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इंतेज़ार करने वालो के विशेष कर्तव्य और जिम्मेदारियाँ

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इंतेज़ार करने वालो के विशेष कर्तव्य और जिम्मेदारियाँ

आजकल ऐसे लोग कम नहीं हैं जो कुछ कारणों से उस इमाम ए ग़ायब  में विश्वास नहीं करते और उनकी याद को सामने नहीं रखते तथा इस रास्ते में हर तरह का काम करते हैं। चूँकि संकटों और मुसीबतों में धैर्य रखना दीन की एक महत्वपूर्ण शिक्षा है, इसलिए इस दौर में हमें इन संकटों और मुसीबतों के आगे अन्य किसी समय की तुलना में अधिक धैर्य रखना चाहिए।

"आर्दश समाज की ओर" शीर्षक से महदीवाद से संबंधित विषयों की श्रृंखला, इमाम ज़मान (अ) से जुड़ी शिक्षाओं और ज्ञान के प्रसार के उद्देश्य से, आप प्रिय पाठको के समक्ष प्रस्तुत की जाती है।

विशेष कर्तव्य वे कर्तव्य हैं जो किसी तरह इमाम महदी (अ) की ग़ैबत से संबंधित हैं। इस तरह के कर्तव्य जैसे:

1- इमाम महदी (अ) के दोस्तों के साथ दोस्ती और उनके दुश्मनों के साथ दुश्मनी

पैग़म्बर अकरम (स) की बहुत सी हदीसो में अहले बैत (अ) के प्रति प्रेम और उनके दुश्मनों के प्रति दुश्मनी पर जोर दिया गया है और यह सभी समयों से संबंधित है; लेकिन कुछ हदीसो में विशेष रूप से इमाम महदी (अ) के दोस्तों के साथ दोस्ती और उनके दुश्मनों के साथ दुश्मनी की सिफारिश की गई है।

इमाम बाक़िर (अ) पैग़म्बर अकरम (स) से इस प्रकार रिवायत बयान करते हैं:

طُوبی لِمَنْ اَدْرَکَ قائِمَ اَهْلِ بَیتی وَهُوَ یأتَمُّ بِهِ فی غَیْبَتِهِ قَبْلَ قِیامِهِ وَیَتَوَلّی اَوْلِیاءَهُ وَیُعادِی اَعْداءَهُ، ذلِکَ مِنْ رُفَقایی وَ ذَوِی مَوَدَّتی وَاَکْرَمُ اُمَّتی عَلَی یَوْمَ القِیامَةِ तूबू लेमन अदरका क़ाएमा अहले बैती व होवा यातम्मो बेहि फ़ी ग़ैबतेहि क़ब्ला क़यामेहि व यतवल्ला ओलेयाअहू व योआदी आदाअहू, ज़ालेका मिन रोफ़क़ाई व ज़वी मवद्दती व अकरमो उम्मति अला यौमल क़यामते
खुशी है उसके लिए जो मेरे अहले-बैत के क़ाएम को पाए और उनकी ग़ैबत में और उनके क़याम से पहले उनके पीछे चले; उनके दोस्तों को दोस्त बनाए और उनके दुश्मनों का दुश्मन बने; वह मेरे साथियों और मेरे प्रियजनों में से होगा और क़यामत के दिन मेरी उम्मत में सबसे महान होगा। (कमालुद्दीन व तमामुन नेअमत, भाग 1, पेज 286)

2- ग़ैबत की कठिनाइयों पर धैर्य

 आजकल ऐसे लोग कम नहीं हैं जो कुछ कारणों से उस इमाम ए ग़ायब  में विश्वास नहीं करते और उनकी याद को सामने नहीं रखते तथा इस रास्ते में हर तरह का काम करते हैं। चूँकि संकटों और मुसीबतों में धैर्य रखना दीन की एक महत्वपूर्ण शिक्षा है, इसलिए इस दौर में हमें इन संकटों और मुसीबतों के आगे अन्य किसी समय की तुलना में अधिक धैर्य रखना चाहिए

