पवित्र रमज़ान का महीना इस्लामी जगत की उस महान महिला के स्वर्गवास की याद दिलाता है जो पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल लाहो अलैहि व आलेही व सल्लम की बहुत अच्छी जीवन साथी थीं।
ऐसी महिला जिसने पैग़म्बरे इस्लाम के हर सुख-दुख में साथ दिया और ईश्वरीय दायित्व पैग़म्बरी के निर्वाह में पैग़म्बरे इस्लाम के हमेशा साथ खड़ी रहे।
सलाम हो हज़रत ख़दीजा पर! ऐसी महान महिला जिससे पैग़म्बरे इस्लाम विभिन्न मामलों में सलाहकार के तौर पर मदद लेते थे। सलाम हो सत्य की गवाही देने वाली महान महिला हज़रत ख़दीजा पर।
हज़रत ख़दीजा सदाचारिता, सौंदर्य, व्यक्तित्व व महानता की दृष्टि से अपने समय की महिलाओं की सरदार थीं। वह ऐसे वंश से थीं जो अपने अदम्य साहस के लिए मशहूर था। वह उच्च व्यक्तित्व, स्थिर विचार और सही दृष्टिकोण की स्वामी महिला थीं।
मोहद्दिस क़ुम्मी कहते हैं, “हज़रत ख़दीजा अलैहस्सलाम का ईश्वर के निकट इतना उच्च स्थान था कि उनकी पैदाइश से पहले ईश्वर ने हज़रत ईसा को संदेश में हज़रत ख़दीजा को मुबारका अर्थात बरकत वाली और स्वर्ग में हज़रत मरयम की साथी कहा था क्योंकि बाइबल में पैग़म्बरे इस्लाम के चरित्र चित्रण की व्याख्या में आया है कि उनका वंश एक महान महिला से चलेगा।”
वह इस्लाम के प्रसार में दृढ़ता और न्याय के मार्ग में आश्चर्यजनक हद तक क्षमाशीलता के कारण न सिर्फ़ क़ुरैश की महिलाओं बल्कि दुनिया की महिलाओं की सरदार कही गयीं। पैग़म्बरे इस्लाम ने उनकी प्रशंसा में फ़रमाया, “ईश्वर ने महिलाओं में 4 श्रेष्ठ महिलाओं हज़रत मरयम, हज़रत आसिया, हज़रत ख़दीजा और हज़रत फ़ातिमा ज़हरा को चुना।” उसके बाद पैग़म्बरे इस्लाम ने आगे फ़रमाया, “हे ख़दीजा! तुम ईमान लाने वालों की बेहतरीन मां हो, दुनिया की महिलाओं में सर्वश्रेष्ठ और उनकी सरदार हो।”
अरब में अज्ञानता के काल में बहुत सी महिलाएं उस दौर की बुराइयों में ग्रस्त थीं लेकिन हज़रत ख़दीजा उस दौर में भी चरित्रवान थीं और इसी शुचरित्रता की वजह से उन्हें पवित्र कहा जाता था। उस काल में हज़रत ख़दीजा का हर कोई सम्मान करता और महिलाओं की सरदार कहता था।
वह अपने यहां काम करने वाले उच्च नैतिक मूल्यों से संपन्न एक महान इंसान के व्यक्तित्व से सम्मोहित हो गयीं। उस महान इंसान का नाम मोहम्मद था जो हज़रत ख़दीजा का व्यापारिक काम करते थे। हज़रत ख़दीजा ने तत्कालीन समाज की रीति-रिवाजों के विपरीत ख़ुद अपने विवाह का प्रस्ताव इस निर्धन जवान के सामने रखा जो निर्धन तो था मगर उसकी ईमानदारी का चर्चा था। हज़रत ख़दीजा ने पैग़म्बरे इस्लाम के साथ संयुक्त जीवन ईश्वर पर आस्था, प्रेम व बुद्धिमत्ता के माहौल में शुरु किया। हज़रत ख़दीजा अपने जीवन साथी से अथाह श्रद्धा रखती थीं, काम में उनकी मदद करतीं थीं और जीवन के हर कठिन मोड़ पर पैग़म्बरे इस्लाम का साथ देती थीं। हज़रत ख़दीजा पहली महिला हैं जो पैग़म्बरे इस्लाम पर ईमान लायीं। हज़रत अली अलैहिस्सलाम क़ासेआ नामक अपने भाषण में कहते हैं, “जिस दिन पैग़म्बरे इस्लाम ईश्वरीय दूत नियुक्त हुए, इस्लाम का प्रकाश पैग़म्बरे इस्लाम और हज़रत ख़दीजा के घर के सिवा किसी और घर में न पहुंचा और में उनमें तीसरा था जो ईश्वरीय संदेश वही व ईश्वरीय दायित्व के प्रकाश को देखता और पैग़म्बरी की ख़ुशबू को सूंघता था।”
