जीने की कला -1

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जीने की कला -1

जीवन, एक तोहफ़ा है जो हमें प्रदान किया गया है।

ज़िंदगी अच्छाई-बुराई, उतार-चढ़ाव, ऊंच-नीच और सुख-दुख से भरी होती है। कभी बहुत कठिनाई में जीवन गुज़रता है तो कभी इतना अच्छा व मनमोहक गुज़रता है कि समय बीतने का पता ही नहीं चलता। कठिनाइयां वास्तव में हर व्यक्ति के जीव के अनुभव होते हैं। जब हमें पता चलता है कि कठिनाइयां भी गुज़र जाती हैं और जीवन के आनंद भी समाप्त होने वाले हैं तो हम न तो कठिनाइयों में व्याकुल होते हैं और न ख़ुशी में हद से बाहर होते हैं। अतः हमें अपने लिए सबसे उत्तम चीज़ें तैयार करनी चाहिए और जीवन के तोहफ़े का सबसे अच्छे ढंग से प्रयोग करना चाहिए।

हममें यह क्षमता है कि अपने इरादे, संकल्प, निरंतर प्रयास और अनुभवों से पाठ लेकर निराशा को आशा में, पराजय को विजय में और आंसू को मुस्कान में बदल दें। हमें बेहतर जीवन जीने की कला आनी चाहिए ताकि अपने जीवन के एक-एक क्षण में हमें प्रफुल्लता और सुख का आभास हो। बेहतरीन क्षणों का निर्माण स्वयं हमारे अपने हाथ में है। श्रोताओ हमारे साथ रहिए ताकि इस कार्यक्रम के माध्यम से एक नया अनुभव हासिल करें। एक ऐसी शुरुआत करें जो हमारी ज़िंदगी में एक नया मौसम पैदा करे और जीवन के स्तर को बेहतर बनाए।

हम सौभाग्य तक पहुंचने के लिए हमेशा कोशिश करते रहते हैं ताकि एक मूल सिद्धांत तक पहुंच जाएं जबकि इस तरह की किसी संजीवनी बूटी का अस्तित्व ही नहीं है। चूंकि हर इंसान की सोच और उसकी रुचियां दूसरों से भिन्न होती हैं अतः सभी के लिए कोई एक मूल सिद्धांत निर्धारित नहीं किया जा सकता। अलबत्ता यही व्यक्तिगत भिन्नता हर इंसान को बेहतर जीवन जीने के लिए उत्तम मार्ग की खोज के लिए प्रेरित करती रहती है।

बेहतर ज़िंदगी के लिए कुछ मूल नियम होते हैं जिन्हें धार्मिक नेताओं, विचारकों और मनोवैज्ञानिकों ने बयान किया है। इन बातों पर ध्यान, आगे बढ़ने के लिए मनुष्य का मार्ग प्रशस्त करता है। इन लोगों का मानना है किजो चीज़ पहले चरण में बेहतर जीवन के लिए सक्रिय होनी चाहिए वह मन और मस्तिष्क है। मनोवैज्ञानिकों का कहना है कि मनुष्य का मस्तिष्क की असाधारण शक्ति है और इसी आधार पर कहा जाता है कि आपके लिए घटने वाली सभी घटनाओं में आपके विचार निर्णायक होते हैं और आप उन्हें नियंत्रित कर सकते हैं।

इंसान में इस बात की शक्ति होती है कि वह अपने मन के मॉडल में सुधार करे। जीवन में मनुष्य ने जिन ग़लतियों का अनुभव किया है उनको ध्यान में रख कर वह एक ऐसे बिंदु तक पहुंच जाता है जहां वह अपने मार्ग की समीक्षा कर सकता है। उदाहरण स्वरूप वह यह समझ सकता है कि अगर वर्षों पहले उसने अमुक फ़ैसला किया होता तो आज उसका जीवन बेहतर होता लेकिन उसने एक ग़लत फ़ैसला किया जिसके कारण वह अमुक समस्याओं में ग्रस्त हो गया।