अब्दुल्लाह बिन सिनान इमाम सादिक़ (अ) से रिवायत बयान करते हैं कि उन्होंने फ़रमाया: पैग़म्बर अक़रम (स) ने फ़रमाया:

سَیَأْتِی قَوْمٌ مِنْ بَعْدِکُمْ الرَّجُلُ الْوَاحِدُ مِنْهُمْ لَهُ أَجْرُ خَمْسِینَ مِنْکُمْ. قَالُوا: یَا رَسُولَ اللَّهِ نَحْنُ کُنَّا مَعَکَ بِبَدْرٍ وَ أُحُدٍ وَ حُنَیْنٍ وَ نَزَلَ فِینَا الْقُرْآنُ. فَقَالَ: إِنَّکُمْ لَوْ تحملوا [تحملونَ] لِمَا حُمِّلُوا لَمْ تَصْبِرُوا صَبْرَهُمْ सयाती क़ौमुन मिन बादेकोमुर रज्लुल वाहेदो मिन्हुम लहू अज्रो खम्सीना मिन्कुम । क़ालूः या रसूलुल्लाहे नहनो कुन्ना मअका बेबद्रिन व ओहोदिन व हुनैनिन व नज़ला फ़ीनल क़ुरआनो। फ़क़ालाः इन्नकुम लो तहमलू [तहमलूना] लेमा हुम्मलू लम तस्बेरू सबरहुम
तुम्हारे बाद एक ऐसी पीढ़ी आएगी जिसमें से हर व्यक्ति को आप में से पचास व्यक्तियों के बराबर सवाब मिलेगा।" लोगों ने कहा: "ऐ पैगंबर ए खुदा! हम बद्र, ओहोद और हुनैन के युद्धों में आपके साथ लड़े हैं और हमारे बारे में कुरान की आयतें नाज़िल हुई हैं।" तो आपने फ़रमाया: "अगर आप उस बोझ को उठाते जो उन पर डाला जाएगा, तो उनके जैसा धैर्य नहीं रख पाते।" (शेख तूसी, किताब अल ग़ैबा, पेज 456)

इमाम हुसैन बिन अली (अ) ने भी फ़रमाया:

اِنَّ الصَّابِرَ فِی غَیبَتِهِ عَلَی الاَذی وَالتَّکْذِیبِ بِمَنزِلَةِ المُجاهِدِ بِالسَّیْفِ بَیْنَ یَدَی رَسُولِ اللَّهِ صلی‌الله‌علیه‌وآله‌وسلم इन्नस साबेरा फ़ी ग़ैबतेहि अलल अज़ा वत तक़ज़ीबे बेमंज़ेलतिल मुजाहेदे बिस सैफ़े बैना यदय रसूलिल्लाहे सल्लल्लाहो अलैहे व आलेहि वसल्लम
जो व्यक्ति उनकी ग़ैबत के दौरान आहत करने और अस्वीकार करने पर धैर्य रखता है, वह उस व्यक्ति के समान है जो पैग़म्बर ए ख़ुदा (स) की रिकाब मे तलवार के साथ दुशनो से जिहाद करता है।" (कमालुद्दीन व तमामुन नेअमत, भाग 1, पेज 317)

3- इमाम महदी (अ) के फ़रज के लिए दुआ
इस्लामी संस्कृति में दुआ और प्रार्थना का उच्च स्थान है। दुआ का एक उदाहरण सभी मनुष्यों की परेशानियों को दूर करना हो सकता है। शिया दृष्टिकोण में, यह महत्वपूर्ण कार्य तभी संभव होगा जब अंतिम इलाही जख़ारी ग़ैबत के पर्दे से बाहर आएगा और अपने नूर से दुनिया को रोशन करेगा। इसलिए कुछ रिवायतो में फ़रज और राहत के लिए दुआ करने की सिफारिश की गई है।

हाँ, जो व्यक्ति अपने मालिक के आने की प्रतीक्षा में जी रहा है, वह अल्लाह से उनके मामले की जल्दी और फ़रज की मांग करेगा; विशेष रूप से तब जब वह जानता है कि उनके फ़रज और ज़ुहूर होने से मानव समाज के मार्गदर्शन, विकास और पूर्णता के लिए पूरी तरह से अनुकूल वातावरण तैयार होगा। एक रिवयत के अनुसार, खुद आनहज़रत ने अपनी तौक़ीअ में फ़रमाया:

