आज हज़रत ईसा मसीह का शुभ जन्म दिवस है जिन्होंने मानव जाति को आपस में एक दूसरे के साथ प्रेम करने की रीति सिखाई।
ईसा मसीह पर सलाम हो जो ईश्वर की निशानी और शांति की शुभसूचना देने वाले हैं। उनके आगमन से मानवता ने दोस्ती व मोहब्बत सीखी। उनका वजूद ग़रीबों के लिए आसरा था। वह ग़रीबों के इतने हमदर्द थे कि धनवान उनके धर्म को ग़रीबों से विशेष समझते थे।
हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम की पैदाइश बहुत ही हैरत में डालने वाली घटना है जिसका पवित्र क़ुरआन में उल्लेख है। हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम अपनी पवित्र मां के पेट से चमत्कार के ज़रिए पैदा हुए हालांकि हज़रत मरयम का कोई शौहर नहीं था। ईश्वर पवित्र क़ुरआन में हज़रत इमरान की बेटी हज़रत मरयम अलैहस्सलाम के बारे में आया है कि वह चरित्रवान व सदाचारी महिला थीं। इस महान महिला को बचपन से ही ईश्वर पर गहरी श्रद्धा थी और उपासना व आत्मशुद्धि के ज़रिए आध्यात्म के उस चरण पर पहुंची कि उनके पास स्वर्ग से खाना आने लगा। संगीत
एक दिन हज़रत मरयम ईश्वर की उपासना में लीन थीं कि अचानक ईश्वरीय संदेश ‘वही’ लाने वाले फ़रिश्ते हज़रत जिबरईल उनके पास पहुंचे और उन्हें एक बेटे के जन्म की शुभसूचना दी। जैसा कि पवित्र क़ुरआन के मरयम सूरे की आयत नंबर 16 से 21 में इस घटना का उल्लेख है।
हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम उन महान ईश्वरीयत दूतों में हैं जिनका पवित्र क़ुरआन में बहुत सम्मान के साथ उल्लेख है। उन्हें ईश्वर की बात और ईश्वर की आत्मा की उपाधि के रूप में याद किया गया है। पवित्र क़ुरआन में हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम का 45 बार उल्लेख है और कई बार उन्हें मसीह के ख़िताब से याद किया गया है। उनकी मां हज़रत मरयम दुनिया की सदाचारी व चुनी हुयी महिलाओं में हैं। उन्होंने तपस्या से ईश्वर का सामिप्य हासिल किया। यहां तक कि ईश्वरीय फ़रिश्ते ने उन्हें हज़रत मसीह के शुभ जन्म की ख़ुशख़बरी दी।
हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम का जन्म पवित्र ईश्वर की निशानियों में है कि उसने अपनी कुछ मख़लूक़ की पैदाइश को किसी कारण के अधीन नहीं रखा है। कुछ लोगों ने हज़रत ईसा के बिना बाप के जन्म को उनके ईश्वर होने की दलील दी जबकि कुछ लोगों ने इसे उनकी मां पर लाछन लगाने के लिए एक सुबूत माना या उनकी पैदाइश पर ही शक किया। ईसाइयों का एक गुट पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल लाहो अलैहि व आलेही व सल्लम से मिलने मदीना पहुंचा। उन्होंने पैग़म्बरे इस्लाम से बातचीत के दौरान हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम की बिना बाप के पैदाइश को उनके ईश्वर होने का चिन्ह कहा। इस बीच पैग़म्बरे इस्लाम पर सूरे आले इमरान की आयत नंबर 59 उतरी जिसमें ईश्वर ने उनके जवाब में कहा, “मरयम के बेटे ईसा की पैदाइश आदम की पैदाइश की तरह है (बल्कि आदम की पैदाइश अधिक अहम है)” अगर बिना बाप के पैदा होना उनके ईश्वर होने का चिन्ह है तो फिर हज़रत आदम को भी जिन्हें बिना मां-बाप के पैदा किया गया ईश्वर माने हालांकि उनके बारे में किसी ने इस प्रकार की बात नहीं कही है।
हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम का जिस दौर में जन्म हुआ वह अत्याचार से भरा हुआ दौर था। वह ऐसा दौर था जिसमें एक ईश्वरीय दूत के वजूद की ज़रूरत महसूस हो रही थी ताकि लोगों का मार्गदर्शन हो और वे पथभ्रष्टता से मुक्ति पाएं। हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम ने अपनी पैग़म्बरी का एलान किया और लोगों को सदाचारिता व एकेश्वरवाद की ओर बुलाया। उन्होंने बनी इस्राईल की मुक्ति और उनके बीच व्याप्त गुमराही को ख़त्म करने के लिए बहुत कठिनाई झेली और बहुत बलिदान दिया। हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम बैतुल मुक़द्दस में विद्वानों के क्लास में पहुंचते, उनकी बात सुनते और उस पर विचार करते थे। वह देखते थे कि लोग बड़ी आसानी से इस तरह की बात सुनकर उस पर विश्वास कर लेते थे। हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम इस तरह ख़ुद को उनके साथ समन्वित नहीं कर सके और अपने विचार पेश करने के लिए लोगों के बीच आ गए और सत्य के ज़रिए विद्वानों के साथ बहस की यहां तक कि कुछ ज्योतिष हज़रत ईसा पर क्रोधित हुए और उनके सवालों को उन्होंने नज़रअंदाज़ किया। धीरे-धीरे हालात ऐसे हो गए कि जब भी हज़रत ईसा मसीह कोई बात कहते लोग उनकी बात पूरे ध्यान से सुनते। इस प्रकार वे लोग लाजवाब होने लगे जिनकी ग़लत आस्था थी। उस समय तक कोई ज्योतिषों की ग़लत आस्था के ख़िलाफ़ बहस नहीं करता या अपनी बात को ज्योतिषियों की बात पर वरीयता देता। लेकिन हज़रत ईसा उनकी आपत्तियों पर ध्यान नहीं देते। ज्योतिषियों में क्रोध व द्वेष भी हज़रत ईसा को उनकी शैली से नहीं रोक सका बल्कि वे उनके ख़िलाफ़ सवालों की भरमार करते और अपने तर्क से उन्हें लाजवाब कर देते थे।
हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम पर ईश्वरीय संदेश वही उतरती थी। ईश्वर ने उन्हें इंजील ग्रंथ के साथ लोगों के मार्गदर्शन के लिए नियुक्त किया। वह 30 साल की उम्र में पैग़म्बर नियुक्त हुए और लोगों को अपनी शिक्षा की ओर बुलाते और इस बात की कोशिश करते कि यहूदियों को पथभ्रष्टता से बचाएं और उन वर्जित व वैध चीज़ों को उनके सामने बयान करें जिनके बारे में उनमें मतभेद हैं। हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम की एक ज़िम्मेदारी यह भी थी कि वह अपने बाद आने वाले ईश्वरीय दूत अर्थात पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मोहम्मद मुस्तफ़ा सल्लल लाहो अलैहि व आलेही व सल्लम के आगमन की शुभ सूचना दें कि जिनका नाम बाइबल में ‘अहमद’ है। ईश्वर ने इस घटना को हज़रत ईसा की ज़बान से यूं बयान किया है, “और जब ईसा बिन मरयम ने कहा, हे बनी इस्राईल! निःसंदेह मैं ईश्वर की ओर से तुम्हारी ओर भेजा गया हूं और तौरैत की पुष्टि करता हूं और तुम्हे अपने बाद आने वाले पैग़म्बर की शुभसूचना देता हूं जिसका नाम अहमद है।”
