आज इमाम अली इब्ने मूसर्रज़ा अलैहिस्सलाम का शुभ जन्म दिवस है। वह इमाम जो प्रकाशमई सूर्य की भांति अपना प्रकाश बिखेरता है। पैग़म्बरे इस्लाम सल्लाहो अलैहे वआलेही वसल्लम का कथन है कि जो भी यह चाहता है कि प्रलय के दिन हंसते हुए तथा प्रसन्नचित मुद्रा में ईश्वर की सेवा में उपस्थित हो उसे चाहिए कि अली इब्ने मूसर्रज़ा से लौ लगाए।
इस समय पवित्र नगर मशहद में इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम का मक़बरा प्रकाश में डूबा हुआ है। हर वह व्यक्ति जो लंबी यात्रा करके इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम के रौज़े में प्रविष्ट होता है, वहां पर विशेष शांति का आभास करता है। आइए हम भी इस महान इमाम की पहचान और उनकी महानता के अथाह सागर से अपने लिए कुछ मोती चुन ले। आज का दिन आप सब को मुबारक हो।
जिस समय तीर्थयात्रियों का जनसमूह उनके रौज़े से बाहर आता है तो उसके मुख पर उपस्थित हर्ष और संतोष का आभास सरलता से किया जा सकता है। मैं सोच में डूबा हुआ था और धीरे-धीरे इमाम रज़ा के मक़बरे की ओर आगे बढ़ रहा था। सहसा मैंने अपने सामने एक महिला को देखा। ऐसा प्रतीत हो रहा था कि वह ग़ैर मुस्लिम है जो इमाम के मक़बरे में प्रविष्ट होना चाहती है। मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ। मैंने बड़े ही सम्मान से उससे पूछा, क्या मैं आपकी कोई सेवा कर सकता हूं? उसने मुस्कुराते हुए बड़ी विनम्रता से कहा, मैं मुसलमान नहीं, इसाई हूं। मैं इमाम रज़ा का आभार व्यक्त करने आई हूं।
उसने जब आश्चर्य से भरी मेरी आखों को देखा तो कहा, मेरा एक अपंग बेटा था। उसके उपचार के लिए मैंने हर संभव प्रयास किये किंतु उसे किसी भी दवा ने लाभ नहीं पहुंचाया। मेरा बेटा स्कूल जाया करता था। उसके मुसलमान मित्रों ने कहा कि तुम्हारी माता उपचार के लिए तुम्हें मशहद में इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम के मक़बरे पर क्यों नहीं ले जातीं? मेरा बेटा घर आया और उसने मुझसे कहा कि आपने यह कहा है कि मेरे उपचार के लिए आप मुझे अनेक विशेषज्ञों के पास ले गईं। तो फिर यह इमाम रज़ा कौन हैं जो बीमारों की बीमारियां दूर कर देते हैं। मैने निराशा के साथ उससे कहा कि इमाम रज़ा तो मुसलमानों के मार्गदर्शक हैं जबकि हम इसाई हैं। किंतु मेरा पुत्र लगातार इसी बात पर बल दे रहा था। एक दिन वह रोते हुए अपने बिस्तार पर गया। आधी रात को उसकी आवाज़ से मैं जाग पड़ी। मेरा बेटा लगातार मुझको पुकार रहा था और कहता जा रहा था, मां आइए और देखिये कि इन महाशय ने मेरे पैरों को ठीक कर दिया है। वे स्वयं ही मेरे घर पर आए और उन्होंने मुझसे कहा कि अपनी मां से कह दो कि जो भी मेरे दरवाज़े पर आता है उसे हम निरुत्तर नहीं जाने देते। उस महिला की बात जब यहां पर पहुंची तो सहसा मेरी आखों से आंसू बहने लगे।
इमामत, मार्गदर्शन और विकास का स्रोत है। इमाम स्वंय ईश्वर की ओर से मार्गदर्शन प्राप्त होता है और उसे मानवजाति के मार्गदर्शन की सबसे अधिक चिंता हुआ करती है। इमाम वास्तव में मानव की महानता और उसके मूल अधिकारों के संरक्षक होते हैं। पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे वआलेही वसल्लम के परिजन, मोक्ष तथा कल्याण की ओर मानवजाति के पथप्रदर्शक और अंधकार तथा समस्याओं में आशा की किरण हैं। कल्याण की ओर गतिशीलता उन प्रभावों में से है जो इमाम तथा अच्छे मार्गदर्शक समाज पर छोड़ते हैं अतः हर वह समाज जो इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम जैसे मार्गदर्शकों की शिक्षाओं को ग्रहण करते हैं वे जड़ता और पिछड़ेपन का शिकार नहीं बनते।
