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एक अशांत विश्व में पैग़म्बरी की हिकमत और सच्ची बुद्धि व तर्क के पुनर्पाठ की आवश्यकता

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एक अशांत विश्व में पैग़म्बरी की हिकमत और सच्ची बुद्धि व तर्क के पुनर्पाठ की आवश्यकता

आज का संसार अपनी सभी प्रौद्योगिकीय प्रगतियों के बावजूद, अध्यात्म के सही अर्थ के अभाव से पीड़ित है।

नबी की हिकमत और सच्ची बुद्धि की ओर लौटना, केवल एक ऐतिहासिक नॉस्टेल्जिया नहीं है बल्कि समकालीन मनुष्य के पुनर्निर्माण का मार्ग है और यह एक आवश्यकता है।

 पैग़म्बर-ए-इस्लाम हज़रत मोहम्मद मुस्तफ़ा (सल्लल्लाहु अलैहि व आलिहि व सल्लम) ने ऐसी सभ्यता की नींव रखी जो रहमत, तर्कसंगतता और मानवीय गरिमा पर आधारित है, ऐसी शख़्सियत जो केवल इस्लामी इतिहास में ही नहीं, बल्कि सम्पूर्ण मानवता के इतिहास में एक अनुपम मोड़ मानी जाती है। इमाम जाफ़र सादिक़ (अलैहिस्सलाम), जो पैग़म्बर के अहलेबैत के अनुयायियों के छठे इमाम और इस नबवी विरासत के सच्चे उत्तराधिकारी थे, ने विचारधाराओं और मतों के टकराव के दौर में पैग़म्बरे इस्लाम के सदाचरण से प्रेरणा लेते हुए तर्क, ज्ञान और अध्यात्म का ऐसा शिक्षाकेन्द्र स्थापित किया जो आज तक सत्य के खोजियों को प्रेरित करता है। इमाम सादिक़ अलै. का पैग़म्बर से संबंध केवल रक्त का नहीं था बल्कि आध्यात्मिक और वैचारिक निरंतरता थी वे उस मोहम्मदी दृष्टि व विचारधारा की गहराई के वाहक थे जो ऐसे जटिल युग में ईमान और तर्कसंगतता की पुनर्परिभाषा का मोहताज थी।

 ऐसे समय में जब संसार आध्यात्मिक, नैतिक और वैचारिक संकटों की भंवर में जकड़ा हुआ है, मौलिक चिंतन और अध्यात्म के स्रोतों की ओर लौटना एक जीवनदायी आवश्यकता बन गई है। पैग़म्बर-ए-इस्लाम (सल्लल्लाहु अलैहि व आलिहि व सल्लम) और इमाम सादिक़ (अलैहिस्सलाम) का जन्मदिवस ऐसा अवसर है जो न केवल मुसलमानों बल्कि हिंसा और निरर्थकता से थकी हुई मानवता को भी शांति और बुद्धिमत्ता के किनारे तक पहुँचाने वाली धरोहर पर गहन चिंतन का मार्ग खोलता है।

 मोहम्मदी दृष्टि एक ऐसी दृष्टि है जो रहमत, संवाद और मानव की गरिमा पर आधारित है। वह पैग़म्बर, जिसने जेहालत के दौर में इंसान को क़बीले, रक्त और अंधभक्ति की ग़ुलामी से मुक्त किया और सहअस्तित्व, न्याय तथा अर्थपूर्ण जीवन के नए क्षितिज खोले। आज के संसार में जहाँ भौगोलिक सीमाएँ ढ़ह रही हैं लेकिन मानसिक दीवारें और ऊँची हो गई हैं, इस दृष्टि का पुनर्पाठ पहचान और सांस्कृतिक संकटों से निकलने का मार्ग हो सकता है।

 इसी मार्ग की निरंतरता में इमाम सादिक़ (अलैहिस्सलाम) का विचार एक ऐसे पुल के समान है जो बुद्धि और ईमान, ज्ञान और अध्यात्म, तथा अनुभव और अंतर्ज्ञान को जोड़ता है। उन्होंने वैचारिक बिखराव के युग में ऐसा विद्यालय व शिक्षाकेन्द्र स्थापित किया जिसमें धार्मिक तर्कशीलता सच्चे प्रश्न करने की भावना से मिलकर बनी, एक ऐसा आदर्श जो आज उत्तर-सत्य और सतही जानकारी के युग में, पहले से कहीं अधिक पुनर्जीवित करने की आवश्यकता रखता है।

 आज का संसार अपनी सभी तकनीकी प्रगतियों के बावजूद, अध्यात्म के अभाव से पीड़ित है। नबवी हिकमत और सादिकी बुद्धि की ओर लौटना केवल एक ऐतिहासिक नॉस्टेल्जिया नहीं, बल्कि समकालीन मनुष्य के पुनर्निर्माण का मार्ग है एक ऐसी आवश्यकता जिसे साहस और गहराई के साथ अपनाना होगा। ये दोनों जन्मदिन, मानव, जगत और हमारे सत्य के साथ संबंध पर पुनर्विचार का आमंत्रण हैं।

 

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