शहीद मुतह्ररी

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वर्तमान समय में एसे लोग बहुत ही कम होंगे जो शहीद मुर्तज़ा मुतह्हरी और उनकी मूल्यवान रचनाओं से अवगत न हों।

 

हालांकि पिछले तीन दशकों से वे हमारे बीच नहीं हैं किंतु उनकी रचनाओं के अध्धयन और उसकी समीक्षा से हम स्पष्ट रूप से उनकी उपस्थिति का आभास करते हैं। उस्ताद मुतह्हरी उच्च इस्लामी विचारधारा के स्वामी थे और समय से आगे चलते थे। इस समय उनकी बहुत सी रचनाओं का विश्व में प्रचलित बहुत सी भाषाओं में अनुवाद हो चुका है। विश्वस्त रिपोर्ट के अनुसार हालिया वर्षों में इसतंबूल में बहुत अधिक मांग के पश्चात शहीद मुतह्हरी की "हमास ए हुसैनी" अर्थात हुसैनी शौर्य नामक पुस्तक को पुनः प्रकाशित किया गया है। यह पुस्तक तीन भागों में है। इसके अतिरिकत चीन में "इंसान और ईमान", आर्मीनिया में "इस्लाम में शिक्षा एवं प्रशिक्षण" और तुर्कमनिस्तान में "वहय और नबूवत" नामक पुस्तकों का जनता ने अत्यधिक स्वागत किया है।

 

शहीद मुतह्हरी महान विचार और अपनी स्पष्ट लेखनी के साथ एकईश्वरीय धर्म की सुरक्षा के लिए उठ खड़े हुए और उन्होंने हृदयों से कुरितियों और बुराइयों को निकाल बाहर किया। वे दर्शनशास्त्र और बहुत सी इस्लामी शिक्षाओं के प्रचारक और इसी प्रकार महान समाज सुधारक तथा वर्तमान काल में एक मुस्लिम विचारक का प्रतीक थे। इस्लामी शासन की विचारधारा की नींव डालने वाले एक महान निर्माणकर्ता की उनको संज्ञा दी जा सकती है। इस महान विचारक ने जिन विषयों को प्रस्तुत किया वे इस्लामी जगत के लिए महत्वपूर्ण और मार्गदर्शक हैं।

हिज़बुल्लाह के महासचिव सैयद हसन नसरुल्लाह कहते हैं कि संभवतः वे प्रभावी लोग जिन्होंने मुझको और शिया जगत को अत्याधिक प्रभावित किया है दो लोग हैं प्रथम शहीद मुहम्मद बाक़िर सद्र और दूसरे शहीद मुर्तज़ा मुतह्हरी। इन दो महान व्यकतित्वों ने हमारे लिए एक क्रातिकारी मुसलमान तथा धार्मिक शोधकर्ता की धार्मिक विचारधारा की आधारशिला रखी जिससे आज भी आस्था रखने वाले तथा स्वतंत्रताप्रेमी लाभान्वित हो रहे हैं। हम लेबनान के मुसलमान होने के नाते शहीद मुर्तज़ा मुतह्हरी को उनकी रचनाओं और उनकी पुस्तकों से पहचानते हैं। मैं उनकी रचनाओं और लेखों में महान मनोबल और विशेष प्रकार की सुगंध का आभास करता हूं।

मुहम्मद अब्दुल अज़ीज़, ज़ाम्बिया के एक युवा हैं। ईसाई धर्म में पाए जाने वाले विरोधाभासों के कारण उन्होंने इस धर्म को त्याग दिया और वे मुसलमान हो गए। अब्दुल अज़ीज़ कहते हैं कि अफ्रीका के एक इस्लामी केन्द्र से मैंने इस्लाम के बारे में कुछ पुस्तकें मांगी। उन पुस्तकों में शहीद मुर्तज़ा मुतह्हरी की भी पुस्तकें थीं। जब मैंने उनकी पुस्तकों का अध्धयन किया तो मैं बहुत ही गूढ़ और वास्तविकता पर आधारित बातों से अवगत हुआ। इससे पहले मैं पर्दे को महिलाओं के विरुद्ध तथा जेहाद को एक प्रकार का आतंकवाद समझता था किंतु शहीद मुतह्हरी ने रोचक तर्कों के आधार पर पर्दे को महिलाओं की सुरक्षा का कारक बताते हुए समाज में उसकी आत्मीय भूमिका की व्याख्या की है। वे स्पष्ट करते हैं कि जेहाद में प्रतिरक्षा के आयाम, उसके आक्रामक आयामों से कहीं अधिक बड़े हैं और इसका मुख्य उद्देश्य, अतिक्रमणकारियों के मुक़ाबले में हक़ अर्थात वास्तविकता की रक्षा करना है। यह बात मेरे लिए बहुत ही रोचक और स्वीकारीय थी। वास्तव में शहीद मुर्तज़ा मुतह्हरी की पुस्तकों ने इस्लाम की वास्तविकताओं को मेरे लिए स्पष्ट किया और इन्हीं पुस्तकों के अध्धयन से मैं मुसलमान हो गया।

