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जुहूर का मसला सिर्फ शियाओं तक ही सीमित नहीं है

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जुहूर का मसला सिर्फ शियाओं तक ही सीमित नहीं है

मदरसा इल्मिया फातेमीया महल्लात की उस्ताद ने कहा, ज़ुहूर का मसला सिर्फ शियाओं से ही संबंधित नहीं है बल्कि सभी मुसलमान, अहले सुन्नत समेत यहां तक कि कुछ दूसरे धर्मों के लोग भी एक मुक्तिदाता के ज़ुहूर पर ईमान रखते हैं।

आराक से प्रतिनिधि की रिपोर्ट के अनुसार, मदरसा इल्मिया फातेमीया (स.ल.) महल्लात के सांस्कृतिक विभाग की ओर से एक आम अख़लाक़ी क्लास का आयोजन किया गया जिसमें इस मदरसे की उस्ताद मोहतरमा ताहिरा लतीफ़ी ने ख़िताब किया।

रिपोर्ट के मुताबिक इस सभा में मोहतरमा ताहिरा लतीफ़ी ने हज़रत इमाम हुज्जत अ.स. के ज़माना-ए-जुहूर की खूबियों और उस दौर की महानता और वैभव को लोगों के सामने बयान किया।

उन्होंने कहा,उस दौर में लोगों की सिर्फ एक हसरत (आकांक्षा) रह जाएगी और वह यह होगी कि काश उनके मरहूम (स्वर्गीय) लोग भी ज़िंदा होते ताकि वे भी उस दौर की नेमतों (बरकतों) और व्यापक सुख-सुविधाओं का स्वाद चख सकते।

 

मोहतरमा लतीफ़ी ने जुहूर के अकीदे को इस्लाम का एक मूल सिद्धांत बताते हुए कहा, जुहूर का मसला सिर्फ शियाओं तक सीमित नहीं है बल्कि सभी मुसलमान अहले सुन्नत समेत यहां तक कि कुछ अन्य धर्मों के लोग भी एक मुंज़ी के ज़ुहूर पर ईमान रखते हैं।

हालांकि, जो चीज़ शिया मक़तब को दूसरे गुटों से अलग और विशेष बनाती है, वह "रजअत" (पुनः लौटना) का अकीदा है।

उन्होंने आगे कहा,रजअत" का मतलब यह है कि कुछ मोमिन (सच्चे ईमान वाले) और काफ़िर (इन्कार करने वाले) इमाम मेंहदी (अ.ज.) के ज़ुहूर के बाद दोबारा इस दुनिया में लौटेंगे। यह एक विशेष शिया अकीदा (विश्वास) माना जाता है।

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