इस्लाम का प्रकाश हज़रत ख़दीजा के अस्तित्व में समा गया और उस प्रकाश ने उनका मार्गदर्शन किया। इस्लाम की एक विशेषता यह है कि यह क्रान्तिकारी आस्था इंसान की बुद्धि व प्रवृत्ति से समन्वित है। यह प्रकाश जिस मन में पहुंच जाए उसमें बलिदान व त्याग की भावना पैदा कर देता है। यही भावना हज़रत ख़दीजा में भी जागृत हुयी।
हज़रत ख़दीजा उस समय की कटु राजनैतिक व सामाजिक बातों के प्रभाव को कि जिनसे पैग़म्बरे इस्लाम को ठेस पहुंचती थी, अपनी साहसी बातों से ख़त्म कर देती थीं और पैग़म्बरे इस्लाम की ईश्वरीय मार्ग पर चलने में मदद करती थीं। इसी आस्था व बलिदान के नतीजे में हज़रत ख़दीजा उस स्थान पर पहुंची कि ईश्वर ने उन्हें सलाम कहलवाया।
अबू सईद ख़दरी कहते हैं कि पैग़म्बरे इस्लाम ने फ़रमाया, “जब मेराज की रात जिबरईल मुझे आसमानों पर ले गए और उसकी सैर करायी तो लौटते वक़्त मैने जिबरईल से कहा, मुझसे कोई काम है? जिबरईल ने कहा, “मेरा काम यह है कि ईश्वर और मेरा सलाम ख़दीजा को पहुंचा दीजिए।” पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल लाहो अलैहि व आलेही व सल्लम जब ज़मीन पर पहुंचे तो हज़रत ख़दीजा तक ईश्वर और जिबरईल का सलाम पहुंचाया। हज़रत ख़दीजा ने कहा, ईश्वर की हस्ती सलाम है, सलाम उसी से है, सलाम उसी की ओर पलटता है और जिबरईल पर भी सलाम हो।”
हज़रत ख़दीजा सलामुल्लाह अलैहा ने पैग़म्बरे इस्लाम के साथ 24 साल वैवाहिक जीवन बिताया। इस दौरान उन्होंने पैग़म्बरे इस्लाम और इस्लाम की बहुत सेवा की। उन्होंने उस समय पैग़म्बरे इस्लाम की आत्मिक, भावनात्मक और वित्तीय मदद की और उनकी पैग़म्बरी की पुष्टि की जब पैग़म्बरे इस्लाम को पैग़म्बर मानने के लिए कोई तय्यार न था। अनेकेश्वरवादियों के मुक़ाबले में हज़रत ख़दीजा की पैग़म्बरे इस्लाम को मदद, उनकी मूल्यवान सेवा का बहुत बड़ा भाग है। हज़रत ख़दीजा जब तक ज़िन्दा रहीं उस वक़्त तक अनेकेश्वरवादियों को इस बात की इजाज़त न दी कि वे पैग़म्बरे इस्लाम को यातना दें। जब पैग़म्बरे इस्लाम दुख से भरे घर लौटते थे तो हज़रत ख़दीता उनकी ढारस बंधातीं और उनके मन को हलका करती थीं। हज़रत ख़दीजा अरब प्रायद्वीप की सबसे धनवान महिला थीं। वह कितनी धनवान थी इसका अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि उनके पास लगभग 80000 ऊंट थे और ताएफ़, यमन, सीरिया और मिस्र सहित दूसरे क्षेत्रों में दिन रात उनके व्यापारिक कारवां का तांता बंधा रहता था। उन्होंने अपने सारे दास-दासियों और धन को पैग़म्बरे इस्लाम के अधिकार में दे दिया था और अपने चचेरे भाई वरक़ा बिन नोफ़ल से कहा, “लोगों के बीच एलान करो कि ख़दीजा ने अपनी सारी संपत्ति हज़रत मोहम्मद को भेंट की है। हज़रत ख़दीजा की संपत्ति इस्लाम के आगमन के आरंभ से इस्लाम की सेवा व प्रसार में ख़र्च होने लगी। यहां तक कि हज़रत ख़दीजा के धन का अंतिम भाग हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने मक्के से मदीना पलायन के समय ख़र्च किया।”
इस संबंध में पैग़म्बरे इस्लाम फ़रमाते हैं, “कोई भी संपत्ति मेरे लिए ख़दीजा अलैहस्सलाम की संपत्ति से ज़्यादा लाभदायक न थी।”
