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राज़ ए खिल्क़त ए इंसान; अल्लामा तबातबाई की नज़र में

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राज़ ए खिल्क़त ए इंसान; अल्लामा तबातबाई की नज़र में

आयतुल्लाह हसन ज़ादेह आमोली ने मन्क़ूल किया है कि जब उन्होंने खिल्क़त-ए-इंसान (इंसान की पैदाइश) के मक़सद और इबादत व मारिफ़त के आपसी तअल्लुक़ के बारे में अल्लामा तबातबाई से सवाल किया तो उन्होंने बेहद मुख्तसर लेकिन अमीक जुमले में फ़रमाया,हगर चे एक नफर यानी,भले ही सिर्फ़ एक ही शख्स क्यों न हो।

आयतुल्लाह हसन ज़ादेह आमोली ने मन्क़ूल किया है कि जब उन्होंने खिल्क़त-ए-इंसान (इंसान की पैदाइश) के मक़सद और इबादत व मारिफ़त के आपसी तअल्लुक़ के बारे में अल्लामा तबातबाई से सवाल किया तो उन्होंने बेहद मुख्तसर लेकिन अमीक जुमले में फ़रमाया,हगर चे एक नफर यानी,भले ही सिर्फ़ एक ही शख्स क्यों न हो।

आयतुल्लाह हसन ज़ादेह बयान करते हैं:

एक रात मैं सोच रहा था कि आख़िर अल्लाह ने इंसान को पैदा क्यों किया? कुरआन की आयत وما خلقت الجن والانس الا لیعبدون
और मैंने जिन्न और इंसान को केवल इसलिए पैदा किया है कि वे मेरी इबादत करें।पर और भी ग़ौर किया इसकी तफ़सीर में कहा गया है 'लिया'बुदून' यानी 'लितअरिफ़ून लेकिन एक शक यह था कि मारिफ़त के बिना इबादत मुमकिन नहीं है, और जब हमारी मारिफ़त अल्लाह के मुक़ाबले में कुछ भी नहीं है, तो फिर इबादत कैसे होगी?

सुबह सबसे पहले मैं अल्लामा तबातबाई की ख़िदमत में हाज़िर हुआ और अर्ज़ किया,हज़रत उस्ताद! तो फिर आख़िर कौन है जो अल्लाह की इबादत करेगा?

अल्लामा तबातबाई ने बेहद मुख्तसर जवाब दिया,हगर चे एक नफर यानी!(भले ही सिर्फ़ एक ही शख़्स क्यों न हो)।

यह सुनकर मेरे दिल को सुकून मिला। फ़ौरन ज़हन में इमाम ए ज़माना अ.स.की ज़ाते गरामी याद आई और याद आया कि ज़मीन कभी भी उस कामिल व मासूम हस्ती से ख़ाली नहीं रहती।

दूसरे सभी इंसान,इंसान ए कामिल के साए में हैं और ख़ल्क़त का हक़ीक़ी मक़सद उसी कामिल मौजूद की हस्तियत की तरफ लौटता है।यही वह नुक्ता है जिसे अमीरुल मोमिनीन हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने वाज़ेह फ़रमाया,
فَإِنَّا صَنَائِعُ رَبِّنَا وَالنَّاسُ بَعْدُ صَنَائِعُ لَنَا

निस्संदेह हम अपने रब की सीधी रचना हैं और उसके बाद के लोग हमारी रचना (सनअत) हैं। यानी, बाक़ी सभी लोग हम अहलेबैत के लिए पैदा किए गए हैं।

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