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ईश्वरीय आतिथ्य- 10

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ईश्वरीय आतिथ्य- 10

एक व्यक्ति पैग़म्बरे इस्लाम के पास आया और उसने पैग़म्बरे इस्लाम से पूछा हे ईश्वरीय दूत!

क्या ईश्वर हमसे निकट है और हम उससे धीरे से प्रार्थना कर सकते हैं या वह हमसे दूर है और हम उसे ज़ोर से बुलाने के लिए मजबूर हैं?  पैग़म्बरे इस्लाम कुछ बोले नहीं यहां तक कि उन पर पवित्र कुरआन की आयत नाज़िल हुई और उस आयत ने समस्त कालों के एकेश्वरवादियों का जवाब दे दिया। आयत में महान ईश्वर कहता है" और जब मेरे बंदे मेरे संबंध में आपसे पूछें तो मैं बहुत निकट हूं और मैं पुकार का जवाब देता हूं जब मुझे पुकारा जाता है। तो उन्हें चाहिये कि मेरा आदेश मानें और मुझ पर ईमान रखें ताकि सीधे मार्ग पर उनका पथ प्रदर्शन हो जाये।"

आजकल हर रोज़ेदार की ज़बान पर है हे हमारे पालनहार! हमने तेरे लिए रोज़ा रखा और तेरी आजीविका से रोज़ा खोलता हूं और तुझ पर भरोसा रखता हूं।

दुआ ईश्वरीय बंदगी का प्रतीक है। दुआ इसी तरह इंसानों में बंदगी की भावना को मज़बूत करती है। महान व सर्वसमर्थ ईश्वर की बंदगी का एहसास वह चीज़ है जो समस्त ईश्वरीय दूतों के प्रयासों का आधार थी और वे इंसानों में बंदगी की भावना उत्पन्न करना चाहते थे। कुछ लोग यह सोचते हैं कि केवल धार्मिक मार्गदर्शक ही दुआ के महत्व  के बारे में बात करते हैं और अपने अनुयाइयों का आह्वान उसके प्रति कटिबद्ध रहने के लिए करते हैं। यह दृष्टिकोण वास्तविकता से बहुत दूर है। क्योंकि दुआ वह चीज़ है जिसे सब करते हैं और वह किसी समय या स्थान से विशेष नहीं है और वह सर्वकालिक है। दुआ इंसान की स्वाभावित आवश्यकता है। यही वजह है कि जब इंसान सांसारिक कार्यों से थक जाता है तो वह दुआ के माध्यम से अपने पालनहार से संपर्क करके अपनी आत्मा को शांति प्रदान करता है। दुआ का मूल्य व महत्व समझने के लिए बस इतना ही काफी है कि महान ईश्वर पवित्र कुरआन के सूरे फुरक़ान की 77वीं आयत में कहता है" हे पैग़म्बर आप कह दीजिये कि हमारे पालनहार को तुम्हारी परवाह नहीं है अगर तुम उससे दुआ न करो।" इस आधार पर जीवन में सुकून हासिल करने के लिए दुआ से लाभ उठाना चाहिये। जैसाकि आज समस्त जागरुक और बुद्धिजीवी व विचारक दुआ से लाभ उठा रहे हैं और शांति पहुंचा रहे हैं और स्वयं को अधिक ऊर्जा से समृद्ध बना रहे हैं।

अमेरिकी लेखक डॉक्टर वेन डायर,,,, कहते हैं" मैं प्रार्थना के समय अविश्वसनीय ढंग से ईश्वरीय प्रकाश से लाभान्वित होता हूं और मैं इस बात का आभास करता हूं कि मेरा समूचा अस्तित्व आत्मा है यद्यपि मैं एक शरीर के होने से अवगत हूं कि मेरे पास एक शरीर है और जब मैं इस एहसास और आत्माओं के संसार में भ्रमण करने के बाद अपने शरीर में लौटता हूं तो शक्ति का आभास करता हूं जैसे मेरे शरीर में बहुत अधिक ऊर्जा भर गयी है।