हज़रत ख़दीजा अलैहस्सलाम का इस्लाम के समर्थन में साहसिक दृष्टिकोण वह भी अज्ञानता भरे काल में, बहुत बड़ा कारनामा था जिसने इस्लाम के प्रसार का रास्ता खोला। इस बारे में तबरसी लिखते हैं, “ख़दीजा और अबू तालिब पैग़म्बरे इस्लाम के दो सच्चे व भरोसेमंद साथी थे। दोनों ही एक साल में इस नश्वर संसार से चल बसे और इस प्रकार पैग़म्बरे इस्लाम को दो दुख सहने पड़े। हज़रत अबू तालिब और ख़दीजा की मौत का दुख! यह ऐसी हालत में था कि हज़रत ख़दीजा एक बुद्धिमान व वीर सलाहकार थीं और उनके निडर व वीरता भरे समर्थन ने पैग़मबरे इस्लाम की बड़ी बड़ी समस्याओं का सामना करने में मदद की और वह अपनी मोहब्बत से उनके मन को सुकून पहुंचाती थीं।”
यह चीज़ हज़रत ख़दीजा और पैग़म्बरे इस्लाम की अन्य महिलाओं के बीच अंतर को स्पष्ट करती है। यही वह अंतर था जिसकी वजह से पैग़म्बरे इस्लाम उनके जीवन के अंतिम क्षण तक उनसे प्रेम करते रहे।
पैग़म्बरे इस्लाम की एक पत्नी हज़रत आयशा कहती हैं, “पैग़म्बर की किसी भी पत्नी से मुझे इस हद तक ईर्ष्या नहीं थी जितनी ख़दीजा से थी क्योंकि वह पैग़म्बरे इस्लाम के मन के संवेदनशील भाग पर इस तरह विराजमान थीं कि पैग़म्बरे इस्लाम हर उस चीज़ व व्यक्ति को जिसका उनसे संबंध होता था, अलग ही नज़र से देखते थे।”
पैग़म्बरे इस्लाम की कुछ बीवियां यह सोचती थीं कि पैग़म्बरे इस्लाम चूंकि समाज के मुखिया व मार्गदर्शक हैं, भविष्य में उन्हें धनवानों जैसा जीवन प्रदान करेंगे लेकिन वर्षों बीतने के बाद भी धनवानों जैसे जीवन की कोई ख़बर न थी। इस्लाम के प्रसार के बाद कुछ बीवियां हर जगह हर चीज़ में पैग़म्बरे इस्लाम से बहस करतीं और उनसे ज़्यादा ख़र्च की मांग करती थीं यहां तक कि पैग़म्बरे इस्लाम की नसीहत भी उन पर असर न करती थी। रवायत में है कि एक दिन हज़रत अबू बक्र पैग़म्बरे इस्लाम के पास पहुंचे तो देखा कि पैग़म्बरे इस्लाम की बीवियां भी उनके पास मौजूद थीं। उन्होंने देखा कि पैग़म्बरे इस्लाम दुखी हैं। जब उन्हें लगा कि उनकी बेटी हज़रत आयशा ने अपनी मांगों से पैग़म्बरे इस्लाम को दुखी किया है तो वे अपनी जगह से उठे ताकि उन्हें सज़ा दें। उस समय अहज़ाब सूरे की आयत नंबर 28 और 29 नाज़िल हुयी जिसमें पैग़म्बरे इस्लाम की बीवी को यह अख़्तियार दिया गया कि वे विलासमय जीवन और पैग़म्बरे इस्लाम के बीच किसी एक को चुनें। तब उन्हें पता चला कि सबसे बड़ी संपत्ति पैग़म्बरे इस्लाम का साथ है।
हज़रत ख़दीजा ने, जिन पर ईश्वर का दुरूद हो, उस समय जब पैग़म्बरे इस्लाम और उनके साथियों की दुश्मनों ने शेबे अबु तालिब नामक घाटीमें आर्थिक व सामाजिक नाकाबंदी कर रखी थी, कुछ लोगों को खाना-पानी ख़रीदने के लिए भेजती जो छिप कर बहुत महंगी क़ीमत पर खाना पानी ख़रीदते और उसे नाकाबंदी में घिरे पैग़म्बरे इस्लाम और उनके साथियों तक पहुंचाते। हज़रत आयशा कहती हैं कि पैग़म्बरे इस्लाम जब कोई भेड़-बकरी ज़िबह करते तो पहला हिस्सा हज़रत ख़दीजा की सहेलियों को भिजवाते थे। एक बार मैंने इस पर आपत्ति की कि आप कब तक हज़रत ख़दीजा का गुणगान करते रहेंगे? उन्होंने कहा, क्योंकि वह उस समय मुझ पर ईमान लायीं जब लोग नास्तिक थे। उस समय उन्होंने मेरी पुष्टि की जब लोग मुझे झूठा कहते थे और अपनी संपत्ति मेरे हवाले कर दी जब लोगों ने मुझे वंचित कर रखा था।
अलख़साएसुल फ़ातेमिया नामक किताब में आया है, “यह बात मशहूर है कि जिस समय हज़रत ख़दीजा का देहांत हुआ, ईश्वर ने फ़रिश्तों के हाथों हज़रत ख़दीजा के लिए विशेष कफ़न पैग़म्बरे इस्लाम को भिजवाया। यह चीज़ हज़रत ख़दीजा की महानता का पता देने के साथ साथ पैग़म्बरे इस्लाम के सुकून का सबब भी बनी।”