ज़ियारते अरबईन

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20 सफ़र को कर्बला के अमर शहीदों का चेहलुम होता है। इस दिन इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की विशेष ज़ियारत है।

यह ज़ियारत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम से श्रद्धा दर्शाने के लिए पढ़ी जाती है। वह हुसैन जिन्होंने इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम के शब्दों में,  अपनी शहादत व साहस से लोगों को उस अज्ञानता से मुक्ति दिलाई जो बनी उमय्या के दुष्प्रचार से फैली थी कि जिसकी वजह से लोग क़ुरआन की शिक्षाओं और पैग़म्बरे इस्लाम के आचरण से दूर हो गए थे। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के वीरता भरे आंदोलन ने बनी उमय्या के प्रचारिक अभियान की अस्लियत खोल कर रख दी, जो ख़ुद को पैग़म्बरे इस्लाम का वारिस कहते थे। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के आंदोलन ने यज़ीदियों की ग़लत रीतियों का अंत किया और शुद्ध इस्लाम को जीवन दिया।

 

पैग़म्बरे इस्लाम के परपौत्र इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम कहते हैं, “ईश्वर पर आस्था रखने वाले मोमिन बंदे की पांच निशानियां हैं। 51 रकअत नमाज़ पढ़ना, (जिसमें 17 रकअत अनिवार्य और 34 रकअत ग़ैर अनिवार्य नमाज़ शामिल है,) अरबईन की ज़ियारत, दाहिने हाथ में अंगूठी पहनना, सजदे के समय माथे को मिट्टी पर रखना और नमाज़ में बिस्मिल्लाहिर रहमानिर रहीम ऊंची आवाज़ से कहना।”

 

अरबईन मनाने के लिए कई ज़ियारतें हैं। इनमें से एक ज़ियारत अरबईन के नाम से मशहूर है। यह वह ज़ियारत है जिसे इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम ने लिखवाया है। यह वह ज़ियारत है जो उच्च इस्लामी शिक्षाओं से समृद्ध है। इस ज़ियारत में अध्यात्म व उपासना, बलिदान व शहादत, ईश्वर की प्रसन्नता और उसके मार्ग में संघर्ष की बाते हैं। इस अहम ज़ियारत में इतनी उच्च बाते हैं कि पढ़ने वाला कर्बला के अमर शहीदों के साथ यह प्रतिक्षा करता है कि जहां कहीं भी होगा इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के मार्ग पर चलेगा।

 

ज़ियारते अरबईन भी दूसरी ज़ियारतों की तरह सलाम से शुरु होती है। श्रद्धालु इस सलाम के द्वारा इमाम हुसैन के प्रति अपने आदर और सद्भावना का एलान करता है। इस सलाम में श्रद्धालु इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम को पैग़म्बरे इस्लाम, हज़रत इब्राहीम और हज़रत आदम की विशेषताओं से संपन्न मानता है। जैसे पैग़म्बरे इस्लाम का ईश्वर का प्रिय होना, हज़रत इब्राहीम का ईश्वर का मित्र होना और हज़रत आदम का ईश्वर का उत्तराधिकारी होना। श्रद्धालु इस सलाम के ज़रिए इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम के शब्दों में, इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के व्यक्तित्व को सभी बड़े ईश्वरीयदूतों के व्यक्तित्व का संग्रह मानता है। इस ज़ियारत में एक जगह पर इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम को सभी ईश्वरीय दूतों का वारिस कह कर सलाम किया गया है। इसलिए चेहलुम की याद मनाना हज़रत आदम से लेकर सभी ईश्वरीय दूतों के अभियान की पुष्टि करने के समान है।

 

जो भी इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम और कर्बला की घटना को सुनता है, उसकी आंखों से आंसू निकलने लगता है। यह आंसू उन आंसुओं से अलग है जो एक इंसान किसी मुसीबत या अपने किसी निकटवर्ती की जुदाई पर बहाता है। जो आंसू इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की मुसीबत की याद में बहता है, अगर वह इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के उद्देश्य की पहचान के साथ बहे तो ऐसा आंसू इंसान को परालौकिक दुनिया से जोड़ता है। जैसा कि पवित्र क़ुरआन के मायदा नामक सूरे की 83वीं आयत में ईश्वर कहता है, और जब वे पैग़म्बर पर उतरने वाली आयत को सुनते हैं तो उनकी आंखों से आंसू बहने लगता है, क्योंकि उन्होंने सत्य को पहचाना और कहते हैं कि हे हमारे पालनहार! हम ईमान लाए हैं और हमारा नाम गवाहों में लिख। इसी तरह श्रद्धालु भी इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम पर सलाम भेजने के साथ उन पर हुए अत्याचारी ओर इशारा करते हुए कहता है, सलाम हो उस हुसैन पर जिन पर ज़ुल्म किया गया, सलाम हो उस महान हस्ती पर जो मुसीबतों में घिरा हुआ था और जिसे रुला रुका कर मारा गया।   

