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महिलाओं के लिए खुत्बा ए फ़दकिया की शिक्षाएँ!

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महिलाओं के लिए खुत्बा ए फ़दकिया की शिक्षाएँ!

हज़रत फ़ातिमा ज़हरा (सला मुल्ला अलैहा) का फ़दक वाला खुत्बा न सिर्फ़ राजनीतिक और सामाजिक मुद्दों पर रोशनी डालता है, बल्कि इसमें महिलाओं के लिए आध्यात्मिक, नैतिक और सामाजिक शिक्षाएँ भी शामिल हैं।

हज़रत फ़ातिमा ज़हरा (सला मुल्ला अलैहा) का फ़दक वाला ख़ुत्बा न सिर्फ़ राजनीतिक और सामाजिक मुद्दों पर रोशनी डालता है, बल्कि इसमें महिलाओं के लिए आध्यात्मिक, नैतिक और सामाजिक शिक्षाएँ भी शामिल हैं।

फ़दक वाले खुतबे में महिलाओं को दिए गए भाषण की मुख्य बातें इस तरह हैं:

  1. ईमान और नेकी पर ज़ोर
  2. सही और गलत में फर्क करना
  3. सब्र और लगन
  4. ज्ञान और जागरूकता का महत्व
  5. सामाजिक भूमिका और न्याय और निष्पक्षता स्थापित करने की ज़िम्मेदारी
  6. ईमान और नेकी पर ज़ोर

हज़रत फ़ातिमा ज़हरा सला मुल्ला अलैहा ने सबसे पहले महिलाओं को ईमान और नेकी पर टिके रहने की शिक्षा दी।

"يَا نِسَاءَ الْمُؤْمِنِينَ اتَّقِينَ اللَّهَ وَاحْفَظْنَ أَمَانَاتِكُنَّ" या नेसाअल मोमेनीनत तक़ीनल्लाहा वहफ़ज़्ना अमानातेकुन्ना 

ऐ ईमान वाली महिलाओं! अल्लाह से डरो और अपनी अमानतों की रक्षा करो!

स्पष्टीकरण:

सच्चाई और अमानत में नेकी हर ईमान वाली महिला के लिए बुनियादी उसूल हैं।

महिलाओं से अपने अधिकारों और ज़िम्मेदारियों के प्रति सावधान रहने की अपील की जाती है।

यह शिक्षा महिलाओं की घरेलू और सामाजिक दोनों भूमिकाओं के लिए गाइडेंस देती है।

  1. सही और गलत में फर्क करना

फ़दक के खुतबे में औरतों को दी गई बात में सबसे ज़रूरी बात है सही और गलत की पहचान करना और उसके लिए खड़ा होना।

"فَإِنَّ اللَّهَ يَرْضَى لَكُنَّ بِالْحَقِّ وَيَنْهَى عَنِ الْبَاطِلِ" फ़इन्नल्लाहा यरज़ा लकुन्ना बिल हक़्क़े व यन्हा अनिल बातेले

अल्लाह चाहता है कि तुम सच पर खड़े रहो और झूठ से बचो!

स्पष्टीकरण:

सच पर खड़े रहना और झूठ का विरोध करना औरतों की नैतिक और रूहानी ज़िम्मेदारी है।

औरतों को समाज में इंसाफ़ और इंसाफ़ कायम करने का मैसेज दिया गया है।

एतिहासिक बैकग्राउंड:

पैगंबर (सल्लल्लाहो अलैहे वा आलेहि वसल्लम) की मौत के बाद फ़दक पर कब्ज़ा करना एक पॉलिटिकल घटना थी।

हज़रत फ़ातिमा (सला मुल्ला अलैहा) ने औरतों को मैसेज दिया कि समाज में नाइंसाफ़ी के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाना ज़रूरी है।

  1. सब्र और हिम्मत

खुतबे में औरतों से ज़ुल्म और अत्याचार का सामना करने के लिए सब्र और मज़बूत रहने की अपील की गई।

"وَاصْبِرْنَ عَلَى الظُّلْمِ وَثِقْنَ بِاللَّهِ" वस्बिरना अलज़ ज़ुल्मे वसिक़्ना बिल्लाहे

ज़ुल्म के सामने सब्र रखें और अल्लाह पर भरोसा रखें!