पवित्र क़ुरआन के महान व्याख्याकार और दार्शनिक अल्लामा तबातबाई शहीद मुतह्हरी के उस्ताद थे। अपने शिष्य की प्रशंसा करते हुए वे कहते हैं कि स्वर्गीय मुतह्हरी चिंतक, विद्वान और शोधकर्ता थे। वे जागरूक थे और कुशाग्र बुद्धि तथा वास्तविकता को स्वीकार करने वाले मस्तिष्क के स्वामी थे। उनके द्वारा लिखे गए लेख और वैज्ञानिक उद्देश्यों के संदर्भ में उनके शोध आश्चर्य चकित कर देने वाले हैं। शहीद मुतह्हरी ने अपने महत्वपूर्ण जीवन के माध्यम से, जो वैज्ञानिक प्रयासों और दार्शनिक विचारधारा से परिपूर्ण है, ज्ञान तथा दर्शनशास्त्र प्रेमियों को यह संदेश पहुंचाना है कि किसी भी स्थिति में वैज्ञानिक प्रयासों और पूरिपूर्णता को भूलना नहीं चाहिए और अपने जीवन को, जो मानवता का सर्वोत्तम उपहार है आध्यात्मिक जीवन में जो मनुष्य का उच्च जीवन है उसे परिवर्तित करें। निःसंदेह, एक बुद्विजीवी वास्तविकता की ओर जो रास्ता खोलता है वह उसको अमर बना देता है तथा यह दुनिया और उसमें पाई जाने वाली हर वस्तु से अधिक मूल्यवान है।

मुसलमानों के एक वरिष्ठ धर्मगुरू आयतुल्लाह नासिर मकारिम शीराज़ी का मानना है कि उस्ताद मुतह्हरी की निर्भीकता और पवित्रता ने उनको चिंतन तथा इस्लामी विषयों में एक आदर्श के रूप में परिवर्तित कर दिया है। वे कहते हैं कि मुतह्हरी जनता से अलग-थलग रहने के स्थान पर चिंतन के विषयों के संदर्भ में प्रयास किया करते थे ताकि धर्म की वास्तविकता को प्रस्तुत किया जाए। वे अपने व्यवहार और रचनाओं में केवल ईश्वर की प्रसन्नता के बारे में ही सोचा करते थे और इस मार्ग में वे इस बात के लिए तैयार थे कि अपनी समाजिक स्थिति की बलि चढ़ाएं। वे पूरी निष्ठा के साथ स्वर्गीय इमाम ख़ुमैनी के साथ थे। उनमें वैज्ञानिक जेहाद, ज्ञान, वीरता, समय की पहचान, कर्तव्यपरायणता और नैतिककता जैसी विशेषताएं उच्च स्तर पर थीं।

 

शहीद मुर्तज़ा मुतह्हरी का जन्म २ फ़रवरी वर्ष १९१९ ईसवी को मशहद नगर के निकटवर्ती गांव फ़रीमान में हुआ था। उनकी आरम्भिक शिक्षा उनके पैत्रिक नगर पर हुई और बारह वर्ष की आयु में वे मशहद में धार्मिक शिक्षा केन्द्र गए। इसके पश्चात उच्च शिक्षा की प्राप्ति के लिए उन्होंने क़ुम के धार्मिक शिक्षा केन्द्र का रुख़ किया। उन्होंने क़ुम में अपने १५ वर्षीय प्रवास के दौरान आयतुल्लाह बोरोजर्दी, इमाम ख़ुमैनी और अल्लामा तबातबाई जैसे महान धर्म गुरूओं से शिक्षा प्राप्त की। शहीद मुतह्हरी ने अपनी क्षमताओं, होशियारी और दूरदर्शिता के साथ विभिन्न आयामों से युवा पीढ़ी के लिए इस्लाम का वर्णन किया। इस संदर्भ में उनके प्रयास इतने प्रभावी थे कि बहुत से युवा तथा शिक्षित लोगों ने उनके विचारों से प्रभावित होकर इस्लामी शिक्षाओं की सुन्दरता का साक्षात्कार किया।

वह बात जो शहीद मुर्तज़ा मुतह्हरी को अन्य विद्वानों से अलग करती है वह यह है कि उनको अपने समय के विषयों की पूर्ण जानकारी थी और वे अपने काल की भाषा में ही बोला करते थे अर्थात वे आम लोगों की भाषा में बोला करते थे। इस विषय के दृष्टिगत कि कुछ दिगभ्रमित विचारधाराओं के कारण इस्लाम की वास्तविक शिक्षाएं स्पष्ट नहीं है उन्होंने प्रयास किया कि अपनी प्रभावी लेखनी और भाषणों से इस्लाम की वास्तविक शिक्षाओं को लोगों तक पहुंचाएं। यही कारण है कि धर्म में प्रचलित कुरीतियों को दूर करने में एक जागरूक सुधारक के रूप में मुतह्हरी की विशेष भूमिका है। उन्होंने अपने प्रिय पथप्रदर्शक इमाम ख़ुमैनी के साथ युवाओं के विचारों को फलने-फूलने तथा इस्लामी क्रांति की रूपरेखा बनने की भमिका प्रशस्त की।

