मिस्री विश्लेषकों ने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के तीन अरब देशों के दौरे का उल्लेख करते हुए कड़ी आलोचना की है कि ट्रंप को मुफ़्त में पैसा, तोहफे और निवेश दिया गया लेकिन उनसे यह नहीं कहा गया कि वे ग़ाज़ा के ख़िलाफ युद्ध को रोकें।
क़ाहिरा विश्वविद्यालय के प्रोफ़ेसर यमनी अल-ख़ौली ने शुक्रवार को डोनाल्ड ट्रंप के क्षेत्रीय दौरे और सऊदी अरब, क़तर और संयुक्त अरब अमीरात के अधिकारियों द्वारा उन्हें गर्मजोशी से किये गये स्वागत और महंगे तोहफों पर प्रतिक्रिया दी।
यमनी अल-ख़ौली ने कहा: "इतिहास में कोई भी देश, यहां तक कि विश्व युद्ध के समय भी, अमेरिकी शासक को लाखों डॉलर के तोहफ़े और ट्रिलियनों की दान राशि नहीं देता।"
मिस्री अर्थशास्त्री हानी तौफीक़ ने भी अरब शासकों द्वारा ट्रंप के लिए की जा रही अत्यधिक सेवा और एक-दूसरे से आगे निकलने की होड़ की तीव्र आलोचना की। उन्होंने इस पर भी कड़ा विरोध जताया कि ज़ायोनी शासन के ग़ाज़ा पट्टी पर हमलों को रोकने के लिए कोई क़दम नहीं उठाया जा रहा है।
हानी तौफ़ीक ने अरब शासकों से कहा: जो कुछ हो रहा है वह एक अपराध है और यह अपराध न केवल ईश्वरीय न्याय के सामने बल्कि इतिहास में भी आपके ख़िलाफ सवाल उठाएगा।"
आलिया महदी, मिस्र की पूर्व अर्थशास्त्री और राजनीतिक विज्ञान संकायाध्यक्ष, ने अरब शासकों के व्यवहार की तीव्र आलोचना करते हुए कहा: अमेरिका और उसके राष्ट्रपति को इतने सारे पैसे और तोहफ़ों का क्या फायदा है? सफ़ल नेता अपने जनाधार और जनता के समर्थन पर भरोसा करते हैं और देश के सुचारू संचालन में अपनी सफलता को महत्व देते हैं।"
मिस्र के पूर्व राजनयिक फौज़ी अल-अशमावी ने भी कड़ी आलोचना की कि अरब देश अपनी ताक़त के साधनों जैसे संबंध तोड़ना, ज़ायोनी शासन के साथ समझौतों को रद्द करना और तेल अवीव के समर्थक अमेरिका में निवेश न करने का उपयोग नहीं कर रहे हैं। उन्होंने इसे ग़ाज़ा पट्टी में हत्याओं के लगातार जारी रहने का कारण बताया।
मिस्री विश्लेषक कमाल हबीब ने ट्रंप के क्षेत्रीय दौरे की घटनाओं का ज़िक्र करते हुए इसे अरब शासकों की अमेरिका के प्रति पूरी तरह समर्पण बताया। उन्होंने कहा: यह स़िर्फ़ आर्थिक और व्यापारिक समझौतों या सहयोग की बात नहीं थी, बल्कि अमेरिका के सामने स्पष्ट समर्पण था।
इस विश्लेषक ने ट्रंप के तीन अरब देशों के दौरे के दौरान आयोजित स्वागत समारोहों, महंगे उपहारों और मीडिया प्रचार का उल्लेख किया और कड़ी आलोचना की कि इन तीनों देशों ने गाज़ा पट्टी के ख़िलाफ़ जारी युद्ध को रोकने की कोई मांग नहीं की।
कमाल हबीब ने जोर देकर कहा: कि गाज़ा बिकाऊ नहीं है और यह किसी भी अत्याचारी और ज़ालिम के सामने गले की हड्डी नहीं बनेगा।