आज रमज़ान की १९ तारीख़ है। वही तारीख़ जब वर्ष ४० हिजरी क़मरी में सुबह की नमाज़ पढ़ते समय ईश्वर के महान साहसी एवं न्यायी दास के सिर पर मानव समाज के अत्यंत तुच्छ व्यक्ति की द्वेषपूर्ण तलवार ने वार किया। उस रात के बारे में इतिहास में आया है कि उस निर्धारित रात में सदगुणों के सरदार थोड़े-थोड़े अंतराल पर अपने कमरे से बाहर निकलते और आसमान को देखते थे। उस रात उन्हें पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा (स) का वह कथन बार बार याद आ रहा था जिसे उन्होंने पवित्र रमज़ान के महीने में उनसे कहा था हे अली, रमज़ान के महीने में तुम्हारे साथ एक अतयंत दुखद घटना घटेगी। मैं देख रहा हूं कि तुम नमाज़ की स्थिति में हो और लोगों में से सबसे दुष्ट व्यक्ति अपनी तलवार से तुम्हारे सिर पर वार करके तुम्हारी दाढ़ी को तुम्हारे सिर के ख़ून से रंग रहा है। उस रात कभी तो हज़रत अली अलैहिस्सलाम ईश्वर का गुणगान करते और कभी वे पवित्र क़ुरआन के सूरए यासीन को पढ़ते। उस रात हज़रत अली अलैहिस्सलाम की उपासना अन्य रातों की तुलना में बहुत भिन्न थी। इस रात वे अपनी उपासना में इस वाक्य का प्रयोग बारबार कर रहे थे हे ईश्वर! मृत्यु को मेरे लिए शुभ बना दे।
अंततः सत्य के खोजियों का मार्गदर्शक सुबह की नमाज़ पढ़ने के लिए तैयार हुआ। अपने घर से तेज़ चलते हुए मस्जिद के लिए निकला। मस्जिद में प्रवेष किया और रात के अंधेरे में नमाज़ पढ़ना आरंभ की। फिर उन्होंने मस्जिद की छत पर जाकर सुबह की अज़ान कही। इस अज़ान में विशेष प्रकार का वैभव और आकर्षण था। अज़ान देने के बाद हज़रत अली अलैहिस्सलाम सुबह की नमाज़ पढ़ने के लिए खड़े हुए। उनकी यह नमाज़, अन्य नमाज़ों से कुछ अलग थी। निर्धारित समय आ पहुंचा था। अपने काल का अत्यंत दुष्ट व्यक्ति इब्ने मुल्जिम मुरादी, हज़रत अली अलैहिस्सलाम के निकट आया और उसने ज़हर में बुझी हुई तलवार से हज़रत अली के सिर पर वार किया। एसा वार जो सिर से माथे तक जा पहुंचा। यह वह वार था जिसने लोगों को हज़रत अली जैसे महान व्यक्ति से वंचित कर दिया और मानवता को दुख के अथाह सारग में डिबो दिया। सिर पर तलवार के वार से अली ख़ून मे लथपथ हो गए और उन्होंने संसार से स्वतंत्रता के स्वाद का आभास किया और ईश्वर से मिलन की बेला निकट आ गई। उन्हें उन दुखों से मुक्ति प्राप्त हो गई जिन्हें अज्ञानियों और धूर्त लोगों ने उन्हें दिया था। जैसे ही हज़रत अली के सिर पर ज़हर से बुझी तलवार से वार किया गया, हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने आकाश की ओर देखते हुए कहा कि काबे के रब की सौगंध, मैं सफल हो गया। तीन दिनों तक अत्यंत पीड़ादायक अवस्था में रहने के बाद २१ रमज़ान ४० हिजरी क़मरी को न्यायप्रेमियों का सरदार इस दुनिया से विदा हो गया। इस रात के बाद किसी अनाथ ने आशान्वित करने वाली उनके पैरों की आहट नहीं सुनी जो रात के अंधेरे में उन्हें खाद्य सामग्री आने का संदेश देती थी। खजूर के बाग़ों को भी फिर कभी उनके अस्तित्व की सुगंन्ध न मिल सकी।