इसी प्रकार डेल कारनेगी,,,भी लिखते हैं जब मैं यह आभास करता हूं कि मैं बहुत थक गया हूं तो उस गिरजाघर के अंदर चला जाता हूं जिसका द्वार खुला देखता हूं। उसमें जाने के बाद मैं अपनी आंखों को बंद कर लेता हूं और दुआ करता हूं और मैं इस बात का आभास करता हूं कि शरीर, स्नायु तंत्र और आत्मा में दुआ का बहुत प्रभाव है।

दुआ का सबसे महत्वपूर्ण लाभ व प्रभाव यह है कि वह इंसान में आशा की किरण जगा देती है। निराश इंसान बेजान इंसान की भांति है। बीमार इंसान को जब ठीक होने की आशा होती है तो वह ठीक हो जाता है और अगर वह निराश हो जाये तो उसके दिल में आशा की किरण बुझ जायेगी और उसके ठीक होने की आशा खत्म हो जायेगी। जिस तरह रणक्षेत्र में विजय का मुख्य कारण सिपाहियों का ऊंचा मनोबल होता है। इस आधार पर अगर निराश सैनिक आधुनिकतम हथियारों से भी लैस हों तब भी वे रणक्षेत्र में हार जायेंगे।

जो इंसान दुआ करता और महान ईश्वर पर भरोसा करता है अगर वह महान ईश्वर की बारगाह में दुआ करता है, उससे आशा करता है और उससे अपने दिल की बात करता है तो कठिनाइयों के अधिक होने के बावजूद उसके दिल में आशा की किरण पैदा होती है और जीवन के प्रति आशावान हो जाता है। ऐसा लगता है जैसे उसे दोबारा ज़िन्दगी मिल गयी हो। इंसान के अंदर यह आभास होता है कि उसने उसकी ओर हाथ फैलाया है जिसके लिए दुनिया की कठिन से कठिन मुश्किल भी बहुत आसान है और उनका समाधान महान ईश्वर के लिए कुछ भी नहीं है। महान ईश्वर जिसके लिए कठिन और आसान का कोई अर्थ नहीं है। वह महान व सर्वसमर्थ है वह तत्वदर्शी रचयिता है वह समूचे ब्रह्मांड को चलाता है। वह जिस चीज़ का भी इरादा करता है वह चीज़ तुरंत हो जाती है। जिस सूरज को हम देखते हैं उस जैसे लाखों सूरज ही क्यों न हों। जब इंसान इस प्रकार के महान ईश्वर से संपर्क करता है, इस प्रकार के सक्षम व सर्वशक्तिमान को पुकारता है, उससे अपने दिल की बात करता है, उसके सामने सज्दा करता है, आंसू बहाता है अपनी मुश्किलों को उससे बयान करता है तो निःसंदेह महान ईश्वर उसके दिल में आशा की किरण पैदा कर देता है।

दुआ का एक लाभ यह है कि उससे इंसान के अंदर तक़वा अर्थात ईश्वरीय भय पैदा होता है। तक़वा इंसान के महान ईश्वर से निकट होने और लोक -परलोक में सफल होने का कारण है। दुआ इंसान के दिल में प्रकाश का दीप जलाती है। जब इंसान दुआ के लिए हाथ उठाता है, महान ईश्वर से मदद मांगता है, महान ईश्वर को उसके अच्छे नामों व विशेषताओं से बुलाता है। इंसान के इस कार्य का प्रभाव होता है और निश्चित रूप से उसका ध्यान महान ईश्वर की ओर जाता है और इंसान यह सोचेगा कि अगर महान ईश्वर चाहेगा तो उसकी दुआ कबूल होगी।

