इस्राईल की बंदरगाहों और सरकारी संस्थाओं व प्रतिष्ठानों को लक्ष्य बना सकते थे

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इस्राईल की बंदरगाहों और सरकारी संस्थाओं व प्रतिष्ठानों को लक्ष्य बना सकते थे

ईरान के विदेशमंत्री हुसैन अमीर अब्दुल्लाहियान अभी पिछले दिनों न्यूयार्क की यात्रा पर गये थे वहां उन्होंने "एनबीसीन्यूज़" के साथ साक्षात्कार में क्षेत्र के हालिया परिवर्तनों और ईरान की नीतियों के बारे में महत्वपूर्ण बातें कही हैं। उन्होंने इस साक्षात्कार में महत्वपूर्ण बिन्दुओं की ओर संकेत किया है कि उसके सारांश की ओर हम संकेत कर रहे हैं।

साक्षात्कार करने वाला या एंकर श्रीमान विदेशमंत्री जी आपका आभार प्रकट करते हैं कि आपने हमारे साथ साक्षात्कार करने को स्वीकार किया है। हम सब जानते हैं कि वातावरण काफी तनावग्रस्त है, इस साक्षात्कार को जो अमेरिकी देख रहे हैं वे ईरान और इस्राईल के मध्य एक ख़तरनाक जंग को लेकर बहुत चिंतित हैं उनके लिए आपका क्या संदेश है?

विदेशमंत्री हुसैन अमीर अब्दुल्लाहियानः हमने गज्जा संकट के आरंभ से ही बारमबार एलान किया है कि इस्लामी गणतंत्र ईरान क्षेत्र में जंग और तनाव में वृद्धि नहीं चाहता। जारी शनिवार को जो कुछ हुआ उसमें हमने अपनी रक्षा के कानूनी अधिकार के परिप्रेक्ष्य में इस्राईल के दो सैनिक ठिकानों को लक्ष्य बनाया। इस्राईल ने दमिश्क में ईरानी काउंसलेट पर जो हमला किया था उसके जवाब में हमने यह हमला किया था। कामयाबी के साथ इस हमले के समाप्त होने के तुरंत बाद एक संदेश देकर हमने अमेरिका को बता दिया कि इस्राईल के खिलाफ कार्यवाही जारी रखने का हमारा कोई इरादा नहीं है मगर हमने अमेरिका से बारमबार कहा था कि वह जायोनी सरकार से कहे कि जंग को क्षेत्र में विस्तृत न करे। यह वह पद्धति व चाल है जिस पर नेतनयाहू चल रहे हैं ताकि वह सत्ता में बाकी रह सकें और उनकी सरकार भी बनी रहे। इस्लामी गणतंत्र ईरान क्षेत्र के सकारात्मक परिवर्तनों का भाग है, चाहे हालिया वर्षों में आतंकवाद से मुकाबले में और चाहे गज्जा पट्टी में जंग को बंद कराने और क्षेत्र में दोबारा शांति व सुरक्षा बहाल कराने, भूमध्य सागर के तटों से लेकर लाल सागर और समूचे क्षेत्र तक।

एंकरः आपसे एक महत्वपूर्ण सवाल पर संक्षेप में करना चाहता हूं कि क्या ईरान जवाब देगा?

विदेशमंत्री अमीर अब्दुल्लाहियानः अगर इस्राईल कोई पैंतरेबाज़ी करता है और ईरान के खिलाफ कार्यवाही करना चाहता है तो हमारा जवाब पहले से भिन्न होगा। पहले वाला हमारा जवाब कम से कम और सीमित था। हमने इस्राईल के केवल दो सैनिक ठिकानों को लक्ष्य बनाया। एक हवाई छावनी व ठिकाना नवातिम और दूसरा अतिग्रहित गोलान की पहाड़ियों पर जासूसी व सूचना केन्द्र को लक्ष्य बनाया। दमिश्क में ईरानी काउंसलेट पर हमने में इन दोनों केन्द्रों की भूमिका थी। अगर जायोनी सरकार पैंतरेबाज़ी नहीं करेगी तो ईरान जायोनी सरकार के खिलाफ कोई नई कार्यवाही नहीं करेगा।

साक्षात्कार करने वालाः हमारे स्रोतों ने कहा है कि इस्राईल ने पिछली रात को बदला ले लिया है और यह इस्राईल था जिसने ईरान पर बमबारी की है।

विदेशमंत्री अमीर अब्दुल्लाहियानः जो कुछ गत रात्रि हुआ वह केवल दो या तीन क्वाडक्वाप्टर थे जो एक बहुत ही सीमित जगह व वातावरण में थे और उन्हें तुरंत मार गिराया गया और इसकी ज़िम्मेदारी भी किसी ने स्वीकार नहीं की है।

एंकरः क्या कल रात को इस्राईल के प्रतिशोध लेने वाले हमले से ईरान अवगत हो गया था?