وَاَکثِرُوا الدُّعاء بِتَعجیلِ الفَرَجِ व अकसेरुद दुआ ए बेतअजीलिल फ़रजे
फ़र्ज की जल्दी के लिए अधिक दुआ करो। (कमालुद्दीन व तमामुन नेअमत, भाग 2, पेज 483)

मरहूम आयतुल्लाह अली पहलवानी तेहरानी (1926-2004 ईस्वी), जिन्हें अली सआदतपुर के नाम से जाना जाता है, शिया आरिफ थे जिन्होंने आयतुल्लाह सय्यद मुहम्मद हुसैन तबातबाई (तफ़्सीर अल-मीज़ान के लेखक) के पास सैर व सुलूक के चरणों को पूरा किया था। उन्होंने इस संबंध में कहा:

"निश्चित रूप से हर कोई जानता है कि इमाम की दुआ और अनुरोध के लिए सिफारिश का उद्देश्य केवल शब्दों को बोलना और जीभ को हिलाना नहीं है; हालांकि दुआ पढ़ने का भी एक विशेष सवाब है; बल्कि उद्देश्य इस दुआ के अर्थ और अवधारणा के प्रति निरंतर हृदय से ध्यान देना है और इस बात पर ध्यान देना है कि ग़ैबत की दौरान दीन का मामला, धार्मिकता और ग़ैबत तथा इमामत में सही विश्वास एक कठिन कार्य है जो केवल यकीन और दृढ़ता वाले व्यक्ति से ही संभव है।" (ज़ुहूर ए नूर, पेज 103)

4-हमेशा तत्परता
ग़ैबत के दौरान सबसे महत्वपूर्ण कर्तव्यों में से एक निरंतर और वास्तविक तत्परता है। इस विषय में बुहत सी रिवायते हैं।

इमाम बाक़िर (अ) ने (اصْبِرُوا وَ صابِرُوا وَ رابِطُوا; इस्बेरू व साबेरू व राबेतू धैर्य रखो और दुश्मनों के खिलाफ भी दृढ़ रहो और अपनी सीमाओं की रखवाली करो।) आयत के अंतर्गत फ़रमाते हैं:

اصْبِرُوا عَلَی أَدَاءِ الْفَرَائِضِ وَ صَابِرُوا عَدُوَّکُمْ وَ رَابِطُوا إِمَامَکُمْ المنتظر इस्बेरू अला अदाइल फ़राइज़े व साबेरू अदुव्वेकुम व राबेतू इमामकुम अल मुंतज़र
वाजिब कार्यों के निर्वहन पर धैर्य रखो, अपने दुश्मन के खिलाफ धैर्य रखो और अपने प्रतीक्षित इमाम के लिए सहायता के लिए हमेशा तैयार रहो। (नौमानी, अल ग़ैबा, पेज 199)

कुछ लोगों की धारणा के विपरीत, जो «राबेतू» का अर्थ उस हुजूर से संपर्क स्थापित करना और मिलना मानते हैं, यह शब्द संघर्ष के लिए तैयार रहने का अर्थ है। (लेसानुल अरब, भाग 7, पेज 303, मजमउल बहरैन, भाग 4, पेज 248)

5- आन हज़रत के नाम और याद का सम्मान

इस दौर में शिया के लिए इमाम महदी (अ) के प्रति उनके नाम और याद का सम्मान करना उनके कर्तव्यों में से एक है। यह सम्मान कई रूप ले सकता है। दुआ और मुनाजात की बैठकों का आयोजन से लेकर सांस्कृतिक और प्रचारात्मक कार्यों तक, चर्चा और वार्तालाप के मंडलों के गठन से लेकर मौलिक और उपयोगी शोध तक, सभी उस हुजूर के नाम के सम्मान में योगदान दे सकते हैं।

