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सीरत ए नबवी पर अमल ही उम्मत के मसलों का असली हल

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सीरत ए नबवी पर अमल ही उम्मत के मसलों का असली हल

हौज़ा ए इल्मिया ईरान की सुप्रीम काउंसिल के प्रमुख आयतुल्लाह मोहम्मद मेहदी शब ज़िंदादार ने कहा है कि उम्मते मुस्लिमा की निज़ात और सामाजिक समस्याओं का असली और स्थायी हल पैगंबर मुहम्मद (स.ल.व.) और अहलुल बेत अलैहिमुस्सलाम की सीरत पर अमल करने में निहित है।

ईरान की हौज़ा ए इल्मिया सुप्रीम काउंसिल के प्रमुख आयतुल्लाह मोहम्मद मेहदी शब ज़िंदा दार ने कहा है कि आज के दौर में मुस्लिम उम्मत को जिन सामाजिक, नैतिक और राजनैतिक समस्याओं का सामना है, उनका असली और स्थायी हल सिर्फ और सिर्फ पैगंबर इस्लाम हज़रत मोहम्मद (स.) और अहलेबैत (अ.) की सीरत पर अमल करने में है।

यह बात उन्होंने क़ुम शहर में आयोजित एक धार्मिक सम्मेलन "उम्मत-ए-अहमद" में कही, जो पैगंबर (स.ल.व.) और इमाम जाफर सादिक़ (अ.स.) की विलादत की खुशी में आयोजित किया गया था।

आयतुल्लाह शब ज़िंदा दार ने अपने संबोधन में कहा कि पैगंबर (स.) ने हमेशा हालात और मौकों को दीन की तबलीग और इस्लामी उसूलों के प्रचार के लिए बेहतरीन अंदाज़ में इस्तेमाल किया। उन्होंने कहा कि यह तरीका आज के दौर में उलमा, शिक्षकों और माता-पिता के लिए भी एक मिसाल है।

उन्होंने इमाम जमाअत की तीन अहम ज़िम्मेदारियाँ गिनाईं:मोमिनों के लिए दुआ और सिफ़ारिश,रूहानी मार्गदर्शन,और बंदों को अल्लाह की बारगाह तक पहुँचाना।

उनका कहना था कि एक आलिम-ए-दीन के लिए यह बहुत बड़ा शर्फ (गौरव) है कि वह लोगों को ख़ुदा की मरिफत और क़ुर्ब की राह दिखाए।

उन्होंने कहा कि पैगंबर (स.ल.व.) ने गुनाहों और नेकियों को मामूली न समझने की हिदायत दी थी। छोटे गुनाह इकट्ठा होकर बड़े बन जाते हैं, वहीं छोटा सा नेक अमल भी अल्लाह की नजर में बड़ा दर्जा पा सकता है। उन्होंने अल्लाह की रहमत की मिसाल देते हुए कहा कि जैसे माँ अपने बच्चे को गर्मी से बचाती है, वैसे ही बल्कि उससे कहीं ज़्यादा, अल्लाह अपने बंदों पर रहमत करता है।

आयतुल्लाह शब ज़िंदा दार ने आगे कहा कि एक आलिम की असली कामयाबी की बुनियाद दो बातें हैं परहेज़गारी और खैरख्वाही। अगर किसी आलिम में ये दोनों गुण मौजूद हों, तो उसका असर समाज में देर तक बाक़ी रहता है।

उन्होंने यह भी कहा कि जनता का भरोसा हासिल करना भी सीरत-ए-नबवी का एक अहम हिस्सा है। पैगंबर (स.) की इसी खूबी की वजह से लोग बड़ी संख्या में इस्लाम में दाख़िल हुए।

अंत में उन्होंने जोर देकर कहा कि मुसलमानों को चाहिए कि वे अपनी व्यक्तिगत, सामाजिक और राजनीतिक जिंदगी में पैगंबर (स.ल.) और अहलेबैत (अ.) की सीरत को अपनाएं, ताकि वे इज़्ज़त और अम्न के साथ ज़िंदगी गुज़ार सकें और दुश्मनों की साज़िशों को नाकाम बना सकें।

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