वाशिगटन पोस्ट समाचारपत्र के एक टीकाकार ईरान के बारे में अपनी रिपोर्ट में लिखते हैं कि अमरीकी राष्ट्रपति बराक ओबामा के सत्तासीन होने के आरम्भिक सप्ताहों में उनके लिए सबसे बड़ी चुनौती अर्थात ईरान पर अध्धयन आरंभ किया। मैंने ईरान के विभिन्न क्षेत्रों की यात्राएं कीं और इस बात को समझने का प्रयास किया कि वर्तमान समय में ईरानी जनता के लिए कौन सी चीज़ सबसे महत्वपूर्ण है? मैंने जो बातें सुनीं उनमें अधिकांश इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम के बारे में थीं। इमाम रज़ा, अलैहिस्सलाम इस्लाम की सम्मानीय हस्तियों में से एक हैं जिनका रौज़ा मशहद में है।
शताब्दियों से लोग विभिन्न क्षेत्रों से उनके दर्शन के लिए मशहद जाते हैं। उस समय मैंने आभास किया कि हम पश्चिम में ईरान के परमाणु ईंधन की अधिवृद्धि जैसे विषय पर अपना ध्यान केन्द्रित किये हुए हैं, जो इस देश की शक्ति का प्रतीक है, जबकि इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम का मक़बरा इस गूढ़ विषय को दर्शाता है कि परमाणु विषय से अलग हटकर ईरान, एक महान आध्यात्मिक शक्ति का स्वामी है। मेरे गाइड ने मुझसे कहा कि प्रतिवर्ष एक करोड़ बीस लाख लोग पवित्र नगर मशहद की यात्रा करते हैं। इमाम रज़ा का अस्तित्व की बहुत अधिक अनुकंपाए हैं और यह ईरानी जनता के लिए गर्व का कारण है। उस समय मैने सोचा कि ईरान की वास्तविक शक्ति को प्रत्यक्ष रूप से इमाम रज़ा के रौज़े में देखा जा सकता है। वे लोगों के हृदयों और उनके विचारों पर राज करते हैं।
वर्ष १४८ हिजरी क़मरी में मदीना नगर में इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम का जन्म हुआ था। दूरदर्शिता, अत्यधिक ज्ञान, ईश्वर पर गहरी आस्था तथा लोगों का ध्यान आदि ऐसी विशेषताए हैं जो इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम को दूसरों से श्रेष्ठ करती हैं। इमाम रज़ा ने लगभग २० वर्षों तक मुसलमानों का नेतृत्व किया।
इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम की उपाधियों में से एक उपाधि कृपालु है। इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम के संबन्ध निर्धन-धनवान, ज्ञानी-अज्ञानी, मित्रों यहां तक कि अपने विरोधियों के साथ भी मैत्रीपूर्ण थे। इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम के एक साथी का कहना है कि जब कभी इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम दैनिक कार्यों से छुटटी पाते तो अपने परिवाजनो तथा निकटवर्तियों के प्रति प्रेम एवं स्नेह व्यक्त करते थे। वे जब भी खाना खाने बैठते तो छोटे-बड़ें सबको यहां तक कि नौकरों को भी खाने पर निमंत्रित करते। ऐसे काल में कि जब दासों और नौकरों का किसी भी प्रकार का कोई अधिकार नहीं हुआ करता था, इमाम रज़ा उनके साथ प्रेम और सदभावना के साथ व्यवहार किया करते थे। यह लोग इमाम रज़ा के घर में सम्मान पाते थे और उनसे शिष्टाचार तथा मानवता का पाठ सीखते थे। इमाम इन वंचित लोगों के साथ प्रेमपूर्ण व्यवहार के साथ ही कहा करते थे कि यदि किसी व्यक्ति के साथ इसके अतिरिक्त व्यवहार किया जाए तो इसाक अर्थ यह है कि उसपर अत्याचार किया गया है।
इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम के साथियों में से एक का कहना है कि मैं ख़ुरासान की यात्रा में इमाम रज़ा की सेवा में उपस्थित हुआ। एक दिन उन्होंने खाना मंगवाया। उन्होंने अपने सभी सेवकों को, जिनमें काले वर्ष वाले भी सम्मिलित थे, खाने के लिए निमंत्रित किया। मैंने उनसे कहा, मैं आप पर न्योछावर हो जाऊं, उचित यह होगा कि सेवक अन्य स्थान पर खाना खाएं। इसके उत्तर में उन्होंने कहा कि शांत रहो। सबका ईश्वर एक है। हम सबकी मां हव्वा और पिता आदम हैं। कल अर्थात प्रलय के दिन का पुरुस्कार और दण्ड, लोगों के कर्मों पर निर्भर है।
इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम के शिष्टाचार और उनकी शालीनता के संबन्ध में इब्राहीम इब्ने अब्बास कहते हैं कि ऐसा कभी नहीं हुआ कि उन्होंने वार्ता में किसी पर अत्याचार किया हो। जो भी उनसे वार्ता करता वे उनकी बात को नहीं काटते और इसका पूरा अवसर देते कि वह अपनी बात पूरी करे। वे शिष्टाचारिक गुणों से इतने सुसज्जित थे कि मैंने कभी नहीं देखा कि किसी अन्य की उपस्थिति में वे पैर फैलाकर या टेक लगाकर बैठे हों। मैंने कभी नहीं देखा कि उन्होंने अपने किसी भी सेवक के साथ कड़ाई का व्यवहार किया हो। उन्हें मैंने ऊंची आवाज़ में हंसते हुए नहीं देखा। वे सामान्यतः मुस्कुराते रहते थे।
आज विश्व के कोने-कोने से लोग बड़ी उत्सुक्ता के साथ ऐसे इमाम के दर्शन के लिए जा रहे हैं जिसके जीवन काल में, यदि कोई भी उनसे कोई चीज़ मांगता था तो उनके भीतर उस व्यक्ति के चेहरे की पीड़ाभाव को सहन करने की शक्ति नहीं होती थी। एक इतिहासकार कहते हैं कि एक बार मैं इमाम रज़ा की सेवा में था। लोग उनसे विभिन्न विषयों पर प्रश्न कर रहे थे। सहसा एक ख़ुरासान वासी वहां पर आया। उसने सलाम किया और कहा कि हज की यात्रा से वापसी पर मेरा पैसा और मेरी वस्तुएं समाप्त हो गईं। इमाम ने कहा, बैठ जाओ। धीरे-धीरे सब लोग चले गए। मैं तथा कुछ अन्य लोग ही बाक़ी बचे। इमाम ने कहा कि ख़ुरासानी व्यक्ति कहा है? वह व्यक्ति उठा और कहने लगा कि मैं यहां पर हूं। इमाम ने उसकी ओर देखे बिना ही उसे २०० दीनार दे दिये। किसी ने कहा कि यद्यपि सहायता की राशि बहुत थी किंतु आपने अपना मुख उसकी ओर क्यों नही किया? इमाम ने उत्तर दिया कि मैं उसके मुख पर दुख के लक्षण नहीं देखना चाहता था। इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम की शिष्टाचारिक विशेषताओं में इस प्रकार की बहुत सी घटनाएं देखने को मिलती हैं। निःसन्देह, प्रशिक्षण के इस सूक्ष्म बिंदु की पहचान उन नैतिक समस्याओं से बचने के लिए उचित मार्ग हो सकती है जिनमें हम वर्तमान समय में बुरी तरह से घिरे हुए हैं।
शियों के बीच इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम की आध्यात्मिक भूमिका की ओर संकेत करते हुए अमरीका के वर्जीनिया विश्वविद्यालय में धार्मिक अध्धयन के विशेषज्ञ प्रोफेसर अब्दुल अज़ीज़ साशादीना कहते हैं कि समस्त विश्व के शिया अपने आठवें इमाम को सुरक्षा सुनिश्चित करने वाला इमाम मानते हैं अर्थात ऐसा इमाम जो भय और समस्याओं के समय आवश्यक सुरक्षा सुनिश्चित करता है। इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम आज भी अपने अनुयाइयों के दुख और सुख में सहभागी हैं। लोग उनको इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की भांति ऐसे मार्गदर्शक के रूप में याद करते हैं जो लोगों का मार्गदर्शन मोक्ष के तट तक करती है। दूसरे शब्दों में इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम उन लोगों के लिए शांति एव आत्मविश्वास का स्रोत हैं जो ईश्वरीय मार्गदर्शन के इच्छुक हैं।
इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम के ज्ञान एवं उनकी आध्यात्मिक महानता ने अपने समय में इस्लामी जगत को प्रभावित किया था। यह प्रभाव इतना अधिक था कि उनके विरोधी भी उनकी प्रशंसा किया करते थे। एक इतिहासकार मसऊदी लिखते हैं कि वर्ष २०० हिजरी क़मरी में मामून ने अपने समस्त निकटवर्तियों को मर्व में एकत्रित किया और उनसे कहा कि मैंने मुसलमानों के वरिष्ठ लोगों के बीच बहुत खोजबीन की किंतु ख़िलाफ़त अर्थात मुस्लिम समाज के नेतृत्व के लिए मुझे अली इब्ने मुसर्रेज़ा से शालीन, योग्य और सच्चा कोई अन्य दिखाई नहीं दिया।
इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम का ज्ञान निर्मल जल के सोते की भांति था और विद्धान तथा वास्तविक्ता के खोजी लोग उससे लाभान्वित होते थे। अपने अथाह ज्ञान के बावजूद इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम, विभिन्न विचारधाराओं के प्रतिनिधियों और विभिन्न प्रकार के विचार रखने वालों के साथ ज्ञान संबधी शास्त्रार्थ में बड़ी ही शालीनता और सम्मान के साथ व्यवहार करते थे। वे उनके प्रत्येक प्रश्न का उत्तर देते और उनकी शंकाओं का समाधान करते थे। वे कभी भी ज्ञान-विज्ञान संबन्धी शास्त्रार्थ से पीछे नहीं हटते थे। वे शक्तिशाली तर्कों से अन्य लोगों को वास्तविक्ता की मिठास प्रदान करते और एकेश्वरवाद की विचारधारा की सफलता का प्रदर्शन करते थे। इन्ही शास्त्रार्थों के दौरान वास्तविक्ता प्रकट हुआ करती थी तथा इमाम रज़ा के तर्कों के सम्मुख ज्ञान के खोजी नतमस्तक हो जाया करते थे।
इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम के जीवनकाल की विशेषताओं में से एक विशेषता, अत्याचार तथा अन्याय के मुख्य स्रोत के साथ संघर्ष है। वे विभिन्न शैलियों के माध्यम से अब्बासी शासक की अत्याचारपूर्ण तथा धोखा देने वाली नीतियों का विरोध किया करते थे। इस्लामी जगत की जनता के बीच इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम के अभूतपूर्व प्रभाव के दृष्टिगत तत्कालीन अब्बासी शासक मामून बहुत ही भयभीत और चिन्तित रहा करता था। इसी कारण उसने इमाम रज़ा से अपने सत्ता केन्द्र मर्व नगर आने का अनुरोध किया। इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम ने अनिच्छा से यह निमंत्रण स्वीकार किया। मामून, जनता के बीच इमाम रज़ा के वैचारिक तथा सांस्कृति प्रभाव को कम करने तथा इमाम और जनता के बीच दूरी उत्पन्न करने के प्रयास में था। इसीलिए उसने अपने उत्तराधिकार का प्रस्ताव इमाम को दिया। वह अपने प्रस्ताव पर लगातार बल देता रहता था। इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम ने कुछ विशेष शर्तों के साथ उत्तराधिकार के विषय को स्वीकार किया। इमाम की शर्तों में से एक शर्त यह थी कि वे किसी भी स्थिति में सरकारी मामलों में हस्तक्षेप नहीं करेंगे। इमाम की इस शर्त के कारण मामून अपना राजनैतिक उद्देश्य प्राप्त करने में विफल रहा।
एक पश्चिमी लेखक कहते हैं कि दूसरे धर्मों को सहन करने के बारे में इस्लाम का इतिहास उदाहरणीय है। इस्लाम का उद्देश्य यह है कि वह मानव जाति की प्रत्येक पीढ़ी को सौभाग्य के नियम से अवगत करवाए। इस्लाम इस बात के प्रयास में है कि अपने मार्गदर्शकों की शिक्षाओं के परिप्रेक्ष्य में एक ऐसे मानव समाज का गठन करे जिसमें धार्मिक एवं नैतिक नियमों के मापदण्डों के पालन में सब एकसमान हों। वर्तमान समय में न्यायप्रिय और बुद्धिमान लोग विश्व को इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम जैसे मार्गदर्शकों का ऋणी मानते हैं जिन्होंने उच्च नैतिक विशेषताओं तथा आध्यात्मिक गुणों से मानवता को सौभाग्य व कल्याण का मार्ग दिखाया।