प्रतिदिन की भांति आज भी हम इमाम सज्जाद की दुआ मकारिमुल अख़लाक़ का एक भाग प्रस्तुत करने जा रहे हैं। इस दुआ में इमाम ज़ैनुल आबेदीन कहते हैं कि हे ईश्वर! शैतान जिन कल्पनाओं, भ्रांतियों और द्वेष को मेरे मन में डालता है उसे तू अपनी कृपा से परिवर्तित कर दे और उसके स्थान पर अपनी महानता की याद, अपनी शक्ति में चिंतन-मनन करने तथा अपने शत्रु का विनाश करने की योजनाबंदी को रख दे।
दुआ के इस भाग में इमाम सज्जाद अलैहिस्सलाम ने शैतान की ओर से मन में डाली जाने वाली बातों को उठाया है। मनुष्य का हृदय, ईश्वरीय और शैतानी दोनों प्रकार की बातों का केन्द हो सकता है। वास्तव में हर वह बात जो ईश्वर की स्वीकृति और मनुष्य की परिपूर्णता का कारण बने वह ईश्वरीय सदेंश है। इसके विपरीत हर वह बात जो ईश्वर को पसंद न हो और मानव के पतन का मार्ग प्रशस्त करती हो वह शैतानी संदेश है। अपनी इस दुआ में इमाम सज्जाद ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि हे ईश्वर! मनुष्य के मन में जो भी बातें शैतान डालता है तू उनको परिवर्तित कर दे।
अभिलाषा या आशा वह अनुकंपा है जिसे ईश्वर ने मनुष्य को प्रदान किया है। आशा या अभिलाषा, संसार के विकास और इसकी गतिविधियों का मूल कारक है। इस बारे में पैग़म्बरे इस्लाम कहते हैं कि अभिलाषा, मेरी उम्मत के लिए एक अनुकंपा है और यदि अभिलाषा न होती तो कोई भी मां, अपने बच्चे को दूध न पिलाती और न ही कोई बाग़बान कोई पेड़ लगाता। वह अभिलाषा या कामना जिसे, इस्लाम के महापुरूषों ने अपने राष्ट्र के लिए कृपा बताया है वह उचित और बुद्धिमानीपूर्ण अभिलाषा है। यह वह अभिलाषा है जिसमें यथार्थवाद पाया जाता है तथा यह मनुष्यों के भौतिक और आध्यात्मिक कल्याण का स्रोत भी है। किंतु इसके विपरीत वे निराधार इच्छाएं और अभिलाषाएं, जो आयु के नष्ट होने का कारण हों तथा मानव की परिपूर्णता के मार्ग में बाधा बने वे न केवल यह कि ईश्वरीय विभूति नहीं हैं बल्कि इमाम सज्जाद अलैहिस्सलाम के कथनानुसार वह शैतानी अभिलाषाए हैं। खेद की बात यह है कि बहुत से लोग पूरी न होने वाली इन इच्छाओं और अभिलाषाओं का शिकार हो जाते हैं। यह लोग अपना जीवन पूरी न होने वाली इन इच्छाओं की प्राप्ति में लगा देते हैं। कभी-कभी एसा देखने में आता है कि एक छात्र, अपनी पाठ्य पुस्तक को, जिसे उसे अवश्य पढ़ना चाहिए, किनारे डाल देता है और किसी वरिष्ठ पद पर पहुंचने की कल्पना की उड़ान भरने लगता है। एसे में वह स्वयं को किसी उच्च पद पर विराजमान पाता है। इस प्रकार की अवास्तविक कल्पनाएं लोगों के शैतान के चुंगुल में फंसने का कारण बनती हैं। यही कारण है कि इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम, ईश्वर से कहते हैं कि ईश्वर की महानता की याद को शैतानी अभिलाषाओं के स्थान पर रख दे। इमाम जाफ़रे सादिक़ अलैहिस्सलाम कहते हैं कि ईश्वर की ओर से अनिवार्य की गई बातों में सबसे कठिन बात यह है कि अधिक से अधिक ईश्वर की याद में रहें। इसके पश्चात वे कहते हैं कि ईश्वर की याद से तात्पर्य केवल सुब्हानल्लाह और अलहम्दो लिल्लाह आदि कहना नहीं है यद्यपि यह भी ईश्वर का गुणगान है बल्कि, इससे तात्पर्य, हराम और हलाल अवसरों पर ईश्वर को याद रखना है अर्थात यदि ईश्वर के आज्ञापालन का अवसर है तो उसका आज्ञापालन किया जाए। और यदि पापों से बचने का अवसर हो तो पापों से बचा जाए।
