ईद का त्योहार साल में रमज़ान के महीने के बाद आता है और इस दिन का तमाम मुसलमान बड़ी बेसब्री से इंतजार करते हैं। क्योंकि यह त्योहार रमज़ान के पूरे महीने रोज़े रखने, अल्लाह की इबादत करने के बाद नसीब होता है। इस दिन सभी लोग नए-नए कपड़े पहनते हैं, ईद की नमाज़ अदा करते हैं और स्वादिष्ट व्यंजन बनाते हैं।
इसके अलावा, सभी लोग एक दूसरे के घर जाते हैं और बच्चों को ईदी या उपहार देते हैं। यह त्योहार खुशियों और बहुत ही उत्साह से साथ चांद दिखने के बाद मनाया जाता है, लेकिन कभी आपने सोचा है कि ईद का त्योहार रमज़ान के बाद ही क्यों मनाया जाता है और इसका मतलब क्या है। अगर आपको नहीं पता, तो आइए जानते हैं।
ईद एक अरबी शब्द है जिसका मतलब होता है खुशी यानि वह खुशी का दिन जो बार-बार आए। इसके अलावा, ईद को मोहब्बत का त्योहार भी कहा जाता है क्योंकि इस दिन सभी मुस्लिम लोग आपस में गले मिलते हैं और अपनी सारी नाराजगी दूर करते हैं।
मुस्लिम ग्रंथों के अनुसार ईद का त्योहार खुशी और जीत में मनाया जाता है क्योंकि कहा जाता है कि बद्र के युद्ध में जब पैगंबर हजरत मोहम्मद साहब को सफलता मिली थी, तब लोगों ने पहली बार खुशी में ईद-उल-फित्रमनाया था। तब से लेकर हर मुस्लिम इस त्योहार को मनाते हैं और एक-दूसरे से गले मिलते हैं, स्वादिष्ट व्यंजन बनाते हैं और दूसरों को खिलाते हैं।
कई लोगों के मन में यह सवाल भी आता होगा कि आखिर ईद का त्योहार रमज़ान के बाद ही क्यों मनाया जाता है। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि ईद मुस्लिम लोगों को पूरे महीने रोज़े रखने के बाद अल्लाह की तरफ से एक बख्शीश यानि तोहफा है, जिसे ईद-उल-फित्र के नाम से पुकारा जाता है। इसलिए हर साल रमज़ान के बाद ईद का त्योहार मनाया जाता है ताकि लोग रमज़ान जाने के गम को भूल सकें।
फितरा हर मुसलमान को ईद की नमाज से पहले देना वाजिब है, जिसे रमज़ान के महीने या फिर ईद की नमाज से पहले दिया जाता है। बता दें कि 1 किलो 633 ग्राम गेहूं या 1 किलो गेहूं की कीमत किसी गरीब को देना, फितरा कहलाता है।
यह हर उस इंसान को देना होता है, जो इंसान आर्थिक रूप से मजबूत है यानि खाते-पीते घर से है। हालांकि, 1 किलो 633 ग्राम गेहूं की कीमत बाजार के भाव के आधार पर तय की जाती है।