विदेशमंत्रीः हमारा एअर डिफेन्स सिस्टम आटोमैटिक व स्वचलित है जैसे ही दो या तीन क्वाडक्वाप्टर इस्फहान के आसमान में दिखाई दिये उन्हें भेद दिया गया और वे ध्वस्त होकर गिर गये। हमारी सशस्त्र सेनायें शत प्रतिशत चौकस व मुस्तैद हैं।

एंकरः क्या सीरिया में ईरानी काउंसलेट पर हमले के विषय को खत्म हुआ जानते हैं और अब आप कोई अन्य कार्यवाही नहीं करेंगे?

विदेशमंत्रीः हम जंग को विस्तृत नहीं करना चाहते इस वजह से हमने संयंम से काम लिया। नेतनयाहू हमारे संयंम को ग़लत समझ बैठे और उन्होंने रेड लाइन को पार कर दिया और हमारे काउंसलेट पर 6 मिसाइलों से हमल किया। यहां पर हमारे सामने दो रास्ता था एक इस्राईल को तुरंत जवाब और दूसरा संयंम और डिप्लोमेसी को अवसर देना। हमने डिप्लोमैसी को अवसर दिया और क्षेत्र और गज्जा की स्थिति को ध्यान में रखते हुए हमने संयंम से काम लिया और जंग को विस्तृत न करने की नीति अपनाई। हमारी यह नीति इस बात का कारण बनी कि राष्ट्रसंघ की सुरक्षा परिषद की बैठक बुलाई गयी। हमें इस बात की अपेक्षा थी कि वियना कन्वेशन का उल्लंघन हुआ है और सुरक्षा परिषद में इस्राईल के हमले की भर्त्सना में एक प्रस्ताव पारित किया जायेगा परंतु खेद के साथ कहना पड़ता है कि अमेरिका, ब्रिटेन और फ्रांस के कारण ऐसा न हो सका और उन्होंने इस्राईल के खिलाफ प्रस्ताव पारित होने का विरोध किया। फिर हमारे सामने एक ही विकल्प बाकी बचा। स्पष्ट जवाब और अपनी वैध रक्षा के परिप्रेक्ष्य में ईरान की चेतावनी। जब हमने इस्राईल के खिलाफ सैनिक कार्यवाही का फैसला किया तो पहले हम चेतावनी देना चाहते थे और इस्राईल को सज़ा देना चाहते थे इसलिए हमने हमले में मुनासिब होने को ध्यान में रखा। हम हैफा और तेलअवीव को लक्ष्य बना सकते थे, हम जायोनी सरकार की बंदरगाहों को लक्ष्य बना सकते थे, हम जायोनी सरकार की सरकारी संस्थाओं और आर्थिक प्रतिष्ठानों को लक्ष्य बना सकते थे परंतु आम नागरिक हमारी रेड लाइन थी। हमारा लक्ष्य केवल सैनिक था और वह भी केवल दो सैनिक ठिकाने जिनका प्रयोग दमिश्क में हमारे काउंसलेट पर हमला करने के लिए किया गया था। हम यह दिखाना चाहते थे कि हम अपने हितों और राष्ट्रीय सुरक्षा की रक्षा के लिए तैयार हैं और इसी तरह हम इसके बाद के परिणामों के लिए भी तैयार हैं। जायोनी सरकार ने अगर गलती की तो बाद वाला जवाब कड़ा, तुरंत और पछताने वाला होगा।

एंकरः ईरान इस्राईल के खिलाफ जंग में दाखिल हो गया है, आपका देश सीरिया में इस्राईल के हमले में दो जनरलों और सिपाहे पासदारान के 5 सदस्यों को खो चुका है, गज्जा पट्टी के दसियों हज़ार लोग मारे जा चुके हैं, जब अतीत पर नज़र डालें और सात अक्तूबर को इस्राईल पर होने वाले हमले के बारे में सोचें तो आपके विचार में क्या हमास सीमा से आगे बढ़ गया है?

