प्राचीन समय से भारत विविधता के लिए मशहूर है यानी वहां विभिन्न जातियों और धर्मों के लोग एक दूसरे के साथ रहते हैं।
भारत दुनिया में क्यों बदनाम होता जा रहा है?पिछली शताब्दी में इंटरनेश्नल पैमाने पर भारत की यह छवि बनी कि वह साम्राज्यवाद विरोधी देश व समाज है परंतु पिछले एक दशक में विशेषकर पिछले दो सालों में विश्व जनमत के निकट इसमें बहुत गिरावट आयी है। आश्चर्य है कि भारत की छवि में गिरावट विश्व के उत्तरी देशों और पश्चिमी देशों में भी देखी गई जबकि ग़ैर पश्चिमी देशों में भी भारत की छवि को बहुत नुकसान पहुंचा है।
यहां हम तीन कारणों की ओर संकेत कर रहे हैं:
पश्चिम और पश्चिमी संचार माध्यम भारतीय लोगों से नफरत करते हैं।
प्रसार भारती के मुख्य कार्यकारी अधिकारी शशि शेखर वेमपति कहते हैं कि भारत हमेशा अपने ख़िलाफ़ पश्चिमी संचार माध्यमों के गलत दावों का जवाब देता है। वह कहते हैं:
पश्चिमी संचार माध्यम भारत को हाथियों, सांपों और निर्वस्त्र गरीब व निर्धन लोगों की सरज़मीन बताते हैं।
वेमपति पश्चिमी संचार माध्यमों द्वारा भारत की छवि को खराब करने का कारण यह बयान करते हैं कि पश्चिम में संचार माध्यम अपने आडियंस बढ़ाने के लिए इस तरह की ख़बरें देते हैं।
वह आगे कहते हैं:
पश्चिमी संचार माध्यम चीन सहित बड़े बाज़ारों में अपने आडियंस बढ़ाने के लिए भारत की छवि बिगाड़ कर पेश करने की कोशिश करते हैं।
भारतीयों का मज़ाक़ बनाता जर्मन पत्रिका का कार्टून
न्यूयार्क में रहने वाले और येल विश्व विद्यालय से शिक्षा प्राप्त करने वाले पत्रकार श्रवण भट्ट भी कहते हैं:
समाचार पत्र और खबर के व्यापार में कहानी का बिकना ज़रूरी होता है और कहानी को बेचने के लिए नैरैटिव का बिकना ज़रूरी होता है।
यह उस हालत में है कि जब भारत के लोग हमेशा पश्चिम को पसंदीदा सरज़मीन और सभ्य लोगों की धरती की नज़र से देखते हैं।
श्रवण भट्ट इसी संबंध में पश्चिमी आडियंस विशेषकर अमेरिकी लोगों से यह सवाल पूछते हैं कि अगर पश्चिमी समाजों की वास्तविकतायें जैसे हथियारों से हमले, जातिवाद, भेदभाव और नशे के संकट जैसी बातें भारतीय लोगों के सामने पेश की जायें तो वे कैसा महसूस करेंगे? जबकि पश्चिमी संचार माध्यमों द्वारा खबरों में फेरबदल किए जाने के कारण भारतीय लोग आज भी पश्चिम की अवास्तविक और काल्पनिक सुन्दरता को देख रहे हैं।यह कार्टून यह दर्शाता है कि पश्चिमी राजनेताओं ने भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को धोखा देकर और उनके साथ छलावा करके उन्हें अपने पड़ोसी देश चीन के मुकाबले में खड़ा कर दिया है।
भारत में चरमपंथी तत्व और धड़े हावी हो गए हैं
इंटरनेश्नल पैमाने पर भारत की जो छवि थी कि वह महात्मा गांधी और विविधता की सरज़मीन की छवि थी। लेकनि हालिया दशकों में राजनीतिक परिवर्तनों के कारण वह विविधताओं और महात्मा गांधी की सरज़मीन से हिंसा और नफ़रत की सरज़मीन में बदल गयी है। भारत की यह जो तस्वीर बनी है उसका एक महत्वपूर्ण कारण भारत के वर्तमान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और भारतीय जनता पार्टी का सत्ता में आना है। जाने अनजाने में भारतीय जनता पार्टी ने इस्लाम विरोधी गतिविधियां की हैं, इस्राईल का समर्थन किया है, पश्चिम के हितों की सेवा और पश्चिमी संचार माध्यमों की हां में हां मिलाई है।