कुछ लोग अपने कामों पर सोच विचार नहीं करते और एक प्रकार से उनका मानना होता है कि जो कुछ होता है वह भले के लिए ही होता है। वे बेहतर जीवन के प्रयास में नहीं होते और अपने आपको एक पत्ते की तरह हवा के झोंकों में छोड़ देते हैं। बुद्धि को छोड़ देना और बातों पर चिंतन न करना, मनुष्य को अनेक कठिनाइयों में ग्रस्त कर देता है। पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम व अन्य ईश्वरीय पैग़म्बर हमेशा, लोगों की बुद्धि और मस्तिष्क के प्रशिक्षण का प्रयास किया करते थे। पैग़म्बरे इस्लाम कोशिश करते थे कि बुद्धिमत्ता और मामलों पर सोच विचार के लिए मुसलमानों का मार्गदर्शन करें ताकि उनका जीवन बेहतर हो सके।

सोच, आत्मा का प्रशिक्षण करके उसे परिपूर्ण बनाती है। सोच और चिंतन के माध्यम से ही ग़लतियां कम होती हैं और मनुष्य की मानवीय शक्तियां प्रकट होती हैं। सोच और विचार, सृष्टि की वास्तविकताओं की ओर सीधा रास्ता खोलती हैं। सोच में एक आकर्षण शक्ति होती है जो सोचने वाले व्यक्ति और जिस चीज़ के बारे में वह सोच रहा होता है, उसे जोड़ देती है और उनके बीच संपर्क स्थापित कर देती है। जब भलाइयों के बारे में चिंतन जारी रहता है तो वह व्यक्ति धीरे धीरे अच्छाइयों की ओर आकृष्ट होने लगता है और उसका व्यवहार भी अच्छा होने लगता है।

यह वह वास्तविकता है जिस पर पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम और उनके परिजनों के कथनों में बल दिया गया है। पैग़म्बरे इस्लाम के पौत्र इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम कहते हैं कि सोच, मनुष्य को भलाइयों और उन पर अमल करने की ओर निमंत्रण देती है। जो भी सोच और विचार के माध्यम से अपनी उन महान शक्तियों को जो उसके अंदर निहित हैं, बाहर निकाल ले और जागृत कर दे तो यह बात मनुष्य को बेहतर जीवन का तोहफ़ा प्रदान करती है।

गहरी और सही सोच के मार्ग में जो एक समस्या और रुकावट है वह यह है कि इंसान को पूरे दिन बहुत अधिक विचारों का सामना रहता है जिनमें उसका मन उलझा रहता है। कभी मनुष्य अतीत की कटु घटनाओं के बारे में सोचता रहता है कि जिससे उसकी स्थिति पर कोई सकारत्मक प्रभाव नहीं पड़ने वाला है बल्कि इसके विपरीत उसकी शक्तियां कमज़ोर पड़ जाती हैं और उसकी प्रसन्नता समाप्त होने लगती है। बुरी यादों के बारे में सोच मनुष्य की ध्यान योग्य ऊर्जा ले लेती है। इस लिए विचारों पर नियंत्रण मनुष्य के लिए बहुत ज़रूरी है। विचारों में सुधार और उन पर नियंत्रण मनुष्य की बड़ी पुरानी आकांक्षा रही है।

चूंकि सोच और विचार मनुष्य के अस्तित्व के सबसे अहम आयाम और इसी तरह अन्य जीवों पर उसकी श्रेष्ठता का माध्यम है इस लिए इस बड़ी शक्ति से उत्तम ढंग से लाभ उठाया जाना चाहिए और सही तरीक़े से सोचने की शैली सीखनी चाहिए। क़ुरआने मजीद की आयतों और इसी तरह पैग़म्बर व उनके परिजनों की हदीसों में कहा गया है कि चिंतन की सबसे अच्छी शैली वह है जिसके माध्यम से मनुष्य वास्तविकताओं को खोजे और सृष्टि के रहस्यों का पता लगाए। इस संबंध में इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम कहते हैं कि बंदे, बुद्धि के कारण अपने ईश्वर को पहचानते हैं और समझ जाते हैं कि वे उसकी रचना हैं। हज़रत अली अलैहिस्सलाम भी कहते हैं कि बुद्धि के माध्यम से ईश्वर की पहचान ठोस बनती है।