       

ज़ियारते अरबईन के दूसरे भाग में श्रद्धालु इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की विलायत, दानशीलता, मोक्ष और पवित्रता की गवाई देते हुए कहता है, हे ईश्वर! मैं गवाही देता हूं कि हुसैन अलैहिस्सलाम तेरे वली और तेरे वली के बेटे हैं। वह चुने हुए और तेरे चुने हुए बंदे के बेटे हैं। हे ईश्वर मैं गवाही देता हूं कि तूने उन्हें शहादत के ज़रिए सम्मानित किया और उन्हें मोक्ष दिया। उन्हें पवित्र वंश में पैदा किया, उन्हें सभी ईश्वरीयदूतों की मीरास दी, बड़ों में से एक बड़ा, मार्गदर्शकों में से एक मार्गदर्शक, रक्षकों में एक रक्षक और लोगों पर अपने उत्तराधिकारी के रूप में हुज्जत अर्थात तर्क क़रार दिया।

 

 इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम का उस ईश्वरीयत दूत ने पालन-पोषण किया, जिसे ईश्वर ने पूरी सृष्टि के लिए कृपा क़रार दिया। जैसा कि ईश्वर ने अंबिया नामक सूरे की 107वीं आयत में पैग़म्बरे इस्लाम से कहा, हमने आपको दुनियावालों के लिए सिर्फ़ कृपा बनाकर भेजा है। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम यज़ीद के सिपाहियों से बहुत ही अच्छे ढंग से बात की। उन्हें नसीहत की यहां तक कि जब वह घोड़े से ज़मीन पर गिरे तब भी उनके मार्गदर्शन की कोशिश की और अंततः अपने पवित्र ख़ून को लोगों की गुमराही से मार्गदर्शन के लिए भेंट कर दिया। इसलिए जब इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की ज़ियारत पढ़ते हैं, तो उसमें यह भी पढ़ते हैं कि हे पालनहार! हुसैन ने लोगों के मार्गदर्शन में किसी प्रकार के बहाने की गुंजाइश नहीं छोड़ी। उन्होंने निःसंकोच लोगों की भलाई की और अपनी जान को तेरे मार्ग में न्योछावर कर दिया।

 

इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने मक्के से निकलने से पहले अपने भाई मोहम्मद हनफ़िया को एक वसीयत लिखी, जिसमें अपने अभियान के उद्देश्य का उल्लेख किया है। इस वसीयत में इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने कहा, मैंने अपने नाना के धर्म में सुधार, लोगों को भलाई की ओर बुलाने और बुराई से रोकने के लिए अभियान चलाया है। क्योंकि इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के दौर में धर्म में बहुत से बदलाव कर दिए गए थे। उनके पास पैग़म्बरे इस्लाम द्वारा लाए गए धर्म की रक्षा और उसे सही रूप में बाद की नस्लों तक पहुंचाने के लिए अभियान चलाने के सिवा कोई और रास्ता नहीं था ताकि सबको बताएं कि मौजूदा धर्म को बहुत बदल दिया गया है और इस धर्म में, पैग़म्बरे इस्लाम द्वारा लाए गए धर्म की तुलना में बहुत अंतर आ गया है। तो श्रद्धालु ज़ियारते अरबईन में इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के अभियान का उद्देश्य यूं बयान करता है, हे प्रभु! हुसैन अलैहिस्सलाम ने अपनी जान तुझ पर न्योछावर कर दी और अपने पूरे वजूद को तुझे दे दिया ताकि तेरे बंदों को अज्ञानता और पथभ्रष्टता से मुक्ति दिलाए।

 

जो गुट इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के ख़िलाफ़ था और जिसने उन्हें शहीद किया वे ऐसे लोग थे जो दुनिया से धोखा खा गए। उनका पेट हराम के पैसों से भरा हुआ था। उन्होंने अपनी परलोक को बहुत थोड़ी सी क़ीमत पर बेच दिया। श्रद्धालु ज़ियारते अरबईन में और आगे पढ़ता है, और वे दुनिया पर मर-मिटने वाले पाप का बोझ अपने कांधे पर रखकर नरक की आग में जलने का पात्र बने। तो इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने पूरे धैर्य के साथ उनके ख़िलाफ़ जिहाद किया यहां तक कि तेरे आदेश के पालन के दौरान उनका ख़ून बहाया गया और उनके अपमान को सही समझा गया।