नई दिल्ली में विकासशील समाज अध्ययन केंद्र (सीएसडीएस) द्वारा कराया गया सर्वे इस बात का सूचक है कि भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की नीतियों ने धार्मिक सांप्रदायिकता की खाई को और गहरा कर दिया है।
यह खाई हिन्दुओं और मुसलमानों के मध्य आज अधिक दिखाई दे रही है। वास्तविकता भी यही है कि भारतीय जनता पार्टी ने हिन्दुत्ववादी नारे लगाकर और हिन्दुओं को उकसा कर सत्ता की बागडोर अपने हाथ में ले ली और आरएसएस और शिवसेना जैसे कट्टरपंथी हिन्दु गुटों को उकसाकर आम लोगों का सोचने का अंदाज़ अपने स्वार्थों के अनुसार बदल दिया।
वर्ष 2014 में जब से भाजपा सत्ता में आयी है तब से भारत के विभिन्न नगरों में मुसलमानों के खिलाफ़ हिंसा में अभूतपूर्व वृद्धि हो गयी है। मस्जिदों में आग लगाना और उन्हें नुकसान पहुंचाना, धार्मिक कार्यक्रमों के आयोजन में अड़ंगा लगाना, मुसलमान शरणार्थियों को भारत में रहने की अनुमति न देना कश्मीर का विशेष दर्जा ख़त्म करना और मुसलमानों के खिलाफ कट्टरपंथी हिंदुओं के हमलों पर चुप्पी वे कार्य हैं जो हालिया वर्षों में भारतीय मुसलमानों के खिलाफ़ अंजाम दिये गये हैं। ये चीज़ें इस बात का कारण बनी हैं कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर और धार्मिक समाजों और इस्लामी देशों में भारत के खिलाफ़ भावनाएं भड़की हैं।
भारत का साम्राज्यवाद विरोधी छवि से दूरी बना लेना और साम्राज्यवादी धड़े की ओर झुकाव उसकी बदनामी का एक अन्य कारण है। गुट निरपेक्ष आंदोलन से दूरी बनाकर भारत का झुकाव पश्चिम की ओर हो गया और इसी संदर्भ मे यह भी देखा गया कि भारत की विदेश नीति ज़ायोनी सरकार की ओर झुक गई।
इस संबंध में एक अजीब चीज़ हुई जिसने विश्व वासियों का ध्यान अपनी ओर खींचा। मिसाल के तौर पर फ़िलिस्तीन के संबंध में भारत की नीति विरोधाभासों से भरी पड़ी है। पहले भारत की नीति यह थी कि वह इस्राईली क़ब्ज़े के मुकाबले में फ़िलिस्तीन के मज़लूमों का समर्थन करता था परंतु अब वह हमलावर और क़ाबिज़ का समर्थन करने लगा है और उसका यह समर्थन केवल राजनीतिक और आर्थिक पहलुओं तक सीमित नहीं है बल्कि वह सैनिक क्षेत्र तक पहुंच गया है। जायोनी सरकार के साथ भारत के संबंधों में इतनी मज़बूती आ गयी है कि नरेन्द्र मोदी विश्व के उन पहले नेताओं में थे जिन्होंने तूफ़ान अलअक्सा ऑप्रेशन की निंदा की थी।
यही नहीं जब 27 अक्तूबर को राष्ट्र संघ सुरक्षा परिषद में गज्जा पट्टी में मानवीय आधार पर युद्ध विराम कराने के संबंध में एक प्रस्ताव पेश किया गया तो भारत ने युद्ध विराम प्रस्ताव के पक्ष में मतदान करने के बजाए मतदान में हिस्सा नहीं लेने का विकल्प चुना।
डिप्लोमैट वेबसाइट ने ख़ुलासा किया है कि इस्राईल के समर्थन पर आधारित भारत की इस नीति का भारत में यह असर हुआ कि कट्टरपंथी हिन्दू, ग़ज़ा में जो कुछ रहा है उसके संबंध में सोशल मीडिया पर जायोनी सरकार के हित में गुमराह करने वाली खबरें फैला रहे हैं। इतना ही नहीं इन दुष्प्रचारों में भारत के अल्पसंख्यक मुसलमानों को भी लक्ष्य बनाया गया।
अंत में यह कि पश्चिमी संचार माध्यमों का जातिवादी और साम्राज्यवादी नज़रिया और दूसरी तरफ़ भारतीय राजनेताओं के अजीबोग़रीब और बहुत ग़लत फैसले इस बात का कारण बने कि जिस तरह भारत पश्चिम के लोगों के बीच अलोकप्रिय था उसी तरह दूसरे राष्ट्रों के बीच भी उसकी बदनामी हो रही है और वह एक साम्राज्यवाद विरोधी नायक और संघर्षरत देश से अब वर्चस्ववादी व्यवस्था का एक सहयोगी बन गया है