घर परिवार- 1

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घर परिवार- 1

आज के कार्यक्रम के पहले भाग में हम दपंति के बारे में कुछ मनोवैज्ञानिक बातों का उल्लेख कर रहे हैं।

वास्तव में विवाह, अपनी समस्या व जटिलताओं के साथ, उस पौधे की भांति होता है जिसे यदि सही दिशा न दी जाए और उसके लिए सही सहारे का इंतेज़ाम न किया जाए तो हो सकता है इस संबंध का वह परिणाम न निकले जिसकी इच्छा हो। हम दो लोगों के परियाय सूत्र में बंध जाने के बाद की स्थिति पर चर्चा कर रहे हैं क्योंकि उस समय सब कुछ स्पष्ट हो चुका होता है। सब से पहले तो पति और पत्नी को एक दूसरे की विविधता पर ध्यान देना चाहिए। पति और पत्नी के मध्य सब से पहला और बड़ा अंतर,  लैंगिक होता है । आज आधुनिक मनोविज्ञान में भी यह सिद्ध हो चुका है कि महिला और पुरुष की मनोदशा समान नहीं होती और रचना और सृष्टि के लिहाज़ से भी दोनों में बुनियादी अंतर होता है जो उनके अनुभवों और संस्कारों से हट कर भी, उनके मध्य अंतर का कारण बनती है और इसी अंतर के कारण वह एक दूसरे की ओर आकृष्ट होते हैं। इस लिए ज़रूरी है कि पति पत्नी सब से पहले एक दूसरे की लैंगिक विशेषताओं के बारे में जानकारी प्राप्त करें और यह सीखें कि उनके मध्य जो मतभेद है उसका मूल कारण कहीं,उनका लैंगिक अंतर तो नहीं है? या वास्तव में यह अलग अलग सोच का नतीजा है? क्योंकि सोच के अंतर की वजह से पैदा होने वाला मतभेद खत्म हो सकता है और उसका निवारण संभव है मगर लैंगिक अंतर के कारण पैदा होने वाले मतभेद का अंत आसान नहीं होगा और उसका एक ही समाधान है और वह यह कि दोनों एक दूसरे को अच्छी तरह से समझें।

बेहतर यह है कि दंपति, संयुक्त जीवन के आरंभ में ही, अपने अपने कर्तव्यों का निर्धारण कर लें। उदाहरण स्वरूप यह तय कर लें कि पति या पत्नी की आय किस प्रकार से घर में खर्च होगी या किस तरह से बचत की जाएगी , घर का काम काज कैसे होगा और यह कि दोनों किस प्रकार से एक दूसरे की मदद कर सकते हैं। यदि यह सब कुछ बुद्धिमत्ता और सूझबूझ के साथ तय किया जाए तो फिर आगे चल कर दांपत्य जीवन में कोई समस्या नहीं खड़ी होगी और पति और पत्नी में से किसी को यह नहीं महसूस होगा कि उसके कांधे पर दूसरे का बोझ है। पैगम्बरे इस्लाम की बेटे हज़रत फातेमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा का जीवन एक सफल मुसलमान महिला के जीवन के लिए आदर्श है। इतिहास में लिखा है कि उनके पति हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने यह तय कर रखा था कि घर के लिए ज़रूरी कामों को आपस में बांट लिया जाए और घर के अंदर के काम जैसे खाना पकाना या आटा गूंथना आदि हज़रत फातेमा के ज़िम्मे था और ईंधन लाना और सामान खरीदना, हज़रत अली अलैहिस्सलाम की ज़िम्मेदारी थी। इसके साथ ही हज़रत अली घर के अंदर भी काम काज में अपनी पत्नी का हाथ बंटाते थे।

