क्या ईरान में महिलाएं भी कुश्ती लड़ सकती हैं?

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क्या ईरान में महिलाएं भी कुश्ती लड़ सकती हैं?

अलीश वर्ल्ड रेसलिंग चैंपियनशिप में ईरानी महिला खिलाड़ियों के चैंपियन बनने की ख़बरें जब वर्ल्ड मीडिया में प्रसारित हुई, तो खेल के शौक़ीन लोगों के दिमाग़ में शायद पहला सवाल यह आया होगा कि क्या ईरान में महिलाएं भी कुश्ती लड़ सकती हैं?

अलीश वर्ल्ड रेसलिंग चैंपियनशिप में ईरानी महिला खिलाड़ियों की चैंपियनशिप से पता चलता है कि ईरानी महिलाओं की कुश्ती का स्तर उस दर्जे पर पहुंच चुका है कि एक 20 साल की खिलाड़ी ने दुनिया में अपना लोहा मनवाया। अलीश वर्ल्ड रेसलिंग चैंपियनशिप का आयोजन क़ज़ाख़िस्तान के नूर सुल्तान शहर में हुआ। इस मुक़ाबले के दूसरे ही दिन 57 किलोग्राम की कैटेगरी में हानिया आशूरी ने गोल्ड मेडल जीत लिया, 60 किलोग्राम की कैटेगरी में फ़ातिमा फ़त्ताही सिल्वर मेडल जीतने में सफल रहीं। इसी तरह से 55 किलोग्राम की कैटगरी में ज़हरा यज़दानी ने ब्रोंज़ मेडल हासिल किया। अंततः ईरान की नेशनल टीम ने 93 अंकों के साथ चैंपियनशिप जीत ली। क़िर्ग़िस्तान और क़ज़ाख़िस्तान क्रमशः 89 और 69 अंकों के साथ दूसरे और तीसरे स्थान पर रहे।

ईरान में महिला कुश्ती के इतिहास में पहली गोल्ड मेडलिस्ट हानिया आशूरी ने सिर्फ़ एक साल पहले ही इस खेल में प्रवेश किया था। किरमानशाह की रहने वाली आशूरी ने अपनी पहली ही वर्ल्ड चैंपियनशिप में जॉर्जिया, क़िर्गिस्तान और मंगोलिया की अपनी प्रतिद्वंद्वियों के मुक़ाबले में बढ़त बनाते हुए फ़ाइनल में बेलारूस की अपनी प्रतिद्वंद्वी को हरा दिया और वर्ल्ड चैंपियन बन गईं।

गोल्ड मेडल जीतने वाली ईरान की पहली महिला पहलवान के तौर पर उनका कहना थाः मुझे वाक़ई बहुत अच्छा लग रहा है। प्रतिद्वंद्वी मुझे ज़्यादा गंभीरता से नहीं ले रहे थे, क्योंकि ईरान इससे पहले तक चैंपियनशिप जीतने के दावेदारों में शामिल नहीं था, लेकिन इन मुक़ाबलों में मैंने गोल्ड मेडल जीता, और एक सिल्वर और एक ब्रोंज़ के साथ हमारी टीम चैंपियनशिप जीतने में सफल रही। बेहतरीन टीम का चयन किया गया था और सभी खिलाड़ियों ने कड़ी मेहनत की। इस टीम का अगर समर्थन किया जाता है, तो निश्चित रूप से यह अगले मुक़ाबलों में भी इस चैंपियनशिप को दोहरा सकती है और बेहतर परिणाम प्राप्त कर सकती है।

इस युवा ईरानी महिला का जीवन, लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए उसके प्रयासों और दृढ़ संकल्प को दर्शाता है। उनका कहना हैः मैं पश्चिमी इस्लामाबाद में पैदा हुई थी और वहीं रहती हूं। अभ्यास के लिए मुझे अकसर किरमानशाह जाना पड़ता था। पिछले साल जब भूकंप आया था, मैं वहीं थीं, लेकिन ख़ुदा का शुक्र कि मेरे परिवार और मुझे कोई नुक़सान नहीं हुआ। हमारे आसपास कई घर तबाह हो गए। भूकंप के बाद परिस्थितियां बहुत कठिन थीं, लेकिन मैंने इसी कम उम्र में संघर्ष का फ़ैसला किया। ख़ुदा का शुक्र है कि मैं सफल हुई और साबित कर दिया कि भूकंप भी मुझे अपने लक्ष्य तक पहुंचने से नहीं रोक सकता।

हानिया अशूरी इससे पहले फ़ुटसाल खेलती थीं और कुछ समय तक उन्होंने स्वदेशी और स्थानीय खेल प्रबंधन की देखरेख में लकड़ी खींचने के खेल में भी हाथ आज़माया और इसमें विश्व कांस्य पदक जीता। यह स्वदेशी और स्थानीय खेलों में से एक है।

अलीश मध्य एशियाई देशों में लड़ी जाने वाली एक परंपरागत कुश्ती है, जो आम तौर पर क़िर्गिस्तान, क़ज़ाख़िस्तान और उज़्बेकिस्तान में लड़ी जाती है और वहां के लोग इसमे काफ़ी माहिर होते हैं। हालांकि, 1990 के दशक की शुरुआत से इस कुश्ती का भौगोलिक रूप से विस्तार हुआ है और आज कुछ पूर्वी यूरोपीय देशों जैसे कि लिथुआनिया और बेलारूस में अलीश लड़ने वाले पहलवान मुख्य रूप से मिल जायेंगे।

