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अरबईन वॉक: ज़ुहूर की मश्क़

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अरबईन वॉक: ज़ुहूर की मश्क़

अरबईन वॉक हमें सिर्फ़ कर्बला की याद ही नहीं दिलाता, बल्कि आने वाले कल के लिए भी अभ्यास कराता है। अगर आज हम तय कर लें कि प्रकट होने के समय हम कहाँ होंगे, क्या करेंगे और इमाम के अनुयायियों के साथ कैसे शामिल होंगे, तो कल जब इमाम का बुलावा आएगा, तो हम जवाब देने वालों में पहली पंक्ति में होंगे। लेकिन अगर आज हम अपनी भूमिका स्पष्ट नहीं करते, तो कल हम भी इतिहास के उन किरदारों में शामिल हो जाएँगे जो उस समय सच्चाई का साथ नहीं दे पाए।

नजफ़ से कर्बला तक का यह सफ़र... यह कोई साधारण सफ़र नहीं है। यह एक ऐसा रास्ता है जो हमें हर कदम पर एक सबक सिखाता है, हमें एक अभ्यास देता है और हमें आने वाले दिनों के लिए तैयार रहना सिखाता है। कर्बला में इमाम हुसैन (अ) अकेले रह गए थे, वफ़ा कमज़ोर पड़ गई थी, लोग धन के लालच, जान के डर या अपनी ही पसंद के जाल में फँसकर सच्चाई से मुँह मोड़ चुके थे। लेकिन उस ज़माने में भी कुछ लोग ऐसे थे जो किसी भी खतरे की परवाह किए बिना इमाम के साथ खड़े रहे। हानी बिन उरवा, जिन्होंने मुस्लिम बिन अकील को अपने घर में पनाह दी और उसी जुर्म में शहीद हो गए। हबीब इब्न मुज़ाहिर, जिन्होंने कूफ़ा को ऐसे रास्ते से छोड़ा जो सबके लिए साफ़ था ताकि वे कर्बला पहुँच सकें और इमाम का साथ दे सकें। इन लोगों को बताया गया था कि वफ़ा का मतलब हर हाल में, हर कीमत पर इमाम के साथ खड़ा रहना है।

आज का अरबईन वॉक भी हमें यही सीख दे रहा है। नजफ़ से कर्बला तक के रास्ते पर चलते लोग, एक-दूसरे की सेवा करते, थके हुए हाजियों के पैर दबाते, अजनबियों को खाना खिलाते, ये सब हमें यही सीख दे रहे हैं कि कल जब वक़्त का इमाम आएगा, तो रास्ते आसान नहीं होंगे। दुनिया की ताकतें रुकावटें खड़ी करेंगी, जैसे आज गाजा में शहादतें हो रही हैं, लेकिन उन तक खाना नहीं पहुँचने दिया जा रहा। लोगों के दिल दुखी हैं, लेकिन सरकारें अपने आकाओं के आगे मजबूर हैं। क्या आपको लगता है कि कल आने पर ये ताकतें हमारा साथ छोड़ देंगी? बिलकुल नहीं। वे इमाम तक पहुँचने का रास्ता रोकने की हर संभव कोशिश करेंगी।

इसीलिए अरबईन हमें अभी से तैयार रहने की शिक्षा दे रही है। अगर आपने आज अपनी भूमिका तय नहीं की, तो कल मैदान में नाज़रीनों में आपका नाम नहीं होगा। इमाम की सेना में सिर्फ़ तलवारबाज़ ही नहीं होंगे। कोई रास्ते में खाने का इंतज़ाम करेगा, कोई ठहरने की व्यवस्था करेगा, कोई चिकित्सा सहायता देगा, कोई अपनी इंजीनियरिंग कौशल से इमाम की सेना का साथ देगा। हर क्षेत्र के लोग इमाम के समर्थन का जाल बुनने के लिए एक साथ आएंगे। और यह सब तभी संभव है जब आप आज से ही इस काम के लिए खुद को तैयार कर लें।

दुनिया की सरकारें जानती हैं कि यह यात्रा सिर्फ़ एक ज़ियारत नहीं, बल्कि वैश्विक एकता और व्यावहारिक तत्परता का प्रदर्शन है। इसीलिए इस पर प्रतिबंधों का सिलसिला शुरू हो गया है। इसका पहला प्रयोग पाकिस्तान में हो रहा है, और दुर्भाग्य से, यह सफल होता दिख रहा है। अगर यही सिलसिला जारी रहा, तो हर देश में एक ऐसी व्यवस्था लागू हो जाएगी जिससे अरबाईन जैसे जमावड़े नामुमकिन हो जाएँगे, और जब यह नेटवर्क टूट जाएगा, तो इमाम के अनुयायियों के लिए उनके ज़ुहूर होने के समय एक-दूसरे तक पहुँचना मुश्किल हो जाएगा।

अरबईन वॉक हमें सिर्फ़ कर्बला की याद नहीं दिलाता, यह हमें आने वाले कल के लिए तैयारी कराता है। अगर आज हम तय कर लें कि उनके ज़ुहूर होने के समय हम कहाँ होंगे, क्या करेंगे, और इमाम के अनुयायियों के साथ कैसे शामिल होंगे, तो कल जब इमाम का बुलावा आएगा, तो हम जवाब देने वालों में पहली पंक्ति में होंगे। लेकिन अगर हम आज अपनी भूमिका स्पष्ट नहीं करते, तो कल हम भी इतिहास के उन किरदारों में दर्ज हो जाएँगे जो उस समय सच्चाई का साथ नहीं दे पाए।

लेखकः मौलाना सय्यद अम्मार हैदर ज़ैदी क़ुम

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