ईरान सहित पूरी दुनिया में परिवार के गठन की प्रक्रिया के बारे में हमने पिछले कार्यक्रम में बताया था कि समाज की सामूहिक दशा में किसी भी प्रकार का परिवर्तन, परिवार के ढांचे में परिवर्तन का कारण बनता है। जब समय के साथ साथ मनुष्य की ज़रूरतें और उद्देश्य, बदलते हैं तो परिवार का ढांचा भी बदल जाता है। उन्नीसवीं सदी के बाद से फैक्टरी और उद्योग के महत्व के कारण परिवार के ढांचे में भी बदलाव पैदा हुए। सामाजिक व्यवस्था में विकास और आधुनिक शिक्षा संस्थानों के गठन की वजह से, परिवार के कई महत्वपूर्ण काम, इन संस्थाओं को सौंप दिये गये और परिवार की भूमिका कम हो गयी और इसके साथ ही परिवार के सदस्यों की संख्या भी कम हुई और मुख्य सदस्यों पर आधारित परिवार के गठन का चलन बढ़ा।

मुख्य सदस्यों पर आधारित वह परिवार होता है जो माता पिता और संतान पर ही आधारित होता है। इस प्रकार के परिवारों का चलन, पश्चिम में औद्योगिक क्रांति के बाद आम हुआ। इस प्रकार के परिवार में पति, पत्नी अपने बच्चों के साथ रहते हैं और उनके साथ उनका कोई दूसरा रिश्तेदार नहीं रहता। इस प्रकार के परिवार में माता, पिता या दोनों मिल कर परिवार के खर्च का बोझ उठाते हैं और अपने कामों में वह परिवार से बाहर किसी से सलाह नहीं लेते और प्रायः फैसले एक दूसरे से बात चीत करके कर लेते हैं।

पारसंस जैसै समाज शास्त्रियों की नज़र में परमाणु परिवार बौद्धिक होता है क्योंकि इस प्रकार के परिवार में बुद्धि व तर्क से काम लिया जाता है और फैसलों में परिवार का हर सदस्य शामिल होता है और फैसला करने का अधिकार उसी को होता है जो तर्क व बुद्धि में सब से अधिक शक्तिशाली होता है। न्यू क्लियर फैमिली कभी बढ़ती नहीं, क्योंकि बच्चे जैसे ही बड़े होते हैं अपना जीवन जीने के लिए माता पिता से अलग हो जाते हैं और एक दूसरे परिवार का गठन करते हैं। इस प्रकार के परिवार को इस समय दुनिया के बहुत से देशों में देखा जा सकता है।

हम रहीमी और उनकी पत्नी को ईरान में परमाणु परिवार का एक उदाहरण बना कर पेश कर रहे हैं । इस काल्पनिक परिवार में तीन बेटियां और दो बेटे हैं जिन्होंने शादी के बाद अपने पिता का घर छोड़ दिया है और हरेक की अपनी अलग दुनिया है। इस परिवार में माता पिता वर्षों गुज़र जाने के बाद भी एक दूसरे से प्रेम करते हैं और एक दूसरे के साथ रहते हैं। वह सत्तर मीटर के दो बेडरूम वाले फ्लैट में रहते हैं। छुट्टियों के दिन चूंकि उनके बच्चे भी उनसे मिलने आते हैं इस लिए घर में काफी चहल पहल रहती है लेकिन आम दिनों में पूरे घर में खामोशी छाई रहती है। उनके बच्चों के घर उनसे काफी दूरी पर हैं इस लिए वह आसानी से उनके घर नहीं जा सकते इसी लिए उनके लिए फोन सब से अच्छा संपर्क साधन है। रहीमी साहब  और उनकी पत्नी अनुभवी हैं इस लिए पूरे मोहल्ले के लोग उन्हें जानते हैं और उनसे सलाह मशिवरा करते हैं। मस्जिद में जाना भी उनके लिए अन्य लोगों से संपर्क का एक अच्छा अवसर होता है। उनकी मुख्य समस्या, बेटे और बहू में मतभेद है । उनके बेटे का 6 साल का एक बेटा भी है लेकिन इस बच्चे के बावजूद वह अपनी पत्नी के साथ नहीं रह सकता। अब दादा दादी को अपने पोते की चिंता है जो, माता पिता के मध्य अलगाव के बाद, अकेला पड़ जाएगा। हालांकि मोहल्ले में वह इस प्रकार के बहुत से परिवारों की समस्याओं का निवारण करते रहते हैं मगर उन्होंने अभी तक अपने बेटे और बहू के मामले में दखल नहीं दिया है । उन्हें लगता है कि कहीं यह न समझा जाए कि वह अपने बेटे का समर्थन कर रहे हैं जिससे मामला अधिक खराब हो जाए। वह अपने बेटे की पारिवारिक समस्या के निवारण के साधन की खोज में जुटे हैं। रहीमी साहब का दूसरा बेटा यारी दोस्ती में व्यस्त है और माता पिता से मिलने का उसे कम ही समय मिलता है मगर फिर भी रहीमी साहब खुश हैं कि वह अपनी पत्नी के साथ खुशी से ज़िंदगी गुज़ार रहा है।

