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एक शहीद की माँ का हैरत अंगेज़ वाक्या

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एक शहीद की माँ का हैरत अंगेज़ वाक्या

 हमीद हस्साम की किताब "वक्ती महताब-ए-गुम शुद से लिया गया यह वाकया उस माँ के यक़ीन और मजबूती की तस्वीर पेश करता है, जो बेटे की शहादत की ख़बर सुनते वक़्त भी कुरआन से सुकून पाती है और ईमान के चिराग़ से सब्र का रास्ता रौशन करती है।

हमीद हस्साम की किताब "वक्ती महताब-ए-गुम शुद से लिया गया यह वाकया उस माँ के यक़ीन और मजबूती की तस्वीर पेश करता है, जो बेटे की शहादत की ख़बर सुनते वक़्त भी कुरआन से सुकून पाती है और ईमान के चिराग़ से सब्र का रास्ता रौशन करती है।

अली ख़ुशलफ़ बयान करते हैं,मेरी माँ कुरआन पढ़ रही थी और उसकी आँखों से आँसू बह रहे थे मैंने धीरे से कहा कि जफ़र को मामूली चोट लगी है और उसे अस्पताल ले जाया गया है। माँ ने पूरी शांति से मेरी आँखों में देखा और कहा,जफ़र शहीद हो गया है।

मैंने घबरा कर पूछा:किसने कहा?

माँ ने मुस्कुरा कर जवाब दिया:कुरआन ने!

फिर उसने यह आयत तिलावत की:और तुम हरगिज़ उन लोगों को मुर्दा न समझो जो अल्लाह की राह में मारे गए....(सूरह आल-ए-इमरान, आयत 169)

माँ ने कहा:ख़ुदा कह रहा है कि वह शहीद हुआ है और तू कहता है नहीं?

बेटे ने लिखा कि:माँ के ईमान ने मेरे दिल को सुकून दिया, मगर मैं यह कहने की हिम्मत नहीं कर सका कि तुम्हारे बेटे का शव नहीं मिला।

यह वाकया न सिर्फ़ एक शहीद की वालिदा के ईमान और सब्र की दास्तान बयान करता है बल्कि इस हक़ीक़त की भी गवाही देता है कि कुरआन पर यक़ीन रखने वाला दिल, मुसीबत के वक़्त भी नहीं डगमगाता।

स्रोत: हमीद हुसाम, "वक्त-ए-महताब-ए-गुम शुद", पृष्ठ .642

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