6- विलायत के मक़ाम के साथ संबंध बनाए रखना
इमाम जमान (अ) के साथ हृदय के संबंध को बनाए रखना और मजबूत करना तथा निरंतर वचन और प्रतिज्ञा को नवीनीकृत करना, ग़ैबत के दौर में हर इंतेज़ार करने वाले शिया के लिए एक अन्य महत्वपूर्ण कर्तव्य है।

इमाम बाक़िर (अ) विलायत के काम में दृढ़ रहने वालों के बारे में फ़रमाते हैं:

یَأْتِی عَلَی اَلنَّاسِ زَمَانٌ یَغِیبُ عَنْهُمْ إِمَامُهُمْ فَیَا طُوبَی لِلثَّابِتِینَ عَلَی أَمْرِنَا فِی ذَلِکَ اَلزَّمَانِ إِنَّ أَدْنَی مَا یَکُونُ لَهُمْ مِنَ اَلثَّوَابِ أَنْ یُنَادِیَهُمُ اَلْبَارِئُ جَلَّ جَلاَلُهُ فَیَقُولَ عِبَادِی وَ إِمَائِی آمَنْتُمْ بِسِرِّی وَ صَدَّقْتُمْ بِغَیْبِی فَأَبْشِرُوا بِحُسْنِ اَلثَّوَابِ مِنِّی فَأَنْتُمْ عِبَادِی وَ إِمَائِی حَقّاً مِنْکُمْ أَتَقَبَّلُ وَ عَنْکُمْ أَعْفُو وَ لَکُمْ أَغْفِرُ وَ بِکُمْ أَسْقِی عِبَادِیَ اَلْغَیْثَ وَ أَدْفَعُ عَنْهُمُ اَلْبَلاَءَ وَ لَوْلاَکُمْ لَأَنْزَلْتُ عَلَیْهِمْ عَذَابِی  याति अलन नासे ज़मानुन यग़ीबो अंहुम इमामोहुम फ़या तूबा लिस साबेतीना अला अम्रेना फ़ी ज़ालेकज़ ज़माने इन्ना अद्ना मा यकूनो लहुम मेनस सवाबे अय युनादेयहोमुल बारेओ जल्ला जलालोहू फ़यक़ूला ऐबादी व इमाई आमंतुम बेसिर्रे व सद्दक़तुम बेग़ैबी फ़अब्शेरू बेहुस्निस सवाबे मिन्नी फ़अंतुम एबादी व इमाई हक़्क़न मिंकुम अतक़ब्बलो व अंक़ुम आअफ़ू व लकुम अग़फ़ेरू व बेकुम अस्क़ी ऐबादयल ग़ैयसे व अदफ़ओ अंहोमुल बलाआ व लोलाकुम लअंज़लतो अलैहिम अज़ाबी
लोगों पर एक समय ऐसा आएगा जब उनका इमाम उनसे ग़ायब हो जाएगा। उन लोगों के लिए खुशी है जो उस समय हमारे आदेश पर दृढ़ रहेंगे! उनके लिए इनाम का न्यूनतम स्तर यह होगा कि निर्माता, जिसकी महिमा महान है, उन्हें पुकारेगा और कहेगा: 'मेरे बंदे और मेरी कनीज़ो! तुमने मेरे गुप्त तत्व में विश्वास किया और मेरे ग़ैब में सच्चाई मानी; तो मेरे पास से अच्छे इनाम की खुशखबरी सुन लो। तुम मेरे वास्तविक बंदे और कनीज़ हो। मैं तुम्हारे कार्य स्वीकार करता हूँ, तुम्हारे लिए क्षमा करता हूँ । तुम्हारे कारण मैं अपने बंदों पर वर्षा बरसाता हूँ और उनसे मुसीबत को दूर करता हूँ। और अगर तुम नहीं होते तो मैं उन पर अपना अज़ाब उतार देता। (कमालुद्दीन व तमामुन नेअमत, भाग 1, पेज 330)

और ...

श्रृंखला जारी है ---

इक़्तेबास : "दर्स नामा महदवियत"  नामक पुस्तक से से मामूली परिवर्तन के साथ लिया गया हैलेखकखुदामुराद सुलैमियान

 

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