ज़ायोनी हुकूमत संकट में: इमाम ख़ामेनेई

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ज़ायोनी हुकूमत संकट में:  इमाम ख़ामेनेई

इस्लामी इंक़ेलाब के नेता आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने 20 मार्च 2024 को नौरोज़ की तक़रीर में ग़ज़ा के विषय पर बात करते हुए ज़ायोनी हुकूमत की हालत इन लफ़्ज़ों में बयान कीः “ग़ज़ा के वाक़यात में पता चला कि ज़ायोनी हुकूमत न सिर्फ़ अपनी रक्षा के सिलसिले में संकट का शिकार है बल्कि संकट से बाहर निकलने में भी उसे संकट का सामना है। ग़ज़ा में ज़ायोनी हुकूमत के दाख़िल होने से उसके लिए एक दलदल पैदा हो गया। अब अगर वो ग़ज़ा से बाहर निकले तो भी हारी हुयी है और बाहर न निकले तब भी हारी हुयी मानी जाएगी।”

     इस लेख में ये समीक्षा करने की कोशिश की जा रही है कि इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ज़ायोनी हुकूमत के सिलसिले में ये बात क्यों कह रहे हैं और इसके क्या पहलू हैं।

ग़ज़ा में ज़ायोनी हुकूमत के ज़मीनी ऑप्रेशन को 150 से ज़्यादा दिन गुज़र चुके हैं। इस बर्बरतापूर्ण हमले में 13 हज़ार से ज़्यादा बच्चे और 9 हज़ार से ज़्यादा औरतें शहीद हो चुकी हैं, ज़ायोनी हुकूमत ने ये ऑप्रेशन ग़ज़ा में रेज़िस्टेंस के मोर्चे को ख़त्म करने और फ़िलिस्तीनियों को ग़ज़ा से बाहर निकालने के लिए शुरू किया था। 2024 के आग़ाज़ में ज़ायोनी हुकूमत ने दावा किया था कि उसने उत्तरी ग़ज़ा में हमास की फ़ौजी क्षमता को पूरी तरह ख़त्म कर दिया है और यही स्थिति पूरी ग़ज़ा पट्टी में स्थापित करने की कोशिश कर रही है।(1) इस दावे को 70 दिन से ज़्यादा का वक़्त गुज़र जाने के बाद ग़ज़ा जंग के संबंध में दो ख़बरे क़रीब क़रीब एक साथ वायरल हो गयीं। एक ख़बर हमास को ख़त्म करने के लिए ग़ज़ा पट्टी के दक्षिणी इलाक़े रफ़ह में ज़मीनी ऑप्रेशन शुरू करने पर नेतनयाहू की ज़िद के बारे में थी। (2) दूसरी उत्तरी ग़ज़ा के शिफ़ा अस्पताल के आस-पास भीषण झड़पों की ख़बर थी।(3)

ज़ायोनी प्रधान मंत्री ने इससे कुछ दिन पहले हमास के कमांडरों की टार्गेट किलिंग की कोशिशों के बारे में बात की थी। वो कोशिशें जो कई महीने के बाद भी कामयाब नहीं हो सकीं।(4) दूसरी ओर क़रीब हर दिन ग़ज़ा पट्टी के उन इलाक़ों में जिन पर कंट्रोल हासिल कर लेने का ज़ायोनी हुकूमत दावा करती है, रेज़िस्टेंस फ़ोर्सेज़ के हमलों और ऑप्रेशन की ख़बरें और वीडियोज़ सामने आ रही हैं। ग़ज़ा की ज़मीनी लड़ाई के बारे में इस तरह की विरोधाभासी ख़बरों और ज़ायोनी हुकूमत के दावों से बस एक ही नतीजा निकल सकता है कि ज़ायोनी हुकूमत ग़ज़ा पट्टी में अब तक कोई भी लक्ष्य हासिल नहीं कर सकी है और इस हुकूमत पर दबाव दिन ब दिन बढ़ता जा रहा है। भीतरी दबाव भी और बाहरी दबाव भी। बाहरी दबाव इतना ज़्यादा है कि इस हुकूमत के पश्चिमी घटकों जैसे कैनेडा ने एलान कर दिया है कि वो ज़ायोनी हुकूमत को हथियारों की सप्लाई रोक रहे है।(5) और वाइट हाउस के अधिकारी दिखावे के लिए ही सही युद्ध विराम की बातें कर रहे हैं।(6) ग़ज़ा पट्टी में ज़ायोनी हुकूमत की हार सिर्फ़ जंग के मैदान और कूटनीति के मैदान तक सीमित नहीं है। आर्थिक क्षेत्र में भी इस क़ाबिज़ हुकूमत को भारी नुक़सान पहुंचा है। इस पर कई रिपोर्टें छप चुकी हैं।(7)

हिज़्बुल्लाह के महासचिव सैयद हसन नसरुल्लाह ने अपनी हालिया तक़रीर में कहा कि ग़ज़ा पट्टी में ज़ायोनी हुकूमत की हार की साफ़ निशानियों में से एक ये है कि उन्होंने जंग के आग़ाज़ में हमास को पूरी तरह ख़त्म कर देने की बातें की थीं, लेकिन आज युद्ध विराम की बातचीत में वो हमास से वार्ता कर रहे हैं।

ये सारी हक़ीक़तें इस्लामी इंक़ेलाब के नेता की इस बात में नज़र आती हैं जो उन्होंने 20 मार्च की तक़रीर में कही कि ग़ज़ा ज़ायोनी हुकूमत के लिए एक दलदल है, इस हुकूमत की हार निश्चित है, वो ग़ज़ा में अपनी फ़ौजी मौजूदगी जारी रखती है तब भी।

ज़ायोनी हुकूमत की हार का दूसरा पहलू भी है और वो है ग़ज़ा से बाहर निकलने की स्थिति में हार। क़ाबिज़ ज़ायोनी हुकूमत ने अपनी साख बहाल करने और अपनी डिटरेन्स पावर को फिर से हासिल करने की कोशिश में ग़ज़ा में पागलों की तरह ऑप्रेशन शुरू कर दिया। अब अगर वो ग़ज़ा से बाहर निकलती है तो इससे अपनी डिटरेन्स ख़त्म हो जाने पर वो ख़ुद ही मोहर लगाएगी। ज़ायोनी हुकूमत की राजनैतिक पार्टियों के बीच भी गंभीर मतभेद जो पारंपरिक यहूदियों को ग़ज़ा की जंग में भेजने को लेकर ज़्यादा खुलकर सामने आए, (8) ग़ज़ा में हार और वहाँ से ज़ायोनियों के बाहर निकलने की स्थिति में एक नए चरण में दाख़िल हो जाएंगे। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ज़ायोनी हुकूमत जो जातीय सफ़ाए के मसले में अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय में घसीटी जा चुकी है, इलाक़े के मुल्क़ों के साथ सामान्य संबंध क़ायम करने का अपना एजेंडा गंवा चुकी है और इस वक़्त उसके ख़िलाफ़ कम से कम चार मोर्चे खुल चुके हैं। एक तो उत्तरी सरहदों पर लेबनान के साथ जंग का मोर्च है, दूसरा रेड सी में यमन से मुक़ाबले का मोर्चा है और तीसरा इराक़ की रेज़िस्टेंस फ़ोर्सेज़ का मोर्चा है जो समय समय पर ज़ायोनी हुकूमत की मुख़्तलिफ़ बंदरगाहों को मीज़ाईल हमलों का निशाना बना रही हैं।

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