 

आशूर की पूर्व संध्या और आशूर के दिन कर्बला में इमाम हुसैन के घरवालों और उनके साथियों की उनसे वफ़ादारी की मिसाल कहीं नहीं मिलती और इससे भी बढ़ कर इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की ओर से ईश्वर से किए गए वादे को पूरा करने की मिसाल कहीं नहीं मिलती।

 

श्रद्धालु एक बार फिर इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम को सलाम करते हुए कहता है, हे हुसैन अलैहिस्सलाम! मैं गवाही देता हूं कि आप ईश्वर की ओर से अमानतदार और ईश्वर के अमानतदार के बेटे हैं। आपने पूरा जीवन भलाई में बिताया, प्रशंसनीय तरीक़े से गुज़र गए और शहीद हुए ऐसी हालत में कि वतन से दूर ज़ुल्म का शिकार हुए। ईश्वर उसे पूरा करने वाला है जिस चीज़ का उसने आपसे वादा किया है, उसे बर्बाद करे जिसने आपको छोड़ दिया, उसे अभिशाप दे जिसने आपको क़त्ल किया। मैं गवाही देता हूं कि आपने ईश्वर से किया हुआ वादा पूरा किया, ईश्वर के मार्ग में जिहाद किया यहां तक कि शहीद हो गए।          

सच्ची दोस्ती के संबंध में एक बात जो बहुत अहम है वह यह कि व्यक्ति अपने दोस्त के दोस्तों से भी मोहब्बत करता है और इसी तरह अपने दोस्त दुश्मनों से दूरी अख़्तियार करता है। ज़ियारते अरबईन में इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के दोस्तों से मोहब्बत और उनके दुश्मनों से विरक्तता की गवाही देते हुए श्रद्धालु कहता है, हे पालनहार!

 

तू गवाह रहना कि मैं उसे अपना दोस्त समझता हूं जो हुसैन अलैहिस्सलाम को अपना दोस्त समझे और जो इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम से दुश्मनी करता है मैं उसे अपना दुश्मन समझता हूं।

 

ज़ियारते अरबईन में श्रद्धालु इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के नैतिक गुणों को बयान करते हुए कहता है, मेरा धर्म और मेरा कल्याण आपके मार्गदर्शन पर निर्भर है। मेरा मन आपके सामने नत्मस्तक है और सारी बातों में मैं आपका अनुसरण करने वाला हूं। आपकी मदद के लिए तय्यार हूं यहां तक कि ईश्वर इजाज़त दे। तो मैं आपके साथ हूं न कि आपके दुश्मन के साथ। श्रद्धालु इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के आज्ञापालन का दिल से वचन देते हुए पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र परिजनों पर ईश्वर की कृपा की कामना के साथ अपनी ज़ियारत को ख़त्म करने के लिए कहता है, ईश्वर की कृपा हो आप पर, आपकी पवित्र आत्माओं और आपके पवित्र शवों पर, आपके हाज़िर, ग़ाएब, विदित व निहित पर ईश्वर की कृपा हो। इस तरह श्रद्धालु इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के प्रति अपनी श्रद्धा व्यक्त करता है ताकि ख़ुद को उनके श्रद्धालुओं में शामिल करा सके। जैसा कि पैग़म्बरे इस्लाम के बड़े अनुयायी जाबिर बिन अब्दुल्लाह अंसारी चेहुलम के दिन अपनी ज़ियारत के अंत में कहते हैं, “उस ईश्वर की क़सम जिसने मोहम्मद सल्लल लाहो अलैहि व आलेही व सल्लम को सत्य को पहुंचाने के लिए चुना। मैं भी उस चीज़ में आप शहीदों के साथ सहभागी हूं जो आप पर गुज़री है।” इस बात पर जाबिर बिन अब्दुल्लाह अंसारी के साथ मौजूद लोगों ने उनसे पूछा कि किस तरह हम उनके साथ सहभागी हैं जबकि हमने उनके साथ मिल कर ईश्वर के मार्ग में तलवार नहीं चलाई? जाबिर बिन अब्दुल्लाह अंसारी ने कहा, मैंने पैग़म्बरे इस्लाम को यह फ़रमाते सुना है, “जो जिस गुट से प्रेम रखता है प्रलय के दिन उसे उस गुट के साथ उठाया जाएगा और जो व्यक्ति किसी गुट के कर्म को पसंद करता है तो वह भी उनके कर्म में सहभागी होगा।”  

 

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