अल्लाह ने इंसान को दूसरी बहुत सी मख़लूक़ पर फ़ज़ीलत अता की है लेकिन वह अपनी हक़ीक़त को ख़ुद उसी समय पहचान सकता है जब वह अपने अंदर पाई जाने वाली शराफ़त को समझ ले और अपने आपको पस्ती, ज़िल्लत और नफ़्सानी ख़्वाहिशों से दूर समझे।
इरशाह होता है कि, बेशक हमने औलादे आदम को इज़्ज़त दी और हमने उनको ज़गलों और समुद्र पर हाकिम क़रार दिया और हमने उनको अपनी बहुत सारी मख़लूक़ पर फ़ज़ीलत दी। (सूरए बनी इस्राईल, आयत 70)
इंसान का बातिन अच्छे अख़लाक़ का मालिक होता है और वह अपनी उसी बातिन की ताक़त से हर नेक और बद को पहचान लेता है।
अल्लाह का इरशाद है कि, और क़सम है इंसान के नफ़्स की और उसके संयम की कि उसको (अल्लाह ने) अच्छी और बुरी चीज़ों की पहचान दी। (सूरए शम्स, आयत 7 से 9)
इंसान के दिल के सुकून का केवल इलाज अल्लाह की याद और उसका ज़िक्र है, उसकी ख़्वाहिशें बे इंतेहा हैं लेकिन ख़्वाहिशों के पूरा हो जाने के बाद वह उन चीज़ों से दूरी बना लेता है, लेकिन अगर वही ख़्वाहिशें अल्लाह की ज़ात से मिला देने वाली हों तो उसे उस समय तक चैन नहीं मिलता जब तक वह अल्लाह की ज़ात तक न पहुंच जाए।
इरशाह होता है कि, बेशक अल्लाह के ज़िक्र से ही दिलों को चैन मिलता है। (सूरए रअद, आयत 28)
या अल्लाह फ़रमाता है कि, ऐ इंसान तू अपने रब तक पहुंचने में बहुत तकलीफ़ बर्दाश्त करता है और आख़िरकार तुम्हें उससे मिलना है। (सूरए इंशेक़ाक़, आयत 6)
ज़मीन के सारी नेमतें इंसान के लिए पैदा की गई हैं।
इरशाद होता है कि, वही है जिसने जो कुछ ज़मीन में है तुम्हारे लिए पैदा किया है। (सूरए बक़रह, आयत 29)
या इरशाद होता है कि, और अपनी तरफ़ से तुम्हारे कंट्रोल में दे दिया है जो कुछ आसमानों और ज़मीन में है उसमें उन लोगों के लिए निशानियां हैं जो फ़िक्र करते हैं। (सूरए जासिया, आयत 13)
अल्लाह ने इंसान को केवल इस लिए पैदा किया है कि वह दुनिया में केवल अपने अल्लाह की इबादत करे और उसके अहकाम की पाबंदी करे, उसकी ज़िम्मेदारी अल्लाह के अम्र की इताअत करना है।
इरशाद होता है कि, और हमने इंसान को नहीं पैदा किया मगर केवल इसलिए कि वह मेरी इबादत करें। (सूरए हश्र, आयत 19)
इंसान अल्लाह की इबादत और उसकी याद के बिना नहीं रह सकता, अगर वह अल्लाह को भूल जाए तो अपने आप को भी भूल जाता है और वह नहीं जानता कि वह कौन है और किस लिए है और क्या करे क्या न करे कहां जाए कहां न जाए उसे कुछ समझ नहीं आता।
इरशाद होता है कि, बेशक तुम उन लोगों में से हो जो अल्लाह को भूल गए, और फिर अल्लाह ने उनके लिए उनकी जानें भुला दीं। (सूरए हश्र, आयत 19)
इंसान जैसे ही दुनिया से जाता है और उसकी रूह के चेहरे से जिस्म का पर्दा जो कि रूह के चेहरे का भी पर्दा है उठ जाता है तो उस समय उस पर ऐसी बहुत सी हक़ीक़तें ज़ाहिर होती हैं जो उसके लिए इस दुनिया में छिपी रहती हैं।
अल्लाह फ़रमाता है कि, हमने तुझसे पर्दा हटा दिया, तेरी नज़र आज तेज़ है। (सूरए क़ाफ़, आयत 22)
इंसान दुनिया में हमेशा भौतिक (माद्दी) मामलों के हल के लिए ही कोशिशें नहीं करता और उसको केवल भौतिक ज़रूरतें ही हाथ पैर मारने पर मजबूर नहीं करतीं, बल्कि कभी कभी वह किसी बुलंद मक़सद को हासिल करने के लिए भी कोशिशें करता है और मुमकिन है कि उस अमल से उसके दिमाग़ में केवल अल्लाह की मर्ज़ी हासिल करने के और कोई मक़सद न हो।
इरशाद होता है कि, ऐ नफ़्से मुतमइन्ना तू अपने रब की तरफ़ लौट जा, तू उससे राज़ी वह तुझ से राज़ी। (सूरए फ़ज्र, आयत 27-28)
इसी तरह एक दूसरी जगह अल्लाह फ़रमाता है कि, अल्लाह ने ईमान वाले मर्दों और औरतों से बाग़ों का वादा किया है जिनके नीचे नहरें बहती हैं जिनमें वह हमेशा रहेंगे और आलीशान मकानों का भी वादा किया है, लेकिन अल्लाह की मर्ज़ी हासिल करना उनकी सबसे बड़ी कामयाबी है। (सूरए तौबा, आयत 73)
ऊपर बयान की गई बातों से यह नतीजा सामने आता है कि इंसान वह मौजूद है जो पैदा तो एक कमज़ोर चीज़ से होता है लेकिन वह धीरे धीरे कमाल की तरफ़ क़दम बढ़ाता है और अल्लाह की ओर से ज़मीन पर ख़लीफ़ा होने की फ़ज़लीत को हासिल कर लेता है, और उसको सुकून केवल तभी हासिल होता है जब वह अल्लाह का ज़िक्र करता है और उसकी याद में ज़िंदगी गुज़ारता है, वह अल्लाह की याद में ख़ुद को फ़ना कर दे उसके बाद वह ख़ुद ही अपनी इल्मी और अमली प्रतिभाओं और क्षमताओं को महसूस करेगा।