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शिया संस्कृति में इंतेज़ार का स्थान

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शिया संस्कृति में इंतेज़ार का स्थान

इ़ंतेज़ार करने से कर्तव्य खत्म नहीं होता और न ही काम को टालने की अनुमति मिलती है। धर्म के कर्तव्यों में ढील और उनका उत्साहपूर्वक पालन न करना बिलकुल उचित नहीं है।

सच्चे इंतजार के अर्थ की स्पष्टता और निश्चितता के बावजूद, इसके विभिन्न मत और व्याख्याएँ प्रस्तुत की गई हैं। अधिकतर ये व्याख्याएँ विद्वानों और धर्माचार्यों की समझ से संबंधित हैं, और कुछ अन्य व्याख्याएँ कुछ शिया समुदाय के लोगों की समझ से जुड़ी हैं।

इस विषय में मुख्य दो प्रमुख व्याख्याएँ हैं:

1- सही और रचनात्मक इंतजार

रचनात्मक इंतजार ऐसा इंतजार है जो सक्रिय बनाता है और जिम्मेदारी देता है। इसे वह सच्चा इंतजार माना जाता है जिसे हदीसों में "सबसे बेहतरीन इबादत" और "पैग़म्बर की उम्मत का सर्वोत्तम जेहाद" बताया गया है।

मरहूम मुज़फ्फर(1) ने एक संक्षिप्त और व्यापक बयान में इंतजार को इस तरह समझाया है कि:

हक़ीक़ी मुस्लेह हज़रत महदी (अ) के ज़ुहूर के इंतजार का मतलब यह नहीं है कि मुसलमान अपने धार्मिक फर्जों को छोड़ दें और उनको निभाने में, जैसे कि हक़ की मदद करना, धर्म के कानूनों और आदेशों को जिंदा रखना, जेहाद करना, और अम्र बिल मारूफ़ व नही अनिल मुंकर मे कोताही करे, इस आशा से कि क़ायम-ए-आले-मुहम्मद (अ) आएंगे और सब काम सही कर देंगे, इसलिए वे अपने फ़र्ज़ों से हट जाएं। हर मुसलमान पर यह जिम्मेदारी है कि वह खुद को इस्लाम के आदेशों को पूरा करने वाला समझे; धर्म को सही रास्ते से पहचानने के लिए कोई कसर न छोड़े और अपनी क्षमता के अनुसार अम्र बिल मारूफ़ व नही अनिल मुंकर न छोड़े; जैसे कि  पैग़म्बर (स) ने फ़रमाया:

کُلُّکُمْ رَاعٍ وَ کُلُّکُمْ مسؤول عَنْ رَعِیَّتِهِ कुल्लोकुम राइन व कुल्लोकुम मसऊलिन अन रइय्यतेहि

आप सभी एक-दूसरे के नेता हैं और सुधार के रास्ते में ज़िम्मेदार भी हैं। (बिहार उल अनवार, भाग 72, पेज 38)

इस हिसाब से, एक मुसलमान महदी मौऊद के इंतेज़ार के कारण अपने स्पष्ट और पक्के कर्तव्यों को छोड़ या कम नहीं कर सकता; क्योंकि इंतेज़ार करने से जिम्मेदारी खत्म नहीं होती और न ही काम को टालने की अनुमति मिलती है। धर्म के कर्तव्यों में सुकून और उदासीनता बिलकुल मंज़ूर नहीं है। (अक़ाइद उल इमामिया, पेज 118)

कुल मिलाकर, हक़ीक़ी इंतेज़ार की संस्कृति तीन मुख्य आधारों पर आधारित है:

  • वर्तमान हालात से नाखुशी या संतुष्ट न होना
  • बेहतर भविष्य की उम्मीद रखना
  • वर्तमान हालात से बढ़कर बेहतर स्थिति की ओर प्रयास और सक्रियता करना

2- गलत और विनाशकारी इंतेज़ार

गलत और विनाशकारी इंतेज़ार, जो असल में एक तरह की "इबाहागिरी" है, हमेशा धर्म के महानुभावों द्वारा निंदित और तिरस्कृत किया गया है, और उन्होंने अहले बैत के अनुयायियों को इससे बचने की सलाह दी है।

अल्लामा मुताहरी क़ुद्दसा सिर्रोह ने इस बारे में लिखा है:

इस प्रकार का इंतेज़ार लोगों का महदीत्व और महदी मौऊद (अ) के ज़ुहूर और क्रांति की सतही समझ है, जो केवल विस्फोटक प्रकृति का होता है; यह केवल अत्याचारों, भेदभावों, रुकावटों, अन्यायों और बर्बादी के फैलाव और प्रचार से उत्पन्न होता है।

इस प्रकार के महदी मौअूद (अ) के इंतेज़ार और क्रांति की व्याख्या, जो इस्लामी हदों और नियमों को कमजोर कर देती है और एक प्रकार की "इबाहागिरी" कहलाती है, बिलकुल भी इस्लामी और कुरआनी मानदंडों के अनुरूप नहीं है। (क़याम व इंक़ेलाब महदी अलैहिस्सलाम, पेज 54)

इस्लामी गणराज्य ईरान के संस्थापक ने गलत इंतेज़ार की व्याख्याओं का खंडन करते हुए ऐसे विचार रखने वालों की कड़ी निंदा की है। (सहीफ़ा नूर, भाग 21)

इसलिए, एक सच्चा इंतेज़़ार करने वाला कभी भी महदी मौअूद (अ) के इंतेज़ार में केवल दर्शक की भूमिका नहीं निभा सकता।

श्रृंखला जारी है ---
इक़्तेबास : "दर्स नामा महदवियत"  नामक पुस्तक से से मामूली परिवर्तन के साथ लिया गया है, लेखक: खुदामुराद सुलैमियान

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(1) मुहम्मद रज़ा मुज़फ़्फ़र (1322 - 1383 हिजरी) एक प्रसिद्ध मुज्तहिद, फ़क़ीह, उसूलवादी, मुताकल्लिम, फ़लसफ़ी और शिया विद्वानों में से एक थे, जो हौज़ा फ़िक़्ह व उसूल, मन्तिक़ और कलाम व अक़ाइद के क्षेत्र में शोधकर्ता थे।

 

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