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अल्लामा ज़ीशान हैदर जवादी उर्दू ज़बान के अल्लामा मजलिसी थे,

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अल्लामा ज़ीशान हैदर जवादी उर्दू ज़बान के अल्लामा मजलिसी थे,

नई दिल्ली में “जलसा-ए-तौकीर-ए-तकरीम” नामक अंतर्राष्ट्रीय शैक्षणिक सत्र में अल्लामा ज़ीशान हैदर जवादी ताबा सराह की 25वीं बरसी पर श्रद्धांजलि अर्पित की गई।

नई दिल्ली की एक रिपोर्ट के अनुसार/ इस्लामी विचारक और पवित्र कुरान के मुफ़स्सिर अल्लामा सय्यद जीशान हैदर जवादी ताबा सराह की 25वीं  बरसी के अवसर पर, विलायत फाउंडेशन, अल्लामा जवादी के कार्यों के प्रकाशन और संरक्षण संस्थान और तंजीमुल मुकातिब द्वारा ऐवान-ए-ग़ालिब, नई दिल्ली में “जलसा-ए-तौकीर-ए-तकरीम” नामक एक अंतरराष्ट्रीय शैक्षणिक सम्मेलन का आयोजन किया गया।

बैठक की अध्यक्षता हजरत आयतुल्लाह मोहसिन क़ुमी ने की। विशेष अतिथियों में भारत के सर्वोच्च नेता के पूर्व प्रतिनिधि हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन अका महदी महदवी (म द), और भारत मे सर्वोच्च नेता के नए प्रतिनिधि हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन अब्दुल मजीद हकीम  इलाही (म), हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन सय्यद कमाल हुसैनी, तथा ऑस्ट्रेलिया के शिया उलेमा काउंसिल के अध्यक्ष मौलाना सय्यद अबुल कासिम रिजवी शामिल थे, जो न केवल विशेष अतिथि के रूप में शामिल हुए, बल्कि भाषण भी दिया।

आस्ट्रेलिया के मेलबर्न स्थित इमाम जुमा ने अल्लामा जवादी को उर्दू का अल्लामा मजलिसी घोषित किया और उन्होंने अपना भाषण सूर ए यासीन की आयत न 21 से शुरू करते हुए कहा कि अल्लामा जीशान हैदर जवादी के समय में काम में बरकत थी, कर्म में बरकत थी, कलम में बरकत थी, आंदोलन में बरकत थी। अल्लामा बहुत धन्य थे। उनका जीवन 22 रजब को शुरू हुआ और आशूरा के दिन मजलिस के बाद उन्होंने अंतिम सांस ली। ऐसा जीवन जिसका सपना केवल मनुष्य ही देख सकता है। अल्लाह ने उनके आमाल को स्वीकार किया और उन्हें 63 वर्ष का जीवन प्रदान किया।

उन्होंने आगे कहा कि यह हम सभी के लिए गर्व की बात है, जैसा कि फिराक गोरखपुरी ने कहा, जिन्होंने अल्लामा जवादी के कार्यकाल को देखा और उनके भाषणों से लाभ उठाया।

आने वाली पीढ़ियाँ आप पर गर्व करेंगी, हम अस्र

जब भी उनको ध्यान आएगा कि तुमने फ़िराक को देखा है।

अल्लामा एक जीनीयस थे, वे एक living legend थे, उनकी छवि हर जगह है, वे क़ौम के सम्मान और गरिमा थे।

 

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