इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम की शहादत

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इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम का पवित्र रौज़ा ईरान के पवित्र नगर मशहद में श्रद्धालुओं से भरा पड़ा है।

इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम की शहादत के दुःखद अवसर पर लोग श्रद्धा सुमन अर्पित करने के लिए उनके पवित्र रौज़े पर जा रहे हैं। रौज़े पर जाने वालों में बूढ़े, बच्चे, जवान और महिलाएं सब शामिल हैं। इस दुःखद अवसर पर हम एक बार फिर आप सबकी सेवा में हार्दिक संवेदना प्रस्तुत करते हैं।

 

183 हिजरी क़मरी में इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम शहीद हो गये। उस समय इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम की उम्र 35 साल थी। अपने पिता की शहादत के बाद इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम ने लोगों के मार्गदर्शन का ईश्वरीय दायित्व संभाला। 201 हिजरी कमरी तक वे पवित्र नगर मदीना में रहे। उसी साल एक राजनीतिक चाल के तहत अब्बासी ख़लीफा मामून ने इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम का आह्वान किया कि वह मदीना से मर्व आ जायें। मर्व ईरान के खुरासान प्रांत का एक नगर है। उस समय वह अब्बासी शासकों की राजधानी था। इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम की मर्व की यात्रा उनके पावन जीवन का एक महत्वपूर्ण मोड़ था। क्योंकि इस यात्रा से इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम की आध्यात्मिक महानता और शैक्षिक स्थान अधिक स्पष्ट हो गया। इस प्रकार से कि जब मर्व और खुरासान के लोग इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम की महानता और उनके महत्व से अगवत हो गये तो वे निकट से इमाम से मिलने और उनके ज्ञान के अथाह सागर से लाभ उठाने की अभिलाषा करने लगे। इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम लगभग दो साल तक मर्व अर्थात प्राचीन खुरासान में रहे। उसके दो साल बाद 203 हिजरी कमरी में मामून अब्बासी ने उन्हें ज़हर दिलवा दिया जिसके कारण इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम सफर महीने के अंतिम दिन शहीद हो गये।

                      

इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहि व आलिही व सल्लम और दूसरे इमामों की भांति नैतिकता और बंदगी की सही जीवन शैली के मापदंड थे। इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम और दूसरे इमामों ने जिन कार्यों से मना किया है वह उन कार्यों की गूढ़ पहचान का नतीजा है। इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम पवित्र कुरआन की आयतों से लाभ उठाकर और पवित्र कुरआन को अपने जीवन में उतार कर एकेश्वरवाद का बीज बोते थे। इसी प्रकार इमाम पवित्र कुरआन से लाभ उठाकर अपना और दूसरों का ध्यान महान व सर्वसमर्थ ईश्वर की ओर दिलाते थे। लोगों को मुक्ति व कल्याण का मार्ग दिखाते थे। इमाम अलैहिस्सलाम एक सुन्दर बयान में फरमाते हैं” हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम की अंगूठी पर यह दो वाक्य लिखे हुए थे जिन्हें इंजिल से लिया गया था “धन्य है वह बंदा जिसका देखना ईश्वर की याद का कारण बनता है और खेद है उस बंदे पर जिसका देखना ईश्वर के भूलने का कारण बने।“

इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम की उम्र 55 साल थी जिसमें से 20 साल तक उन्होंने इमामत की अर्थात लोगों के मार्गदर्शन का ईश्वरीय दायित्व संभाला। यह वह समय था जब ज्ञान परवान चढ़ रहा था। उस समय इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम विभिन्न धर्मों के विद्वानों से शास्त्रार्थ करके सबको हतप्रभ कर रहे थे। आसमानी किताबों के प्रति इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम के ज्ञान को देखकर सब चकित हो जाते थे। इस्लामी विद्वानों का मानना है कि इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम की जो बातें हैं वे एक प्रकार से एकेश्वरवाद, नबुव्वत, इमामत, प्रलय, ईमान और कुफ्र आदि के बारे में कुरआन की आयतों की व्याख्या हैं। वास्तव में उनकी जो नसीहतें हैं वे रज़ा अलैहिस्सलाम की जीवन शैली है। आपके कथन नैतिकता के बारे में पवित्र कुरआन की आयतों के परिचायक है और पवित्र कुरआन इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम की कथनी, करनी और विचारों में साक्षात हुआ है।

इब्राहीम बिन अब्बास इस बारे में कहता है” इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम की बात, जवाब और बयान सबका स्रोत कुरआन होता था। वे हर तीन दिन में एक पूरा कुरआन ख़त्म कर देते और फरमाते थे” अगर मैं चाहता तो तीन दिन से पहले पूरा कुरआन खत्म कर लेता लेकिन मैं किसी आयत को पढ़कर नहीं गुज़रता किन्तु यह कि मैं उसके बारे में सोचता हैं कि वह कहां नाज़िल हुई?

इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम के एक अनुयाई ने आप से पूछा कि क़ुरआन के बारे में आपका क्या ख़याल है? इमाम ने जवाब में फरमाया कुरआन ईश्वरीय वाणी है उसकी सीमा को पार न करो और कुरआन के प्रकाश के अलावा कहीं और पथप्रदर्शन न ढूंढ़ो। अगर कहीं और से मार्गदर्शन चाहोगे तो गुमराह हो जाओगे।“

इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम ने अपनी इस बात से स्पष्ट कर दिया कि मार्ग दर्शन पवित्र कुरआन की शिक्षाओं में है और उससे आगे बढ़ जाना या पीछे रह जाना पथभ्रष्टता है। इमाम पवित्र कुरआन को मजबूत रस्सी और बंदों के मध्य सर्वोत्तम कानून बताते थे। क़ुरआन इंसान का मार्ग दर्शन स्वर्ग की ओर करता है और नरक से मुक्ति दिलाता है। समय बीतने से वह पुराना नहीं होगा और लोगों की जबानों पर उसके दोहराने से उसका मूल्य व प्रभाव कम नहीं होगा क्योंकि ईश्वर ने उसे किसी विशेष समय के लिए नाज़िल नहीं किया है बल्कि वह समस्त इंसानों के लिए सर्वकालिक है और उसमें किसी प्रकार असत्य प्रवेश नहीं कर सकता। वह तत्वदर्शी और प्रशसनीय ईश्वरीय की ओर से नाज़िल किया गया है।

इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम को आले मोहम्मद के ज्ञानी की उपाधि दी गयी है। अबासल्त ने लिखा है कि इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम अपने बेटों से कहते थे कि तुम्हारे भाई अली बिन मूसा पैग़म्बर के परिवार के ज्ञानी हैं। अपनी धार्मिक ज़रूरतों और शिक्षाओं को उनसे सीखो और उन्होंने जो कुछ तुम्हें सिखाया है उसे याद रखो।

अब्बासी खलीफा मामून इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम की उपस्थिति में शास्त्रार्थ करवाता था। इस कार्य से वह यह नहीं चाहता था कि इमाम के ज्ञान की जो महानता है और पैगम्बरे इस्लाम के परिवार की जो सच्चाई है वह स्पष्ट हो बल्कि वह विभिन्न धर्मों व सम्प्रदायों के विद्वानों को बुलाता था और इमाम से उनका शास्त्रार्थ करवाता था ताकि उसके विचार में इस मार्ग से वह इमाम पर दबाव डाल सके। मामून जो सोचता था उसके विपरीत इस प्रकार के शास्त्रार्थों से उसे कोई लाभ नहीं पहुंचा बल्कि ज्ञान की सभाओं और शास्त्रार्थों से मामून की सरकार और उसकी खिलाफत के लिए समस्याएं उत्पन्न हो गयीं। इसी वजह से जब मामून यह समझ गया कि शास्त्रार्थों में इमाम की होशियारी भरी उपस्थिति से वह विद्वानों और लोगों के ध्यान का केन्द्र बन गये हैं और इमाम की इमामत के लिए भूमि प्रशस्त हो गयी है तो उसने इमाम को नियंत्रित करने का प्रयास किया। विद्वानों और लोगों के साथ इमाम के जो संबंध थे उसे मामून ने सीमित करने की चेष्टा की। इसी तरह उसने इमाम के साथ होने वाली बहसों और शास्त्रार्थों को प्रकाशित होने से रोकने का प्रयास किया। इसीलिए उसने मोहम्मद बिन अम्र को तूस भेजा ताकि वह लोगों को इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम की ज्ञान की सभाओं से दूर करे।

इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम आध्यात्मिक और उपासना के मामलों पर विशेष ध्यान देते थे। इमाम रज़ा अलैहस्सलाम अपने काल के सबसे सदाचारी उपासक थे और समस्त सदगुणों से सुसज्जित होने के कारण उन्होंने मानवता को वास्तविक अर्थ प्रदान कर दिया था।

रज़ा बिन अबी ज़ह्हाक कहता है ईश्वर की सौगन्ध किसी को भी मैंने इमाम रज़ा से बड़ा सदाचारी, ईश्वर को याद करने वाला और उससे डरने वाला नहीं पाया। इमाम हमेशा मुसलमानों की समस्याओं पर ध्यान देते थे और उनके निदान के लिए बहुत प्रयास करते थे। बीमारों को देखने के लिए जाते और बहुत ही नम्र भाव से अतिथि सत्कार करते थे। इमाम रज़ा अलैहिस्लाम के ज्ञान के कारण इस्लामी जगत के विद्वान और महान हस्तियां उनकी सेवा में हाज़िर होती थीं। इमाम अलैहिस्सलाम ने अपनी इमामत के काल में बहुत से विद्वानों का शिक्षण -प्रशिक्षण किया। आपने पवित्र कुरआन की व्याख्या, हदीस, नैतिकता, धार्मिक आदेश और इस्लामी चिकित्सा आदि के बारे में मूल्यान रचनाएं छोड़ी हैं।

इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम समस्याओं का समाधान करने वाली इस्लाम की शिक्षाओं को लोगों के लिए बयान करते थे। इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम जब मदीना में थे तो उन्होंने बहुत से शिष्यों को एकत्रित कर लिया था और उनका प्रशिक्षण करते थे। जो लोग इमाम रज़ा के पास एकत्रित थे और वे इमाम के शिष्य बन गये थे वे इमाम के अथाह ज्ञान के सागर से स्वयं को तृप्त करते थे। इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम के एक शिष्य ज़करिया बिन आदम थे जिन्हें इमाम ने ईरान के कुम नगर में अपना प्रतिनिधि बनाकर भेजा था। इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम उनके नाम एक पत्र में लिखते हैं” ईश्वर तुम्हारी वजह से क़ुम नगर से विपत्तियों को दूर करता है जिस तरह से आपदा को इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम के अस्तित्व के कारण बग़दाद के लोगों से दूर करता है।“

इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम के शिष्यों की संख्या काफी अधिक है। यूनुस बिन अब्दुर्रहमान, सफवान बिन यहिया, हसन बिन महबूब और अली बिन मीसम का नाम इमाम के शिष्यों में लिया जा सकता है।

 

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