आठ रबीउल अव्वल सन 260 हिजरी क़मरी को अभी सूरज निकला भी नहीं था कि सच्चाई और मार्गदर्शन के सूरज इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम शहीद हो गये जिससे पूरा इस्लामी जगत शोकाकुल हो गया।
इमाम और पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहि व आलेही व सल्लम के पवित्र परिजन समस्त मानवीय सदगुणों के उत्कृष्टतम प्रतीक हैं। इन महान हस्तियों की पावन जीवनी विश्ववासियों के समक्ष संपूर्ण इंसान की तस्वीर पेश करती है। ऐसा परिपूर्ण इंसान जिसने महान ईश्वर की प्रसन्नता प्राप्त करने और उसके दुश्मनों से दूरी बनाये रखने के लिए उपासना और जेहाद आदि समस्त क्षेत्रों में सत्य के मार्ग को तय किया हों। इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम सच्चाई और मार्गदर्शन के सूरज हैं। उन्होंने अपनी छोटी उम्र के अधिकांश भाग को अपनी इच्छा के विपरीत अपने पिता इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम के साथ सामर्रा की अस्कर नामक छावनी में व्यतीत किया। अपने पिता इमाम अली नक़ी अलहिस्सलाम की शहादत के बाद इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम ने लोगों के मार्गदर्शन का ईश्वरीय दायित्व संभाला और अत्याचारी शासकों और बहुत अधिक प्रतिबंध होने के बावजूद उन्होंने 6 वर्षों तक ईश्वरीय धर्म इस्लाम की शिक्षाओं का प्रचार- प्रसार किया।
इमाम, मार्गदर्शन में बुद्धि और नसीहत के महत्व की ओर संकेत करते हुए इस प्रकार फरमाते हैं।“ दिल में इच्छा और आंतरिक भावना के विभिन्न विचार होते हैं परंतु बुद्धि रुकावट बनती है और अनुभवों के भंडार से नया ज्ञान प्राप्त होता है। और नसीहत मार्गदर्शन का कारण है।“
पापों से रोकने वाले कारक के रूप में भय और आशा के बारे में इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम फरमाते हैं” जो भय और आशा अपने स्वामी को उस बुरे कार्य से न रोक सके जो उसके लिए उपलब्ध हो गया है और उस मुसीबत पर धैर्य न करे जो उस पर आ गयी है तो उसका क्या लाभ है? इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम पाप को हल्का समझने के बारे में फरमाते हैं” माफ़ न किए जाने वाले पापों में से एक पाप यह है कि पाप करने वाला यह कहे कि काश इस पाप के अलावा किसी और का दंड न दिया जाता।“
इन सब बातों के अलावा इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम लोगों के विभिन्न वर्गों को अपने अनुयाइयों से पहचनवाते और कहते थे कि मार्गदर्शन के लिए किस गुट को समय विशेष करना चाहिये। वास्तव में इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम अपने चाहने वालों को यह बताते थे कि मार्गदर्शन में संबोधक की पहचान बहुत ज़रूरी है। “क़ासिम हरवी” नाम का इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम का एक अनुयाई कहता है” इमाम के हाथ का लिखा हुआ एक पत्र उनके एक अनुयाई के हाथ में पहुंचा। इस पत्र को लेकर इमाम के कुछ अनुयाइयों के मध्य बहस हो गयी तो मैंने इमाम के नाम एक पत्र लिखा ताकि उन्हें उनके अनुयाइयों के मध्य मतभेद से सूचित कर दूं और इस संबंध में मार्गदर्शन प्राप्त करूं। मेरे पत्र के उत्तर में इमाम ने लिखा” बेशक ईश्वर ने बुद्धिमान लोगों को संबोधित किया है और पैग़म्बरे इस्लाम से बढ़कर किसी ने अपनी पैग़म्बरी को सिद्ध करने के लिए तर्क पेश नहीं किया। इसके बावजूद सबने कहा कि पैग़म्बरे इस्लाम जादूगर और झूठे हैं। ईश्वर ने हर उस व्यक्ति का पथप्रदर्शन किया जो मार्गदर्शन को स्वीकार करने वाला था। क्योंकि बहुत से लोग तर्क को स्वीकार करते हैं। जब भी ईश्वर सत्य व हक़ को अस्तित्व