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हम कैसे पहचानें कि हम सही रास्ते पर हैं?

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हम कैसे पहचानें कि हम सही रास्ते पर हैं?

आयतुल्लाह हायरी शीराज़ी रहमतुल्लाह अलैह ने एक ज्ञानवर्धक और विचारोत्तेजक तमसील के माध्यम से इस सवाल का जवाब दिया है कि इंसान कैसे जाने कि वह ईश्वर की ओर जाने वाले मार्ग (सुलूक-ए-इलाही) पर सही दिशा में आगे बढ़ रहा है या नहीं?

आयतुल्लाह हायरी शीराज़ी रह. ने एक गहरी और ज्ञानवर्धक उपमा (तमसील) के माध्यम से इस प्रश्न का उत्तर दिया है कि इंसान कैसे जाने कि वह ईश्वर की ओर यात्रा (सुलूक-ए-इलाही) के मार्ग पर सही दिशा में आगे बढ़ रहा है या नहीं?

उन्होंने फरमाया,अगर कोई यात्री अपनी निगाह उस रास्ते पर रखता है जो अभी बाकी है, तो यह इस बात की निशानी है कि वह मंज़िल की ओर आगे बढ़ रहा है।लेकिन अगर उसकी नज़रें उन रास्तों और कार्यों पर टिक जाएँ जो वह पहले ही पार कर चुका है, तो ऐसा व्यक्ति जैसे मंज़िल की तरफ पीठ कर चुका है और भटक रहा है।

आयतुल्लाह हायरी शीराज़ी (रह.) ने चेताया,जो व्यक्ति अपने किए गए कर्मों पर गर्व (घमंड) करने लगे, वह वास्तव में लक्ष्य से अनजान और घमंड का शिकार हो चुका है।

उन्होंने कहा कि,जो व्यक्ति अपनी कमियों और अधूरे कार्यों को देखता है, वह निस्संदेह ईश्वर की ओर रुख किए हुए है और सही दिशा में सुलूक (आध्यात्मिक यात्रा) पर अग्रसर है।

घमंड और आत्म-मुग्धता ईश्वर की ओर जाने वाले मार्ग की सबसे बड़ी रुकावटें हैं।हमें अपने किए हुए कार्यों पर गर्व करने के बजाय, बचे हुए कर्तव्यों पर ध्यान देना चाहिए और हमेशा ईश्वर की शरण में रहना चाहिए, ताकि हम सत्य मार्ग से विचलित न हो जाएं।

स्रोत: तंसीलात-ए-अख़लाक़ी, खंड 1, पृष्ठ 40

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