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12 दिनों के युद्ध के बाद सऊदी सीधे तौर पर ईरान से बातचीत की कोशिश में

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12 दिनों के युद्ध के बाद सऊदी सीधे तौर पर ईरान से बातचीत की कोशिश में

ऑनलाइन पत्रिका "क्रैडल" ने लिखा: सऊदी अरब, इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ़ ईरान को क्षेत्र में एक अनदेखी नहीं की जाने वाली शक्ति के रूप में देखता है, जिसके साथ सीधे संवाद की आवश्यकता है।

ऑनलाइन पत्रिका "क्रैडल" ने एक रिपोर्ट में स्पष्ट किया: 12-दिवसीय युद्ध में जातीवादी व नस्लभेदी इस्राइली शासन की आक्रामकता के जवाब में ईरान द्वारा अपनाई गई सोची-समझी युद्ध रणनीति ने इस्राइल की कमजोरियों और अमेरिकी सुरक्षा छत्र के पतन को उजागर किया, जिससे सऊदी अरब को क्षेत्रीय सुरक्षा के अपने पुराने अनुमानों को छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा। अब वह ईरान को क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण शक्ति के रूप में देखता है, जिसके साथ सीधे संवाद आवश्यक है।

ईरानी छात्र समाचार एजेंसी इस्ना के हवाले से बताया कि ईरान और रंगभेदी इस्राइली शासन के बीच हालिया टकराव, जिसने क्षेत्रीय शक्ति समीकरणों, विशेष रूप से फार्स की खाड़ी में, एक निर्णायक बदलाव को दर्शाया, ईरान की सीधी और सोची-समझी सैन्य प्रतिक्रिया ने तेल अवीव की रणनीतिक कमज़ोरियों को उजागर कर दिया। इसने फार्स की खाड़ी के देशों की राजधानियों, विशेष रूप से रियाज़, को क्षेत्रीय सुरक्षा के अपने दीर्घकालिक अनुमानों पर पुनर्विचार करने के लिए मजबूर किया।

 इस्राइली रंगभेद शासन का आक्रामक सैन्य हमला 13 जून की सुबह ईरान पर शुरू हुआ। इस हमले में परमाणु प्रतिष्ठानों, सैन्य केंद्रों और असैनिक स्थलों जैसे अस्पतालों, एविन जेल और आवासीय क्षेत्रों को निशाना बनाया गया जिसमें कई वरिष्ठ सैन्य कमांडरों, परमाणु वैज्ञानिकों और नागरिकों की शहादत हुई।

 अमेरिका ने भी रविवार, 22 जून को इस्राइली शासन के साथ मिलकर ईरान के तीन परमाणु संयंत्रों फ़ोर्दू, इस्फ़हान और नतंज़ को बंकर-भेदी बमों से निशाना बनाया। यह आक्रामक हमला ईरान की क्षेत्रीय अखंडता और राष्ट्रीय संप्रभुता के खिलाफ़ तब हुआ जब तेहरान-वाशिंगटन के बीच परमाणु कार्यक्रम पर प्रतिबंधों और ईरान पर लगे प्रतिबंधों को हटाने को लेकर अप्रत्यक्ष वार्ता चल रही थी।

 अमेरिकी राष्ट्रपति ने धोखा देने के लिए कूटनीति के अवसर की बात की, जबकि वे इस्राइली शासन द्वारा ईरान पर हमले की योजना के बारे में जानते थे और उसका पूरा समर्थन कर रहे थे।

 इसके जवाब में इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ़ ईरान ने "वादा-ए-सादिक 3" और "बशारत-ए-फ़तह" ऑपरेशन के तहत इन आक्रामक हमलों का मुंहतोड़ जवाब दिया। अंततः, 24 जून को अमेरिका द्वारा युद्धविराम का प्रस्ताव देने के बाद ईरान पर हमले रुक गए।

 ऑनलाइन पत्रिका "क्रैडल" ने अपनी रिपोर्ट में लिखा: अमेरिका और इस्राइल के अधीन राजनीतिक, सैन्य और कूटनीतिक विफ़लताओं के वर्षों ने फ़ार्स खाड़ी के देशों को अधिक स्थिर और ग़ैर-टकराव वाली सुरक्षा रणनीतियों की ओर मोड़ दिया है लेकिन अब हम जो देख रहे हैं, वह पुराने गठबंधनों का धीरे-धीरे खत्म होना और तेहरान के साथ व्यावहारिक एवं लाभ-आधारित संवाद के नए रास्ते खुलना है।

 पत्रिका ने कहा कि "ईरान की युद्ध रणनीति ने क्षेत्रीय अपेक्षाओं को बदल दिया" और लिखा: तेहरान ने हाल के सैन्य संघर्ष में सटीक प्रहार, क्षेत्रीय गठजोड़ और सोची-समझी कार्रवाइयों के माध्यम से एक नए स्तर की रोधक क्षमता का प्रदर्शन किया है। 

 

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