महापुरुष व बुद्धिमान लोग अपने जीवन काल के बेहतरीन अनुभवों को प्रवचन व वसीयत के रूप में , परलोक की यात्रा की प्रतीक्षा कर रहे थे।
ज़बान व क़लम से बयान करते हैं ताकि आने वाले लोगों के लिए जीवन का पाठ बने। हज़रत अली अलैहिस्सलाम का संपूर्ण जीवन ही पाठ लेने योग्य है और उन्होंने विशेष अवसरों पर अपने बच्चों व साथियों को मूल्यवान वसीयतें व नसीहतें की हैं। ये सभी अनुशंसाएं मूल्यवान हैं किन्तु हज़रत अली (अ) के जीवन की अंतिम वसीयत विशेष महत्व रखती है। हज़रत अली (अ) ने अपने जीवन की अंतिम घंड़ियों में यह वसीयत की है। जिस समय वह सबसे दुष्ट व्यक्ति की विष में बुझी हुयी तलवार के घाव के कारण बिस्तर पर
इस अंतिम भेंट के समय हज़रत अली की इच्छानुसार उनके सभी बेटे उनके पास बैठे हुए थे। वे सब भीगी आंखों से अपने दयालु पिता को देख रहे थे ताकि उनकी बात सुनें। हज़रत अली के अनुरोध पर बनी हाशिम के बड़े व समझदार लोग भी उपस्थित थे। हज़रत अली का बिस्तर अपेक्षाकृत एक बड़े कमरे में बिछा हुआ था। जो भी कमरे में प्रविष्ट होता हज़रत अली को देख कर सहज ही रोने लगता किन्तु इमाम अली उन्हें ढारस बंधाते हुए कहते थेः धैर्य रखो, बेचैन मत हो। यदि जान जाओ कि मैं क्या सोच व देख रहा हूं तो कदापि दुखी न होगे। जान लो कि मेरी बस यही इच्छा है कि यथाशीघ्र अपने सरदार पैग़म्बरे इस्लाम (स) के पास पहुंच जाउं। मैं चाहता हूं कि अपनी दयालु व त्यागी पत्नी फ़ातिमा ज़हरा से जल्दी से जल्दी भेंट करूं।
हज़रत अली की दृष्टि सभी के पूरे अस्तित्व में समायी जा रही थी। वे एक के बाद एक सबको देखते जा रहे थे कि उनकी दृष्टि अपने सबसे बड़े बेटे हज़रत हसन पर जाकर ठहर गयी जिनकी आंखों से आंसू बह रहे थे। उन्हें देख कर हज़रत अली ने आह भर कर कहाः बेटा हसन! और निकट आओ! तुम्हारे आकर्षक चेहरे को देख कर पैग़म्बरे इस्लाम की याद ताज़ा हो जाती थी। तुम में झलक पैग़म्बरे इस्लाम की इतनी अधिक झलक आती है कि आश्चर्य होता है। इमाम हसन आगे बढ़े और हज़रत अली के पास बैठ गए। फिर हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने एक संदूक़ लाने का आदेश दिया। सबके सामने संदूक़ को खोला। ज़ुल्फ़ेक़ार नामक तलवार, पैग़म्बरे इस्लाम की पगड़ी व चादर मोहरबंद पुस्तिका और स्वंय एकत्रित किए गए क़ुरआन सब एक एक करके इमाम हसन के हवाले किये और उपस्थित लोगों को गवाह बनाते हुए कहाः तुम सब गवाह रहो! मेरे बाद पैग़म्बरे इस्लाम के नाती हसन इमाम व मार्गदर्शक हैं। फिर अपना चेहरा इमाम हसन की ओर मोड़ कर उन्हें देखने लगे। कई बार उन्हें सिर से पैर तक निहारा और कहाः प्रिय हसन! और निकट आओ तुम्हारा चेहरा सबसे अधिक पैग़म्बरे के चेहरे से मिलता है और तुम्हारा शरीर भी सबसे अधिक पैग़म्बरे इस्लाम के शरीर से मिलता है। तुम दोनों पैग़म्बरे इस्लाम के पुत्र हो।