मनुष्य को बेहतर जीवन गुज़ारने के लिए सृष्टि, रचयिता और उसकी असीम शक्ति के बारे में सोच-विचार और चिंतन की ज़रूरत है। ईश्वर की पहचान और अनन्य पालनहार पर भरोसा मनुष्य को शांति प्रदान करता है। जब हमें यह ज्ञात होता है कि अपनी असीम शक्ति के साथ ईश्वर हमेशा हमें देख रहा है, हमारा ध्यान रख रहा है और अगर हम उससे प्रार्थना करें तो वह स्वीकर करता है तो यह आभास ही हमें व्यर्थ चिंताओं और भय से दूर कर देता है। ईश्वर की पहचान हमारे दिलों को प्रकाशमान कर देती है और बुद्धि को वास्तविकताओं की प्राप्ति के लिए अधिक तैयार कर देती है।

सूरए आले इमरान की आयत नंबर 191 में हम पढ़ते हैं कि बुद्धिमान लोग वे हैं जो (हर हाल में चाहे) खड़े हों, बैठे हों और लेटे हों, ईश्वर को याद करते हैं और आकाशों और धरती की सृष्टि के बारे में सोचते रहते हैं (और कहते हैं) हे हमारे पालनहार! तूने इस (ब्रह्माण्ड) की रचना अकारण नहीं की है, तू (बेकार व फ़ालतू कार्यों से दूर व) पवित्र है, तो हमें नरक के दण्ड से सुरक्षित रख। क़ुरआने मजीद इन लोगों को बुद्धिमान बताता है। अर्थात बुद्धिमान वही लोग हैं जो हर स्थिति ईश्वर को याद और सृष्टि की रचना के बारे में चिंतन करते हैं।

इस प्रकार के लोग सृष्टि की रचना के बारे में सोच-विचार करके, ब्रह्मांड के रचयिता व युक्तिकर्ता के अस्तित्व को समझ जाते हैं और यही उनके लिए उसकी स्थायी याद है। उन्हें विश्वास होता है कि इस सांसारिक जीवन के बाद एक अमर जीवन है जिसमें ईश्वर ने उन्हें पारितोषिक देने का वादा किया है। क़ुरआने मजीद की दृष्टि में बुद्धिमान लोग इस बात को समझ जाते हैं कि परलोक के अस्तित्व के बिना इस सृष्टि की रचना की व्यर्थ है। वे ईश्वर से दया की प्रार्थना करते हैं। यह विचार मनुष्य को भलाई के लिए प्रेरित करता है और बुराइयों से दूर रखता है। यही सोच मनुष्य को बेहतर जीवन बिताने का तोहफ़ा देती है।

सृष्टि व प्रलय के बारे में चिंतन मनन, इस बात पर विश्वास कि ईश्वर कोई भी काम अकारण व व्यर्थ नहीं करता और सृष्टि की रचना का लक्ष्य भलाइयों व परिपूर्णता के लिए मनुष्यों का प्रशिक्षण करना है, नैतिकता व शिष्टाचार को मज़बूत बनाता है। इस प्रकार की सोच वाला व्यक्ति अवगुणों व सद्गुणों के अंतर को अच्छी तरह से समझने लगता है और भलाइयों की ओर क़दम बढ़ाता है। इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम इस बारे में कहते हैं कि बुद्धि यह है कि मनुष्य, बुरे व अवांछित कर्म के मुक़ाबले में अच्छे काम को पहचान जाए।

तो अब समय आ गया है कि हम अपनी आयु के क्षणों पर एक नज़र डालें और देखें कि हमने अपनी उम्र किस तरह बिताई है? क्या हमने बुद्धिमत्ता से काम लिया है या केवल अनुभव पर अनुभव करते जा रहे हैं? सबसे अच्छा मार्ग सोच-विचार व चिंतन है। इसी से शुरुआत करनी चाहिए और इस अनंत मार्ग पर हम एक दूसरे के साथ रहेंगे और बेहतर जीवन के दूसरे आयामों की समीक्षा करते रहेंगे। तो श्रोताओ अगले कार्यक्रम तक के लिए हमें अनुमति दीजिए।

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