जनता ने ईरान में इस्लामी गणतंत्र को क्यों चुना ?

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जनता ने ईरान में इस्लामी गणतंत्र को क्यों चुना ?

रविवार 12 फ़रवरदीन बराबर 1 अप्रैल था जो "इस्लामिक रिपब्लिक" का दिन था। यह दिन राष्ट्रीय सम्मान को साकार करने और क्रांतिकारी जनता के हाथों देश की नियति निर्धारित करने में महान ईरानी राष्ट्र की इच्छा की एक वास्तविक अभिव्यक्ति का दिन था।

यह वह दिन है जब महान ईरानी राष्ट्र ने अपने तानाशाही विरोधी संघर्षों का नतीजा अपने सामने देखा।

इस लेख में हम इस्लामी क्रांति की सफलता के बाद ईरान में इस्लामी गणराज्य की स्थापना के बारे में होने वाले जनमत संग्रह पर एक नज़र डालेंगे।

1- अस्थायी सरकार का गठन

17 बहमन सन 1357 हिजरी शम्सी को यानी इमाम खुमैनी के ईरान पहुंचने के पांच दिन बाद ही, इमाम ख़ुमैनी के आदेश पर इंजीनियर बाज़रगान को एक अंतरिम सरकार बनाने की ज़िम्मेदारी सौंपी गयी।

इस्लामी क्रांति की सफलता के बाद अंतरिम सरकार का एक कर्तव्य जनता के वोट द्वारा राजनीतिक व्यवस्था का निर्धारण करने के लिए जनमत संग्रह कराना था। यह एक ऐसी घटना थी जो विश्व के इतिहास में आज भी अभूतपूर्व है।

2- इस्लामिक रिपब्लिक का चयन

आख़िरकार 10 और 11 फ़रवरदीन सन 1358 को इस्लामी गणराज्य नामक राजनीतिक व्यवस्था को स्वीकार करने या अस्वीकार करने के लिए पूरे ईरानभर में एक जनमत संग्रह आयोजित किया गया।

इस्लामी गणराज्य के जनमत संग्रह में जनता की भव्य भागीदारी

इस जनमत संग्रह के नतीजे के अनुसार जिसकी घोषणा 12 फ़रवरदीन सन 1358 हिजरी शम्सी बराबर 1 ​​अप्रैल वर्ष 1979 को की गई थी।

जनमत संग्रह में भाग लेने के योग्य लोगों में 98 प्रतिशत से अधिक लोग, ईरान के इस्लामी गणराज्य की स्थापना पर सहमत थे।

इसी अवसर पर 12 फ़रवरदीन के दिन को ईरानी कैलेंडर में इस्लामी गणतंत्र ईरान का नाम दिया गया।

3- इमाम खुमैनी का संदेश

इमाम ख़ुमैनी रहमतुल्लाह अलैह ने इस ऐतिहासिक घटना और ईरानी राष्ट्र की अमर गाथा बयान करने वाले दिन के अवसर पर जारी किए गए संदेश में कहा कि 12 फ़रवरदीन की सुबह जो अल्लाह के शासन का पहला दिन है, हमारी सबसे बड़ी धार्मिक और राष्ट्रीय छुट्टियों में है।

हमारे राष्ट्र को इस दिन जश्न मनाना चाहिए और इसे जीवित रखना चाहिए।

यह वह दिन है जब अत्याचारी शासन की 2500 साल पुरानी राजशाही व्यवस्था ढह गई और शैतानी शासन हमेशा के लिए ख़त्म हो गया और उसकी जगह दीन-दुखियों की सरकार ने ले लिया जो ईश्वर की सरकार है।

सर्वशक्तिमान ईश्वर ने हम पर कृपा की और अहंकारी शासन की बिसात अपने शक्तिशाली हाथ से जो मज़लूमों का दाता है, लपेट दी और हमारे महान राष्ट्र को दुनिया के मज़लूम राष्ट्रों का नेता और प्रतिनिधि बनाया और "इस्लामिक रिपब्लिक" की स्थापना करके उन्हें वह विरासत दी जिनके वे हक़दार थे।

