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समाज में तरक़्क़ी, औरत के फ़ैमिली से लगाव पर हैं

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समाज में तरक़्क़ी, औरत के फ़ैमिली से लगाव पर हैं

इस्लाम ने घर के भीतर औरत के किरदार को जो इस क़द्र अहमियत दी है उसका कारण यही है कि औरत में अगर फ़ैमिली से लगाव हो, अपनी दिलचस्पी ज़ाहिर करे, बच्चों की तरबियत को अहमियत दे इस से समाज में तरक़्क़ी का सबब होगा।

हज़रत आयतुल्लाहिल उज़मा सैय्यद अली ख़ामेनेई ने फरमाया,इस्लाम ने घर के भीतर औरत के किरदार को जो इस क़द्र अहमियत दी है उसका कारण यही है कि औरत में अगर फ़ैमिली से लगाव हो।

अपनी दिलचस्पी ज़ाहिर करे, बच्चों की तरबियत को अहमियत दे, उनकी देखभाल करे, उनको दूध पिलाए, अपनी आग़ोश में उनकी परवरिश करे और परवान चढ़ाए, उन्हें सांस्कृतिक सामग्री के तौर पर क़िस्से, शरीअत के हुक्म और क़ुरआन के क़िस्से और पाठ लेने योग्य वाक़ए बताए और जहाँ कहीं भी मौक़ा मिले खाद्य पदार्थ की तरह रूहानी पदार्थ चखाती रहे तो समाज की नस्लें बुद्धिमानव अक़्लमंद बनकर परवान चढ़ेंगी।

यह औरत का हुनर है और यह काम औरत के शिक्षा हासिल करने, शिक्षा देने, काम करने और राजनीति या इस तरह के दूसरे काम अंजाम देने से विरोधाभास भी नहीं रखता।

 

 

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