में न लाना चाहे चाहे तो कभी भी अस्तित्व में नहीं आयेगा। उसने पैग़म्बरों को भेजा ताकि वे लोगों को डरायें और आशा दिलायें और कमज़ोर एवं शक्ति की हालत में स्पष्ट रूप से लोगों को सत्य के लिए आमंत्रित करें और सदैव उनसे बात करें ताकि ईश्वर अपने आदेश को लागू करे। लोगों के विभिन्न वर्ग हैं जो समझ- बूझ व अंतर्दृष्टि रखते हैं उन्होंने मुक्ति व कल्याण का मार्ग पहचान लिया और सच व हक़ को भाग लिया और मज़बूत शाखाओं से जुड़े रहे तथा उन्होंने किसी प्रकार का संदेह नहीं किया और दूसरे की शरण में नहीं गये। लोगों का दूसरा वर्ग उन लोगों का है जिन्होंने हक़ को उसके पात्रों से नहीं लिया वे उन लोगों की भांति हैं जो समुद्र में यात्रा करते हैं और समुद्र में उसकी लहरों से व्याकुल हो जाते हैं और उसकी लहरों के शांत हो जाने से उन्हें शांति हो जाती है। लोगों का एक वर्ग शैतान का अनुयाई हो गया है और वह सत्य के अनुयाइयों की बातों को रद्द करता है और अपनी ईर्ष्या के कारण वह सत्य को असत्य से पराजित करता है। इस आधार पर जो लोग इधर- उधर भटकते हैं उन्हें उनकी हाल पर छोड़ दो।“
इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम अच्छाई का आदेश देने और पैग़म्बरे इस्लाम के अनुयाइयों के मध्य सुधार करने के उद्देश्य से विभिन्न शैलियों का प्रयोग करते थे। जिस समय इमाम कारावास में थे उन्होंने अपने सदव्यवहार से कारावास के कर्मचारियों को इस प्रकार परिवर्तित कर दिया करते थे कि जब वे कारावास से बाहर जाते थे तो इमाम के सदगुणों व विशेषताओं से सबसे अधिक जानकार होते थे। शैख कुलैनी अपनी प्रसिद्ध पुस्तक उसूले काफी में इस प्रकार लिखते हैं” मोअतज़ ने इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम को शहीद करने के बाद इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम पर भारी दबाव डाल रखा यहां तक कि उसने कई बार इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम को जेल में डाल दिया। मोअतज़ का प्रयास होता था कि वह सबसे क्रूर व्यक्ति को इमाम पर निगरानी के लिए तैनात करे ताकि वह इमाम को खूब कष्ट पहुंचाये। एक बार उसने इमाम को सालेह बिन वसीफ़ नाम के व्यक्ति के हवाले किया। सालेह, पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र परिजनों का कट्टर विरोधी व दुश्मन था। उसने अच्छा मौक़ा समझा। उसने स्वयं से तुच्छ व्यक्तियों को कारावास में इमाम पर नियुक्त किया ताकि वह रात-दिन इमाम को कष्ट पहुंचाये। एक दिन अब्बासियों का एक गुट सालेह बिन वसीफ़ के पास आया। सालेह ने उनसे कहा मेरी समझ में नहीं आ रहा है कि क्या करूं? जिन्हें मैं जानता था उनमें से बहुत ही क्रूर व तुच्छ दो व्यक्तियों को इमाम पर नज़र रखने के लिए तैनात किया था परंतु कुछ ही समय में इमाम ने उन ऐसा प्रभाव डाला कि वे उपासना करने वाले बन गये। मैंने उनसे पूछा कि उनके बारे में क्या कहते हो? तो उन्होंने उत्तर दिया उसके बारे में क्या कहूं जो दिनों को रोज़ा रखता है और रातों को सुबह तक नमाज़ पढ़ता है न बात करता है और न उपासना के अलावा कुछ और करता है। हम जब भी उसे देखते हैं उसके दबदबे से थर्राने लगते हैं।“
इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम हर गुट व दल के साथ उचित व्यवहार के लिए उस के हिसाब से शैली अपनाते थे। कभी नसीहत, कभी चेतावनी, कभी विशेष व्यक्तियों का प्रशिक्षण और उन्हें शैक्षणिक केन्द्रों में भेजते थे। प्रसिद्ध लेखक इब्ने शहर आशूब लिखते हैं कि इस्हाक़ केन्दी को इस्लामी और अरब जगत का दर्शनशास्त्री समझा जाता था और वह इराक में रहता था। उसने “तनाक़ुज़े कुरआन” अर्थात कुरआन के विरोधाभास नाम की एक किताब लिखी। एक दिन उसका एक शिष्य इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम की सेवा में गया। इमाम ने उससे फरमाया क्यों तुम अपने उस्ताद की बातों का उत्तर नहीं देते? उसने कहा कि हम सब शिष्य हैं हम अपने उस्ताद की ग़लतियों पर आपत्ति नहीं कर सकते! इमाम ने फरमाया अगर तुम्हें कोई बात बताई जाये तो तुम उसे अपने उस्ताद से बता सकते हो उसके शिष्य ने कहा हां। इमाम ने फरमाया जब यहां से लौट कर जाना तो अपने उस्ताद के पास जाना और उससे प्रेम व गर्मजोशी से पेश आना और उससे निकट होने का प्रयास करो और जब पूरी तरह निकट हो जाओ तो उससे कहना। मेरे सामने एक समस्या पेश आई है और वह यह है कि क्या यह संभव है कि क़ुरआन के कहने वाले ने उस अर्थ के अलावा किसी और अर्थ का इरादा किया हो जो आप सोच रहे हैं? वह जवाब में कहेगा हां यह संभव है इस प्रकार का उसका तात्पर्य हो सकता है। उस समय तुम कहना आप को क्या पता? शायद क़ुरआन की बोती की कहने वाले ने उस अर्थ के अलावा किसी दूसरे अर्थ का इरादा किया हो जिसे आप सोच रहे हैं और आपने उसके शब्दों का प्रयोग दूसरे अर्थ में किया हो? इमाम ने यहां पर आगे कहा” वह समझदार इंसान है इस बिन्दु को बयान करना काफी है कि उसका ध्यान अपनी ग़लती की ओर चला जाये। शिष्य ने इमाम के कहने के अनुसार व्यवहार किया। उस्ताद ने सच्चाई स्वीकार कर लेने के बाद उसे शपथ दी कि तुम यह बताओ कि तुमने यह बात कहां सुनी। अंततः शिष्य ने बता दिया कि इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम ने इस प्रकार फरमाया था। केन्दी ने भी कहा अब तुमने वास्तविकता कही। उसके बाद उसने कहा कि इस प्रकार का सवाल इस परिवार की शोभा है। उसके बाद उसने आग मंगवाई और तनाक़ुज़े क़ुरआन नाम की किताब में जो कुछ लिखा था उसे जला दिया।
इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम पूरी तरह अब्बासी शासकों के नियंत्रण में थे फिर भी वे इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम के पावन अस्तित्व को सहन नहीं कर पा रहे थे इसी आधार पर वे इमाम को रास्ते से हटा देने की सोच में पड़ गये। इसी कारण अत्याचारी अब्बासी शासक मोअतमिद ने एक षडयंत्र रचकर इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम को ज़हर दे दिया। इमाम उसी ज़हर के कारण कई दिनों तक बीमारी के बिस्तर पर पड़े रहे और उन दिनों मोअतमिद लगातार दरबार के चिकित्सकों को इमाम के पास भेजता था ताकि लोग यह समझें कि इमाम बीमार हैं और दूसरी ओर इमाम का दिखावटी उपचार करके लोगों की सहानुभूति प्राप्त करे और स्थिति पर भी पैनी नज़र रख सके और अगर इमाम के उत्तराधिकारी के संबंध में कोई संदिग्ध गतिविधि भी दिखाई दे तो उसे उसकी रिपोर्ट दी जाये। इमाम कुछ समय की कठिन बीमारी के बाद आठ रबीउल अव्वल 260 हिजरी क़मरी को शुक्रवार के दिन सुबह की नमाज़ के समय शहीद हो गये। इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम 29 वर्ष से अधिक समय तक जीवित नहीं रहे पर 6 वर्षों की इमामत के दौरान उन पर पवित्र क़ुरआन की व्याख्या, इस्लाम की शुद्ध शिक्षाओं के प्रचार- प्रसार के साथ ऐसे सुपुत्र के पालने की जिम्मेदारी थी जो अंतिम समय में प्रकट होगा और अत्याचार से भरी पूरी दुनिया एवं पूरी मानवता को मुक्ति दिलायेगा। महामुक्तिदाता हज़रत इमाम मेहदी अलैहिस्सलाम 255 हिजरी क़मरी में पैदा हुए थे और महान ईश्वर के आदेश से वह आज तक जीवित हैं और लोगों की नज़रों से ओझल हैं और महान ईश्वर के आदेश से प्रकट होंगे और पूरे संसार को न्याय से भर देंगे और हर तरफ शांति ही शांति होगी।