी, दार्शनिक चिंतक और जनता के मार्गदर्शक थे।
उनकी सोच ने यह सिद्ध कर दिया कि न्याय हमेशा अत्याचार पर विजय पाता है,
जनता की शक्ति सबसे बड़ी शक्ति है,
और यदि नेतृत्व ईमानदार हो تو इतिहास की दिशा बदली जा सकती है।
इमाम ख़ुमैनी ने दुनिया को यह संदेश दिया कि
“क्रांति सबसे पहले इंसान के भीतर पैदा होती है, फिर समाज में फैलती है।”
उनकी विरासत आज भी नयी पीढ़ियों को शिक्षा देती है कि
सत्य का साथ देना, अत्याचार के सामने खड़े होना,
और इंसाफ़ के लिए संघर्ष करना सिर्फ राजनीतिक जिम्मेदारी नहीं, बल्कि इंसानी फ़र्ज़ भी है।

इसीलिए इमाम ख़ुमैनी का नाम इतिहास के पन्नों में 
सिर्फ एक नेता के तौर पर नहीं, बल्कि एक युग-निर्माता (Er Maker) के रूप में दर्ज है

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