बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम
जिस दुनिया में हम ज़िन्दगी बसर कर रहे हैं वह जज़्ब व कशिश की दुनिया है। ताजिर, अपने सामान को इस तरह शक्ल व सूरत देने की कोशिश करते हैं कि वह दूसरों की नज़र को जज़्ब कर सके। सनअती मुल्कों में गाड़ियों के माडल में जो हर रोज़ तबदीलियाँ आती रहती हैं, उसकी वजह सिर्फ़ उनकी जज़्ज़ाबियत में इज़ाफ़ा करना है ताकि वह दूसरों के मुक़ाबेले ख़रीदारों की नजरों को अपनी तरफ़ ज़्यादा जज़्ब कर सके। बहर हाल तिजारत की सनअत में नफ़्सियाती मसाइल ने अपनी जगह अच्छी तरह बनाली है।
समाजी ज़िन्दगी में जो चीज़ तमाम इंसानों के पास होनी चाहिए और जिससे हर इंसान को फ़ायदा उठाना चाहिए वह खुश मिज़ाजी है। यानी इंसान का चेहरा खिला हो और उसके होंटों पर मुस्कुराहट हो। अख़लाक़, दीन और नफ़सियात की नज़र से यह एक ऐसी हक़ीक़त है जिससे इन्कार नही किया जा सकता।
आइने ज़िन्दगी नामी किताब के मुसन्निफ़ ने इंसानों की कामयाबी के जिन अवामिल को बयान करने की कोशिश की है उनमें से एक आमिल इंसान का खुश मिज़ाज होना भी है। मुखतलिफ़ मिज़ाजों के मुताले से यह बात मालूम होती है कि ख़ुश मिज़ाजी हर इंसान को पसंद है और यह सामने वाले इंसान पर असर अन्दाज़ होती है।
जो अफ़राद खुश मज़ाज होते हैं, वह समाजी ज़िन्दगी में दूसरों को मुक़ाबिल ज़्यादा कामयाब है।
ख़ुश मज़ाज अफ़राद के मुक़ाबेले में ऐसे लोग भी हैं जो हमेशा नाक भौं चढ़ाये रहते हैं और दूसरों से बहुत ही लापरवाई के साथ मिलते हैं। ऐसे मिज़ाज के अफ़राद अगर अपने काम में सच्चे हों तब भी लोग उनसे मिलना जुलना पसन्द नही करते और इसकी सबसे अहम वजह उनका बद मिज़ाज होना है।
इस्लाम की नज़र में खुश मिज़ाजी का मक़ाम
इस्लाम एक दीने अख़लाक़ व ज़िन्दगी है। इस्लाम वह दीन है जिसके पैगम्बर ने फ़रमाया कि मुझे इस लिए मबऊस किया गया ताकि मकारिमे अखलाक़ को पूरा करूँ। इस्लाम गोशा नशीनी का दीन नही है, बल्कि इंसानों को समाजी ज़िन्दगी की तालीम देने वाला दीन है। लिहाज़ा इस्लामी समाज का एक अख़लाक़ी क़ानून यह है कि समाजी ज़िन्दगी में हर इंसान की ज़िम्मेदारी है कि वह दूसरे के साथ खुश मिज़ाजी के साथ पेश आये और मुस्कुराते हुए दूसरों का इस्तक़बाल करे।
हज़रत अली अलैहिस्सलाम, मुत्तक़ीन के सिफ़ात बयान करते हुए फ़रमाते हैं कि मुत्तक़ी का रंज व ग़म उसके अन्दर छुपा होता है, लेकिन उसकी खुशी के आसार उसके चेहरे पर होते हैं।
بشره في وجهه و حزنه في قلبه
यानी उसकी ख़ुशियाँ उसके चेहरे पर और उसका ग़म उसके सीने में होता है।
हज़रत इमाम मुहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम से रिवायत है कि एक शख़्स ने पैग़म्बरे इस्लाम (स.) की ख़िदम में हाज़िर होकर अर्ज़ किया कि ऐ अल्लाह के नबी! मुझे कुछ नसीहत फ़रमाइये।
हज़रत ने जवाब दिया कि अपने भाईयों से खुश के साथ मुस्कुराते हुए मुलाक़ात करो।
عن ابي جعفر(ع) قال اتي رسول الله (ص) رجل فقال يا رسول الله اوصني فكان فيما اوصاه ان قال الق اخاك بوجه منبسط