विदेशमंत्रीः हमास ने जो किया है उसके बारे में हमें पहले से नहीं पता था मगर एक वास्तविकता मौजूद है। इसकी जड़ सात अक्तूबर में नहीं है। इसकी जड़ 75 साल पुरानी है। जड़ 75 साल पहले फिलिस्तीनियों की ज़मीन के अतिग्रहण में है। इस्राईल एक वैध व कानूनी सरकार नहीं है। अंतरराष्ट्रीय कानूनों के अनुसार इस्राईल एक अतिग्रहणकारी सरकार है। अतिग्रहण की अवधि के लंबा होने से अतिग्रहणकारी के लिए कोई अधिकार उत्पन्न नहीं हो जाता है। अंतरराष्ट्रीय कानून कहता है कि अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिए स्वतंत्रता प्रेमी गुट व आंदोलन अपने देश से अतिग्रहणकारियों को बाहर निकालने के लिए कार्यवाही कर सकते हैं। हमास आतंकवादी गुट नहीं है। हमास एक एसा गुट है जिसकी जड़ें फिलिस्तीनी लोगों व जनता में है और वह अतिग्रहण के मुकाबले में एक स्वतंत्रता प्रेमी गुट व आंदोलन है। संकट की जड़ अतिग्रहण में है उस पर ध्यान दिया जाना चाहिये। उसकी जड़ सात अक्तूबर नहीं है।

एंकरः मैं जानता हूं कि आप कई साल तक डिप्लोमेट थे। क्या इस बात की अहमियत व ज़रूरत थी कि हमास इस प्रकार की कार्यवाही करता और उसका नतीजा इस प्रकार निकला?

विदेशमंत्रीः हमास फिलिस्तीनी जनता के हितों के परिप्रेक्ष्य में फैसला करता है। हमास फिलिस्तीनी लोगों की इच्छाओं के परिप्रेक्ष्य में फैसला लेता है। हमास ने अपना भविष्य निर्धारित करने हेतु राष्ट्रसंघ के प्रस्ताव के परिप्रेक्ष्य में कदम उठाया है। अतिग्रहण के मुकाबले में हम हमास का समर्थन करते हैं। हमने इस संकट के आरंभ और सात अक्तूबर के शुरू से स्पष्ट शब्दों में एलान किया है कि इस्लामी गणतंत्र ईरान ने कभी भी आम नागरिकों, बच्चों और महिलाओं की हत्या का दुनिया में न तो समर्थन किया है न करता है।

एंकरः क्या आप समझते हैं कि बाइडन सरकार फिलिस्तीन को एक देश के रूप मान्यता देने में सच्ची है जबकि राष्ट्रसंघ में उसने फिलिस्तीन की सदस्यता का विरोध किया है?

विदेशमंत्रीः देखिये मेरे विचार में बाइडन की सरकार ने फिलिस्तीन के विषय और गज्जा के बारे में कुछ चीज़ों को अपनी कार्यसूची में शामिल कर रखा है और कुछ चीज़ें उनके व्यवहार में देखी जा रही हैं। हम अमेरिका की कथनी और करनी में विरोधाभास को देख रहे हैं। मिसाल के तौर पर एक तरफ अमेरिका यह कहता है कि वह युद्धविराम के लिए प्रयास कर रहा है और दूसरी तरफ वह युद्ध विराम को कबूल करने के लिए नेतनयाहू पर अपने प्रभाव का अच्छी तरह प्रयोग नहीं कर रहा है। आप देखिये ईरानी काउंसलेट पर हमला करने के लिए अमेरिका इस्राईल के अख्तियार में अपना युद्धक विमान देता है और अमेरिकियों ने हमें संदेश दिया कि हम इस हमले में शामिल नहीं थे और हमारी तरफ से इस्राईल को हरी झंडी नहीं दिखाई गयी थी और न ही हमसे समन्वय किया गया था। अगर हम इस बात को मान लें कि अमेरिका और वाइट हाउस की बात सही है तो हमें इस बात को स्वीकार करना चाहिये कि नेतनयाहू किसी भी रेड लाइन पर ध्यान नहीं दे रहे हैं। अगर नेतनयाहू किसी भी रेड लाइन पर ध्यान नहीं दे रहे हैं तो इतना उनका समर्थन क्यों किया जा रहा है? वह अमेरिका जो शांति, युद्ध विराम और क्षेत्र में सुरक्षा के बहाल होने और युद्ध के विस्तृत न होने की बात करता है वही अमेरिका क्यों एक अरब डॉलर का हथियार इस्राईल भेजने का फैसला करता है? अमेरिकी अधिकारी उसके बारे में क्यों साक्षात्कार करते हैं? अगर अमेरिका यह चाहता है कि नेतनयाहू रेड लाइन क्रास न करें तो जब अंतरराष्ट्रीय कानूनों के उल्लंघन की वजह से इस्राईल की भर्त्सना में बयान जारी होने वाला होता है तो अमेरिका उस पर विरोध करता व आपत्ति क्यों जताता है? अमेरिका वियना कंवेन्शन का समर्थन करने के लिए क्यों तैयार नहीं होता है? जबकि इस कंवेन्शन में कूटनयिकों और कूटनयिक स्थानों की सुरक्षा का समर्थन किया गया है ?