पवित्र रमज़ान मोमिनों के धैर्य का और पवित्र लोगों को सफलता की शुभ सूचना देने का महीना है। यह महीना ईश्वर की कृपा के महासागर से लाभान्वित होने का भी महीना है। हम आशा करते हैं कि इस पवित्र महीने के बचे हुए दिनों में ईश्वर के आतिथ्य के योग्य अतिथि बन सकें। यहां पर हम हज़रत अली अलैहिस्सलाम की वसीयत का एक भाग प्रस्तुत कर रहे हैं।
इमाम अली अलैहिस्सलाम अपने पुत्र को वसीयत करते हुए कहते हैं कि वह अच्छाई, अच्छाई नहीं है जो केवल बुराई से ही प्राप्त हो। इस बात से बचते रहो कि लालच की सवारी तुम्हें तीव्र गति से अपने साथ ले जाए और विनाश के दर्रे में गिरा दे।
हज़रत अली अलैहिस्सलाम का यह वक्तव्य इस विषय की ओर संकेत करता है कि कुछ लोग अपना लक्ष्य प्राप्त करने के लिए हर प्रकार का कार्य करने को तैयार रहते हैं जबकि इस्लाम का यह आदेश है कि अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए केवल वैध मार्ग ही अपनाया जाए। दूसरे शब्दों में, माध्यम को लक्ष्य के अनुरूप होना चाहिए। उस चीज़ का क्या लाभ जो बुरे रास्ते से प्राप्त की गई हो। इसी संदर्भ में इमाम अली अलैहिस्सलाम का एक अन्य कथन है कि वह नेकी और भलाई/ भलाई नहीं है जो नरक का कारण बने। अपनी वसीयत को आगे बढ़ाते हुए हज़रत अली अलैहिस्सलाम अपने पुत्र को संबोधित करते हुए कहते हैं कि इस बात से बचते रहो कि लालच की सवारी तुमको तीव्र गति से अपने साथ ले जाए और विनाश की घाटी में ढकेल दे।
हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने यहां पर लालच को अनियंत्रित सवारी की उपमा दी है कि यदि मनुष्य उसपर सवार हो तो फिर उसका नियंत्रण छिन जाता है और वह उसे विनाश की ओर ले जाती है। यहां पर विनाश की घाटी से इस वास्तविकता की ओर संकेत किया गया है कि मनुष्य उस ओर अपनी लालच की प्यास बुझाने के लिए जाता है किंतु यदि लालच की सवारी से उस ओर कोई जाए तो न केवल यह कि उसकी प्यास नहीं बुझती बल्कि वह तबाह हो जाता है क्योंकि वहां पर पानी नहीं होता वहां तो तबाही होती है।
इस बात को आपने भी अपने जीवन में देखा होगा और इतिहास भी इस वास्तविकता का साक्षी है कि लालची लोगों को अपने जीवन में विफलताएं हाथ लगती हैं। इसका मुख्य कारण यह है कि लालच, मनुष्य की आंखों और कानों को बंद कर देती है तथा उसको इस बात की अनुमति नहीं देती है कि वह अच्छे और बुरे मार्ग को समझ सके। यह कहा जा सकत है कि सामान्यतः वे लोग जो व्यापार में समस्याओं में घिर जाते हैं और दीवालिया हो जाते हैं, उसका मुख्य कारण उनकी लालच होती है। इसी संदर्भ में इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम का एक कथन बेहारूल अनवार में है। वे कहते हैं कि लालच, शैतान की शराब है जिसे वह अपने विशेष लोगों को पिलाता है। उसे पीकर जो मस्त हो जाता है वह ईश्वर के प्रकोप का पात्र बनता है। लालच के बारे में पैग़म्बरे इस्लाम का एक कथन है कि लालच, दूरदर्शिता और तत्वदर्शिता को विद्वानों तक के हृद्यों से दूर कर देती है।