इस्लामी क्रान्ति के संस्थापक इमाम ख़ुमैनी रहमतुल्लाह अलैह हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम के उच्च स्थान के बारे में कहते हैं, “इस्लाम में हज़रत ईसा का बहुत सम्मान है। उन्हें बहुत बड़ा ईश्वरीय दूत माना है। उनका और उनकी मां हज़रत मरयम का पवित्र क़ुरआन में बहुत समर्थन किया गया है। हम मुसलमान हज़रत मसीह को ईश्वर का बड़ा पैग़म्बर मानते हैं। क़ुरआन में हज़रत मसीह को बड़ा पैग़म्बर कहा गया है।” एक अन्य स्थान पर इमाम ख़मैनी कहते हैं, “हज़रत ईसा मसीह का पूरा वजूद ही चमत्कार था। वह ऐसी मां से पैदा हुए जिन्हें किसी पुरुष ने छुआ नहीं था। चमत्कार यह था कि उन्होंने पालने में बात किया। यह चमत्कार था कि मानवता के लिए शांति व अध्यात्म लाए। ईसा मसीह शांति के दूत थे और वे चाहते थे कि दुनिया में शांति रहे।”
मानव जाति की मुक्ति का अंतिम नुस्ख़ा पेश करने वाले धर्म के रूप में इस्लाम, दूसरे आसमानी धर्म और ईश्वरीय दूतों की पुष्टि करता है और सबसे उनके सम्मान का आहवान करता है। इसी तरह दूसरे आसमानी धर्मों की तरह इस्लाम भी एकेश्वरवाद का ध्वजवाहक है। ईश्वर इस बारे में पवित्र क़ुरआन के निसा सूरे की आयत नंबर 136 में कहता है, “हे ईमान लाने वालो! ईश्वर, उसके पैग़म्बरे और उस पर उतरे ग्रंथ और उससे पहले उतरने वाले ग्रंथों पर आस्था रखो तो जो कोई भी ईश्वर, उसके फ़रिश्तों, उसके पैग़म्बरों व किताबों का इंकार करे तो वह पथभ्रष्टता में है।” इस्लाम ने सभी ईश्वरीय दूतों की पुष्टि की है और मुसलमान भी सभी ईश्वरीय दूतों को मानते हैं। इन महापुरुषों के नैतिक व शैक्षिक निर्देशों का पालन, मुक्ति के ख़ज़ाने तक पहुंचाने वाले मानचित्र की तरह है।
ईरान में ईसाई हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम के शुभ जन्म दिवस का जश्न मनाते हैं। तेहरान, इस्फ़हान और तबरीज़ जैसे बड़े शहरों में दुकानों के शोकेस, सुपर मार्केट व होटलों के प्रवेश द्वार और इन शहरों में ईसाई मोहल्लों में क्रिस्मस ट्री लाल, हरे और सुनहरे रंग के उपहारों के पैकेट से सजे होते हैं। ईरान में कुछ ईसाई 25 दिसंबर को क्रिसमस मनाते हैं और पहली जनवरी को नव वर्ष का जश्न मनाते हैं जबकि अर्मनी ईसाई 6 जनवरी को क्रिसमस मनाते हैं।
ईरान में ईसाइयों, यहूदियों और ज़रतुश्तियों को धार्मिक अल्पसंख्यक के रूप में मान्यता दी गयी है और ईरानी संसद में उनका प्रतिनिधित्व भी है। ये अल्पसंख्यक पूरी आज़ादी से अपने धार्मिक समारोह का आयोजन करते हैं।
ईरान में एक अर्मनी ईसाई राफ़ी मोरादयान्स का कहना है, “किसी भी इस्लामी देश में ईसाई उस तरह क्रिसमस का जश्न नहीं मना सकते जिस तरह हम ईरान में मनाते हैं।”
ईरान की 8 करोड़ की आबादी का 97 फ़ीसद हिस्सा मुसलमान है और 3 फ़ीसद ग़ैर मुसलमान है। इसके बावजूद इस्लामी गणतंत्र ईरान के संविधान में आसमानी धर्मों के अनुयाइयों को बहुत से मामलों में मुसलमानों के समान अधिकार हासिल हैं।