4 - इस्लामी गणतंत्र का अर्थ

इस्लामी क्रांति की सफलता के साथ ही इस्लामी क्रांति के नेता इमाम खुमैनी ने ईश्वर और जनता के अधिकारों को एक सरकार में मिलाने का सिद्धांत पेश किया और इसे इस्लामी गणतंत्र प्रणाली के रूप में दुनिया के सामने पेश किया जिसका जनता और बुद्धिजीवियों ने भरपूर स्वागत किया।

"गणतंत्र" शब्द का अर्थ लोगों का जनसमूह होता है। क्रांति के बाद की व्यवस्था के लिए इस तरह के शब्द को शामिल करने से पता चलता है कि यह क्रांति जनता की थी और लोगों के वोट उनके भाग्य निर्धारण को किस तरह प्रभावित करते हैं।

"इस्लामी" शब्द भी इसे अन्य गणतांत्रिक प्रणालियों से अलग करता है और यह प्रणाली ईश्वरीय और क़ुरआनी मूल्यों की सत्ता की ओर इशारा करती है।

इस्लामी गणतंत्र व्यवस्था में प्रत्येक लोगों के वोट और उनकी राय का सम्मान किया जाता है और मुस्लिम जनता के बीच से उत्पन्न होने वाले शासक, उन इस्लामी आदेशों को लागू करने का प्रयास करते हैं जिनमें समाज की खुशी शामिल होती है।

इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई जिन्हें इमाम खुमैनी के बाद इस्लामी क्रांति के नेता के रूप में नियुक्त किया गया था, इस संबंध में और इस्लामी गणराज्य शब्द की व्याख्या करते हुए कहते हैं कि इस्लामी गणराज्य का शाब्दिक अर्थ, दो बुनियादों पर आधारित होता है, पूरी जनता अर्थात देश की जनता और जनसंख्या ही देश के प्रशासन और सरकारी संस्थाओं तथा देश के प्रबंधन का निर्धारण करती है जबकि दूसरी बुनियाद इस्लामी है यानी लोगों का ये आंदोलन इस्लामी विचारों और इस्लामी क़ानूनों पर आधारित है।

यह एक स्वाभाविक सी बात है। जिस देश में लगभग सभी बहुसंख्यक मुसलमान हों, यानी मोमिन, ईश्वर पर आस्था रखने वाले और सक्रिय मुसलमान हैं जिन्होंने पूरे इतिहास के दौरान इस्लाम में अपनी गहरी आस्था को साबित भी किया है, ऐसे देश में अगर कोई जन सरकार है, तो स्वभाविक सी बात है कि वह इस्लामी सरकार भी होगी।

5 - दुनिया में प्रभाव

12  फ़रवरदीन सन 1358 हिजरी शम्सी को ईरान इस्लामी गणतंत्र सरकार की घोषणा की वजह से दुनिया के मज़लूम, अत्याचारग्रस्त और कमज़ोर राष्ट्रों के बीच आशा की किरण पैदा हो गयी।

वास्तव में इस्लामी क्रांति ने उन लोगों को एक नए समाज और मज़बूत धर्म के आधार के लिए एक मज़बूत विचार और इच्छाशक्ति प्रदान की जो पश्चिमी मॉडल और साम्यवादी मॉडल से हतोत्साहित और निराश हो चुके थे।

दुनिया के मज़लूम और वंचित लोगों को एहसास हुआ कि एकेश्वरवादी धार्मिक शिक्षाओं और ईरान राष्ट्र की तरह राष्ट्रीय इच्छा का समर्थन करके वे समस्याओं को दूर कर सकते हैं और अपनी मन पसंद और जन सरकार बना सकते हैं जो साम्राज्यवादियों पर मज़लूमों और कमज़ोरों की जीत का वादा है जिस की ओर पवित्र क़ुरआ ने भी इशारा किया है।

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