एंकरः जैसाकि आप जानते हैं कि अमेरिका में चुनाव होने वाले हैं। ईरान बाइडेन के साथ वार्ता को प्राथमिकता देगा या ट्रंप के साथ?

विदेशमंत्रीः अमेरिकी लोगों को पसंद करना चाहिये। अमेरिका में होने वाला हर चुनाव अमेरिकी समाज से संबंधित है। हमारी अपनी विदेश नीति के कुछ सिद्धांत हैं। हमारे लिए डेमोक्रेटों और रिपब्लिकंस में कोई फर्क नहीं है। वास्तविक अंतर को अमेरिकी व्यवहार में देखना चाहिये। हम अमेरिकी व्यवहार के आधार पर फैसला करेंगे। अगर अमेरिकी व्यवहार का आधार ईरान के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप न करने, ईरानी लोगों और ईरानी सम्प्रभुता के सम्मान पर रहा तो अमेरिकी लोग जिसे भी चुनेंगे उसका सम्मान किया जायेगा।

एंकरः ईरान ने अपनी इस्लामी क्रांति की 45वीं वर्षगांठ मनाई। ईरानी लोगों के अपने यहां की अर्थ व्यवस्था और सरकार से नाराज़ होने की रिपोर्टें हम तक पहुंची हैं। मानवाधिकार और नागरिक अधिकारों के हनन की रिपोर्टें भी मौजूद हैं। अगले 45 सालों के लिए दुनिया से आप क्या कहेंगे?

विदेशमंत्रीः पहली बात तो यह है कि गत 45 वर्षों में हमने राजनीतिक क्षेत्र में और दूसरे नंबर पर विज्ञान, तकनीक, उद्योग और प्रतिरक्षा आदि के क्षेत्रों में काफी बड़ी व उल्लेखनीय प्रगति की। कुछ विषयों में हम दुनिया के पांच या देशों में पहले नंबर पर हैं और प्रतिबंधों के कारण जिन क्षेत्रों में हमें अनुमति नहीं दी जाती थी उसमें भी हमने लोगों और जवानों की सहायता से उल्लेखनीय प्रगति की है। आर्थिक कठिनाइयों के संबंध में यह एक वास्तविकता है। उसके कुछ भागों का संबंध अमेरिका की गैर कानूनी नीतियों और अमेरिका के एकपक्षीय प्रतिबंधों और अमेरिका द्वारा दूसरे देशों को डराने से है। इसी प्रकार विदेशमंत्री ने कहा कि आर्थिक कठिनाइयों के एक भाग का संबंध पूरे क्षेत्र में मौजूद आर्थिक कठिनाइयों से है और वह केवल ईरान तक सीमित नहीं है। हमने बड़ी रुकावटों को पार कर लिया है। हमारा देश आज विज्ञान, तकनीक और प्रतिरक्षा के क्षेत्र में दुनिया के एक मज़बूत व शक्तिशाली देशों में से एक है। आर्थिक क्षेत्र में भी लोगों और जवानों की सहायता से हमारी सरकार ने जो कार्यक्रम बना रखा है उसके दृष्टिगत ईरान और ईरानी लोगों का भविष्य उज्जवल होगा। हमारी सरकार भी इस दिशा में लोगों की मदद से बड़ी कामयाबी हासिल करेगी। आर्थिक प्रतिबंधों ने हमें नुकसान पहुंचाया है मगर उसने हमें बड़ा दर्स दिया है और उसने नतीजों और बड़ी उपलब्धियों को ईरानी लोगों को समर्पित किया है।

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