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धार्मिक सीमाओं पर समझौता संभव नहीं

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धार्मिक सीमाओं पर समझौता संभव नहीं

क़ुम के इमाम ए जुमआ आयतुल्लाह अली रज़ा आराफ़ी ने नमाज़े जुमआ के ख़ुतबे में कहा कि इस्लामी क्रांति ने न केवल क्षेत्र में बल्कि पूरी दुनिया में शक्ति संतुलन को बदल दिया है।

क़ुम अलमुकद्देसा में आयोजित जुमे की नमाज़ के दौरान आयतुल्लाह अली रज़ा इराफ़ी ने इस्लामी क्रांति की सालगिरह पर राष्ट्र को मुबारकबाद दी।

उन्होंने कहा कि इस्लामी क्रांति केवल एक राजनीतिक बदलाव नहीं थी बल्कि यह एक वैचारिक और सांस्कृतिक क्रांति थी जिसने मुस्लिम उम्मत को एक नई दिशा दी।

उन्होंने कहा कि यह क्रांति एक जन आंदोलन थी, जिसमें सभी वर्गों ने अपने व्यक्तिगत और सामूहिक स्वार्थों से ऊपर उठकर इस्लाम की बुलंदी के लिए कुर्बानियां दीं यह क्रांति ईरान की इस्लामी राष्ट्रीय और सांस्कृतिक पहचान से जुड़ी हुई है, और नई पीढ़ी को इसके वास्तविक अर्थ से अवगत कराना आवश्यक है।

इस्लामी क्रांति और इस्तेकबारी ताक़तों की सच्चाई:

आयतुल्लाह आराफ़ी ने अमेरिका और उसके सहयोगियों की हकीकत पर रौशनी डालते हुए कहा कि ग़ाज़ा में जो कुछ हो रहा है वही साम्राज्यवादी ताक़तों का असली चेहरा है अगर इन्हें नहीं रोका गया, तो वे हर क्षेत्र में ग़ज़ा जैसी तबाही मचाने की कोशिश करेंगे उन्होंने कहा कि ग़ाज़ा की बर्बादी मासूम बच्चों का क़त्ले-आम और अंतरराष्ट्रीय क़ानूनों की धज्जियां उड़ाना, दरअसल अमेरिकी साम्राज्यवाद की पहचान बन चुका है।

इबादत और धार्मिक प्रशिक्षण का महत्व:

अपने पहले ख़ुतबे में आयतुल्लाह इराफ़ी ने इबादत की बुनियादों पर चर्चा करते हुए कहा कि अल्लाह की सही पहचान इंसान की वास्तविक पहचान और दीन के उसूलों पर मज़बूती से अमल करना ही इंसान को इबादत के असली मकाम तक पहुंचाता है।

उन्होंने कहा कि दुआ और इबादत महज़ एक रस्म नहीं बल्कि इंसान की बुनियादी ज़रूरत है, जो उसे रूहानी बुलंदी अता करती है। उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि हमें अपनी ज़िंदगी में ऐसे लम्हे पैदा करने होंगे जहां दुआ और मुनाजात के ज़रिए अपने अंदरूनी हालात को रौशन किया जा सके, क्योंकि यही रूहानी ताक़त हमें साम्राज्यवादी साज़िशों के मुक़ाबले में सब्र और मज़बूती अता करती है।

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