हज़रत अली ने फिर इमाम हसन को संबोधित करते हुए कहाः मेरे बेटे! मेरे बाद तुम समाज के ज़िम्मेदार होगे। यदि मेरे हत्यारे को छोड़ने का निर्णय लो तो तुम्हें अधिकार है और यदि उसे उसके कृत्य का दंड देने का निर्णय लेना तो उसके सिर पर केवल एक ही वार करना, ध्यान रहे कि बदला लेने में ईश्वरीय सीमाओं से आगे न निकलना। अब मेरे बेटे काग़ज़ व क़लम ले आओ और सबके सामने जो कह रहा हूं उसे लिखो। इमाम हसन (अ) हज़रत अली (अ) के आदेश पर क़लम काग़ज़ ले आए और अपने पिता की वसीयत को लिखने के लिए तय्यार हो गए। हज़रत अली ने कहना आरंभ कियाः ईश्वर के नाम से जो अत्यंत कृपाशील व दयावान है। यह वह लिखित बात है जिसकी अली वसीयत कर रहा हैः उसकी पहली वसीयत यह है कि वह गवाही देता है कि अनन्य ईश्वर के अतिरिक्त कोई पूज्य नहीं है। वही ईश्वर जो अकेला है जिसका कोई सहभागी नहीं और इस बात की भी गवाही देता है कि मोहम्मद ईश्वर के बंदे और उसके पैग़म्बर हैं।
ईश्वर के अनन्य होने व पैग़म्बरे इस्लाम की पैग़म्बरी की गवाही हज़रत अली के पूरे अस्तित्व में बचपन से ही रच बस गयी थी। हज़रत अली उस समय से पैग़म्बरे इस्लाम के रहस्यों को जानते थे जब वे हेरा नामक गुफा में जाते और एकांत में अपने ईश्वर की उपासना करते थे। ईश्वरीय संदेश वही के प्रकाश को देखते और पैग़म्बरी की महक को सूंघते थे।
अनन्य ईश्वर व हज़रत मोहम्मद मुस्तफ़ा सल्लल लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम की पैग़म्बरी की गवाही के बाद हज़रत अली (अ) ने समाज के सबसे महत्वपूर्ण मामलों का चार आधारों पर उल्लेख किया। वे चार आधार ईश्वर से भय व इच्छाओं से मुक्ति, मुसलमानों के बीच एकता व समरस्ता, वंचितों व दरिद्रों की सहायता और सामाजिक सुरक्षा व शांति हैं। हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने छोटी किन्तु अमर व अथाह अर्थ समेटे हुए अपनी वसीयत में जो स्वतंत्रताप्रेमियों व बुद्धिमान लोगों के लिए एक स्थायी पथप्रदर्शक है, इस प्रकार फ़रमायाः मैं, आप लोगों और अपने बच्चों व परिवार के सदस्यों तथा जिन तक हमारा संदेश पहुंचे ईश्वर से भय रखने, मामलों को सुव्यवस्थित रूप से अंजाम देने और एक दूसरे से मेलजोल की अनुशंसा करता हूं। क्योंकि मैंने स्वंय पैग़म्बरे इस्लाम से सुना हैः लोगों के बीच मेल जोल कराना कई वर्ष के रोज़ों व नमाज़ से बेहतर है।
हज़रत अली अलैहिस्सलाम अपनी वसीयत का आरंभ ईश्वर का भय रखने से करते हैं क्योंकि ईश्वर के निकट सबसे अधिक सम्मानीय वही है जिसके मन में उसका भय सबसे अधिक है। सांसारिक तड़क-भड़क से स्वतंत्रता और सांसारिक मायामोह से पीछा छुड़ाना ईश्वर से भय रखने वाले की मुख्य विशेषता है जिसकी हज़रत अली (अ) अनुशंसा कर रहे हैं। जब व्यक्ति ईश्वर से भय रखेगा और उसके मन में चमक-दमक से भरे इस संसार का तनिक भी मोह नहीं होगा उस समय उसे इतनी शांति व स्वतंत्रता का आभास होगा कि वह सत्य के सिवा कुछ और नहीं कहेगा।