उस्ताद मुतह्हरी ने इस्लामी नियमों व मूल नियमों और नैतिक शास्त्र के साथ ही साथ दर्शनशास्त्र पढ़ाना भी आरंभ किया। अपनी चिंतन शक्ति और आध्यात्मिक महानता के कारण वे दर्शनशास्त्र के जटिलताओं में नहीं फंसे रहे अपितु स्पष्ट, साधारण, और आकर्षक ढ़ंग से दार्शनिक विचारों का वर्णन करते थे। वे धार्मिक दर्शनशास्त्र को भौतिक दर्शनशास्त्र से अलग रखते थे। शहीद मुतह्हरी इस बात को बल देकर कहा करते थे कि वर्तमान युग की समस्याओं का समाधान धर्म तथा धार्मिक विचारों में निहित है।

शहीद मुतह्हरी के मतानुसार ज्ञान और आस्था, मानवता के दो मूलभूत स्तंभ हैं। वे इन दोनों को एसे दो पंखों की भांति समझते थे जो मानव को परिपूर्णता की ओर ले जाते हैं। इन दोनों में से यदि एक न हो तो मनुष्य अपना संतुलन खो बैठेगा। मानवता की मूलभूत आवश्यकता अर्थात आध्यात्म को अनदेखा करते हुए केवल ज्ञान की ओर ध्यान केन्द्रित करने से मनुष्य का जीवन संकटग्रस्त हो जाता है। यह वह समस्या है जिसमे इस समय पश्चिमी जगत बुरी तरह से फंसा हुआ है। इस संदर्भ में शहीद मुतह्हरी कहते हैं कि इस समय सबने यह समझ लिया है कि केवल ज्ञान का युग समाप्त हो रहा है और आकांक्षाओं का एक शून्य, समाजों को भयभीत किये हुए है। आस्था के बिना ज्ञान उसी प्रकार है जैसे अपनी इच्छित वस्तुओं को चुराने के लिए अर्धरात्रि में चोर के हाथ में दिया हो। यही कारण है कि स्वभाव, वास्तविकता और चरित्र की दृष्टि से वर्तमान समय में आस्था के बिना ज्ञान रखने वाले मनुष्य और कल के अशिक्षित तथा आस्था रहित मनुष्य के बीच कोई अंतर नहीं है। उनका मानना था कि मानवता का रत्न बहुत ही बहुमूल्य है और मनुष्य को चाहिए कि वह अपने जीवन को संसार में कम मूल्य में नष्ट न करे बल्कि उसको चाहिए कि वह संसार को प्रगति के लिए सीढ़ी समझे ताकि परिपूर्णता तक पहुंच सके। इस संदर्भ में वे अपनी पुस्तक "हिक्मतहा और अंदर्ज़हा" अर्थात स्वर्ण कथन और उपदेश में हज़रत अली अलैहिस्सलाम को उद्दरित करते हुए लिखते हैं कि मानव के लिए यह संसार एक शरणस्थल है जिसमें वह कुछ दिनों तक जीवन व्यतीत करता है और फिर चला जाता है।

संसार के लोग दो भागों में विभाजित हैं। एक गुट वह है जो संसार रूपी बाज़ार में स्वयं को बेच देते हैं और दास बन जाते हैं। दूसरा गुट वह है जो संसार रूपी बाज़ार में स्वयं को ख़रीदते हैं और स्वंतंत्र करते हैं।

शहीद तथा शहादत नामक पुस्तक के प्रकाशन के पश्चात उस्ताद मुतह्हरी के आध्यात्मिक आयाम अधिक स्पष्ट हुए। इस पुस्तक में वे लिखते हैं कि शहीद उस रक्त की भांति है जो समाज की रगों मं् चढ़ाया जाता है। वे स्वयं भी इस्लाम तथा क़ुरआन के मार्ग में शहीद होकर शहीदों के कारवां में सम्मिलित हो गए और उन्होंने एक परवाने की भांति वास्तविकता की शमा के साथ स्वयं को जलाया। यह कार्य उन्होंने इसलिए किया कि आधुनिक युग के अंधेरों और शंकाओं में अपनी विचारधारा से उन लोगों के मार्गदर्शक बनें जो लालायित होकर मोक्ष के मार्ग को ढ़ूढते हैं। स्वर्गीय इमाम ख़ुमैनी उनके संबंध में कहते हैं कि मुतह्हरी आत्मा की पवित्रता, ईमान की शक्ति और सशक्त अभिव्यक्ति में अद्वितीय थे।

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