मालिके अशतर के नाम हज़रत अली का ख़त

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मालिके अशतर के नाम हज़रत अली का ख़त

जब पैगम़्बरे इस्लाम के उत्तराधिकारी और दुनिया के शियों के पहले इमाम हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने मालिके अशतर को मिस्र का शासन सौंपा तो उन्हें एक पत्र लिखा जो शासन शैली का अहदनामा है। इस ख़त में इस्लामी हुकूमत, इस्लामी शासक, नागरिकों के अधिकारों और सत्ता व नागरिकों के संबंध के बारे में बुनियादी उसूल और बिंदु बयान किए गए हैं।

हज़रत अली अलैहिस्सलाम की ज़िंदगी पर एक संक्षेप नज़र

हज़रत अली (सन 23 हिजरत पूर्व- सन 40 हिजरी) शियों के पहले इमाम, पैग़म्बर के सहाबी, पैग़म्बर की हदीसों के रावी, इसी तरह पैग़म्बर के चचेरे भाई और उनके दामाद थे। वो क़ुरआन और वहि के कातिब भी थे। हज़रत अली अहले सुन्नत अक़ीदे के अनुसार चार ख़लीफ़ाओं में चौथे ख़लीफ़ा हैं। शिया इतिहासकारों और बहुत से सुन्नी धर्मगुरुओं के अनुसार हज़रत अली अलैहिस्सलाम का जन्म काबे के भीतर हुआ। पैग़म्बरे इस्लाम पर ईमान लाने वाले वह पहले शख़्स थे।

शियों के दृष्टिकोण से अल्लाह के फ़रमान के मुताबिक़ और पैग़म्बरे इस्लाम के बिल्कुल स्पष्ट एलान के अनुसार वो पैग़म्बर के बाद पहले ख़लीफ़ा हैं। क़ुरआन की कुछ आयतें उन्हें हर प्रकार के गुनाह और बुराइयों से पाक व पाकीज़ा और मासूम साबित करती हैं।

शिया किताबों और कुछ सुन्नी किताबों के अनुसार लगभग 300 आयतें क़ुरआन में ऐसी हैं जो हज़रत अली अलैहिस्सलाम की प्रशंसा में नाज़िल हुईं। वो हज़रत फ़ातेमा ज़हरा के पति और शियों के बाक़ी 11 इमामों के पिता और दादा हैं।

हज़रत अली अलैहिस्सलाम 19 रमज़ान 40 हिजरी को मस्जिदे कूफ़ा में ख़वारिज कही जाने वाली चरमपंथी विचारधारा से तअल्लुक़ रखने ववाले एक व्यक्ति के हमले में घायल हुए और 21 रमज़ान को शहीद हो गए।

नहजुल बलाग़ा

नहजुल बलाग़ा हज़रत अली अलैहिस्सलाम के ख़ुतबों, पत्रों और हिकमत से भरी बातों का संग्रह है जिसे चौथी हिजरी क़मरी के आख़िर में महान धर्मगुरू सैयद रज़ी ने एकत्रित किया। यह किताब साहित्यिक महानताओं और अर्थों की गहराई के कारण क़ुरआन का भाई कही जाती है।

हज़रत अली अलैहिस्सलाम के बहुत मशहूर पत्रों में से एक वह पत्र है जो हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने मिस्र में अपने पसंदीदा गवर्नर मालिके अशतर नख़ई को लिखा।

यह एक तरह का अहदनामा है जिसका हर शब्द इल्म और मारेफ़त का ख़ज़ाना है, ख़ास तौर पर न्यायप्रेमी राजनेताओं और उन लोगों के लिए जो किसी भी क्षेत्र में कोई ज़िम्मेदारी संभाल रहे हैं।

हम इस पत्र के कुछ हिस्सों को यहां तीन भागों में पेश कर रहे हैं,

पहला हिस्साः

शासकों को हज़रत अली अलैहिस्सलाम की कुछ नसीहतें:

  1. इस्लामी शासक आम लोगों से हमदर्दी, प्रेम और कृपा के साथ पेश आए ख़ूंख़ार दरिंदों की तरह न हो कि लोगों खा जाना चाहिए।
  2. जहां मुमकिन हो लोगों की ग़लतियों को माफ़ और नज़रअंदाज़ करे क्योंकि आम लोगों से ग़लती की संभावना रहती है, शासक को चाहिए कि उन्हें माफ़ कर दे।
  3. शासक को चाहिए कि लोगों के अंदर से द्वेष और कुठा को दूर करे, लोगों के बारे में अच्छी सोच रखे क्योंकि अच्छी सोच लंबी कठिनाइयों को दूर कर देती है।
  4. इस्लामी शासक ख़ुद को लोगों की कमियों की तलाश में न रहे और इस इस आदत के लोगों को अपने से दूर रखे क्योंकि लोगों में कमियां होती हैं, शासन की ज़िम्मेदारी होती है कि उन्हें ढांके।
  5. शासक चुग़लख़ोर इंसान की बात की पुष्टि न करे चाहे वह भलाई ही क्यों न करना चाहता हो।
  6. इस्लामी शासक अल्लाह से किए गए वादे में तभी कामयाब हो सकता है जब वह अल्लाह से मदद मांगे और ख़ुद को हक़ का सम्मान करने के लए तैयार करे।
  7. शासक किसी को माफ़ करने के बाद पछताए नहीं और किसी को सज़ा देने के बाद ख़ुश न हो।
  8. शासक अपने दिन रात का बेहतरीन भाग अल्लाह से बातें करने के लिए रखे और ख़ुलूस की बुलंदी पर पहुंचने के लिए वाजिब कामों और सारी इलाही ज़िम्मेदारियों को बिना किसी कोर कसर के पूरा करे।
  9. शासक अपन वादों पर क़ायम रहे और उनसे पीछे न हटे।
  10. शासक अपनी बदगुमानी, कठोरता, रोब और ज़बान व हाथ के हमले को नियंत्रण में रखे और जान बूझकर किसी की हत्या से परहेज़ करे।

