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अर्बईन वॉक;इमाम के ज़हूर और हमारी ज़िम्मेदारी

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अर्बईन वॉक;इमाम के ज़हूर और हमारी ज़िम्मेदारी

आज के दौर में जहां हर तरफ फितना, डर, पाबंदियां और रुकावटें हैं, वहां इमाम हुसैन अ.स.की अर्बईन वॉक सिर्फ एक धार्मिक मार्च नहीं बल्कि एक इलाही हरकत है यह वॉक एक तैयारी है, एक भूमिका है इमाम ज़माना अजलल्लाहु तआला फरजहु शरीफ के ज़हूर की। यह वह कदम हैं जो कर्बला से कूफा, और कूफा से नजफ व सामर्रा होते हुए एक दिन मक्का की बैअत और कूफा के क़याम पर समाप्त होंगी।

आज के दौर में जहां हर तरफ फितना, डर, पाबंदियां और रुकावटें हैं, वहां इमाम हुसैन अ.स.की अर्बईन वॉक सिर्फ एक धार्मिक मार्च नहीं बल्कि एक इलाही हरकत है यह वॉक एक तैयारी है, एक भूमिका है इमाम ज़माना अजलल्लाहु तआला फरजहु शरीफ के ज़हूर की। यह वह कदम हैं जो कर्बला से कूफा, और कूफा से नजफ व सामर्रा होते हुए एक दिन मक्का की बैअत और कूफा के क़याम पर समाप्त होंगी।

लेकिन अफसोस! आज इन्हीं कदमों को रोका जा रहा है। पाकिस्तान में ज़मीनी रास्तों पर पाबंदी लगा देना उन गरीब जायरीन के लिए दीवार बन गई है जो सालों इंतज़ार करते हैं, पैसे जमा करते हैं, ताकि वह अर्बईन की बरकतों से फायज़ाब हो सकें क्या सिर्फ अमीर ही इश्क-ए-हुसैन अ.स. के सफर का हक रखते हैं? क्या फकीर का इश्क कम है? अगर सुरक्षा का मसला है, तो रियासत की ज़िम्मेदारी है कि सुरक्षा मुहैया करे, न कि अज़ादारी और ज़ियारत पर पाबंदी लगाए। 

कल अगर दुश्मन कहे कि नमाज-ए-जुमा में बम धमाका होगा, तो क्या हम नमाज छोड़ देंगे? क्या हम दीन के हर स्तंभ को दुश्मन की धमकी पर कुर्बान करते चले जाएंगे? 

तो फिर क्या फर्क रह जाएगा कूफा के उस समाज से जिसने इमाम हुसैन अ.स.को बुलाया, फिर अपने माल, जान और डर की खातिर इमाम को अकेला छोड़ दिया? क्या हम भी वही इतिहास दोहरा रहे हैं? 

खुदावंद मोतअआल कुरआन करीम में इरशाद फरमा रहा है: 
أَطِيعُوا اللَّهَ وَأَطِيعُوا الرَّسُولَ وَأُولِي الْأَمْرِ مِنْكُمْ"
अल्लाह की इताअत करो, रसूल की इताअत करो और अपने उलील अम्र की भी इताअत करो।

तो यह इताअत कहां गई? क्या उलील अम्र की इताअत सिर्फ ज़ुबान से है? 

आज का दौर, इम्तिहान का दौर है। हममें से हर एक कूफा के शहरी जैसा इम्तिहान दे रहा है। हममें से हर एक के सामने दो रास्ते हैं: 
1. आराम, मफाद, डर और खामोशी का रास्ता 
2. या फिर इश्क, कुर्बानी, सच्चाई और इस्तिक़ामत का रास्ता 

अर्बईन वॉक को खत्म करना दुश्मन का एक नफ्सियाती हमला है। वह देख चुका है कि कर्बला ज़िंदा है, और जब तक कर्बला ज़िंदा है, ज़ुल्म मुर्दा है! इसलिए वह इस मरकज़-ए-वहदत मरकज़-ए-इश्क, मरकज़-ए-ज़हूर को खत्म करना चाहता है। लेकिन हमारी खामोशी, हमारी बेहिसी, हमारी बे-अमली दुश्मन की सबसे बड़ी कामयाबी है। 

याद रखो;कल कर्बला में जब इम्तिहान आया, तो जो बच गए वही इमाम के लश्कर में थे। आज अगर हमने खामोशी इख्तियार की तो शायद कल हमारे पास भी कोई हुसैन (अ.स.) न हो, और हम किसी कूफा में अपनी बेवफाई पर रो रहे हों। 

लिहाज़ा, यह वक्त है कि आवाज़ बुलंद की जाए, यह वक्त है कि गरीब जायरीन की हिमायत की जाए, यह वक्त है कि अर्बईन वॉक को ज़हूर से जोड़कर दुश्मन के हरबे नाकाम बनाए जाएं।

क्योंकि यह सिर्फ वॉक नहीं है, यह बैअत-ए-इश्क है और यह वह बैअत है जो सय्यिदुश्शुहदा (इमाम हुसैन अ.स.) से इमाम ज़माना (अ.स.) तक जारी है। अर्बईन रोकी नहीं जा सकती क्योंकि इश्क को सरहदों की ज़रूरत नहीं होती। यह रास्ता वही है जो ज़हूर तक जाएगा।

तहरीर: मौलाना सैय्यद अम्मार हैदर जैदी, क़ुम

 

 

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