इसके बाद हज़रत अली अलैहिस्सलाम मामलों में सुव्यवस्था पर ध्यान व सामाजिक नियमों के प्रति कटिबद्धता को सभी स्वतंत्रताप्रेमियों व अच्छे लोगों के लिए आवश्यक बताते हैं और ईश्वर से भय के साथ साथ मामलों के सुनियोजित प्रबंधन पर बल देते हैं। एक प्रगतिशील व उच्च समाज में सामाजिक संबंध की सबसे आवश्यक व सफलता की पहली शर्त मामलों का सुव्यवस्थित प्रबंधन है। इमाम अली इसी प्रकार लोगों के बीच मेल-जोल व मैत्रीपूर्ण संबंध पर बल दिया और इसे इस्लामी समाज की आवश्यकताओं में गिनवाया है। निःसंदेह एक दूसरे से मनमुटाव व मतभेदों को हवा देना, एकता व विकास तथा उचित व्यक्तिगत व सामाजिक परिवर्तन के मार्ग में रुकावट है। लड़ाई-झगड़ा व गुटीय विवाद मानसिक व सामाजिक स्वास्थय के ख़राब होने तथा हर समाज के उचित विकास के मार्ग में रुकावट है। हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने अपने जीवन के अंतिम क्षणों में एकता बनाए रखने पर देते हुए लोगों के बीच मेल-जोल पैदा करने के लिए हर प्रकार के निष्ठा भरे प्रयास व मुस्लिम समाज में विभिन्न वर्गों के साथ सौहार्द को आम नमाज़ रोज़ों से बेहतर बताया है। इसके बाद मुसलमानों विशेष रूप से अनाथों व दरिद्रों की समस्याओं के निदान के महत्व के बारे में इन शब्दों में कहते हैः ईश्वर के लिए अनाथों के संबंध में सावधान रहो! ऐसा न हो कि वे कभी पेटभरे और कभी भूखे रह जाएं।
हज़रत अली मुसलमानों व वंचितों की समस्याओं के निदान की आवश्यकता के संबंध में समाज के सबसे अधिक कमज़ोर व संवेदनशील वर्ग अर्थात अनाथ बच्चों की ओर संकेत करते हैं और उनकी मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति पर बल देते हैं। हज़रत अली अलैहिस्सलाम अपनी वसीयत में अनाथों के बारे में सिफ़ारिश के पश्चात पड़ोसियों के अधिकारों पर बल देते हुए कहते हैः ईश्वर के लिए अपने पड़ोसियों के साथ अच्छा व्यवहार करो क्योंकि पैग़म्बरे इस्लाम ने उनके बारे में तुम्हें सिफ़ारिश की है।
हज़रत अली अलैहिस्सलाम अपनी अंतिम वसीयत में क़ुरआन पर ध्यान और इस अमर किताब के आदेशों के पालन पर बल देते हैं और नमाज़ पढ़ने की धर्म के मूल स्तंभों के रूप में सिफ़ारिश करते हैं और हज अंजाम देने के लिए ईश्वर के घर में उपस्थित होने पर बल देते हुए कहते हैः ईश्वर के लिए क़ुरआन पर ध्यान दो, ऐसा न हो कि दूसरे इसके आदेशापालन में तुमसे आगे निकल जाएं। ईश्वर के लिए नमाज़ पर ध्यान दो कि यह तुम्हारे धर्म का स्तंभ है और अपने ईश्वर के घर के अधिकार का पालन करो कि जब तक हो उसे ख़ाली न छोड़ो यदि इसका सम्मान न किया तो ईश्वरीय प्रकोप का शिकार हो जाओगे।
हज़रत अली अपनी मूल्यवान व अमर वसीयत के अंतिम भाग से पूर्व ईश्वर के मार्ग में जान व माल से संघर्ष, भले कर्म करने व बुरे कर्मों से दूर रहने, एक दूसरे के साथ मेल-जोल व मित्रता की सिफ़ारिश करते हैं और फिर अपनी वसीयत के अंतिम भाग में कहते हैः हे अब्दुल मुत्तलिब के बेटो! ऐसा न हो कि मेरी शहादत के बाद तुम अपनी आस्तीनें चढ़ा कर बाहर निकल आओ और मुसलमानों के ख़ून से हाथ रंग लो और यह कहने लगो कि मोमिनों के अमीर मार दिए गए। जान लो कि मेरे हत्यारे के अतिरिक्त कोई और न मारा जाए। जान लो अगर तलवार के इस वार के कारण मैंने संसार को अलविदा कह दिया तो तुम भी उसे केवल एक ही वार लगाना।