यह कहा जा सकता है कि न्यू क्लियर फैमिली, के आधारों को वर्तमान उद्योगिक परिस्थितियों ने जनम दिया है। इस प्रकार के परिवार का मक़सद, शांति व मौन व प्रेम होता है। आज के काल में ईरान सहित विश्व के अधिकांश देशों में इसी प्रकार के परिवारों का चलन है और सन 2011 के आंकड़ों के अनुसार ईरान में 60 प्रतिशत से अधिक परिवार, परमाणु परिवारों के रूप में रहते हैं।  वास्तव में परिवारों के रूप में बदलाव के साथ ही परिवार के गठन की शैली भी बदल गयी है और लोग स्वंय ही अपने जीवन साथी का चयन करने लगे हैं।

इस्लाम समाज में एकता को , परिवार के भीतर एकता का परिणाम समझता है और परिवार के सदस्यों की रुचियों को समाज में सार्वाजनिक रूप से प्रचारित किये जाने योग्य समझता है। इस्लाम की नज़र में परिवार, भौतिकता से परे आध्यात्मक व नैतिकता के आधार पर बनाया जाता है इस लिए यह संभव नहीं है कि कोई परिवार, दिखावा करे, भौतिकता में डूबा रहे और उसके बाद यह आशा रखे कि उसके परिवार में उच्च आध्यात्मिक मूल्यों का विकास होगा। ईरान में इस्लामी क्रांति की सफलता के बाद, इस्लामी जीवन शैली के कई सफल आदर्श नज़र आते हैं जिनमें से किसी भी आदर्श पर गौर करके इन्सान अपने परिवार को उच्च स्थान तक ले जा सकता है।

शहीद मेहदी ज़ैनुद्दीन की पत्नी कहती हैं: हम सब उनके पिता के घर में थे, सब लोग खाना खा रहे थे, तभी में कोई चीज़ लाने के लिए किचन में गयी और जब वापस आयी तो देखा, मेहदी साहब, हाथ रोके मेरा इंतेज़ार कर रहे हैं  ताकि मेरे साथ ही खाना शुरु करें। मुझे उनका यह काम इतना अच्छा लगा कि आज भी मुझे अच्छीतरह से याद है।

शहीद सैयद मीर सईद की पत्नी अपने पति के बारे में कहती हैंः

 

उस रात बहुत बारिश हो रही थी, दूसरे दिन ही उनका इम्तेहान था, मैं आंगन में जाकर कपड़े धोने लगी। तभी मैंने देखा कि वह मेरे पीछे आकर खड़े हो गये। मैंने कहा, यहां क्या कर रहे हैं आप? कल आप का इम्तेहान नहीं है क्या? वह आंगन में बने हौज़ के पास घुटनों के बल बैठ गये, बर्फ जैसे ठंडे मेरे हाथों को टब से बाहर निकाला और कहा मुझे तुम से शर्म आ रही है, मैं तुम्हारे लिए वह सब कुछ नहीं कर सका जिसकी तुम योग्य हो, जिस लड़की के घर में कपड़े धोने की मशीन हो वह मेरे घर में इस ठंडक में बैठ कर ... मैंने उनकी बात काट दी और कहा: किसी ने मुझे मजबूर नहीं किया है, मैं दिल से यह काम करती हूं यह जो आप समझते हैं और मेरी क़द्र करते हैं वही मेरे लिए काफी है।

 

 

 

 

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