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फ़ातेमी समाज दीनदार और ज़िम्मेदार समाज हैः हुज्जतुल इस्लाम अबुल क़ासिम रिज़वी

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फ़ातेमी समाज दीनदार और ज़िम्मेदार समाज हैः हुज्जतुल इस्लाम अबुल क़ासिम रिज़वी

शिया उलेमा काउंसिल ऑस्ट्रेलिया के सदर और इमाम जुमा मेलबर्न हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन मौलाना सय्यद अबू अल-क़ासिम रिज़वी ने मलाइशिया की मार्कज़ी व कदीम तरीन इमाम बारगाह बाब अल-हिदायत में अय्याम-ए-अज़ा-ए-फातिमिया की मजलिसों से खिताब करते हुए कहा कि जनाब फातिमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा की सीरत दुनिया की तमाम खवातीन के लिए बेहतरीन नमूना-ए-अमल है।

मलाइशिया की ऐतिहासिक इमाम बारगाह बाब अल-हिदायत में अय्याम-ए-अज़ा-ए-फातिमिया की मजलिसें जारी हैं, जिनमें हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन मौलाना सय्यद अबू अल-क़ासिम रिज़वी, सदर शिया उलेमा काउंसिल ऑस्ट्रेलिया और इमाम जुमा मेलबर्न "फातिमा की जिंदगी: दुनिया की तमाम महिलाओं के लिए नमूना-ए-अमल" के शीर्षक से संबोधित कर रहे हैं।

मौलाना अबू अल-क़ासिम रिज़वी ने अपने भाषण में ज़ोर देते हुए कहा कि "जनाब फातिमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा की सीरत पर बातचीत करना काफी नहीं है, बल्कि हमें उनकी तालीमात पर अमल करके अपनी दुनिया को जन्नत बनाना चाहिए।"

उन्होंने अफ़सोस का इज़हार करते हुए कहा कि "आज रिश्तों का एहतराम खत्म हो रहा है, तलाकें आम हो गई हैं, हुक़ूक़ पामाल किए जा रहे हैं, फिर भी हम खुद को फातिमी समाज कहते हैं।"

मौलाना ने वज़ाहत की कि "फातिमी समाज वही है जो दीन्दार और जिम्मेदार हो, जहां किसी का हक न पामाल हो। हम फदक की बात करते हैं मगर अपनी बहनों और बेटियों को उनके हकूक़ नहीं देते, ये रवैया फातिमी तर्ज़-ए-जिंदगी के खिलाफ है।"

उन्होंने आखिर में कहा कि "जनाब फातिमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा पहली शहीदा-ए-राह-ए-विलायत हैं, जिन्होंने अपने अमल और इस्तेक़ामत के ज़रिए मुनाफिक़ों को बेनकाब किया और विलायत के दिफ़ा की लाजवाल मिसाल क़ायम की।"

 

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