हानिया आशूरी का मुक़ाबला फ़ाइनल में एक बेलारूसी प्रतिद्वंद्वी के साथ हुआ था। पूर्वी यूरोपीय देशों में बुल्ग़ारिया 54 अंकों के साथ महिला अलीश कुश्ती प्रतियोगिताओं में पांचवें स्थान पर रहा। इस साल की विश्व चैंपियनशिप में 15 देशों ने भाग लिया। इन देशों के बीच मुक़ाबलों में कि जहां फ्रीस्टाइल और पश्चिमी शैली की कुश्ती के भी मुक़ाबले हुए, ईरानी महिला चैंपियनशिप का अपना महत्व है।

कहा जा सकता है कि ईरानी महिलाओं द्वारा अलीश रेसलिंग के स्वागत का एक कारण यह है कि अलीश कुश्ती खिलाड़ियों की ड्रेस, वर्ल्ड और ओलपिंक रेसलिंग चैंपियनशिप्स महिला खिलाड़ियों की तुलना में ज़्यादा होती है। वास्तव में अलीश रेसलिंग खिलाड़ियों की ड्रेस, ईरान के आधिकारिक मानदंडों के क़रीब होती है, और इससे कुश्ती में रुचि रखने वाली ईरानी महिलाएं ख़ुश होती हैं, जो अपने हिजाब के साथ कुश्ती में अपनी प्रतिभा दर्शा सकती हैं। अगर ईरानी महिला पहलावन, विश्व महिला और ओलंपिक रेसलिंग चैंपियनशिप में हिजाब के साथ भाग ले सकतीं तो ईरानी महिला पहलवान इन महत्वपूर्ण मंचों पर भी अपनी क़िस्मत आज़माने में सफल रहतीं। दूसरे शब्दों में, अलीश रेसलिंग एक ऐसा मंच है, जहां ईरानी महिला पहलवान, अपनी प्रतिभा दर्शा सकती हैं घरेलू और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी क्षमताओं का लोहा मनवा सकती हैं।

55 किलोग्राम वज़न की कैटेगरी में ब्रोंज़ मेडल जीतने वाली ज़हरा यज़दानी इस प्रतियोगिता की पूर्व प्रतियोगिताओं से तुलना करते हुए कहती हैः यह साल एक ऐसा साल था, जब विश्व प्रतियोगिता सिर्फ़ एक भाग में आयोजित हुई। इससे पूर्व यह प्रतियोगिता 2 भागों, क्लासिक और अलीश में आयोजित होती थी, जिससे मेडल जीतने की संभावना बढ़ जाती थी, लेकिन इस साल हमारे पास मेडल जीतने के लिए सिर्फ़ एक चांस था, जिससे मुक़ाबला कठिन हो गया था, ख़ुदा का शुक्र है कि हम चैंपियनशिप जीतकर भरे हाथों से घर लौटे हैं।

जुइबार उत्तरी ईरान का एक शहर है, जो कुश्ती के लिए मशहूर है। हालांकि यहां महिलाओं की  कुश्ती की शुरूआत कुछ वर्ष पहले ही हुई है, लेकिन अब यह किसी के लिए नई बात नहीं रह गई है। वर्तमान में महिलाओं के बीच कुश्ती काफ़ी लोकप्रिय हुई है और कई महिलाओं ने इसे अपनाया है। कह सकते हैं कि कुश्ती यहां के नागरिकों के डीएनए में है और इस खेल में पुरुष या महिला का कोई अंतर नहीं है। मेरी तमन्ना ओलंपिक में खेलने की है, लेकिन ओलंपिक में यह शैली शामिल नहीं है, इसलिए अलीश का ओलपिंक में शामिल होने की आशा नहीं की जा सकती। हालांकि मैं ओलपिंक में खेलना चाहती हूं।

सिल्वर मेडल जीतने वाली फ़ातिमा फ़त्ताही का मानना है कि अगर महिलाओं की कुश्ती का ज़्यादा मदद की जाएगी, तो ईरान की महिला पहलावन ज़्यादा से ज़्यादा अपनी प्रतिभाओं को दर्शा सकती हैं। जुइबार के लोग जिस तरह से पुरुषों की कुश्ती का समर्थन करते हैं, उसी तरह से वे महिला कुश्ती का भी समर्थन करते हैं।

निःसंदेह यह दावा नहीं किया जा सकता कि हमारे समाज में महिलाओं के उच्च व्यक्तित्व का वैसा ही चित्रण किया गया है, जिस तरह से किया जाना चाहिए था। ईरान की इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता के मुताबिक़, प्रगति के पथ पर ईरानी महिलाओं की अभी शुरूआत है। मानवता के पहलू से मर्दों और औरतों में कोई अंतर नहीं है, महत्व की दृष्टि से इंसानियत की तुलना में लिंग का दर्जा बाद में आता है। ईरान की इस्लामी क्रांति के 40 साल के अनुभव से पता चलता है कि इस्लामी समाज में इस्लामी और इंसानी मूल्यों और एक इंसान की आम ज़िम्मेदारियों के मुताबिक़, पुरुष और महिलाएं एक समान और एक स्तर के हैं। सिर्फ़ सृष्टि में अंतर के आधार पर उनकी कुछ विशेष ज़िम्मेदारियां हैं। इसलिए पारिवारिक ज़िम्मेदारियों के साथ ही महिलाओं की सामाजिक ज़िम्मेदारियां अर्थपूर्ण होती हैं, लेकिन यह पारिवारिक ज़िम्मेदारियां, महिलाओं की सामाजिक गतिविधियों में बाधा नहीं बन सकती हैं।

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