यमन के अंसारुल्लाह आंदोलन के राजनीतिक कार्यालय के सदस्य ने दक्षिण यमन की संक्रमणकालीन परिषद की कार्रवाइयों की कड़ी आलोचना करते हुए कहा है कि ये गतिविधियाँ किसी भी तरह से राष्ट्रीय परियोजना से जुड़ी नहीं हैं, बल्कि इस क्षेत्र को विदेशी शक्तियों के प्रभाव क्षेत्र में बदलने और इज़रायली शासन की प्रत्यक्ष उपस्थिति का मार्ग तैयार करने की योजना हैं।
यमन के अंसारुल्लाह आंदोलन के राजनीतिक कार्यालय के सदस्य मुहम्मद अल-फ़रह ने कहा,आज दक्षिण यमन में संक्रमणकालीन परिषद जो कर रही है, उसका किसी भी राष्ट्रीय परियोजना से कोई संबंध नहीं है, बल्कि यह पूरी तरह से संयुक्त अरब अमीरात का उपकरण है, जिसका उद्देश्य देश को विभाजित करना और विदेशी शक्तियों के प्रभाव का विस्तार करना है।
अल-मयादीन नेटवर्क के हवाले से उन्होंने आगे कहा: दक्षिण में इस परिषद की गतिविधियों का उद्देश्य इस क्षेत्र को विदेशी परियोजनाओं के क्रियान्वयन के लिए एक खुला प्रभाव क्षेत्र बनाना और इज़रायली शासन की प्रत्यक्ष उपस्थिति की ज़मीन तैयार करना है। अल-फ़रह ने आगे ज़ोर देकर कहा कि सऊदी अरब का हस्तक्षेप कभी भी यमन की एकता या उसकी संप्रभुता की रक्षा के लिए नहीं रहा है।
उन्होंने कहा कि संयुक्त अरब अमीरात और सऊदी अरब ने यमन के “क़ब्ज़े और उसकी संपदा की लूट” में अपनी भूमिकाएँ आपस में बाँट रखी हैं, और ये कार्रवाइयाँ केवल आंतरिक भाड़े के तत्वों के माध्यम से ही संभव हो पाई हैं।
अल-फ़रह ने स्पष्ट किया कि अंसारुल्लाह किसी भी प्रकार की संरक्षकता और विदेशी हस्तक्षेप को अस्वीकार करता है, और कोई भी राजनीतिक या सैन्य परियोजना जो यमन की पूर्ण स्वतंत्रता, उसके राजनीतिक निर्णय की एकता, तथा यमनी जनता के अपनी भूमि और संपदा पर अधिकार के आधार पर नहीं बनी हो, उसे शत्रुतापूर्ण और अस्वीकार्य माना जाता है।
अंसारुल्लाह के राजनीतिक कार्यालय के इस सदस्य ने ज़ोर देकर कहा: यमन न तो दूसरों के प्रभाव का क्षेत्र है और न ही कोई ऐसा आश्रित परियोजना जिसे बाहरी शक्तियाँ आपस में बाँट सकें