इसी तरह दुआ इंसान को प्रायश्चित करने का आह्वान करती है और प्रायश्चित इंसान को दोबारा अपने जीवन पर नज़र डालने के लिए प्रेरित करता है। यह चीज़ इंसान के जीवन में ईश्वरीय भय को जीवित करती है। रवायतों में है कि महान ईश्वर ने एक अपने दूत हज़रत ईसा मसीह से कहा हे ईसा! मुझे उस तरह से बुलाओ जिस तरह पानी में डूबते इंसान की कोई मदद करने वाला नहीं होता है और मेरी ओर आओ। हे ईसा! मेरे समक्ष अपने हृदय को स्वच्छ व पवित्र बनाओ और अकेले में मुझे बुलाओ। अपनी दुआ में अपने दिल को हाज़िर बनाओ और रोकर और गिड़गिड़ा कर मुझे बुलाओ।

हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने अपने बड़े बेटे इमाम हसन अलैहिस्सलाम के नाम जो वसीयतें की हैं उसमें फरमाते हैं ईश्वर की दया व कृपा के खज़ाने से एसी चीज़ मांगो जो उसके अलावा कोई और नहीं दे सकता। जैसे लंबी उम्र, स्वास्थ्य और अधिक रोज़ी। दुआ की कबूली में विलंब से कभी भी निराश न हो क्योंकि ईश्वरीय दान नियत के अनुसार है। कभी दुआ के कबूल होने में विलंब होता है ताकि दुआ करने वाले का पारितोषिक अधिक और परिपूर्ण हो जाये। कभी दुआ करते हैं परंतु कबूल नहीं होती है क्योंकि जो तुम मांगे हो जल्द ही या नियत समय पर उससे बेहतर तुम्हें दिया जायेगा। तो तुम्हारी मांगें इस प्रकार की होनी चाहिये कि जो तुम्हारी सुन्दरता को पूरा करे और तुम्हारी समस्याओं व कठिनाइयों को दूर करे कि दुनिया का माल हमेशा नहीं रहेगा और न ही तुम दुनिया के माल के लिए बाकी रहोगे।

इस बात को ध्यान में रखना चाहिये कि जब हम महान ईश्वर से दुआ करें तो वह सुन्दर व शोभनीय हो। इसी तरह वह पवित्र व स्वच्छ हृदय से होनी चाहिये। क्योंकि अपवित्र और दूषित मन ईश्वरीय अनुकंपाओं को प्राप्त करने का न तो उचित पात्र है और न ही दुआओं के कबूल होने के योग्य है। रवायत में है कि बनी इस्राईल को सात साल तक विचित्र अकाल का सामना रहा। इस प्रकार से कि उन्हें मरे हुए जानवरों और कूड़े केंदर को भी खाना पड़ा। उन्होंने पहाड़ पर जाकर और मरुस्थल में जाकर जितनी भी दुआ की उसका कोई लाभ नहीं हुआ। तो ईश्वर ने उनके पैग़म्बर पर अपना संदेश भेजा कि उनसे कह दें कि जितनी भी मुझसे दुआ करो मैं तुम्हारी दुआओं को कबूल नहीं करूंगा किन्तु यह कि जो माल दूसरों पर अत्याचार करके लिया हैं उसे लोगों को वापस कर दो। इसके बाद उन लोगों ने ईश्वर के आदेशानुसार किया तो उन पर ईश्वरीय कृपा की वर्षा हुई।

रमज़ान का पवित्र महीना चल रहा है। यह महान ईश्वर की कृपा का द्वार खुलने का महीना है। इस महीने में दुआ कबूल होती है। यह बंदे और अपने रचयिता के बीच वार्ता का महीना है। यह दुआ करने और दुआ कबूल होने का महीना है। पैग़म्बरे इस्लाम ने फरमाया है रमज़ान की पहली रात को आसमान के दरवाज़े खोल दिये जाते हैं और महीने की अंतिम रात तक यह दरवाज़े बंद नहीं किये जाते हैं। शुभ सूचना है उन लोगों के लिए जो इस अवसर से लाभ उठाते हैं और दिल को इस महीने की प्राणदायक हवाओं से प्रफुल्लित बनाते हैं। कितना सुन्दर है कि सूर्यास्त और रोज़ा खोलने के समय दुआ के लिए हाथ उठायें और अपने और दूसरों के मोक्ष के लिए दुआ करें।

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