दूसरा भागः

दूसरा भाग हज़रत अली अलैहिस्सलाम की सामाजिक नसीहतों के बारे में है जो उन्होंने शासकों को की हैं:

  1. इस्लामी शासक के निकट सबसे पसंदीदा काम वह हो जो हक़ बात को सबसे स्पष्ट रूप में पहंचाए, न्याय के मामले में सबसे ज़्यादा व्यापक हो और समाज के सबसे ज़्यादा लोगों को संतुष्ट करने वाला हो।
  2. इस्लामी शासक के निकट सबसे ज़्यादा तरजीह उस व्यक्ति को हासिल हो जो हक़ को सबसे ज़्यादा कड़वे हालात में दूसरों से ज़्यादा स्पष्ट शब्दों में बयान करे।
  3. समाज के लोगों की बुराइयों और गुनाहों में जो पर्दे में छिपे हैं और इस्लामी हाकिम के इल्म में नहीं हैं उसके बारे में ख़ुद को बेतवज्जो ज़ाहिर करे।
  4. शासकों का फ़र्ज़ है कि जिस दिन उन्हें लोगों की ज़रूरतों के बारे में पता चले उसी दिन उन्हें पूरा करे। हर दिन का काम उसी दिन अंजाम दे क्योंकि हर दिन का अपना एक मौक़ा होता है।
  5. शासक ख़ुद को आम लोगों से दूर न रखे क्योंकि समाज के लोगों से शासक के दूर रहने का नतीजा यह है कि वह मामलों और मसलों से बेख़बर हो जाता है।
  6. शासक का फ़र्ज़ है कि अपने रिश्तेदारों को दूसरों पर तरजीह देने से कड़ाई से परहेज़ करे।
  7. शासक समाज के लोगों के साथ जो अच्छाइयां कर रहा है उसका एहसान न जताए और जो काम समाज की भलाई वाला हो उसे मद्देनज़र रखे।

तीसरा हिस्सा

शासकों को हज़रत अली अलैहिस्सलाम की कुछ राजनैतिक नसीहतें:

  1. शासक कंजूस, बुज़दिल, और लालची लोगों से मशिवरा करने से परहेज़ करे क्योंकि, कंजूसी, डर और लालच वह रजहान हैं जो आपस में मिल जाने के बाद अल्लाह के बारे में बदगुमानी को जन्म देते हैं।
  2. नेक और बुरे लोग शासक के निकट एक समान न हों क्योंकि इसका नतीजा यह होगा कि नेक इंसान को नेक कामों के लिए अपमान झेलना पड़ेगा और बुरे कर्म वाले को बुराई करने का और हौसला मिलेगा।
  3. कोई भी शासक उन परम्पराओं को न तोड़े जिन पर समाज के ज्ञानी लोगों ने अमल किया है और जिनसे समाज के लोगों के बीच एक तार्किक समन्वय पैदा हुआ है। ऐसा कोई कायदा लागू न करे जो लोगों की अच्छी पराम्पराओं को ख़त्म कर दे।
  4. अगर लोगों की तरफ़ से अन्याय का आरोप लगाया जा रहा है तो शासक अपने ऊपर से इस तरह के आरोप हटाए। अगर समाज के लोग शासक के बारे में सोचें कि वह ज़ुल्म कर रहा है तो अपनी उसे अमल और रवैए के बारे में सफ़ाई पेश करे जिसकी वजह से लोगों में बदगुमानी पैदा हुई है और लोगों की बदगुमानी दूर करे।
  5. शासक किसी भी मामले में उसका सही समय आने से पहले जल्दबाज़ी न दिखाए।
  6. शासक के लिए अगर कोई चीज़ स्पष्ट नहीं है और उसमें भ्रांति है तो भ्रांति दूर होने से पहले तक उसे हरगिज़ स्वीकार न करे।
  7. उन मामलों में जिनमें लोग एक समान होते हैं ख़ुद को दूसरों से बेहतर न समझे। यानी शासक जीवन के अधिकारी, मर्यादा के अधिकार और आज़ादी आदि के अधिकार में ख़ुद को दूसरो से श्रेष्ट न समझे।
  8. शासक उन मामलों में जिसकी ज़िम्मेदारी उस पर है और लोगों की निगाहें उस पर लगी हुई हैं हरगिज़ कोई ग़फ़लत न बरते और यह ज़ाहिर न करे कि वह समझ नहीं पा रहा है।

 

 

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