स्पष्टीकरण:

सब्र और हिम्मत औरतों की रूहानी ताकत की निशानी है।

समाज में उनकी मज़बूती न सिर्फ़ परिवार को बनाए रखती है, बल्कि सामाजिक न्याय और निष्पक्षता भी बनाए रखती है।

प्रैक्टिकल पहलू:

ज़ुल्म या नाइंसाफ़ी के हालात में भी सच्चे रहना।

किसी भी सामाजिक या घरेलू मामले में सच्चे रहना।

  1. ज्ञान और जागरूकता का महत्व

हज़रत फ़ातिमा ने औरतों से ज्ञान हासिल करने और जागरूकता बढ़ाने की अपील की, ताकि वे सही और गलत में फ़र्क कर सकें।

"وَتَعَلَّمْنَ مَا يَهْدِيكُنَّ إِلَى الْحَقِّ وَالْعَدْلِ" व तअल्लम्ना मा यहदीकुन्ना एलल हक़्क़े वल अद्ले

ज्ञान हासिल करो! वह जो तुम्हें सच और इंसाफ़ की तरफ़ ले जाए।

स्पष्टीकरण:

ज्ञान और जागरूकता के बिना सही और गलत में फ़र्क करना मुमकिन नहीं है।

महिलाओं की सामाजिक, नैतिक और धार्मिक भूमिकाओं के लिए ज्ञान ज़रूरी है।

ऐतिहासिक पहलू:

उस समय, महिलाओं के ज्ञान और जागरूकता का महत्व कम माना जाता था।

हज़रत फ़ातिमा ने महिलाओं को सच और इंसाफ़ की तरफ़ ले जाने के लिए तैयार किया।

  1. न्याय स्थापित करने के लिए सामाजिक भूमिका और ज़िम्मेदारी

हज़रत फ़ातिमा ने महिलाओं को समाज में न्याय और इंसाफ़ स्थापित करने की ज़िम्मेदारी भी दी।

فَاتَّقِينَ اللَّهَ وَأَقِيمْنَ الْحَقَّ وَلا تَخْشَيْنَ فِي سَبِيلِهِ أَحَدًا फ़त्तक़ीनल्लाहा व अक़ीमनल हक़्क़ा वला तख़शयना फ़ी सबीलेही अहदन

अल्लाह से डरो, सच को स्थापित करो, और उसके रास्ते में किसी से मत डरो!

स्पष्टीकरण:

महिलाओं के लिए यह संदेश सच को स्थापित करने में डर को दूर करना है।

समाज में महिलाओं की सक्रिय भागीदारी सच और इंसाफ़ स्थापित करने में मददगार साबित होती है।

काम की बातें:

  1. समाज में ज़ुल्म या नाइंसाफ़ी के खिलाफ़ आवाज़ उठाना।
  2. घर और बाहर, दोनों जगहों पर इंसाफ़ और सही माहौल बनाना।
  3. जानकारी, सब्र और लगन से समाज में अपनी भूमिका निभाना।

नतीजा

फ़दक के खुत्बे में औरतों को संबोधित करते हुए, हज़रत फ़ातिमा अल-ज़हरा (उन पर शांति हो) ने ये बातें साफ़ कीं:

  1. ईमान और तक़वा में पक्के रहें
  2. सही और गलत में फ़र्क करें
  3. सब्र और पक्के रहें
  4. जानकारी और जागरूकता से सच को पहचानें
  5. समाज में इंसाफ़ और सही माहौल बनाना

यह खुत्बा आज भी औरतों को रूहानी, नैतिक और समाज में रास्ता दिखाता है और इस्लाम में औरतों की एक्टिव भूमिका पर रोशनी डालता है।

लेखक: सय्यदा बुशरा बतूल नक़वी

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