नफ़्सियाती एतेबार से यह बात वाज़ेह है कि खुश मिज़ाजी दिलों को अपनी तरफ़ जज़्ब करती है। खुश मिज़ाज अफ़राद से इंसान मिलने का इश्तियाक़ रखते हैं। लिहाज़ा पैग़म्बरे इस्लाम (स.) ने उस इंसान को नसीहत में इसी हस्सास व दक़ीक़ नक्ते की तरफ़ इशारा किया और फ़रमाया कि हमेशा अपने भाईयों से खन्दा पेशानी के साथ मुलाक़ात करो।
हज़रत इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम से एक रिवायत इस तरह नक़्ल हुई है
قال ثلاث من اتي الله بواحدة منهن اوجب الله له الجنة الانفاق من اقتار والبشر لجميع العلم و الانصاف من نفسه
“तीन चीज़ें ऐसी हैं कि अगर कोई उनमें से किसी एक के साथ भी अल्लाह की बारगाह में पहुँचेगा तो अल्लाह उस पर जन्नत को वाजिब कर देगा।
पहली चीज़ यह है कि इंसान ग़ुरबत में भी अल्लाह की राह में ख़र्च करे। दूसरे यह कि तमाम इंसानों से खुश मिज़ाजी के साथ मिले और तीसरे यह कि वह इन्साफ़वर हो।”
इस रिवायत से यह बात सामने आती है कि इंसान सिर्फ़ एक मख़सूस गिरोह से ही खुशी ख़ुशी न मिले, बल्कि तमाम अफ़राद के साथ खुशी के साथ मुस्कुराते हुए मिले। यानी जो भी उससे मुलाक़ात करे उसका ख़ुश अख़लाक़ी के साथ मुस्कुरा कर इस्तक़बाल करे।
हज़रत इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम से यह रिवायत नक़्ल हुई है कि
عن ابي عبد الله (ع) قال قلت له ما حد الخلق قال تلين جناحك و تطيب كلامك و تلقي اخاك ببشر حسن
इमाम अलैहिस्सलाम का एक सहाबी कहता है कि मैंने हज़रत इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम से अर्ज़ किया कि ख़ुश अख़लाक़ी का क्या मेयार है ?
इमाम अलैहिस्सलाम ने जवाब दिया कि इनकेसारी से काम लो, अपनी ज़बान को शीरीं बनाओ और अपने भाईयों से खुशी के साथ मिलो।
पैग़म्बरे इस्लाम (स.) ने फ़रमाया कि
قال رسول الله (ص) يا بني عبد المطلب انكم لن تسعوا الناس باموالكم فالقوهم بطلاقة الوجه و حسن البشر
ऐ ! अब्दुल मुत्तलिब की औलाद तुम अपने माल के ज़रिये तमाम इंसानों को राहत नही पहुँचा सकते, लिहाज़ा तुम सबके साथ खिले हुए चाहरे और मुस्कुराहट के मुलाक़ात करो।
खन्दा पेशानी के साथ मिलने में जो एक अहम नुक्ता पोशीदा है वह यह है कि इससे दुशमनी और कीनः ख़त्म होते है और उसकी जगह मुहब्बत पैदा हो जाती है।
इसी लिए पैग़म्बरे इस्लाम (स.) ने फ़रमाया कि
حسن البشر يذهب بالسخيمة
यानी खुश मिज़ाजी कीने व दुशमनी को ख़त्म कर देती है।
इस बिना पर माँ बाप की एक अहम ज़िम्मेदारी यह है कि वह अपने बच्चों को खन्दा पेशानी के साथ मिलने जुलने का आदी बनायें।
ज़ाहिर है कि अगर बच्चे को बचपन से ही अहम व मुफ़ीद बातों की तालीम दी जायेगी तो धीरे धीरे उसे उन पर मलका हासिल हो जायेगा और वह उसकी शख़्सियत का जुज़ बन जायेंगी।
माँ बाप को चाहिए कि अपने बच्चों को इन अख़लाक़ी सिफ़ात की तालीम देकर उन्हें समाजी ज़िन्दगी के लिए तैयार करें।
हमें यह नही भूलना चाहिए कि इस सिलसिले में सबसे बेहतरीन तालीम ख़ुद माँ बाप का किरदार व रफ़्तार है, जो बच्चों के लिए नमूना बनता है। यानी माँ बाप को इस बात की कोशिश करनी चाहिए कि वह अपने घर में अमली तौर पर बच्चों को ख़न्दा पेशानी के साथ मिलने की तालीम दें।
इसमें कोई शक व शुब्हा नही है कि जब तक इंसान किसी चीज़ को अमली तौर पर ख़ारिज में नही देखता उसे अपनी ज़िन्दगी का जुज़ नही बनाता।